neyaz ahmad nizami

Friday, March 31, 2017

हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह की करामात

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह वह रूहानी और मजहबी पेशवा थे जिनका अदना सा इशारा तकदीर बदलने के लिए काफी था। भला इस मक्बूल बारगााह की करामतों का भी शुमार (गिनती) हो सकता है ? आपकी जिन्दगी का एक-एक वाकिया करामत है। आपने जो करना चाहा, कर दिया और जो इरादा किया हो गया, आपकी दुआ बेरोक अर्श तक पहुंचती थी। इधर मुंह से निकली उधर कुबूलियत का दर्जा हासिल हुआ। आपसे बेशुमार करामतें जाहिर हुई, जिनमें से कुछ यहां लिखी जा रही है।

(1)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि मैं जब तक हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाह की खिदमत में रहा, कभी आपको नाराज होते नही देखा। एक रोज ख्वाजा साहब र0 अ0 के साथ मैं और एक दूसरा खादिम शेख अली रहमतुल्लाह बाहर जा रहे थे कि अचानक रास्ते में एक शख्स शेख अली रहमतुल्लाह का दामन पकड़ कर बुरा भला कहने लगा। हजरत पीर व मुर्शिद ने उस शख्स से झगड़ा करने की वजह मालूम की। उस ने जवाब दिया यह मेरा कर्जदार है और कर्ज अदा नही करता। 
आपने फरमाया-‘ इसे छोड़ दो तुम्हारा कर्जा अदा कर देगा।‘ लेकिन वह शख्स नही माना उस पर हजरत पीर व मुर्शिद को गुस्सा आ गया और तुरन्त अपनी चादर मुबारक उतारकर जमीन पर डाल दी और फरमाया-‘ जिस कदर तेरा कर्जा है इस चादर से ले ले मगर खबरदार ज्यादा लेने की कोशिश न करना। उस शख्य ने अपने कर्ज से कुछ ज्यादा ले लिया, उसी वक्त उसका हाथ सूख गया। वह देखकर चिल्लाने लगा और मांफी मांगी। आपने उसे माफ कर दिया, उसका हाथ फौरन दुरूस्त हो गया और वह हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया।  

(2)

कहते है कि एक बार जब कि आप अपने मुरीदों के साथ सफर कर रहे थे, आप का गुजर एक जंगल से हुआ। वहां आतिश परस्तों (आग पूजने वालों) का एक गिरोह आग की पूजा कर रहा था। उन की रियाजत इस कदर बढ़ी हुई थी कि छः छः माह तक बगैर खाए-पिए रह जाते थे।
अक्सर उन की सख्त रियाजत से लोग इस कदर प्रभावित होते कि उन से अकीदत रखने लगते। उन की इस हरकत से लोग गुमराह होते जाते थे। ख्वाजा गरीब नवाज साहब रहमतुल्लाह ने जब उनकी यह हालत देखी तो उन से पूछा-‘ 
ऐ गुमराहो!  रब को छोड़कर आग की पूजा क्यो करते हो ?,
 उन्होने अर्ज किया-‘ आग  हम इसलिए पूजते है कि हमें दोजख में तक्लीफ न पहुंचाए।‘ 
आप ने फरमाया-‘ यह तरीका दोजख से छुटकारे का नही है। जब तक खुदा की इबादत नही करोगे कभी आग से निजात न पाओगे। तुम लोग इतने दिनों से आग को पूज रहे हो जरा इसको हाथ में लेकर देखो तो मालूम होगा कि आग पूजने का फायदा क्या है ?‘‘
उन्होनें जवाब दिया कि बेशक यह हम को जला देगी। क्यों कि आग का काम ही जला देने का है। मगर हम को यह कैसे यकीन हो कि खुदा की इबादत करने वालों को आग न जला सकेगी। अगर आप आग को हाथ में उठा लें तो हमको विश्वास हो जाएगा। आपने जोश में आकर फरमाया-‘ मुझको तो क्या, खुदा के बन्दे मुईनुद्दीन की जूतियों को भी आग नही जला सकती।‘ आप ने उसी दम अपनी जूतियां उस आग के अलाव में डालते हुए आग की तरफ इशारा कर के फरमाया-‘ऐ आग अगर ये जूतियां खुदा के किसी मक्बूल बन्दे की है तो उसको जरा भी आंच न आए।‘ जूतियों का आग में पहुंचना था कि तुरन्त आग बुझ गयी और जूतियां सही सलामत निकल आई।‘ इस करामत को देखकर आग पूजने वालों ने कलिमा पढ़ लिया और दिल से मुसलमान हो गये।

(3)

कहते है कि एक बार आप एक घने जगल से गुजर रहे थे । वहां आपका सामना कुछ कुफ्फार लुटेरों से हो गया जिनका काम यह था कि मुसाफिरों को लूट लेते थे और अगर कोई मुसलमान मुसाफिर होता तो सामान लूटने के अलावा उसे कत्ल भी कर देते थे। जब वे डाकू बुरी नियत से आपकी तरफ आए तो अजीब तमाशा हुआ। जिस हथियारबन्द (सशस्त्र) गिरोह ने सैकड़ो हजारों मुसाफिरों को बिला वजह खाक व खून में तड़पाया था, आपकी एक ही निगाह से थरथरा उठा और कदमों में गिरकर बड़ी आजिजी से अर्ज किया-‘ हम आपके गुलाम है और नजरे करम के उम्मीदवार है।‘ जब वह अपने बुरे कामों से तौबा करने लगे तो आपने उनको कलिमा पड़ा कर इस्लाम में दाखिल कर लिया और उनको नसीहत फरमायी कि कभी किसी के माल को अपने लिए हलाल न समझें।

(4)

कहते है कि सैर व सफर के दिनों में एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह और शेख शहाबुद्दीन सहरवरदी रहमतुल्लाह एक जगह बैठे हुए किसी मसअले पर बातचीत कर रहे थे कि सामने से एक कम उम्र लड़का तीर कमान हाथ में लिए हुए गुजरा। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने उसे देखकर फरमाया यह लड़का देहली का बादशाह होगा।‘
आपकी यह पेशगोई (भविष्य वाणी) इस तरह पूरी हुई कि वही लड़का सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश के नाम से देहली के तख्त पर बैठा और छब्बीस साल तक बउ़े ठाठ से हुकुमत की।

(5)

एक रोज एक औरत रोती-चिल्लाती आपकी खिदमत में हाजिर हुई। बदहवासी व बेताबी में आपसे अर्ज करने लगी-‘ हुजूर ! शहर के हाकिम ने मेरे बेअे को बेकुसुर कत्ल कर दिया है, खुदा के लिए आप मेरी मदद कीजिए
उस औरत की दर्द भरी फरियाद से आपके अन्दर रहम व हमदर्दी पैदा हो गयी। आप तुरन्त असा-ए मुबारक हाथ में लेकर उठे और उस औरत के साथ रवाना हो गये। बहुत से खुद्दाम और हाजरीन भी आपके साथ होगए। जब आप लड़के की बे-जान लाश के पास पहुंचे तो बहुत देर तक चुप रहे और खड़े-खड़े उसी तरफ तकते रहे फिर आगे बढ़ कर और उसके जिस्म पर हाथ रखकर फरमाया-‘ ऐ मक्तूल! अगर तू बेगुनाह मारा गया है तो अल्लाह के हुक्म से जिन्दा हो जा ।‘ अभी आपकी जबाने मुबारक से ये शब्द निकले ही थे कि मक्तूल (मुर्दा) जिन्दा हो गया। आपने उसी वक्त फरमाया-‘ बन्दे को अल्लाह तआला से इस कदर निस्बत (सम्बन्ध) पैदा करनी चाहिए कि जो कुछ खुदा-ए- तआला की बारगाह में अर्ज करे कुबुल हो जाए। अगर इतना भी न हो तो फकीर नही है।

(6)

एक शख्स कत्ल करने की नीयत से आपके पास आया। आपको इसका इरादा मालूम हो गया। उस शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर बडे अकीदत का इज्हार (प्रदर्शन) किया। आपने उससे फरमाया-‘ मैं मौजूद हूं तुम जिस नीयत से मेरे पास आए हो उसे पूरा करो।‘ यह सुनते ही वह शख्स कांप उठा और बहुत आजिजी से कहने लगा-‘हुजूर! मेरी जाती ख्वाहीश यह नही थी, बल्कि फलां शख्स ने मुझे लालच देकर मजबूर किया कि मैं इस नामुनासिब हरकत को करूं।‘ फिर उसने अपनी बगल से छुरी निकाली और आपके सामने रखते हुए अर्ज किया-‘आप मुझे इसकी सजा दीजिए।‘ आपने फरमाया-‘ अल्लाह के बन्दों का मक्सद बदला लेना नही जा मैंने तुझे माफ किया।‘ उस शख्स ने उस वक्त आपके कदमों पर गिरकर तौबा की और ईमान लाकर मुरीद हो गया।

(7)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि जिस जमाने में मैं ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में रहता था, एक बार हम ऐसे घने जंगल में पहुचे जहां कोई जानदार दिखाई न दिया। तीन दिन और तीन रात बराबर उसी उजाड़ जंगल में चलते रहे अन्त में मालूम हुआ कि उस उजाड़ जंगल के करीब ही एक पहाड़ है और उसी पहाड़ पर एक बुजुर्ग रहते हैं। जब हम उस पहाड़ के करीब पहंुचे तो पीर व मुर्शिद ने मुझे अपने पास बुलाया और मुसल्ले के नीचे हाथ डालकर दो ताजा और गर्म रोटियां निकाल कर दी और फरमाया-‘ पहाड़ के अन्दर एक बुजुर्ग है ये रोटियां उनको दे आओं।‘ मैं रोटियां लेकर उनकी खिदमत में गया और सलाम अर्ज करके पेश कर दी उन्होने एक रोटी तो अपने इफ्तार के लिए रख ली और एक रोटी मुझे दे दी। अपने मुसल्ले के नीचे से चार खजूरें निकालकर मुझे देते हुए फरमाया-‘ यह शेख मुईनुद्दीन को पहुचा दो। जब मैनं आकर खजूरें ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में पेश की तो आप बेहद खुश हुए।

(8)

कहते है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह के कियामे अजमेर के जमाने में जो लोग अजमेर और उसके आस-पास से हज के लिए तशरीफ ले जाते थे वह वापस आकर यकीनी तौर पर बयान करते थे कि हमने सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाह को खाना-ए-काबा का तवाफ करते देखा है हालांकि अजमेर शरीफ में आने के बाद आपको फिर कभी हज करने का इतिफाक नही हुआ।

(9)

