neyaz ahmad nizami

Monday, October 8, 2018

सूफी सय्यद फख़रूद्दीनرحمةاللّٰه عليه परसौनी बाज़ार : नेयाज़ अहमद निज़ामी,



किसी भी वस्तु का विस्तार, उस की सत्य / असत्य का परिचय होता है, बिना इस के उस का वजूद सम्भव नहीं, जब हम किसी का सम्पूर्ण रूप से परिचय पा लेते हैं तो उस की हैसियत का आंकङा लगाने मे आसानी हो जाती है,
हमारे जिला महाराजगंज यू.पी. के एक गांव, परसौनी बाज़ार में एक महान हस्ती अपनी क़ब्र में विश्राम कर रहे हैं, जिन को उन के मानने (अनुयाईय) वाले फख़रूल औलिया के नाम से जानते हैं,
जिन का उर्स इस्लामी महीना सफर-उल-मुज़फ्फर की 21 तारीख को परसौनी बाज़ार में मनाया जाता है, उन के जीवन के  संक्षिप्त हालात निम्न हैं।(نیاز احمد نظامی)

::वेलादत (जन्म दिन)::
27रजब-उल-मोरज्जब, 1262ھ को सुब्ह सादिक़ के समय ख़लीलपूर उर्फ मियां का पुरवा, अल्लाहाबाद शहर से पश्चिम गंगा के दूसरे पार आप का जन्म हुआ,
पिता श्री मखदूम सुफी सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर सोहरवर्दी अपने कमरे में क़ुरआन पढने  में व्यस्त थे, खबर दी गई , आप तशीरफ लाए, अपने पूत्र को गोद में लिया, दाएं कान में अज़ान और बाएं कान मे तकबीर कही, फिर शहादत की उंगली (अनामिका,अंगूठा के बगल वाली उंगली) के जरिए अपना थूक साहबजादे (पूत्र) के मुंह में डाला,

::नामकरण::
और उसी समय “मुहम्मद अहमद„ नाम रखा और इसी नाम पर सातवें दिन अक़ीक़ा भी किया, और बाद में उर्फी नाम “फखरूद्दीन„ रखा और दुनिया इन्हे  “फख्र-उल-औलिया/क़ूतुब-उल-औलिया„ के नाम से जानती है।

::शिक्षा दिक्षा::
पिता श्री सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर ने अपने पुत्र फखरूद्दीन की शिक्षा का शुभारंभ कराया, कायदा बगदादी, अम्मा पारा, नाज़रा-ए-कुरआन, और फारसी की शुरूआती किताबों के बाद  नहो(अरबी ग्रामर) सर्फ, फिक्ह, और ओसूल-ए-फिक्ह, की बुनियादी किताबें मिश्कात, जलालैन, हेदाया, शरह अकायद, फल्सफा, हिकमत, मंतिक़, आदि की शिक्षा पूरी कराई, इस के बाद फख्र-उल-औलिया दुनियावी पढाई की तरफ ध्यान दिए, मकामी स्कूल में एडमीसन  लिया मीडिल क्लास तक पढाई करते रहे, क्लास में फस्ट पोज़ीशन पर रहे, अच्छे नम्बर से इम्तेहान में पास हुए और 22 वर्ष की आयू में धार्मिक और दुनियावी पढाइ पूरी कर ली।

::बैअ़त (मूरीदी) व खेलाफत::
आप के पिता सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर ने आप को सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी की बारगाह में मिन्डारा शरीफ जिला ईलाहाबाद भेज दिया,
सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी एक पहुंची हुई हस्ती और बा करामत पीर थे फखरुल औलिया उन के पास जाकर अलौकिक शक्तियों की प्राप्ती के लिए जप तप कर  के उसे हासिल कीं और कई साल तक उन से शिक्षा लेते रहे,जब आप जाहिरी बातीनी ज्ञान प्राप्त कर लिए  तो सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी ने कादरी  सिलसिला में बैअत (गुरमुख) ली और इस की इजाज़त भी दी,

::शादी मुबारक::
मिन्डारा शरीफ मे रहने के जमाना ही में आप काफी मशहूर हो गए थे,इसी वजह से आप की शादी का रिश्ता दूर दूर से आने लगा, मगर पीर के हुक्म के मुताबिक सन 1294ھ को पिता ने फखर-उल-औलिया के लिए सय्यद शाह “सज्जाद अली„ की लड़की से रिश्ता मंजूर कर लिया और  निकाह हो गया और सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी علیہ الرحمہ ने निकाह पढाई।

