neyaz ahmad nizami

Monday, June 26, 2017

::शव्वाल के छ:(6) रोज़े:: अज़: नेयाज़ अहमद निज़ामी



हदीस::
عَنْ أَبِي أَيُّوبَ الْأَنْصَارِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "مَنْ صَامَ رَمَضَانَ ثُمَّ أَتْبَعَهُ سِتًّا مِنْ شَوَّالٍ كَانَ كَصِيَامِ الدَّهْرِ"

तर्जुमा: हज़रत अबू अय्यूब رضی اللہ عنہसे रेवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "जिसने रमज़ान के रोज़े रखे फिर उस के बाद छ: रोज़े शव्वाल के रख लिए तो उस ने गोया हमेशा रोज़े रखे (मुस्लिम) ।
(ریاض الصالحین جلد دوم ص 120)

हदीस:: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: जिस ने ईद उस फित्र के बाद छ:रोजे़ रख लिए  तो उसने पूरे साल का रोज़ा रखा , वह इस तरह कि "जो एक नेकी लाएगा उसे दस मिलेंगी तो रमज़ान के महीने का रोज़ा 10महीने के बराबर है और इन छ: दिनों के बदले में दो महीने„ तो पूरे साल  के के रोज़े हो गए।

हदीस:: अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं: जिस ने रमज़ान के रोज़े रखे फिर उस के बाद छ:दिन शव्वाल में रखे तो गुनाहों से ऐसे निकल गया, जैसे आज मां के पेट से पैदा हुआ है।
(بہار شریعت ج اول ص 1010)

नोट: बेहतर यह है कि यह रोज़े अलग अलग रखे जाएं ,और अगर ईद के बाद लगातार छ: दिन में एक साथ रख लिए तब भी कोई बात नही (حاشیہ بہار شریعت ج اول ص 1010)


तालीफ        
 Neyaz Ahmad Nizami



Tuesday, June 13, 2017

एअ़तेकाफ का बयान: नेयाज़ अहमद निज़ामी




::एअ़तेकाफ का कुरआन से सोबूत::
अल्लाह तआला फरमाता है:
وَلا تُباشِروهُنَّ وَأَنتُم عاكِفونَ فِي المَساجِدِ (پ2، س البقرۃ:187)

तर्जुमा: औरतों को हाथ ना लगाओ जब तुम मस्जिदों में एअतेकाफ से हो। (कन्ज़ुल ईमान)

::एअ़तेकाफ का हदीस से सोबूत::
हदीस: हज़रते आईशा सिद्दीक़ा رضی اللہ عنھاसे मरवी है कि नबी करीम ﷺ रमज़ान के आखरी अशरा (अन्तिम 10दिन) का एअतेकाफ फरमाया करते थे।
 (صراط الجنان و بہار شریعت بحوالہ بخاری و مسلم)

हदीस: हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मुहम्मदे अरबी ﷺ रमज़ान के आख़री अशरा (अन्तिम 10दिन) में एअतेकाफ करते थे, एक साल एअतेकाफ ना कर सके, जब अगला साल आया तो होजूर अनवर ﷺ ने 20 दिन एअतेकाफ किया।
 (ترمذی، کتاب الصوم، حدیث 803)


::एअतेकाफ की फज़ीलत::

दो हज और दो उमरों का सवाब:
हदीस: हज़रत अली رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि सय्यदुल मुर्सलीन ﷺ ने इर्शाद फरमाया "जिस ने रमज़ान में 10 दिन का एअतेकाफ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हज और दो उमरे किए„।
(صراط الجنان جلد اول ص 301)
नोट: यही हदीस हज़रत इमाम हुसैन رضی اللہ عنہ से भी मरवी है (बहारे शरीयत जिल्द1 हिस्सा5 पेज 1020)
【दो हज और दो उमरों का सवाब】


ना कर सकने वाले नेकियों का सवाब:
हदीस: हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्न अ़ब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम रउफो रहीम ﷺ ने एअतेकाफ करने वाले के बारे में फरमाया कि "वह गुनाहों से बाज़ (बचा) रहता है और नेकियों से उसे इस क़दर स़वाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियां कीं।
यानी जो नेकियां वह एअतेकाफ की वजह से नहीं कर पाता है जैसे मरीज़ को देखने जाना, जनाज़े में शरीक़ होना, आदि उस का भी सवाब उसे मिलता है: नेयाज़ अहमद निज़ामी
(صراطالجنان ج اول ص 301 بحولہ ابن ماجہ)