एक बार हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह देहली के किले में बादशाह के साथ बात करने में मसरूफ थे और सल्तनत के दूसरे ओहदेदार भी साथ थे कि इतने में एक बदकार औरत हाजिर हुई और बादशाह से फरियाद करने लगी। उसने अर्ज किया कि हुजूर मेरा निकाह करा दें। मै सख्त अजाब में मुब्तिला हूं। बादशाह ने पूछा कि किसके साथ निकाह करेगी और किस अजाब में घिरी है? वह कहने लगी कि यह साहब जो आपके हाथ में हाथ डाले कुतुब साहब बने घूम रहे हैं उन्होने मेरे साथ (नउजुबिल्लाह) हराम कारी की है जिससे मैं हामिला (गर्भवती) हो गई हूं। यह सुनकर बादशाह और हाजिरीन को बहुत हैरत हुई और सब ने शर्म से गर्दने झुका ली। उधर कुतुब साहब के माथे पर शर्मिन्दगी और हैरत से पसीना आ गया। आपको उस वक्त कुछ न सूझा और दिल ही दिल में अजमेर की तरफ रूख करके ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह को मदद के लिए याद किया। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह ने जैसे ही अपने मुरीद के दिल से खामोश चीख सुनी लब्बैक (हाजिर हूं) कहते हुए मदद के लिए फौरन आ गये। सब ने देखा कि सामने से हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह तशरीफ ला रहे है।
आपने कुतुब साहब रहमतुल्लाह से पूछा- मुझे क्यों याद किया है?‘ कुतुब साहब मुंह से तो कुछ न बोल सके लेकिन आंखो से आंसू जारी हो गये।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने इस बदकार औरत की तरफ रूख करके गुस्से से इर्शाद फरमाया-‘ ऐ गर्भ में रहने वाले बच्चे ! तेरी मां कुतुब साहब पर तेरे बाप होने का इल्जाम लगाती है, तू सच-सच बता।
उस औरत के पेट से इतनी साफ और तेज आवाज आई कि मौजूद सभी लोगों ने साफ सुनी। बच्चे ने कहा-‘हुजूर! इसका बयान बिल्कुल गलत है और यह और बड़ी हराम कार और झूठी है। कुतुब साहब के बदख्वाहों ने इसे सिखा कर भेजा है ताकि कुतुब साहब की इज्जत लोगों की नजर से गिर जाये।‘ यह बयान सुनकर मौजूद लोगों को बहुत हैरत हुई। उस औरत ने अपने झूठ बेालने और इल्जाम लगाने का इकरार किया।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  ने फरमाया-‘इज्जत अल्लाह के हाथ में है। और वापस अपनी जगह पर आ गये। हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह  के अलावा सब ही सरकार गरीब नवाज के तशरीफ लाने और गायब होने पर बहुत ज्यादा हैरत में थे।

(10)

कहते है कि एक रोज आपका एक मुरीद खिदमत में हाजिर हुआ। उस वक्त आप इबादत में थे। जब आप इबादत कर चुके तो उसकी तरफ ध्यान दिया। उसने अर्ज किया-‘ हुजूर! मुझे हाकिमे शहर ने  बिना किसी कुसूर के शहर बदर होने का हुक्म दिया है। मै बहुत परेशान हु।‘ आपने कुछ देर ध्यान लगाया और फरमाया-‘ जाओ, उसको सजा मिल गयी।‘ वह मुरीद जब शहर में वापस आया तो खबर मशहूर हो रही थी कि हाकिमे शहर घोड़े से गिरकर मर गया।

(11)

एक रोज ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  अना सागर के करीब बैठे हुए थे। उधर से एक चरवाहा गाय के कुछ बच्चों को चराता हुआ निकला। आपने फरमाया-‘ मुझे थोड़ा दूध पिला दे।‘ उसने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह  के फरमान को मजाक समझा और अर्ज किया-‘बाबा! यह तो अभी बच्चे है, इनमें दूध कहां ?‘ आपने मुस्कुराकर एक बछिया की तरफ इशारा किया और फरमाया-‘ भाई इसका दूध पियूंगा, जा दूह ला।‘ वह हंसने लगा। आपने दोबारा इर्शाद फरमाया-‘ बरतन लेकर जा तो सही। वह हैरान होकर बछिया के पास गया तो क्या देखता हे कि बछिया के थन पहले तो बराय नाम थे और अब उसके थनों में काफी दूध भरा हुआ है। अतः उसने कई बरतन भर दूध निकाला जिससे चालीस आदमियों ने पेट भर कर पिया। यह देखकर वह चरवाहा कदमों में गिर पड़ और आपका गुलाम हो गया।

(12)

एक रोज हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अकीदत मन्दों में बैठे हुए वअज व नसीहत फरमा रहे थे कि आपकी नजर दायी तरफ पड़ी आप तुरन्त ताजीम (सम्मान) के लिए खड़े हो गये। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा कि जब भी दायी तरफ नजर जाती तो आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते। जब वअज खत्म हुआ और लोग चले गये तो आपके खास खादिम ने अर्ज किया-‘ हुजूर आज यह क्या हालत थी कि जब भी आपको नजर दायी तरफ पड़ती आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते थे।‘ आपने फरमाया-‘ उसी जानिब मेरे पीर व मुर्शिद का मजार है और जब मेरी निगाह उस तरफ जाती तो रोजा-ए- अक्दा नजर आता, बस सम्मान के लिए खड़ा हो जाया करता था।

(13)

बुजुर्गो की मज्लिस में तय हुआ कि सब लोग कुछ करामात दिखाएं बस तुरन्त हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह मुसलले के नीचे हाथ ले गये और एक मुट्ठी सोने के टुकड़े निकालकर एक दुरवेश को जो वहां हाजिर था, दिया और दुरवेशों के लिए हलवा मंगवाने की फरमाइश की। शेख अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह ने एक लकड़ी पर हाथ मारा तो वह सोने की हो गयी। ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह के कहने पर हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने कश्फ (ध्यान मग्न) से मालूम किया कि इन्ही बुजुर्गो में एक दुरवेश बहुत भूखे है और शर्म की वजह से कुछ भी न कह सकते थे, बस आपने मुसल्ले के नीचे हाथ डाला और चार जौ की रोटियां निकालकर उस दुरवेश के सामने रख दी
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मैं ख्वाजा मोईनुद्दीन को नही जानता


गुम्बद ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती संजरी


हम हिन्दुस्तान  में हैं और ख्वाजा मोईनुद्दीन को नही जानते, हालंकि उन्ही के करम से हम आज इस्लाम जैसे पराचीन धर्म से जुङे,
 हमनें उन्हे जानने की कोशिश ही नही की,हमने कभी सोचा ही नही कि आज से सैकङों साल पहले भारत में क़दम रखने वाली हस्ती कौन है,उस का जीवन परिचय क्या है,उस शख्सियत ने भारत में परवेश कैसे और क्यूं किया तो आईए इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए यह मज़मून  आख़री तक पढते हैं

विलादत (जन्म): 14 रजब-उल-मुरज्जब 537 हिजरी (1142इस्वी) ,दिन: पीर (सोमवार),मक़ाम (स्थान) संजर।

विसाल (मृत्यू): 6 रजब-उल-मुरज्जब 632 हीजरी लगभग 95, साल

नाम मुबारक: मोईनुद्दीन हसन संजरी रहमतुल्लाह अलैह,

अलक़ाब: अता-ए-रसूल, ग़रीब नवाज़, सुल्तानुल हिन्द, ख्वाजा ख्वाजगान, वगैरह,

नसब नामा: नजीबु त्तरफैन (मां बाप की तरफ से)  सय्यद , बाप जान की तरफ से ''हुसैनी'' और अम्मी जान की तरफ से ''हसनी''  सय्यद हैं,

तालीम व तरबियत: आप ने शुरू की पढाई पिता ही से की,9साल की उम्र मे कुरआन मुकम्मल हिफ्ज़ कर लिया, उस के बाद संजर के एक मकतब में तफसीर, फिक्ह, व हदीस का दर्स (पाठ,सबक़) लिया,फिर पढाई के गर्ज़ से खुरासान , समरक़न्द, और बोखारा का सफर किया, वहां के मशहूर और जलीलुल कद्र आलिमों से तमाम ज़ाहिरी इल्म हासिल की।।

मुर्शिद कामिल (पीर,गूरू) की खिदमत में:
हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह, सय्यदुना उस़्मान हारूनी अलैहिर्रहमां की बारगाह में हाज़िर हुए और उन के हाथ पर बैअत (मुरीद,गुरमुख)  हुए आप 20 साल तक अपने पीर की खिदमत में रहकर तरबियत हासिल की और रेयाजत व मुजाहेदात में  मश्गूल रहे, और मारफते इलाही हासिल करली,


विलायते हिन्द की ख़ुशख़बरी:
हज़रते सय्यदुना उस़्मान हारूनी अलैहिर्रहमां ने अल्लाह से दुआ मांगी थी कि मेरे बेटे मोईनुद्दीन ने मेरी लम्बे समय तक सेवा की है इसे वह विलायत अता हो कि  किसी और को इस क़िस्म की विलायत न अता हुई हो,आवाज़ आई कि मोईनुद्दीन को हिन्द की विलायत दी जाएगी, जो आज तक हमने किसी अह-ए-इस्लाम को नही दी,लेकिन इसे चाहिए कि पहले मदीना मनव्वरा जाए और मेरो महबूब की इजाज़त से भारत में जाकर अपना फैज़ बांटे, हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने मदीना मनव्वरा के लिए सफर (यात्रा)का सामान बांधा,जब सरकारे दोआ़लम   की जेयारत हुई तो होज़ूर   ने हिन्दुस्तान की विलायत आप को दिया और हुक्म फरमाया कि  तुम्हारा मस्कन (रहने की जगह) अजमेर रखा गया है तुम्हारे वहां पहुंचने के बाद  हिन्दुस्तान में इस्लाम की बहुत तरक्की होगी।।



हिन्दुस्तान की तरफ सफर (यात्रा):
मुहम्मदे अरबी से हिन्दुस्तान की विलायत की खुश्खबरी मिलने के बाद हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अलैहिर्रहमां नें अपने ख़ास मूरीद (चेला) हज़रत क़ुत्बुद्दीन बख्तेयार काकी अलैहिर्रहमां को साथ लेकर हिन्दुस्तान की तरफ सफर के लिए रवाना हो गए, पहले बग़दाद शरीफ (ईराक़ की राजधानी) गए, और गौसे आज़म की बारगाह में हाज़िरी दी, फिर वहां से लाहौर (मौजूदा पाकिस्तान का एक शहर)  तशरीफ लाए, हज़रत दाता गंज बख्श अलैहिर्रहमां के मज़ार पर रूहानी बरकत हासील किए,लाहौर से देहली (देलही,दिल्ली) तशरीफ लाए ,वहां के राजा खान्डे राव के महल से कुछ ही दूर तबलीग़ व हिदायत (इस्लाम का परचार व परसार) का काम शुरू कर दिया,आप के पास आने वाले अक्सर लोग आप की तब्लीग से इस्लाम क़ोबूल (कबूल) करने लगे और आहिस्ता आहिस्ता वहां मुसलमानों की तादाद (संख्या) बढने लगी,





 अजमेर शरीफ में आमद (आगमन):
जब देहली में काफी लोग मुसलमान हो गए तो ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने अपने सब से प्यारे मुरीद और ख़लीफा (उत्तराधिकारी)  हज़रत क़ुत्बुद्दीन बख्तेयार काकी अलैहिर्रहमां को तब्लीग के लिए वहां मूक़र्रर (लगा) कर दिया   और अपने चालीस मुरीदों को लेकर अजमेर की तरफ चल दिए, सरकार ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह के अजमेर शरीफ में  आने के बाद इस्लाम तेज़ी से फैलने लगा,
  • अनासागर तालाब का पानी ख्वाजा के हुक्म से एक छोटे से प्याले में भर आया था इस करामत को देख कर बहुत सारे मुसलमान हुए,
  • राम देव पुजारी के साथ बहुत सारे पुजारी मुक़ाबला के लिए आए, आप ने सब को हरा कर मुसलमान बनाया।
  • अजमेर के राजा ने जोगी अजय पाल को बुलाया ताकि ख्वाजा को अपने जादू से अजमेर से निकाल दे अजय पाल ने जादू के हर पैंतरे ख्वाजा साहब पर आज़माए मगर सब बेकार गए और  ख्वाजा साहब पर कुछ भी अस़र ना हूआ, आखिर वह भी अपने साथियों के साथ मुसलमान हो गया



मुरत्तिब, तरजुमा,तसहील
Neyaz Ahmad Nizami

Thursday, March 30, 2017

चुगली करने और पेशाब से ना बचने पर अज़ाब





अल्लाह हम सबको इन दोनों कामो से बचाये !