::औलादें::
आप की तीन औलादें हुईं, तीनों लड़के, लड़कियां एक भी नहीं,
(1) हजरत शैख-ए-क़ादरियत अ़ल्लामा शाह सूफी सय्यद “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ क़ादरी علیہ الرحمہ मज़ार पाक शहडोल MP

(2) हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वसीयुद्दन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ नैनीचक अल्लाहाबाद

(3) हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वलीउद्दीन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ मज़ार पाक जहांगीर नगर, फतहपूर (यूपी)

हजरत  अ़ल्लामा सूफी सय्यद “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ क़ादरी علیہ الرحمہ के लड़के हज़रत सूफी सय्यद शाह अब्द-उर-रब साहब علیہ الرحمہ हैं, जो कालरी (कोईलरी)में सरकारी सर्विस कर रहे थे फरवरी 2013 मे रिटायर हुए,  इस के अलावा खानक़ाहे क़ादरिया, फखरिया (क़ादरी आस्ताना) के सज्जादा नशीन (उत्तराधिकारी) और दारुल उलूम क़ुद्दूसिया अहल-ए-सून्नत फखरुल उलूम परसौनी बाज़ार महाराजगंज (यूपी) के सरपरस्त (संगरक्षक) भी थे, जिन का इंतेक़ाल (देहांत) 5 मुहर्रम 1439 ھ मुताबिक़ 25 सितम्बर 2017 में हुआ,

हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वसीयुद्दन अहमद क़ादरी علیہ الرحہ जिन के बारे में इन के पिता ने फरमाया था कि मेरा दुसरा बेटा हकीम सूफी होगा, इन के दो पुत्र हैं (1) सय्यद शाह वजीहुद्दीन उर्फ बन्दे मियां (2) सय्यद शाह मुहम्मद फोज़ैल साहब दोनो साहबज़ादे हयात से (जीवित) हैं और धर्म प्रचार प्रसार में व्यस्त हैं,

हजरत सुफी सय्यद वलीउद्दीन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ जिन के बारे में उन के पिता ने फरमाया कि यह आखरी शैख  होगा,
इन की दो शादी हुई, लगभग 30 साल की उम्र में पहली पत्नी सय्यदा आलिया जो बेटी हैं सय्यद मुज्तबा खलीलपूरी की का पैगाम आने पर हा कह दिया गया और निकाह कर दिया गया इन से दो औलादें हुईं एक लड़का और एक लड़की बाल अवस्था ही में दोनो का देहांत हो गया और आप की पत्नी भी इस दुनिया को अलविदा कह के बाकी रहने वाली दुनिया में चली गईं यानी इन का भी देहांत हो गया,पहली बीवी के इन्तेकाल के छ: सात वर्ष गुजर जाने के बाद घर वालों व कुछ लोगों के बार बार कहने के बाद मिनहाज पूर कोशाम्बी में आप का दुसरा निकाह हुआ,सय्यदा कनीज़ फातेमा मखदूम सय्यद मिनहाजुद्दीन हाजियुल हरमैन बिहारी के खानदान से थीं जो बहुत ही पाक सीफत परहेजगारी, वगैरह की मालकिन थीं,
दूसरी पत्नी सय्यदा कनीज़ फातेमा से छ: लड़के और 3 लड़कियां हुईं छ:में से 5 का बालावस्था ही में इन्तेकाल (देहांत) हो गया आखरी साहबजादे मखदूम शैख शोएब अहमद जो मश्हूर हैं सय्यद गुलाम ग़ौस़ मियां कादरी के नाम से हैं, जो आप के खलीफा और उत्तराधिकारी बने,
तीन लड़कियों के नाम यह हैं
(1) सय्यदा सितारा खातून
(2) सय्यदा नजमा खातून
(3) सय्यदा अंजुम खातून