जहन्नम से 3ख़न्दक़ें दूर:
हदीस: हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्न अ़ब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि  प्यारे आक़ा ﷺ ने फरमाया: जिस ने अल्लाह ﷻ की रज़ा हासिल करने के लिए एक दिन का एअतेकाफ किया तो आल्लाह ﷻ उस के और जहन्नम के बीच तीन खन्दक़ें ला देगा और हर खन्दक़ पूरब और पश्चिम के इतनी दूरी होगी।
(صراطالجنان ج اول ص 301 بحولہ ابن ماجہ)

हर दिन हज का सवाब::
सईद बिन अब्दुल अ़ज़ीज़ फरमाते हैं कि मुझ तक हज़रत हसन बसरी رضی اللہ عنہ से  यह रिवायत पहुंची है कि मुअतकिफ (एअतेकाफ करने वाला) के लिए हर दिन में हज का सवाब है,
 (احکام تراویح و اعتکاف118)
हर दिन हज का सवाब::

::एअतेकाफ का शाब्दिक व धार्मिक मतलब(अर्थ)::

एअतेकाफ अरबी शब्द है जिस का अर्थ है ख़ुद को रोक लेना, बन्द कर देना, किसी की तरफ इतना ध्यान देना की चेहरा उस तरफ से ना हटे, (لسان العرب)
जबकि शरियत में "मस्जिद  में  अल्लाह ﷻ के लिए नियत के साथ ठहरना" एअतेकाफ कहलाता है,
(بہار شریعت پنجم ص 1020)

::एअतेकाफ के मसाईल::

मसअला: एअतेकाफ के लिए मुसलमान, आक़िल (अक़लवाला) और नापाकी,हैज़ (माहवारी) नेफास से पाक होना शर्त है,
बालिग़ होना शर्त नहीं बल्कि नाबालिग जिसे तमीज़ हो वह भी एअतेकाफ की नियत से मस्जिद में रुके तो सही है, (आलम गीरी)

मसअला: जामा मस्जिद होना एअ़तेकाफ के लिए ज़रूरी नही बल्कि  मस्जिदे जमाअत में भी हो सकता है,
मस्जिदे जमाअत वह है: जिस में इमाम और अज़ान देने वाले मुकर्रर हों,भले ही पांचो समय जमाअत ना होती हो, और आसानी इस में है कि हर मस्जिद में एअतेकाफ सही है अगरचे वह मस्जिदे जमाअत न हो,

मसअला:  सब से अफज़ल (अच्छा) मस्जिदे हरम में एअतकाफ है, फिर मस्जिदे नबवी में फिर मस्जिदे ला:अक्सा में फिर उस में जहां बङी जमाअत होती हो।

एअतेकाफ की तीन क़िस्में हैं:
(1) वाजिब , कि एअतेकाफ की मन्नत मानी यानी  ज़ुबान से कहा,महज़ दिल के एरादा से नही होगा।

(2) सुन्नते मुअक्केदा, कि रमज़ान के पूरे आखरी 10दिन में एअतेकाफ किया जाए यानी बीसवीं रमज़ान को सूरज डूबते समय एअतेकाफ की नियत से मस्जिद में हो और तीसवीं रमज़ान को सूरज के डूबने के बाद या उन्तीसवीं को चांद होने के बाद निकले, अगर बीसवीं तारीख को मगरीब की नमाज के बाद एअतेकाफ की नियत की तो सुन्नते मुअक्केदा अदा ना हूई, और यह एअतेकाफ "सुन्नते केफाया„ है कि अगर अगर सब छोङ देंगे तो सबसे पूछ होगी और अगर शहर में एक ने भी कर लिया तो सबकी ज़िम्मादारी ख़त्म हो जाएगी।

(3) इन दो के अलावा जो एअतेकाफ किया जाए मुस्तहब और सुन्नते ग़ैर मुअक्केदा है।।

मसअला: एअतेकाफे मुस्तहब और सुन्नत के लिए रोज़ा शर्त नही है और ना ही कोई खास समय रखा गया है ,बल्कि जब भी मस्जिद में एअतेकाफ की नियत की, जब तक मस्जिद में है मुअतकिफ है,मस्जिद से बाहर निकल आया एअतेकाफ ख़त्म हो गया (आलमगीरी)।