हजरत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हजरत रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दो क़ब्रों पर गुज़र हुआ ।

अाप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया इनको अ़ज़ाब हो रहा है और किसी बड़े मुश्किल काम की वजह से नहीं हो रहा है (बलिक ऐसी मामूली बातो पर जिनसे बच सकते थे )।

फिर आपने इन दोनों की तफ्सील बतायी कि इन दोनों में
एक पेशाब करने में पर्दा नहीं करता था (और एक रिवायत में है कि पेशाब से बचता ना था)
और यह दूसरा चुगली करता फिरता था ।



फिर आपने एक हरी टहनी मंगा कर बीच में से उसको चीर कर आधी आधी दोनो कब्र पर रख दिया, सहाबा रजि0 ने अर्ज किया या रसूलुल्लाह ! आपने ऐसा क्यों किया ? इरशाद फ़रमाया कि शायद इन दोनों का अज़ाब इनके सूखने तक हल्का कर दिया जाए (मुन्तखब हदीसें पेज 93)




Neyaz Ahmad Nizami

अप्रैल फूल मनाने वालों होशियार



अप्रैल फूल मनाना और झूट बोलना जायज़ नहीं
झूट बोलकर अप्रैल फूल मनाने वालों होशियार


रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया कि बन्दा जब झूट बोलता है तो उस की बदबू से फरिश्ता एक मील (1km600mtr) दूर हो जाता है,
(ترمذی شریف جلد2ص28)
रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया कि बन्दा पूरा मोमिन नही होता जब तक कि मज़ाक़ में भी झूट बोलना ना छोङ दे۔۔ 
(الترغیب والترھیب ج3 ص594)

Wednesday, March 29, 2017

इस महीना (रजब) की बहारें: नेयाज़ अहमद निज़ामी

beutifull RAJAB image
अल्लाह का महीना

फरमान-ए-मुस्तफा ﷺ है कि रजब अल्लाह तआला का महीना और शअबान मेरा महीना और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है।
(الفردوس بماثور الخطاب ج2 ص275 حدیث3276)
रजब के मुख्तलिफ (अलग अलग) नाम
 रजब तरजीब से निकला है इस के माना हैं: "ताअज़ीम करना",
और इस माह को "शहर-ए-रज्म" भी कहते हैं क्यूंकि इस में शैतानों को पत्थर मारा जाता है ताकि वह मुसलमानों को नुकसान ना दें,
(غنیۃ الطالبین ج1 ص319، 320)
मुकाशेफतुल कुलूब में है,कि "रजब" में  तीन शब्द हैं " ' ' '' से मुराद (मतलब) रहमत-ए-इलाही, " से मूराद (मतलब) बन्दे का जूर्म, से मुराद (मतलब) "बिर्र,, यानी एहसान व भलाई,,गोया अल्लाह फरमाता है: मेरे बन्दे के जुर्म को मेरी रहमत और भलाई के दरमियान करदो।
(مکاشفۃ القلوب ص301)

एक जन्नती नहर का नाम ''रजब" है
हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहो अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया:
जन्नत में एक नहर है जिसे रजब कहा जाता है वह दुध से ज्यादा सफेद और शहद से ज्यादा मीठी है, तो जो कोई रजब का एक रोज़ा रखे अल्लाह उसे उस नहर से पिलाएगा।
(شعیب الایمان ج3 ص367، حدیث3800)
पहला रोज़ा तीन साल के गुनाहों का कफ्फारा
नबी ﷺ ने फरमाया रजब के पहले दिन का रोज़ा तीन साल का कफ्फारा है,दूसरे दिन का दो साल का,और तीसरे दिन का एक साल का कफ्फारा है,फिर हर दिन कै रोज़ा एक महीना का कफ्फारा है,
(الجامع الصغیر للسیوطی ص311 حدیث 5051)
नोट: यहां "गुनाह के कफ्फारा" से मतलब यह है कि रोज़े गुनाहे सगीरा की मुआफी का ज़रीया बन जाते हैं,

एक रोज़े की फज़ीलत
सुल्ताने मदीना  ﷺ ने इर्शाद फरमाया कि रजब का महीना हुर्मत वाला महीना है,और छट्ठे आसमान के दरवाज़े पर इस महीने के दिन लिखे हुए है,अगर कोई रजब में एक रोज़ा रखे और उसे परहेज़गारी से पूरा करे तो वह दरवाज़ा और वह (रोज़े वाला) दिन उस बन्दे के लिए अल्लाह से मगफिरत तलब (मांगेंगे) करेंगे कि
या अल्लाह! इस बन्दे को बख्श दे" और अगर वह बेगैर परहेज़गारी के रोज़ा गुज़ारता है तो फिर वह दरवाज़ा और दिन उस की बख़्शिश की दरखास्त  नहीं करेंगे,और उस शख्स से कहते हैं : ऐ बन्दे! तेरे नफ्स ने तुझे धोका दिया,।
(ماثبت با لسنۃ ص 234)

60महीनों का सवाब
हजरते अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि,, जो कोई सत्ताइसवीं रजब का रोज़ा रखे अल्लाह तआला उस के लिए 60 महीनों के रोज़ों का सवाब लिखे,
(فضائل شھر رجب للخلال ص76)
100साल के रोज़ों का स़वाब
हजरते सलमान फारसी रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है की नबी ﷺ  ने फरमाया रजब में एक दिन और रात है जो उस दिन रोज़ा रखे और रात को क़ेयाम (इबादत) करे तो गोया उस ने 100साल के रोज़े रखे और 100साल की शब बेदारी (रातभर अल्लाह की इबादत) की और यह रजब की सत्ताइस (27) तारीख़ है,।।

रजब में परीशानी दूर करने की फज़ीलत
हजरते अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है: जो माहे  रजब में किसी मुसलमान की परिशानी दूर करे तो अल्लाह उस को जन्नत में एक ऐसा महल अता करेगा जो जहां तक नज़र पहुंचेगी उसे वहां तक चौंङा नजर आएगा,
(غنیۃ الطالبین ج 1 ص324)

RAJAB KE KUNDE
रजब के कुन्डे
रजब के महीने में कुछ जगह हजरते इमामे जाफरे सादिक़ रजियल्लाहु अन्हु  को इस़ाले स़वाब के लिए पूरियों के कुन्डे भरे जाते हैंयह भी जायज़ मगर उस में भी उसी जगह खाने की कुछ लोगों ने पाबन्दी कर रखी है यह बेजा (बेकार) पाबन्दी है,इस कुन्डे के बारे में एक किताब भी है जिस का नाम "दास्तान-ए-अ़जीब,, है, उस मौक़ा पर कुछ लोग उस को पढवाते हैं उस में जो कुछ लिखा है उस का कोई सबूत नहीं  वह ना फढी जाए,फातेहा देकर इसाले सवाब करें   
(بہار شریعت ج 3ص643)
यह भी याद रहे कुन्डे ही में खीर खाना ज़रूरी नही,दूसरे बरतन में भी खा खिला सकते हैं,

कुन्डे का नेयाज़ किस तारीख को करें?पबरे माहे रजब में बल्कि सारे साल में जब चाहें इसाले सवाब के लिए  कुन्डो की नेयाज़ कर सकते हैंअल बत्ता मुनासिब यह है कि "15 रजब" को  रजब के कुन्डे किए जाएं क्यूंकि यह आप के उर्स का दिन है,फतावाफकीहे मिल्लत जिल्द दो में भी इसी से मिलता जुलता मज़मून है,।
नोट: कफन की वापसी, के अलग अलग सफहात से,

मुरत्तिब हिन्दी तर्जुमा व तसहील
Neyaz Ahmad Nizami





अप्रैल फूल मनाने वालों




   )
 झूठे के जबड़े चीरे जा रहे थे 
 अप्रैल फूल मनाने वालों ख़ौफे खुदा से लरज़ उठिए! और आपने गुनाहों से तौबा कर लीजिए!
 फरमान मुस्तफा ﷺ है: ख्वाब में एक शख्स (व्यक्ती) मेरे पास आया और बोला: चलिए, मैं उसके साथ चल दिया, मैं ने दो आदमी देखे, उनमें एक खङा और दूसरा बैठा था, खड़े हुए आदमी के हाथ में लोहे का ज़म्बूर (यानी लोहे की छड़ जो एक तरफ का सिरा मुड़ा हुआ होता है) था जिसे वह बैठे शख्स के एक जबड़े में डाल कर उसे गुद्दी तक चीर देता फिर ज़म्बूर निकाल कर दूसरे जबड़े में डालकर चीरता, उतने मे पहले वाला जबड़ा अपनी असली हालत पर लौट आता, मैं ने लाने वाले शख़्स से पूछा: यह क्या है? उसने कहा: यह झूटा शख्स है इसे क़यामत तक कब्र में यही सजा दिया जाता रहेगा।
 ( پراسرار خزانہ صفحہ: ١٧،١٨بحوالہ مَساوِی الْاَخلاق لِلخَرائطی صفحہ:۷۶ حدیث ۱۳۱ ) 


 جھوٹے کے جبڑے چیرے جا رہے تھے

اپریل فول منانے والو !خوفِ خداوندی عَزَّوَجَلَّ سے لرز اٹھئے! اوراپنے گناہوں سے توبہ کر لیجئے! فرمانِ مصطَفٰےصَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ ہے: خواب میں ایک شخص میرے پاس آیا اور بولا:چلئے!میں اس کے ساتھ چل دیا، میں نے دوآدمی دیکھے، ان میں ایک کھڑا اور دوسرا بیٹھا تھا ،کھڑے ہوئے شخص کے ہاتھ میں لوہے کا زَنبور(یعنی لوہے کی سلاخ جس کا ایک طرف کا سرا مڑا ہوا ہوتا ہے)تھا جسے وہ بیٹھے شخص کے ایک جبڑے میں ڈال کر اُسے گدی تک چیر دیتا پھر زنبورنکال کر دوسرے جبڑے میں ڈال کر چیرتا، اتنے میں پہلے والاجبڑا اپنی اصلی حالت پرلوٹ آتا، میں نے لانے والے شخص سے پوچھا: یہ کیا ہے؟اس نے کہا: یہ جھوٹاشخص ہے اسے قیامت تک قبر میں یہی عذاب دیا جا تا رہے گا۔
 ( پراسرار خزانہ صفحہ: ١٧،١٨بحوالہ مَساوِی الْاَخلاق لِلخَرائطی صفحہ:۷۶ حدیث ۱۳۱

तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami



    