::परसौनी बाज़ार में आगमन::
घरेलू  अवश्यकताओं को पूरा करने के बाद धर्म प्रचार की तरफ ध्यान केन्द्रित किया,
सुफी सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर सोहरवर्दी के मूरीदीन (चेले) की अच्छी खासी संख्या बिहार बलिया के कुछ एलाक़ों में थी पहले आप ने वहां की यात्रा किया फिर बंगाल, अंडमान, तक गए वापसी में मखदूम-ए-बिहार के दरबार में हाज़री दी पटना आने के बाद मालूम हुआ कि बरेली शरीफ के बड़े हज़रत यहां आए हैं आप अल्लामा ज़फरुद्दीन बिहारी के पास गए वहीं सदरुश्शरिया और आला हज़रत رضی اللہ عنھما से मुलाक़ात की फिर कुछ दिनो तक उत्तर प्रदेश में टांडा के अलाक़ों में ठहरे धर्म प्रचार किया फिर नेपाल के सरहदी क्षेत्रों की तरफ ध्यान दिया और शाअ़बान 1338ھ को जुमा की नमाज पढने के लिए गोरखपूर की मस्जिद में हाज़िर हुए नमाज़ के बाद जप तप (औराद व वजीफा) में लीन हो गए, तभी परसौनी बाज़ार के कुछ लोग जैसे अब्दुल करीम उर्फ बंधू शैख, और अली एमाम, वगैरह नमाज़ के बाद मस्जिद के एक कोने में बैठे कुछ बाते कर रहे थे, उन लोगों की नज़र फख़रूल औलिया पर पड़ी इन को देख कर बहुत प्रभावित हुए  और फख़रूल औलिया के पास आकर बैठ गए,और उन्होने कहा होजूर हमारा एलाका बहुत ही पिछड़ा और जहालत का गढ है, इस्लाम बराए नाम है ,अगर हमारे तरफ ध्यान दें तो शायद आप की चर्णो की बरकत से कुछ सूधार बो जाए,
आप ने फरमाया: तुम मुझे जानते हो?
कहने लगे: जानते तो नहीं मगर नूरानी सूरत से पता चल रहा है कि इस्लाम के सच्चे प्रचारक हैं, गुस्ताखी मोआफ करें,
आप ने फरमाया: गुस्ताखी की कोई बात नहीं मेरा काम धर्म प्रचार है  अगर मेरी वहां जरूरत है तो फिर मुझे अपने साथ ले चलो,
उन लोगों ने फखरूल औलिया को अपने साथ परसौनी लाए और इन्ही लोगों के यहां रह कर दीन का प्रचार करना शूरू किया,लोगों नें दिल खोल कर आप की मदद की और हमेशा मदद कौ तत्पर रहे।

::शक्ल व सूरत::
कद: लम्बा,
जिस्म: भरा हुआ पुर गोश्त,
चोहरा: गोल,
रंग: सफेदी लिए हुए गोराई,
आंखें: गोल और जलाल से भरी हुई,
दाढी: काफी घनी सीने तक फैली हुई,
आखरी उम्र में सर और दाढी के बाल सफेद हो गए पैदल ज्यादा यात्रा करते, चलने में तेज़, लेहजा नरम, थकान का असर जाहिर नही होता यानी पता नही चलता,

::खाना पीना::
खिचड़ी, जौ या गेहुं की चपाती, कद्दू की सब्ज़ी साग, मुर्गा बकरा का गोश्त कभी क कभी कभी,

वस्त्र: कपड़े की दो पलिया टोपी, अमामा (पगड़ी), लुंगी, कभी कभी पजामा,चांदी की एक नग वाली अंगूठी, असा(लाठी), खद्दर की शिर्वानी, और खद्दर का कलिदार कुर्ता, खद्दर की बन्डी।

::वेसाल देहांत::
तब्लीगी दौरे  से वापसी के बाद अब्दुल करीम उर्फ बंधू शैख के घर रुके अब्दुर्रहीम (जिनकी बैलगाड़ी से सफर करते थे) को बुलाया और कहा:
अब तब्लीग (धर्म प्रचार) में नही जाना है तुम आज़ाद होकर अपने घरेलू काम में लग सकते हो, फिर अपनी मुरीदा (मुरीदनी) मरयम को बुलाया अपनी अंगूठी, अमामा (पगड़ी) दिया और फरमाया मेरा बड़ा लड़का “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ जब परसौनी आए तो उसे दे देना उस के बाद नहाया कपड़ा बदले ज़ोहर की नमाज़ पढी, फिर चारपाई पर लेट गए मुरीदों से कहा कि ना मेरा बदन छूना, और ना ही चारपाई यहां से हटाना उस के बाद लीन होकर अल्लाह की याद में डूब गए।
लगातार कई दिनों तक उसी तरह धूप में बेगैर कुछ खाए पिए लीन रहे, इस से पहले भी ऐसे ही मोराकेबा में बैठते मगर इतना लम्बा नहीं, दो दिन गुजरने के बाद लोगों कू परिशानी बढी,धूप,शबनम(ओस), बारिश से बचने के लिए कुछ लोगों ने चारपाई उठा कर कमरा में कर दिया, और फखरूल औलिया को चारपाई पर लेटा दिया यह वाकेया “21 सफर 1348ھ मोताबिक 1928ई.„ का है,
लोगों ने देखा आंखें बंद है सांस रुकी है डॉक्टर बुलाए गए उन्होंन जांच किया और कहा जुबान का हिलना और और दिल की धड़कन अल्लाह का जिक्र करने की वजह से है वरना हकीकत में आप का इंतेकाल (देहांत) हो गया है, हालांकि बात यह नही थी,
यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई जवार के लोग उमंडते हुए सैलाब की तरह आने लगे, कुछ लोगों के जरिए, नहला धुला कर नमाज़-ए-जनाज़ा पढी गई गांव के उत्तर दिशा में दफन किया गया।
और एक अजीम हस्ती दुनिया की नजर से ओझल हो गई।