मसअला: रमज़ान शरीफ के आखरी 10दिनें में जो एअतेकाफ रखा जाता है उस में रोज़ा शर्त यानी ज़रूरी है,

मसअला: यह ज़रूरी नहीं कि खास एअतेकाफ ही के लिए रोज़ा हो बल्कि रमज़ान के रोज़े भी मुअतकिफ के लिए काफी हैं।

मसअला: मुअतकिफ का बेगैर किसी वजह के मस्जिद से निकलने पर एअतेकाफ जाता रहता है,

मसअला: मुअतकिफ ना चुप रहे , ना बात करे तो क्या करे,कुरआन मजीद की तिलावत करे हदीस फढे,दोरूद पढे, इल्में दीन का सीखना सिखाना, इस्लामी किताबों को पढे,या किताबत (कम्पोज़िंग) करे।

मसअला: मुअतकिफ (एअतेकाफ करने वाला) को मस्जिद से निकलने की दो वजहें हैं
(1) हाजते तबई' कि मस्जिद में पूरी ना हो सके जैसे, पाखाना, पेशाब, इस्तिंजा, वज़ू और ग़ुस्ल की ज़रूरत हो तो  गुस्ल (स्नान), मगर गुस्ल और वज़ू में शर्त यह है कि मस्जिद में ना हो सकें, और अगर मस्जिद में वज़ू और ग़ुस्ल के लिए जगह बनी है तो अब बाहर जाने की इजाज़त नही,

(2) हाजते शरई ईद या जुमा के लिए जाना,

मसअला: क़ज़ाए हाजत (शौच) के लिए गया तो तहारत (स्वछ) कर के तुरंत चला आए रुकने की इजाज़त नही,

मसअला: मुअतकिफ का मकान मस्जिद से दूर है और दोस्त का मकान क़रीब तो यह ज़रूरी नही कि दोस्त के मकान पे  क़ज़ाए हाजत (शौच) को जाए,बल्कि अपने मकान पर भी जा सकता है,

मसअला: अगर वह मस्जिद गिर गई  या किसी ने मजबूर करके वहां से निकाल दिया  और फौरन दूसरी मस्जिद में चला गया तो एअतेकाफ फासिद (टूटा) नहीं हुआ,

मसअला: डूबने या जलने वाले के बचाने के लिए मस्जिद से बाहर निकला या गवाही देने के लिए या जेहाद में सब लोगों का बुलावा आया और यह भी निकल गया, या मरीज़ की एआदत या नमाजे जनाज़ा के लिए गया, अगर्चे कोई दूसरा पढने वाला ना हो तो इन सब वजहों की हालत में एअतेकाफ टूट जाता है।

मसअला: पाखाना, पेशाब के लिए गया था  क़र्ज़ ख्वाह ने रोक लिया एअंतेकाफ टूट गया।

मसअला: औरत को छूना बोसा लेना वती (हमबिस्तरी) करना मुअतकीफीन के लिए हराम है।

मसअला: एहतेलाम (स्वप्नदोष) होने से एअतेकाफ टूट गया,

मसअला:  मुअतकिफ के गाली गलूच बकने या झगङा करने से एअतेकाफ टूटता नही।

मसअला:  मुअतकिफ मसजिद ही में खाए पीए सोए,अगर इस काम के लिए मस्जिद से  बाहर गया तो एअतेकाफ जाता रहा।

मसअला:  मुअतकिफ के अलावा और किसी को भी मस्जिद में खाने पीने सोने की इजाज़त नही, और अगर यह काम करना चाहे तो  एअतेकाफ की नियत करके मस्जिद में जाए और नमाज़ पढे या ज़िकरे इलाही करे,फिर यह काम कर सकता है।
(ماخوز از: بہار شریعت)