Sunday, March 26, 2017

صلح کلیت کا رد


 وَاعْتَصِمُوۡا بِحَبْلِ اللہِ جَمِیۡعًا








 وَاعْتَصِمُوۡا بِحَبْلِ اللہِ جَمِیۡعًا وَّلَا تَفَرَّقُوۡا۪ وَاذْکُرُوۡا نِعْمَتَ اللہِ عَلَیۡکُمْ اِذْ کُنۡتُمْ اَعْدَآءً فَاَلَّفَ بَیۡنَ قُلُوۡبِکُمْ فَاَصْبَحْتُمۡ بِنِعْمَتِہٖۤ اِخْوٰنًاۚ وَکُنۡتُمْ عَلٰی شَفَا حُفْرَۃٍ مِّنَ النَّارِ فَاَنۡقَذَکُمۡ مِّنْہَاؕ کَذٰلِکَ یُبَیِّنُ اللہُ لَکُمْ اٰیٰتِہٖ لَعَلَّکُمْ تَہۡتَدُوۡنَ ۱۰۳
 ترجمۂکنزالایمان: اور اللہ کی رسی مضبوط تھام لو سب مل کر اور آپس میں پھٹ نہ جانا (فرقوں میں نہ بٹ جانا) اور اللہ کا احسان اپنے اوپر یاد کرو جب تم میں بیر تھا (دشمنی تھی)اس نے تمہارے دلوں میں ملاپ کردیا تو اس کے فضل سے تم آپس میں بھائی ہوگئے اور تم ایک غار دوزخ کے کنارے پر تھے تو اس نے تمہیں اس سے بچادیا اللہ تم سے یوں ہی اپنی آیتیں بیان فرماتا ہے کہ کہیں تم ہدایت پاؤ۔  

- وَاعْتَصِمُوۡا بِحَبْلِ اللہِ جَمِیۡعًا: اور تم سب مل کراللہ کی رسی کو مضبوطی کے ساتھ تھام لو
 اس آیت میں اُن افعال و حرکات کی مُمانَعت کی گئی ہے جو مسلمانوں کے درمیان تفریق کا سبب ہوں ،چنانچہ ارشاد فرمایا کہ ’’تم سب مل کراللہ عَزَّوَجَلَّ کی رسی کو مضبوطی سے تھام لو اور آپس میں فرقوں میں تقسیم نہ ہو جاؤ جیسے یہود و نصاریٰ نے فرقے بنالئے ۔ یاد رہے کہ اصل راستہ اور طریقہ مذہب ِاہل سنت ہے، اس کے سوا کوئی راہ اختیار کرنا دین میں تفریق کرنا ہے۔ اور یہ ممنوع ہے۔ بعض لوگ یہ آیت لے کر اہلسنّت سمیت سب کو غلط قرار دیتے ہیں۔ یہ سراسر غلط ہے کیونکہ حکم یہ ہے کہ جس طریقے پر مسلمان چلتے آرہے ہیں ، جو صحابہ رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُم سے جاری ہے اور سنت سے ثابت ہے اس سے نہ ہٹو۔ اہلِ سنت و جماعت تو سنت ِ رسول اور جماعت ِ صحابہ کے طریقے پر چلتے آرہے ہیں تو سمجھایا تو ان لوگوں کو جائے گا جو اس سے ہٹے نہ کہ اصل طریقے پر چلنے والوں کو کہا جائے کہ تم اپنا طریقہ چھوڑ دو۔ یہ تو ایسے ہی ہے جیسے ایک خاندان اتفاق و اتحاد کے ساتھ صحیح اصولوں پر زندگی گزار رہا ہو، ان میں سے ایک فرد غلط راہ اختیار کرکے اِنتشار پیدا کرے تو اُس جدا ہونے والے کو سمجھایا جائے گا نہ کہ خاندان والوں کو بھی اتحاد ختم کرکے غلط راہ چلنے کا کہنا شروع کردیا جائے۔ بِعَیْنِہٖ یہی صورتِ حال اہلسنّت اور دوسرے فرقوں کی ہے۔ اصل حقیقت کو سمجھے بغیر صلح کُلِّیَّت کی رٹ لگانا اور سب کو ایک ہی لاٹھی سے ہانکنا سراسر جہالت ہے۔  

  حَبْلِ اللہِ  کی تفسیر
’’ حَبْلِ اللہِ ‘‘ کی تفسیر میں مفسرین کے چند اقوال ہیں : بعض کہتے ہیں کہ اس سے قرآن مراد ہے۔ چنانچہ مسلم شریف میں ہے کہ قرآنِ پاک حَبْلُ اللہہے جس نے اس کی پیروی کی وہ ہدایت پر ہے اورجس نے اُسے چھوڑا وہ گمراہی پر ہے۔ (مسلم، کتاب فضائل الصحابۃ رضی اللہ تعالی عنہم، باب من فضائل علی بن ابی طالب رضی اللہ عنہ، ص۱۳۱۳، الحدیث: ۳۷(۲۴۰۸)) 
 حضرت عبداللہ بن مسعود رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ نے فرمایا کہ:حَبْلُ اللہ سے جماعت مراد ہے (معجم الکبیر، ۹/۲۱۲، الحدیث: ۹۰۳۳) اور فرمایا کہ: تم جماعت کو لازم کرلو کہ وہ حَبْلُ اللہ ہے جس کو مضبوط تھامنے کا حکم دیا گیا۔ (معجم الکبیر، ۹/۱۹۹، الحدیث: ۸۹۷۳) جماعت سے کیا مراد ہے؟ یہ یاد رہے کہ جماعت سے مراد مسلمانوں کی اکثریت ہے ، یہ نہیں کہ تین آدمی مل کر’’ جماعتُ المسلمین ‘‘نام رکھ لیں اور بولیں کہ قرآن نے ہماری ٹولی میں داخل ہونے کا کہا ہے، اگر ایسا ہی حکم ہے تو پھر کل کوئی اپنا نام ’’رسول‘‘ رکھ کر بولے گا کہ قرآن نے جہاں بھی رسول کی اطاعت کا حکم دیا اس سے مراد میری ذات ہے لہٰذا میری اطاعت کرو۔ 
اَعُوذُ بِاللہِ مِنْ جَہْلِ الْجَاہِلِینْ میں جاہلوں کی جہالت سے اللہ تعالیٰ کی پناہ مانگتا ہوں۔ ----------------------------- صِرَاطُ الْجِنَان فِیْ تَفْسِیْرِ الْقُرْآن
 مضمون نگار: علم القرآن


Friday, March 24, 2017

मायूसी और शुक्र

N e y a z   A h m a d   N i z a m i

इन्सान में ख़्वाहिशात पैदा होती रहती हैं यह इन्सानी नफ्स (अंतरआत्मा) की पैदावार होती है। यह इतनी अधिक होती हैं कि एक बन्दा उन सभी को अमली जामा नहीं पहना सकता और उनमें से कुछ ऐसी भी होती हैं, जिन पर अमल की इजाज़त इ
दरअसल यह कुछ आज़माईश होती हैं। इन्सान को उनमें गुजरना पड़ता है और इन सब मामलो का सामना करना पड़ता है। ऐसे मौके पर हौसला हार देना मायूसी है। मुश्किल समय में निराश हो जाने का नाम बहादुरी नहीं है। इंसान को साबित क़दम रहना चाहिए और अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए। दूसरों मिसाली शख्सियत ढूंढने की बजाय ख़ूद एक नमूना बनकर मनुष्यों के बीच रहनुमाई की वजह बन जाना चाहिए। इस क़ौम को अब उम्मीद की जरूरत है। इसके लिए कड़ी मेहनत की जरूरत है। जब इन्सान दुखी हो, परेशान हो तो उसे चाहिए कि वह लोगों के दुख दर्द को जाने।
न जाने कितने लोग अनगिनत समस्याओं के शिकार नजर आएंगे। हमारे समय में अखबारों और समाचार प्रसारित करने वाले यंत्र से आम जनता के दुख दर्द से जब दुनिया की समस्याएं सुनेगा या देखेगा तो वह अपनी समस्याएं भूलकर ख़िदमत-खल्क़ (मानव सेवा) का सोचना शुरू कर देगा कि उसके तो समस्या ही छोटे थे। शुक्र अदा करने के लिए सबसे अच्छा तरीका पनमाज़ अदा करना है तो इसके लिए वह मस्जिद की राह पकड़ेगा और मस्जिद में नमाज पढ़कर वह रब का शुक्रगुजार बन्दा बन जाएगा। तो ख़ुद बख़ुद उस के दिल से बोझ उतर जाएगा और वह लोगों को नेक निगाहों से देखना शुरू कर देगा। उस को इनेसानियत से प्यार होना शुरू हो जाएगी। वही लोग जिन्हें थोड़ी देर पहले वह घर में बैठा कर बुरा भला कह रहा था अब वही अल्लाह की बेहतरीन मख़लूक के तौर पे नजर आ रहे होंगे। मस्जिद जाकर बड़े कठोर लोग भी नरम हो जाते हैं। तो मायुसी का शिकार बन्दा उनके अपनाईयत भरे व्यवहार से जरूर प्रभावित होगा और उस के जीवन में आसानी के बगुत से रास्ते खुलती चली जाएंगी और वे फिर से एक नरम, और संतुष्ट , मुतमइन इन्सान के रूप में जीवन बसर करना शुरू कर सकता है
न्सान की समाज, धर्म और अख़लाक़ी किरदार हरगिज़ नहीं देतीं। फिर यह इन्सानी दामाग के किसी कोने में एकट्ठा होना शुरू हो जाती हैं। आम तौर पर इन्सान समझता है कि वह उन्हें भूल चुका है। दरअसल वह उसके मन में अंजान तौर से मौजूद रहती हैं। लेकिन उनका इज़हार या एहसास आम हालत में नहीं होता। इस मामले का संबंध किसी दुर्घटना या किसी ख़ूशी से हो सकता है। मिसाल के तौर पे आदमी पर कभी कोई मुश्किल समय आन पड़ता है और उसे ऐसा लगता है कि मेरा कोई साथी नहीं है। पूरी दुनिया में अकेला हूँ मेरी मजबूरीयों को कोई नहीं समझ सकता और कोई भी मेरी मदद करने को तैयार नहीं। तो इन हालात में उसके अंजान में दबी हुई ख़्वाहिशात एक बदले के जज़बे की सूरत में सर उठाती हैं। उस के होश व हवास पर बदले का जज़बा तारी होने लगता है। वह उन हालतों को को याद करता है जब कभी वह दूसरों पर अहसान किया हो। उन्हें याद करके वह अपने किए हुए अच्छे कर्मों को अपनी बेवकूफी समझता है। वह दलील के साथ सोचता है कि यह समाज बे हिस है। सभी लोग बेवफा हैं। उनसे भलाई की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए यह यह जज़बात दिमागी तौर पे उसे भङका देती है। उसके पास नफरत के बीज बोने के अलावा कोई चारा नहीं होता। यह एक मुश्किल समय होता है। इस दौरान इंसान अगर अपनी अना (हम) की खातिर या जज़बाती तनाव के कारण एक नकारात्मक सोच के दामन में अपनी पनाह ढूंढ ले तो यह सुरते हाल उसके आने वाले जीवन के लिए खतरनाक साबित होती है। क्यूं कि यह वह मोड़ होता है जब वह फैसला करने और एरादा करने की ताक़त से ना उम्मीद होता है । तब अच्छाई और बुराई में कोई फर्क़ नहीं दिखती। ऐसे कड़े समय में अगर वह सब्र (धैर्य) का दामन थाम कर तुरंत फैसला करने से बाज़ रहे तो भविष्य में अच्छे परिणाम हासिल हो सकते हैं।
और अगर वह
जज़बाती दबाव के समय नकारात्मक भावनाओं की भेंट चढ़ जाए तो उसकी लहरों का रुख विध्वंसक गतिविधियों की ओर मुड़ सकता है और वह नफरतों को परवान चढ़ा सकता है। वह अपना जीवन शैली बदल सकता है। लेकिन अल्लाह तबारक व तआला ने इंसान के अंदर एक बात बतौर मुहतसिब (लोकपाल) रखी है। वह है उसका ज़मीर। जब कभी इंसान मुखर (बेबाक) हो जाए। और हकीकतो से इन्कार करना शुरू कर दे और गैर मुहज़्ज़ब (असभ्य) सरगरमियो में शामिल हो जाए तो कभी न कभी उसके अंदर से आवाज आती है कि यह सब कार्रवाई गलत हैं। मुझे यह सब छोड़ देना चाहिए। यह एक दूसरा महत्वपूर्ण मौक़ा होता है। इस अवसर पर भी उसके कुव्वते फैसला का परीक्षण होता है। यदि वह हकीक़तों को मानकर अपने जीवन को वापस सही रास्ते पर ले आए तो वह मजबूत क़ुव्वते अरादी शामिल हो सकता है। लेकिन अगर वह इस बिंदु पर भी बहक जाए तो यह भी नफ्स और शैतान की एक चाल होती है और शैतान तो इंसान का खुला दुश्मन है। फिर इन्सान अपने दुश्मनका दोस्त क्यों बन जाता है। वे अपने दुश्मन के साथ जंग क्यों नहीं करता। हालांकि उसका दुश्मन तो पहले दिन से ऐलान-ए- जंग कर के बर सरे पैकार है और इन्सान आख़री फैसला करने से महरूम

 निबंधकार:
 अब्द - उल - रज्ज़ाक क़ादरी


तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami

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Thursday, March 23, 2017

औलाद अल्लाह की नेमत है - बेटा हो या बेटी

 
 
औलाद अल्लाह की नेमत है - बेटा हो या बेटी
नेक औलाद अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है हमारे नबी के जद्दे अमजद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की
रब मुझे नेक औलाद दे।
अल्लाह ने फरमाया 
तो हम उसे ख़ुश्ख़बरी सुनाई एक अक़ल मंद लड़के की। पारा 23 /सूरह वास्सफ़ात आयत 100 - 101
कई जगह कुरान मे अल्लाह ने औलाद जैसी नेमत का ज़िक्र फरमाया
ए ज़करिया हम तुझे खुशी सुनाते हैं एक लड़के की जिसका नाम याहया है।सूरतुल मरियम आयत 6
इससे मालूम हुआ नेक और सॉलेह बेटा अल्लाह की बड़ी रह़मत और नेमत है कि रब करीम ने इस सूरह में पुत्र सालेह (नेक) को रहमत और नेमत कहा इससे पता चला कि बेटे की दुआ करना नबियों की सुन्नत है मगर इसलिए कि वह आखिरत के लिए निजात का सबब हो (हाँ बेटी पैदा होने का ग़म करना काफिरों का तरीका है)
फ़ुक़्हा किराम फरमाते हैं:: यूं तो अल्लाह की सभी नेमतें आला (बङी) हैं पर ईमान की दौलत और औलाद की नेमत सभी नेमतों से आला नेमत हैं ,
नेमतों के बारे में रब का फरमान है और तुम्हें बहुत कुछ मुंह मांगा दिया और अगर अल्लाह की नेमते गिनो तो गिनती न सकोगे बेशक आदमी बड़ा ज़ालिम न शुकरा है।पारा 13 /रुकूअ 16 / सूरतुल इब्राहीम आयत नंबर 33) तहमारी सभी प्रकार के मुंह मांगी मुरादें करोड़ों नेमतें तुम्हारे बिना मांगे तुम्हें इनआम में अता किं। और बहुत सी नेमते मुंह मांगे बखशीं हम तुम्हारी ज़रूरतें तुम से अधिक जानते हैं हमारी अता, हमारे इनआ़म तुम्हारे मांगने पर (मौक़ूफ) नहीं क्योंकि तुम्हारे प्रत्येक रोंगटे पर करोड़ों नेमतें हैं और जब तुम्हे अपने बालों की गिनती नहीं तो हमारी दी हुई नेमतों की गिनती कैसे हो सकता है तुम्हारी गिनती संख पर खत्म होती है और वहां संख से शुरुआत होती है।
औलाद अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है::
माता पिता की ख़ूबियों के अमीन, उनके सपनों की ताबीर, नस्ली इम्तेदाद (दराज़ी पीढ़ी) का सबब, आंखों की ठंडक, हाथों की ताक़त, और घरेलू नीरंगियों की आत्मा औलाद ही का खुबसूरत साया है। अगर औलाद न हो तो घर अंधेरा और सूना मालूम होता हे. औलाद प्रदान करने का विकल्प अल्लाह के अलावा किसी को नहीं है, वह जिसे चाहता है बेटा देता है जिसे चाहता है बेटी देता है और जिसे चाहता है बेटा और बेटी दोनों प्रदान करता है, किसी महिला को बाँझ कर देता है और किसी पुरुष में यह ख़ूबी ही नहीं देता है,
  अल्लाह ही के लिए है जमीन और आसमान की सल्तनत,पैदा करता है जो चाहे, जिसे चाहे बेटियां अता फरमा दे और जिसे चाहे बेटा दे या दोनों मिला दे बेटे और बेटियों, और जिसे चाहे बाँझ कर दे वह इल्म और क़ुदरत वाला है। ( पारा 25 /रुकूअ 5 /सूरह शूरा आयत 48-49 )
 हकीकी बादशाह वही है वह जिसे चाहे शहंशाही बख़्शे जैसे बादशाहों को जडाहिरी बादशाही बख़्शी , और औलिया ए अल्लाह को बातिनी सल्तनत दी , मालूम हुआ कि औलाद महज अता रब्बानी हे.बड़े शक्तिशाली लोग, धनवान लोग औलाद से वंचित देखे गए हैं, कमज़ोरों का घर बेटों से भरा हुआ है, ( तफ्सीरे नूरुल इर्फान जिल्द 1 पेज 779)
गौरतलब बुजुर्गों और अवलियाउल्लाह की दुआओं से संतान मिलना भी रब की ही अता है जैसे नबी की दुआ से हज़रत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु का घर औलाद से भर गया। यह सब सूरतें अंबिया किराम में भी पाई जाती हैं तो हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम के यहाँ केवल लड़कियां थीं, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के केवल लड़के थे, हमारे नबी को अल्लाह ने लड़के, लड़कियों दोनों अता फरमाया हज़रत याहया अलैहिस्सलाम व यीशु के कोई संतान नहीं थी, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को केवल मिट्टी से बनाया जिनके न पिता है न माँ हज़रत हव्वा अलैहस्सलाम को आदम से पैदा किया उनकी मां नहीं, इसा अलैहिस्सलाम को सिर्फ औरत से पैदा किया उनका पिता नहीं और बाकी सभी इंसानों को पुरुष और महिला के मिलाप से बनाया उनके पिता भी हैं और माता भी हैं। जब बच्चों के नेमत और रीज़्क के ज़रीया की बहुतायत, स्वास्थ्य और भलाई मिल जातीं हैं तो इन्सान घमन्ड गोरूर का इज़हार करने लगता है हालांकि अल्लाह की नेमतों पर खुश होना या उस का इज़हार करना बुरा नहीं है, लेकिन वह इज़हारे नेमत के रूप में हो नाकी बड़ाई के लिए।
संतान जैसी नेमत की क़द्र यह है कि जहां तक हो उसकी क़ीमत को समझा जाए उस पर तवज्जो दिया जाए। इस्लाम में जन्म से पहले ही हिदायत (निर्देश) का एहतमाम (आयोजन) किया गया है लोग बच्चों के संबंध में हमेशा तग़ाफ़ुल (लापरवाही) से काम लेते हैं उनके तरबियत (प्रशिक्षण) से अनदेखी इतना ही नहीं एक सामाजिक और एखलाकी अपराध है बल्कि खुद उनके और उनसे मुतअल्लिक़ क़ौम व मुलेक के भविष्य को नष्ट करने के बराबर है यही कारण है कि सैयद आलम ने बच्चों के प्रशिक्षण को इबादत और उन्हें एक कलेमा-ए- ख़ैर सिखादेने को सदक़ा देने से बेहतर बताया है।
कुरान ने बच्चों के आखिरत की नाकामियों की जिम्मेदारी माता पिता के सिर डाल दी है और खासकर कर मोमिनों को संबोधित किया कुरान इर्शाद फरमा रहा है पारा 28 / सूरह-तजरीम-आयत6, ऐ ईमान वालों तुम अपने और अपने घरवालों को उस आग से बचाव जिसका ईंधन आदमी और पत्थर होंगे, उस पर ऐसे फरिश्ते नियुक्त हैं जो बड़े कठोर सख्त स्वभाव के हैं जो इर्शाद उन्हें फरमाया जाता है तुरंत बजा लाते हैं, ना फरमानी नहीं करते अल्लाह की जिसका उसने हुक्म दिया है जब यह आयत नाज़िल हुई तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हू अपनी और अपने परिवारों की जिम्मेदारियों के एहसास से प्रभावित और चिंतित हुए आप नबी .अ.व. के पास आए ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल।) अपने आप को दोज़ख से बचाने का अर्थ तो समझ में आ गया मगर घरवालों को कैसे दोज़ख से बचा सकते हैं आप अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया जिन चीजों से रब तुम्हें रोका है तुम अपने घरवालों को रोको जिन कामों को करने का आदेश दिया है तुम उन्हें अपने घरवालों को आदेश दो.
सब से अच्छा उपहार बच्चों के लिए ::
तिर्मिज़ी शरीफ में हजरत अय्यूब मूसा रजियल्लाहु अनेहू अपने पिता और अपने दादा के वास्ते से रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह ने फरमाया अच्छी परवरिश से ज्यादा एक पिता का अपने बच्चों के लिए कोई इनआम नहीं एक बार सरकार ने फरमाया कोई बाप अपनी औलाद को इस से बेहतर कोई तोहफा नहीं दे सकता कि वह उसे अच्छी शिक्षा (तालीम) दे, हज़रत मौलाए कायेनात अली मुर्तजा रजियल्लाहु अन्हू का क़ौल है ''बच्चों को अदब (आदर सत्कार) सिखाओ और शिक्षा दो ''। इब्ने सीरियन से उल्लेख मिलता है बच्चों का सम्मान करो और उसे अच्छा अदब सिखाओ, नेक औलाद की तमन्ना रखने वालों के लिए शरीयत ने राह दिखाई है कि जिस समय मिलो, महिला के पास और स्खलन (मिलने का समय) हो तो उसे यह दुआ पढ़ना चाहिए ताकि बच्चा सालेह (नेक) हो शैतानी प्रभाव से मुक्त हो.بِسمِ اللہ اللھم جَنّبْنَی الشّیطانَ و جنَّبِ الشَّیطَانَ مَا رَزَقَنِی
 (अनुवाद) बिस्मिल्लाह ऐ अल्लाह मुझे शैतान से दूर रख और शैतान को मेरी औलाद से दूर फ़रमा।
अल्लाह के रसूल ने फरमाया कि यह दुआ पढ़े तो उसकी औलाद को कभी शैतान नुकसान नहीं पहुंचा सकता। (बुखारी शरीफ, मुस्लिम शरीफ़) जब पत्नी उम्मीद से हो तो पति परस्पर प्रेम और अनस और एकता का प्रदर्शन करे आपस में लड़ें झगड़ें नहीं इसलिए की जन्म से पूर्व परवरिश पाने वाला भ्रूण बाहरी असर करने वाली चिज़ो की पकड़ में होता है जिस तरह कैमरा की आंखें शरीर के अंदर छिपा कोनों तक पहुंच कर एक एक चीज को गवाह बना देती है। ऐसे ही भ्रूण (वह बच्चा जो जन्म से पूर्व हो) की परवरिश में माता पिता के व्यवहार को खासा दखल होता है ...... ऐसे समय में अल्लाह का ज़िक्र करते रहना चाहिए जबकि गर्भावस्था के दौरान डॉक्टरों को याद करते रहते हैं ताकि विलादत का कदम आसान हो तो जिस जात ने भ्रूण के पेट में ठहरने और नशोनमा का उपकरण किया है उस रब की तरफ बदरजा औला तवज्जो करना और उसे खुश रखने की फिक्र करना बुद्धीमानी करार दिया जाएगा,
कुरान में यह इशारा किया गया है

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 तो जब हमल (गर्भावस्था) ज़ाहिर हो गया तो दोनों ने अपने रब से दुआ की, जरूर अगर हमें जैसा चाहिए (नेक) बच्चा देगा तो बेशक हम शुक्रगुज़ार होंगे, अच्छे बच्चे मिलने पर तेरी इबादत और शुक्र गुज़ारी करुंगा पारा 9 / रूकुअ 13 / सूरतुल आराफ आयत 81 / .हज़रत लुकमान अलैहिस्सलाम के इर्शादात में है '' पिता का अदब की तालीम के लिए बच्चों को मारना खेती के लिए आसमान की बारिश के जैसा है '' (बाप की मार बच्चों के लिए बारिश के जैसा है) शेख सादी शिराज़ी रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते हैं '' उस्ताद की सज़ा माँ बाप के प्यार से बेहतर है "
अदब बुजुर्गों से और नेकी अल्लाह से है।
अदब बुजुर्ग सिखाएंगे, नेक अल्लाह बनाएगा, जिसने बेटे को बचपन में अदब सिखाया बड़े होने पर इससे उसकी आंखों को ठंडक मिलेगी।
अल्लाह की उस नेमत (औलाद) की कद्र यह है कि जहां तक हो सके उस की क़द्र व किमत को समझा जाए उस पर तवज्जोह दिया जाए और जो ज़रूरतें हैं उन्हें पूरा किया जाए।
एक इब्रतनाक घटना को देखते चलें ::
मेरा एक व्यक्ति के यहाँ जाना हुआ बच्चा बहुत रो रहे थे, रोने की वजह मालूम करने पर पता चला कि बिजली नहीं होने के कारण रो रहा है, मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी ठंड के मौसम में पंखे क्या काम मालूम हुआ टी.वी (TV) नहीं चल रही है, बच्चा गाना सुनकर सोता है, बच्चा दो महीने का हो चुका था, अज़ान व इक़ामत नहीं सुनाई गई थी (नऊज़ोबिल्लाह),

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आप अन्दाज़ा लगाएं फिर शिकायत की कि बच्चे माता पिता के ना फरमान है। तिर्मिज़ी और अबू दाऊद शरीफ में हजरत अबू राफे सहाबी रसूल से रिवायत है मैंने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) को देखा वह (अपने नवासे) हसन इब्ने अली (रजियल्लाहु अन्हुमा) के कान में नमाज़ की अज़ान पढ़ते हुए जब हजरते फ़ातिमा रज़ियल्लाहू अन्हा के यहां उनकी विलादत हुई.
औवलाद अल्लाह की अता व नेमत है::
निमत के बारे में रब का फरमान है

और अगर अल्लाह की नेमतों को गिनो तो उन्हें गिनती नहीं कर सकोगे बेशक अल्लाह बख़शने वाला, मेहरबान है।पारा 14 / सूरतुल नहल आयत नंबर 17 /
  अल्लाह तआला ने हमे हजारहा अन्दरूनी नेमतें अता की उसमें औलाद भी है और कुछ बाहरी नेमतें भी अता फरमाएं और दोनों नेमतें हमारी गिनती से बाहर हैं, (चे जाएकि उन का शुक्बारिया अदा हो) कुफ्र व शिर्क करने के बावजूद के अपनी नेमतें बंदों पर बंद नहीं करता और बड़े से बड़ा गुनाह तौबा से माफ कर देता है। आज के माहौल में बच्चों से ख्वाहिश बढ़ती जा रही है, धन प्राप्ती की दौड़ (Race) में इंसान इस कदर लगे रहते हैं कि वे बच्चों के बारे में सोचने की जहमत गवारा नहीं विशेषकर पश्चिमी देशों में बच्चे कानून और शांति के लिए हजारों समस्याएं पैदा कर रहे हैं अमेरिका, यूरोप में आए दिन स्कूल में अंधाधुंध गोलियां चलाना, सैकड़ों को मौत के घाट उतार देना बराबर अखबार की सुर्खियां बनती रहती हैं इसलिए जरूरत है कि इन बच्चों की तरबियत इस्लामी तौर-तरीके के अनुसार की जाए ताकि वे बड़े होकर देश व राष्ट्र, परिवार और समाज और स्वयं जाति के लिए उपयोगी साबित हो सके। अल्लाह हम मुसलमानों को इस लेख से अमल की तौफ़ीक़ रफीक और लाभ नसीब करे। आमीन
 निबंधकार: मोहम्मद हाशिम कादरी सिद्दीकी मिस्बाही


तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami


 

Wednesday, March 22, 2017

पापा, ये मुसलमान है ना ?

पापा, ये मुसलमान है ना?,,,इनके हाथ से कुछ मत लेना!!! पढ़ें वीरेंद्र भाटिया का लेख !!!
पापा, ये मुसलमान है ना। ट्रेन में सामने वाली बर्थ पर बैठी फॅमिली को देख कर बच्चे ने पिता से पूछा।।
हां बेटा, पिता ने संक्षिप्त जवाब दिया
इनके हाथ से कुछ मत लेना। माँ ने हिदायत दी।
क्यों? बच्चे का छोटा सा सवाल। जो कभी हल नहीं हो सका।
क्यों क्या। ये मांस मछली खाने वाले लोग हैं। हमसे नफरत करने वाले लोग हैं। इनसे हमारी सालो की दुश्मनी है। माँ को जितना मालूम था, वह सरसरी लहजे में बच्चे को बोल गयी।
बच्चा सोचता रहा कि हमारी इनसे दुश्मनी कब हो गयी। ये तो आज मिले।
पिता ने बच्चे की माँ को डांटा। ये कोई जगह है , ये सब बातें करने की। हालांकि पिता की सहमति थी उन बातों पर जो माँ ने बच्चे से कही।
क्या करती फिर। कोई चीज लेकर खा लेता तो। हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाता। माँ ने खुद को स्पष्ट किया।
अच्छा। अब चुप करो। खाना आ गया है खा कर आराम करो सब।
खाना खा कर सभी यात्री लेट गए। एकाएक बच्चे के पेट में तेज दर्द उठा। बच्चे ने माँ को कराहते हुये कहा। माँ। पेट दुःख रहा है।
माँ ने सोचा । ट्रेन का खाना नहीं पच रहा होगा। थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा। लेकिन बच्चे की हालत बिगडती गयी। बच्चे की माँ और पिता असमंजस में थे कि क्या करें।
मुसलमान पुरुष यात्री की नींद खुली। देखा तो बच्चे की माँ रो रही थी। मुसलमान पुरुष ने अपनी पत्नी को उठाया कि पता करो। मोहतरमा क्यों रो रही है। लेकिन मुसलमान की पत्नी उठती उस से पहले ही उसे मालूम हो गया था कि बच्चा बीमार है और लगभग बेहोशी की हालत में है।
उसने बच्चे के पिता से कहा- आपको ऐतराज ना हो तो बच्चे की नब्ज देख सकता हु। मेरा आजमगढ़ में दवाखाना है। थोड़ी बहुत समझ है मुझे मर्ज की।
बच्चे की माँ मुसलमान की और देख रही थी। पिता ने झट से बच्चे की बाजू मुसलमान के सामने कर दी।
आप इसे नीचे मेरी बर्थ पर सुलाईये। उसने अपना सूटकेस खोला तो वह दवाईयों की मेडिकल किट ही थी। मुसलमान यात्री की पत्नी भी जाग गयी थी। उसने बताया कि आपको डरने की जरुरत नहीं । इनके हाथ में शफा है। बहुत से मरीज इनके हाथ से ठीक हो कर गए। अल्लाह को जान देनी है। जितना जिसका भला हो सके, ये करते हैं। आप चिंता न करें बहन। बच्चा ठीक हो जाएगा।
मुसलमान यात्री ने एक घंटा बच्चे का उपचार किया। उसे दवा खिलाई भी पिलाई भी। मुसलमान के हाथ का खाने के बाद बच्चा अब ठीक होने लगा था।
मुसलमान ने कहा, बहन ये दवा रखो, तीन दिन सुबह शाम देना। पेट में अलसर है बच्चे के। तुरंत इलाज ना मिलता तो दिक्कत बढ़ जाती।
बच्चे की माँ को आज जीवन की सबसे बड़ी ग्लानि हो रही थी कि नफरत का ज्ञान वह कहाँ से सीखी थी। उसने आँखों में आंसू लिए मुसलमान दंपति को धन्यवाद करने वाली नजर से एक बार देखा और बच्चे को गोद में लेकर फफक कर रो पड़ी।

-वीरेंद्र भाटिया
Virender Bhatia

तीसरी जंग के ब्लॉग से कॉपी
Neyaz Ahmad Nizami

Tuesday, March 21, 2017

इस्लाम में मिस्वाक (दांतुअन) का महत्व




अल्लामा याह्या बिन शरफ़ इमाम नववी शाफ़ेई फरमाते हैं कि ..
अईम्मा-ए-केराम ने कहा है कि लकड़ी से दांत साफ करने की प्रक्रिया को सवाक कहते हैं
और
सवाक उस लकड़ी को भी कहते हैं
और उलेमा के शब्दों में लकड़ी या उसकी जैसी किसी चीज़ से दांत साफ करने को सवाक कहते हैं जिससे दातों का मैल और पीलापन दूर हो जाए
( मुस्लिम, 1/ 127)
सुन्न नबविया अला साहिबहा अस्सलातो वस्सलाम में कुछ कुछ सुन्नतें ऐसी भी हैं जो दिखने में बहुत मामूली दिखती हैं मगर वास्तव वह बहुत बङे सवाब का दर्जा रखता है उन्ही सुनन -ए- जमीला में से एक मिस्वाक भी है.जिसकी की फज़ीलत व अहमीयत से हदीस व फिक्ह की पुस्तकें मालामाल हैं .
हां कुछ हदीसें यहां नोट की जा रही हैं।
(1) हज़रत अबू ओमामह रजियल्लाहो अन्हू से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया मिस्वाक करो कि इसमें मुंह की पाकी और हक़ तआला की खुश्नूदी है।
(2) रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि जिब्रईल अलैहिस्सलाम हमेशा मुझे मिस्वाक की वसीयत करते रहे यहां तक कि मुझे भय हुआ कि कहीं मुझे और मेरी उम्मत पर फर्ज़ न होजाए,अगर मुझे अपनी उम्मत पर कठिनाई का डर न होता तो मैं उन पर मिस्वाक को फर्ज़ कर देता.मज़ीद इर्शाद फ़रमाते हैं कि मैं इस कदर कसरत (ज्यादती) से मिस्वाक करता हूं कि मुझे अपने मुंह के अगले भाग के छिल जाने का डर है।
(इब्ने माजा शरीफ)
(3) हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया मिस्वाक मुंह साफ करने वाली है और अल्लाह की रज़ा का सबब है।
(4) हज़रत होज़ैफा रजियल्लाहू अन्हु से मरवी है कि नबी करीमﷺ अपने मुंह मुबारक को मिसवाक से अच्छी तरह सजाते (संवारते) करते।
(5) हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूल अल्लाह ﷺने फ़रमाया कि बंदा जब मिस्वाक कर लेता है फिर नमाज़ को खड़ा होता है तो एक फरिश्ता उस के पीछे खड़े होकर किराअत सुनता है फिर उस से करीब होता है यहां तक ​​कि अपना मुंह उसके मुंह पर रख देता।
(6) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम ﷺ ने इर्शाद फरमाया मेरे नजडदीक दो रकाअते जो मिस्वाक कर के पढी जाएं अफज़ल हैं बे मिस्वाक की सत्तर रकाअतों से।
(7) हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहू अन्हा ने फरमाया कि नबी करीम ﷺघर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले मिस्वाक किया करते थे। (मुस्लिम शरीफ, हदीस 499)
मिसवाक का हुक्म:
पहर वुज़ू में मिस्वाक सुन्नत है।
वुज़ू के अलावा इन वक्तों में मुस्तह़ब है।
(1) हरनमाज़ समय
(2) तिलावते कुरान के लिए
(3) सो कर उठने के बाद
(4) मुँह में जब भी किसी कारण बदबू पैदा हो जाए
(5) जुमा (शुक्रवार) के दिन
(6) सोने से पहले
(7) खाने के बाद
(8) सहर (सुबह) के समय
(नुज़हत-उल-कारी शरह बुखारी, जिल्द 2, सफ़ा 169)

आला हजरत इमाम अहमद रजा खां तहरीर फ़रमाते हैं कि
'' जब दुआ का एरादा हो पहले मिस्वाक करे कि अपने रब से मुनाजात करेगा ऐसी हालत में राईहा मोतगईराह सख्त ना पसंद है ,खासकर हुक्का पीने वालों और तंबाकू खाने वालों को इस अदब की रेआयत जिक्र व दुआ व नमाज़ में निहायत अहम है
और
हुजूरे अक़्दस ﷺ इर्शाद फरमाते हैं कि मिस्वाक रब को राज़ी करने वाली है और जाहिर है कि रजाई परब होसुले रब का सबब है। ''
(अहसन उल वेआ ले आदाबि दुआ, पे 036)


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मिस्वाक दुनियावी वा उख़रवी लाभ:
मिसवाक के वे फजायेल जो इमामे किराम रिजवानुल्ल अलैहिम से बरेवायते हज़रत अली, हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास, हज़रत अता रज़ियल्लाहु अन्हुम से मरवी है उन को आरिफ बिल्लाह शैख अहमद ज़ाहिद रहम तूल्लाह ने जमा फरमाया उन में से कुछ यहाँ नकल किए जाते हैं कि
'' मिस्वाक को अनिवार्य पकड़लो और कभी उस से ग़फलत मत करो, बराबर करते रहो.क्योंकि मिस्वाक करने वाले से रहमान राजी होता और मिस्वाक करने वाले की नमाज़ का स़वाब 99दर्जा तक बढ़ जाता है और कुछ रिवायतों में चार सौ तक है।
1.मिस्वाक की प्रतिबंधता कुशादगी और मालदारी पैदा करता है।
2.रिज़्क को आसान करती है।
3.मुंह को पाक व साफ करती है।
4.मसोढ़ों को मजबूत बनाती है।
5.दर्दे सिर में आराम करती है। और सिर की नसों में सोकून हो जाता है यहां तक कि कोई ठहरी नस हरकत नहीं करती। और कोई चलने वाली नस ठहरी नहीं होती।
6.सरका दर्द और बलगम जाता रहता है।
7.दानतों को बल और आंखों को जला देती है।
8.मेदे (हाज़मा) सही करती है .साथ ही साथ शरीर को ताकत देती है।
9। शब्दों की सही अदायेगी और याद दाश्त व बुद्धी में बढोत्री करती है , नेकियों में खूब खूब वृद्धि करती है।
10.क़ल्ब को पवित्रता प्रदान करती है।
11.फरशते खुश होते हैं और मुसाफेहा करते हैं उसके चेहरे की रोशनी की वजह से।
12.और जब नमाज़ के लिए मस्जिद जाता है तो फरिश्ते उसके पीछे पाछे चलते हैं और जब मस्जिद से निकलता है तो हामोलिने अर्श के फरिश्ते उसके लिए मगफेरत की दुआ करते हैं यूं ही हज़रात अंबिया किराम व रसुलाने एज़ाम अलैहिमुस्सलाम भी उसके लिए मगफेरत की दुआ करते हैं।
13.मिस्वाक शैतान को नाराज और दूर करने वाली है।
14. ज़ेहन की सफाई और खाने को हज़म में भी सहायक होती है।
15.औलाद बहुतायत का सबब होती है।
16.पुल सिरात से बिजली की तरह गुज़ार देती है।
17.बढ़ापे को स्थगित करती है। और पीठ को मजबूत बनाती है।
18.कयामत दिन मिस्वाक करने वाले का आमाल दाहिने हाथ में होगा।
19.मिस्वाक बदन को अल्लाह की अताअत फरमा बरदारी के लिए चुस्त करती है।
20.मरने को समय कलमा-ए- शहादत को याद दिलाता है, मौत को आसान करती है।
21.दांतों को सफेद और चमकदार करती है.मुंह की बु पाक करती है.हलक और ज़ुबान को साफ सुथरा करती है।
22.समझ को तेज करती है रतूबत को को रोकती है .निगाह को तेज करती है .अजर यानी नेकी के बदले को बढ़ाती है।
23.कब्र वुसअत और कुशादगी का सबब है कबर में उस की मूनस व गमखार होती है।
24.मिस्वाक करने वाले के लिए जन्नत के द्वार खोल दिए जाते हैं, और जहन्नम के द्वार उसके लिए बंद कर दिए जाते हैं।
25.रोज़ाना उस से फरिश्ते कहते हैं कि यह हजरात अंबिया किराम अलैहीम अस्सलाम की इक़्तेदा करने वाला, अनके नक्शेकदम पर चलने वाला और इनकी सुन्नत व तरीका को अपनाने वाला है।
26.मौत का फरिश्ता उसके पास उस सूरत में आता है जो सूरत में वलीय अल्लाह के पास आता है।
27.मिस्वाक करने वाला दुनिया से कुंच नहीं करता जब तक कि हमारे आका ﷺ के हौज़ से सैरयाब न हो जाए जो कि मुहर शुदा शराब है ..... और इन सब फवायद से बढ़ कर यह है कि''यह मुंह की शुद्धि के स्रोत और रजा ए इलाही का सबब है । '' आदि आदि ....
(हाशिए तहावी अल मराकील्फ़लाह, खंड 1, पी 37)

मिस्वाक के मकरूहात
1.मिस्वाक लेट कर न करे कि तली बढ़ने का कारण है।
2.मुट्ठी से पकड़ना मना है कि इससे बवासीर पैदा होती है।
3.मिस्वाक को चूसा न जाए कि इससे वसवसा और अंधापन पैदा होता है।
4.फारग होने के बाद न धोना कि इससे शैतान करता है।
5.शौचीलस में मिस्वाक करना मकरूह है।
6.मिस्वाक खड़ी कर कि रखना चाहिए उसे ज़मीन पर न डालें वरना जुनून का खतरा है। हज़रत सईद बिन जबीर रज़ियल्लाहु अन्हु से नकल किया गया है कि जो व्यक्ति मिस्वाक जमीन पर रखने के कारण मजनून हो जाए तो वह अपने नफ्स के अलावा किसी को कसूरवार न करे कि यह खुद उसकी गलती है।
7.अनार, रेहान और बांस की लकड़ी से मिस्वाक करना मकरूह है और हुज़ूर नबी करीम (स.अ.व.) ने रेहान की मिस्वाक मना कि यह कुढ होने का सबब है।
8.मिस्वाक की इब्तेदा एक बालिश्त (बित्ता) के बराबर होनी चाहिए बाद में अगर कम हो जाए तो कोई हर्ज नहीं और एक बालिश्त से अधिक लंबी न हो कि उस पर शैतान सवार होता है। (ऐज़न) 

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एक बहुत ही अहम और ज़रूरी फतवा
मिसवाक की जगह मंजन या ब्रश और टूथपेस्ट का इस्तेअमाल (उपयोग):
मंजन, ब्रश और टूथपेस्ट के इस्तेमाल से मिस्वाक सुन्नत अदा नहीं होगी कि
'' मिस्वाक''पेङ की ऐसी डाली को कहते हैं जो जिस से दांत की सफाई की जाए.इस हिसाब से मंजन और ब्रश मिस्वाक न हुए मंजन का मिस्वाक न होना तो जाहिर है कि न वह पेड़ की डाली, न उसमें मिस्वाक की तरह रेशे , न मिस्वाक जैसी बनावट.और ब्रश में गो कि मिसवाक की तरह रेशे होते हैं लेकिन यह पेड़ की डाली नहीं. और न इसमें मिस्वाक की तरह कड़वा पन, और न ऐसा मज़ा पाया जाता जो मुंह की गंध दूर करिदे और पित्त बलगम को दूर कर कि तबियत को पूर सकून बनाए इसलिए कि यह मसनून मिस्वाक के हुक्म से नहीं हो सकता।
'' ब्रश '' जिसे मिस्वाक से कुछ हद तक ममासेलत है इस बारे में इमाम अहमद रजा खां बरेलवी रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि '' मूल तो यह है कि मिस्वाक सुन्नत छोड़ कर नसरानियों का ब्रश इस्तेमाल करना ही सख्त जहालत हमाकत और द्ल की बीमारी की दलील है।
(फतावा रज़विया, जिल्द 10, पेज 80)
इससे मालूम हुआ कि ब्रश अपनाना मिस्वाक की सुन्नत को छोड़ना है .हाँ अगर मिस्वाक ना मिले तो अब उनके उपयोग से सुन्नते मिस्वाक हो जाएगी उसकी मिसाल यह मसअला है कि ... मिस्वाक मफकोद हो तो उंगली या गंभीर कपड़ा उसकी जगह है.और महिलाओं के लिए '' मसी''मुतलकन अदाए सुन्नत के लिए काफी है।
आलमगीरी में है कि '' उंगली मिसवाक की जगह नहीं हो सकती हां अगर मिस्वाक न मिले तो दाहिने हाथ की उंगली मिस्वाक के हुक्म में होगी, ऐसा ही मुहीत व ज़हीरिया में है.और महिला के लिए '' मसी''मुतलकन मिस्वाक का बदल है, ऐसा ही बहरालराईक और दुर्रे मुख्तार में भी है। '' मिस्वाक न हो या दांत ही न हो तो खुरदुरा कपड़ा उंगली मिस्वाक की जगह है ''
(बहरूराईक़, खंड 1, पी 78)
आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कहते हैं कि '' मिस्वाक न हो तो उंगली से दांत मानजना सुन्नत की अदा और सवाब के हासिल के लिए काफी नहीं .हाँ मिस्वाक न हो तो उंगली या खरखरा कपड़ा अदाये सुन्नत कर देगा तथा महिला के लिए मिस्वाक मौजूद हो तब भी मसी ही काफी है ''
(फतावा रजवीया, खंड 1, पी 148)
मिस्वाक अगरचे जमहूर ओलमा के नजदीक सुन्नत है लेकिन फर्ज़ या वाजिब नही मगर इसके बावजूद इस के आदाब व मुस्तहिब्बात की रेआयत निहायत ही जरूरी है। इसमें कोताही करना और लापरवाही बरतना नुकसान दह, हानिकारक है।
हज़रत अब्दुल्ला बिन मुबारक रजियल्लाहु अनहू फरमाते हैं कि
'' अगर किसी शहर के निवासी मिस्वाक का इनकार कर दे तो इमामे वक्त उनसे मुरतदीन की तरह कताल करे ''(खानिया आदि)
हज़रत अल्लामा इमाम शेरानी रहमतुल्लाह अलैह '' कशफ़ु-उल-गम्माह''में तहरीर फ़रमाते हैं कि
'' होज़ूर अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि जो व्यक्ति मिस्वाक से दूर बारी और बे रग़बती करेगा कि वह हम में से नहीं है। ''
परवरदिगार आलम हम सभी मुसलमानों को इस सुन्नते जमीला पर अमल करने की तौफ़ीक़ रफीक अता फरमाए..आमीन बजाह सैयद मुरसलीन
  •   मज़मुन निगार:मुफ्ती मोहम्मद रज़ा मर्कज़ी .मालेगांव
  •  हिन्दी तर्जुमा व तसहील:: नेयाज अहमद निज़ामी
 
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Sunday, March 19, 2017

तिलावते कुरान के आदाब

 जब भी कुरान की तिलावत की जाए तो इससे पहले उनके आदाब और शरई अहकाम का लिहाज़ रखा जाए:

(1) ... कुरान मजीद देख कर पढ़ना, मौखिक पढ़ने से बेहतर है कि यह पढ़ना भी है और देखना और हाथ से उसका छूना भी और सब कुछ इबादत हैं।

(2) ... मुस्तहब यह है कि वजू के साथ क़िबला रू अच्छे कपड़े पहन कर तिलावत करे और सुनाना शुरू में '' अऊ़ज़ '' पढ़ना मुस्तहब है और सूरत की शुरुआत में '' बिस्मिल्लाह '' पढ़ना सुन्नत है वरना मुस्तहब है।
(बहारे शरीअत, भाग III, 1/550)

(3) ... कुरान को बहुत अच्छी आवाज से पढ़ना चाहिए और अगर पढने वाले की आवाज़ अच्छी न हो तो अच्छी आवाज़ बनाने की कोशिश करे। धुन के साथ पढ़ना कि हरूफ में उतार-चढ़ाव हो जैसे गाने वाले क्या करते हैं यह ना जायज़ है, बल्कि पढ़ने क़वायद तजवीद की रीयायत करे।
(बहारे शरीयत, भाग 16, 3/496)
(4) ... लेटकर कुरान पढ़ने में हर्ज नहीं, जबकि पैर सिमटे हों और मुँह खुला हो, यूहीं चलने और काम करने की हालत में भी तिलावत जायज़ है, जबकि मन न बंटे, वरना मकरूह है।
(5) ... जब कुरान मजीद खत्म हो तो तीन बार '' कुल हू अल्लाह अहद '' पढ़ना बेहतर है, अगर चे तरावीह में हो, लेकिन अगर फर्ज़ नमाज़ में ख़त्म करे, तो एक बार से ज़्यादा न पढ़े।
(बहारे शरीयत, भाग 3, 1/551)
(6) ... मुसलमानों में यह दस्तूर है कि कुरान पढ़ते समय अगर उठकर कहीं जाते हैं तो बंद कर देते हैं खुला हुआ छोड़कर नहीं जाते, यह अदब की बात है, लेकिन कुछ लोगों में यह प्रसिद्ध है कि अगर खुला हुआ छोड़ दिया जाएगा तो शैतान पढ़ेगा, इस की कोई अस्ल नहीं, संभव है कि बच्चों को इस अदब की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए यह बात की गई हो।
(बहारे शरूयत, भाग 16, 3/496)

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(7) ... जब जोर से कुरान पढ़ा जाए तो सभी हाजरीन पर सुनना फर्ज़ है , जब कि वे भीड़ कुरान सुनने हेतु उपस्थित हो वरना एक का सुनना काफी है अगरचे बाकी लोग अपने काम में व्यस्त हो।

(8) ... मजलिस या किसी सभा में सब लोग जोर से पढ़ें यह हराम है। अगर कुछ व्यक्ति पढने वाले हूँ तो आदेश है कि धीरे पढ़ें।

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(9) ... बाजारों में और जहां लोग काम में व्यस्त हूँ जोर से पढ़ना ना जायज़ है, लोग अगर न सुनेंगे तो गुनाह पढने वाले पर है अगरचे काम में मश्गूल होने से पहले उसने पढ़ना शुरू कर दिया हो और अगर वह जगह काम करने के लिए मोकर्रर (फिक्स) ना हो तो अगर पहले पढ़ना उसने शुरू किया और लोग नहीं सुनते तो लोगों पर गुनाह और अगर काम शुरू करने के बाद उसने पढ़ना शुरू किया, तो उस पर यह गुनाह है।

(10) ... जो व्यक्ति गलत पढ़ता है तो सुनने वाले पर वाजिब है कि बता दे, बशर्ते कि बताने की वजह से बैर और ईर्ष्या पैदा न हो। इसी तरह अगर किसी का मसहफ शरीफ अपने पास आरियत है, अगर इसमें लिखावट की गलती देखे तो बता देना वाजिब है।(बहारे शरियत, भाग III, 1 / 552-553)

मज़मून निगार::   इल्म-उल-कुरआन 

अज़ '' सेरात-उल- जिनान फी तफसीरिल कुरआन
हिन्दी तर्जुमा व तसहील:: नेयाज अहमद निज़ामी

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Friday, March 17, 2017

मेरे प्यारे बेटे





  आज पहली बार मैं तुम्हारी मां तुमसे पत्र के माध्यम से बात कर रही हूं. तुम यही समझ लो कि तुम्हारी मां तुम्हें गले से लगाकर, सामने बैठकर तुम्हें ये सबकुछ कह रही है और तुम मुस्कुराते हुये मेरी गोद में अपना मुंह छुपाये ही चले जा रहे हो. लेकिन मेरे नन्हे राजकुमार अब तुम बहोत ना सही कुछ तो बड़े हो ही गये हो. भले ही अभी तुम्हें हज़ारों-लाखों चीज़ें दुनिया की देखनी है, समझनी है फ़िर भी क्योंकि अब तुम इस दुनिया में सोलह साल के हो गये हो, तुम्हें दुनिया निराली लगने लगी होगी.

अब स्कूल से बाहर निकलकर कालेज जाओगे और दुनिया की खूब सारी अनछुई अनदेखी चीज़ों से वाक़िफ़ होगे. मैं बहोत चाहकर भी तुम्हारी उस नई नई, सजीली दुनिया का हिस्सा नहीं बन पाऊंगी. और ना तुम्हारे ढेरों नये अनुभवों साझा ही कर सकूंगी जिसे तुम कालेज और अपने नये बने दोस्तों से जुड़कर मुझे बताते. जैसा कि तुम अपने छोटे प्राइमरी स्कूल के दाखिले के बाद रोज़ाना आकर मुझे सुनाते थे.

बेटा आज भी ज़रूरी बात की तरह ही मैं तुमसे सही समय पर खाने, पढ़ने, सोने और खेलने-कूदने के लिये ही फ़िर से कह रही हूं. मुझे पता है मेरा प्यारा बेटा अपनी दिनचर्या अभी भी नहीं बिगाड़ेगा. वो सुबह-सुबह उठेगा, खूब सफ़ाई रखेगा, फलों और दूध वाला नाश्ता करेगा, थीक समय पर खाना खायेगा. समय पर कालेज जायेगा. खूब मन लगाकर पढ़ेगा, ठीक समय से घर लौट आयेगा. आराम करेगा, फ़िर पढ़ेगा, ज़्यादा देर टीवी और कम्प्यूटर के आगे नहीं बैठेगा. सही समय से सो जायेगा.
मेरे लाल, मेरे सुल्तान बेटे आज अगर मैं तुम्हारे पास नहीं हूं, तो इसका ये मतलब नहीं कि तुम बिगड़ जाओ या मेरी तरह अपनी सेहत भी खराब कर लो.. आज मेरी इस दुनिया में ना रहने की वजह एकमात्र तुम्हारे पिता द्वारा शराब पीकर मुझे रोज़ाना बुरी तरह पीटा जाना नहीं है, मेरी ख़ुद के सेहत को लेकर लापरवाहियां भी हैं, जिससे मेरे अन्दर कैन्सर के सेल पैदा हुये और पनपते गये, जिसका पता मुझे और हमारे परिवार को बहुत देर से हुआ.

    मेरे सुन्दर सलोने बेटे, मैं जानती हूं कि आगे जब तुम अपना जीवनसाथी चुनोगे, तो उसे खूब खुश रखोगे, और उसकी सेहत को लेकर हमेशा चौकन्ने भी बनोगे. तुम्हारे पिता की शराब, गलत औरतों से उनके सम्बन्ध और परिवार के प्रति उनकी उदासीनता तुम्हारे नन्हे से दिल को भी बहुत चुभती होगी, मैं जानती हूं. इसलिये हमेशा अपनी आदतों को स्वस्थ और बेहतर रखना.
तुम खूब बड़े आदमी बनो, खूब नाम कमाओ, हमेशा खुश रहो.
तुम्हारी मां.


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Tuesday, March 14, 2017

मां को जवाब ना देने वाला गूंगा हो गया

मां को जवाब ना देने वाला गूंगा हो गया

एक शख्स को उस की मां ने आवाज़ दी लेकिन उस ने जवाब ना दिया ,इस पर उस की मां ने उसे बद दुआ (श्राप) दी तो वह गुंगा हो गया ।।
(बिर्रूल वालिदैन पेज 7⤖ລ๐ㅇο॰9)

तस्हील व तर्जुमा
Neyaz Ahmad Nizami 
http://neyaznizami.blogspot.com/2017/03/blog-post_14.html