::करामत:
“किसी के वली होने के लिए करामत जरूरी नही ,
फखरूल औलिया करामत के बाब में फरमाते हैं कि तुम ने अकाबेरीन (बड़े विद्वान) की किताबों में नही पढा? एमाम ग़ेजाली के अकवाल(वाणी) नही सुना? कि आप फरमाते हैं, कि किसी को हवा में उड़ते देख कर यह ना समझो कि वह वली है जब तक कि उस के अन्दर अल्लाह का डर ना देख लो„ (سیرت فخرالاولیاء ص52)

करामत 1–: मुहम्मदपूर टांडा ज़िला फैज़ाबाद का वाक्या है एक बार फखरूल औलिया मुहम्मदपूर गांव में मौजूद थे इशा की नमाज़ के बाद आप मुरीदीन को ज्ञान की बातें बता रहे थे  उसी बीच जनाब लाल मुहम्मद साहब उर्फ कालू शैख (जिन के यहां फखरूल औलिया ठहरे हुए थे) कहा कि अमुक ने यह करिश्मा दिखाया अमुक ने यह करिश्मा दिखाया,कुतबुल औलिया को जोश आ गया क्या कमाल किया अगर मैं यह कहूं कि (इशारा करते हुए) यह पेड़ यहां से वहां चला जाए तो क्या कमाल किया कमाल तो यह है कि मुहम्मद की शरीयत पर डटा रहे ,आप का यह फरमाना था कि पेड़ उसी जगह जा लगा जिस जगह के लिए आप ने इशारा फरमाया था।

करामत 2–: हजरत कुतबुल औलिया के देहांत के एक साल बाद का वाकेया है, एक बार मास्टर अब्दुर्रशीद साहब बलियावी के पैर में बहुत बड़ा फोड़ा निकल आया था  डॉक्टरो नें जवाब दे दिया था उन के भाई अब्दुस्सुब्हान कल्कत्ता में कम्पाउंडर थे अब्दुर्रशीद अपने भाई अब्दुस्सुब्हान के साथ कलकत्ता ऑप्रेशन की नियत से गए घर से हस्पताल अपने भाई के साथ जा रहे थे अचानक सिन्दुरिया पट्टी के पश्चिम सड़क पर होजूर कुतबुल औलिया से मुलाकात हो गई आप ने फरमाया कि “कहां की तयारी है„ अब्दुर्रशीद ने बताया कि फोड़े का ऑप्रेशन कराने जा रहा हुं डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है, आप ने कह फोड़ा दिखाओ अब्दुर्रशीद ने फोड़े को दिखाया आप ने हाथ फेरा और कहा “कहां फोड़ा है„ फोड़ा फौरन (तुरंत) गायब हो गया।
(از منہ شیخ المشائخص 70)

 (और विस्तार से जानने के लिए किताब “सीरत-ए-फखरूल औलिया„ को पढें)

(ماخذ و مراجع:)
(سیرت فخرالاولیاء، اجالوں کا سفیر، از منہ شیخ المشائخ )

نوٹ: کہیں کہیں اصل کتاب کے جملوں کو چھوڑ کر صرف مفہوم جملہ لیا گیا ہیے تاکہ قاری کو سمجھنے میں آسانی ہںو٬ نیاز احمد نظامی)

तालीफ: नेयाज अहमद निज़ामी