 तालीफ        
 Neyaz Ahmad Nizami

Tuesday, June 6, 2017

गर्मी की दुआ व इस का जन्म



जिस तरह हर चीज़ का पैदा करने वाला अल्लाह है,जैसा कि क़ूरआन में कहा गया है
  خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ तर्जुमा: हर चीज़ का पैदा करने वाला (س:الانعام، ت:102، پ7)
 यानी रब हर चीज़ का बनाने वाला है,ज़ाहिर सी बात है इस हर चीज़ में गर्मी,और ठंडी भी आ गई,लेहाज़ा रब की किसी चीज़ पर एतराज़ करना रब ही पर एतराज़ करना है जो एक मोमिन का शेवा हो ही नही सकता, इस लिए कभी जिन्दगी के ऐसे मोङ पे खङे हों तो ज़ुबान से ऐसे शब्दो का प्रयोग ना करें जिस से अल्लाह की शान में ज़र्रा बराबर भी तौहिन,गुस्ताखी,नज़र आए। बल्कि हर हाल में रब का शुक्र ही अदा करनी चाहिए
 وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ
तर्जुमा: मेरा हक़ मानो और ना फरमानी ना करो,(سورہ بقرہ152)

इसी लिए खुशी हो या ग़म हर हाल में अल्लाह को याद करने का हुक्म है,और इस्लाम ने हमें हर मोङ पे रहनुमाई (मार्गदर्शन) की है।।

::गरमी व सर्दी की पैदाइश (जन्म)::
गरमी जो हम दुनिया में महसूस करते हैं इसकी एक खास वजह है हदीस शरीफ में है कि

عن أَبی هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ يَقُولُ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ اشْتَكَتْ النَّارُ إِلَى رَبِّهَا فَقَالَتْ رَبِّ أَكَلَ بَعْضِي بَعْضًا فَأَذِنَ لَهَا بِنَفَسَيْنِ نَفَسٍ فِي الشِّتَاءِ وَنَفَسٍ فِي الصَّيْفِ فَأَشَدُّ مَا تَجِدُونَ مِنْ الْحَرِّ وَأَشَدُّ مَا تَجِدُونَ مِنْ الزَّمْهَرِيرِ ( صحيح بخاری: 3260)
तर्जुमा: अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया"जहन्नम ने अपने रब से शिकायत करते हुए कहा ऐ मेरे रब ! मेरे एक हिस्से ने दूसरे हिस्से को खा लिया तो अल्लाह ने उस के लिए दो सांसें लेने की इजाज़त दे दी ,एक सांस सर्दी के मौसम में और दूसरी सांस गर्मी के मौसम में,यही वजह है जो तुम तेज़ गरमी महसूस करते हो,और यही वजह है जिस से तेज़ सर्दी महसूस करते हो,

::गर्मी महसूस होने पर दुआ::
जिस नबी ﷺ ने हमें क़दम क़दम पे जीना सिखाया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि गर्मी के तेज़ मौसम के बारे में कुछ ना कहा हो चुनांन्चे हदीस शरीफ में फरमाया गया,

 إِذَا كَانَ يَوْمٌ حَارٌّ فَقَالَ الرَّجُلُ : لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ ، مَا أَشَدَّ حَرَّ هَذَا الْيَوْمِ ، اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنْ حَرِّ جَهَنَّمَ ، قَالَ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ لِجَهَنَّمَ : إِنَّ عَبْدًا مِنْ عِبَادِي اسْتَجَارَ بِي مِنْ حَرِّكِ ، فَاشْهَدِي أَنِّي أَجَرْتُهُ .

तर्जुमा: जिस दिन गर्मी तेज़ होती है तो बन्दा कहता है "ला इलाहा इल्लल्लाहु मा अशद्दा हर्रा हाज़ल यौमे,आल्लाहुम्मा अजिर्नी मिन हर्रे जहन्नम„ अल्लाह दोज़ख से फरमाता है मेरा बन्दा मुझ से तेरी गर्मी से पनाह मांग रहा  है  पस मैं तुझे गवाह बनाता हूं कि मैने इसे तेरी गर्मी से पनाह दी।(البدور السافرۃ ص418 حدیث 1495)

दुआ एंव तर्जुमा: "ला इलाहा इल्लल्लाहु मा अशद्दा हर्रा हाज़ल यौमे,आल्लाहुम्मा अजिर्नी मिन हर्रे जहन्नम„
नहीं है कोई पुज्यनीय सेवाए अल्लाह के आज बङी गर्मी है  ऐ अल्लाह मुझे जहन्नम की गर्मी से पनाह दे।।

गर्मी का मौसम भी अल्लाह की नेमत है और ईस में बहुत सारी हिकमतें हैं जो हमारी समझ से बहुत उपर  हैं इस लिए गर्मी तेज़ हो जाए तो सब्र से काम लेना चाहिए.      ( फक़त ) [गर्मी से हिफाज़त के मदनी फूल]

मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami