neyaz ahmad nizami

Tuesday, August 28, 2018

:: हज की फज़ीलत कुरआन व हदीस की रोशनी में ::


कुरआन पाक में अल्लाह तआला फरमाता है ::
إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِّلْعَالَمِينَ فِيهِ آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ مَّقَامُ إِبْرَاهِيمَ ۖ وَمَن دَخَلَهُ كَانَ آمِنًا ۗ وَلِلَّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ
(آل عمران پارہ 4 آیت 96-97)
तर्जुमा: बेशक पहला घर जो लोगों के लिए बनाया गया वह है जो मक्का में है, बरकत वाला और हिदायत तमाम जहांन (दुनिया)  के लिए, उस में खुली हुई निशानियां हैं, मक़ाम-ए-इब्राहीम और जो शख्स (व्यक्ती) उस में दाखिल हो (प्रवेश करे) अमान में है और अल्लाह के लिए लोगो पर बैतुल्लाह का हज है,जो शख्स (व्यक्ती) रास्ता के हिसाब से हज की ताकत रखे, और जो कुफ्र करे अल्लाह सारे जहान से बे परवाह है।

अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी अपनी तफ्सीर में इस आयत करीमा की शान-ए-नोज़ूल के तहत फरमाते हैं कि यहूद ने मुसलमानो से कहा था कि बैतुल मक़्दिस (जो फिलिस्तीन में है) हमारा क़िबला है, काबा से अफज़ल (बेहतर) और उस से पहला है अम्बिया का मक़ाम-ए-हिजरत और क़िबल-ए-इबादत है, मुसलमानों ने कहा काबा अफज़ल है, इस पर यह आयत करीमा नाज़िल हुय़ी,

दूसरी जगह अल्लाह फरमाता है::

وَاَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلّـٰهِ (پ2 ت 196 س بقرہ)
तर्जुमा: और हज और उमरा अल्लाह के लिए पूरा करो,

हदीस 1: सहीह मुस्लिम शरीफ में अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से मरवी कि रसूल ﷺ ने फरमाया :
 ऐ लोगो!  तूम पर हज फर्ज़ किया गया लेहाज़ा हज करो, एक शख्स ने अर्ज़ की  क्या हर साल या रसूलल्लाह ﷺ ? होज़ूर ﷺ खामोश (चुप) रहे उन्होने तीन बार यह कहा इर्शाद फरमाया कि अगर मैं हां कह देता तो तुम पर वाजिब (जरूरी) हो जाता और तुम से ना हो सकता फिर फरमाया, जब तक मैं किसी बात को ब्यान (बताउं) करूं तुम मुझसे सवाल ना करो,अगले लोग सवाल ज़्यादा करने और अम्बिया की मुखालेफत से हलाक (बरबाद) हुए, लेहाज़ा जब मैं किसी बात का हुक्म दूं तो जहां तक हो सके उसे  करो, और जब मैं किसी बात से मना करूं तो उसे छोङ दो (صحیح مسلم، کتاب الحج ،حدیث 1338)

हदीस 2: मुस्लिम व इब्न ख़ज़ीमा अ़मर इब्न आ़स رضی اللہ عنہ से रावी, रसूल ﷺ फरमाते हैं "हज उन पापों को खत्म कर देता है जो पहले हुए हैं।
(صحیح مسلم،، کتاب الایمان،، حدیث 121)

हदीस 3: इब्न माजा उम्म-ए-सलमा  رضی اللہ تعالٰی عنہا से रावी रसूल ﷺ ने फरमाया हज कमज़ोरों के लिए ज़िहाद है। 
(سنن ابن ماجہ،، ابواب المناسک،، باب الحج جہاد النساء ح2902)
(↑بہار شریعت ج اول ح ششم ص 1030-31 ↑)

हदीस 4: और फरमाया कि इस से बढ कर और कोई गुनाह (पाप) नहीं कि आदमी हज में मक़ाम-ए-अ़रफात में खङा हो और गुमान करे कि मैं नहीं बख्शा गया। (کیمیاء سعادت صفحہ نمبر188)

:: हज किसे कहते हैं और कब फर्ज़ हुआ? ::
हज नाम है अहराम बांध कर नव्वीं (9th) ज़िल्हिज्जा (इस्लामी महीना) को अरफात  में ठहरने और काबा मोअज़्ज़मा के तवाफ (प्रिक्रमा) का और उस के लिए एक खास समय रखा गया है, कि उसी समय पर यह काम किया जाए तो हज है।
हज 9हिजरी में फर्ज़ हुआ, उस की फर्ज़ियत क़तई है, जो इस की फर्ज़ियत का इन्कार करे काफिर है,मगर उम्र भर में सिर्फ एक बार फर्ज़ है। 

मसअला 1: दिखावे के लिए हज करना और हराम माल से हज को जाना हराम है।

मसअला 2: जब हज पर जाने की ताक़त हो  तो तुरंत हज फर्ज़ हो गया (उसी साल में) अब देर करेगा तो गुनहगार (पापी) होगा, मगर जीवन में कभी भी हज करेगा तो हो जाएगा।
  ::हज का समय::
मसअला 3: हज का समय शव्वाल (इस्लामी 10वां महीना) से 10वीं ज़िल्हिज्जा (इस्लामी बारहवां महीना)तक है 

:: हज वाजिब होने की शर्तें ::
हज वाजिब होने की 8 शर्तें हैं, 
जब तक यह सब ना पाई जाएं  हज फर्ज़ नहीं, वह शर्तें यह हैं 
  • (1) इस्लाम,
  • (2) दार-उल-हरब,दार-उल-इस्लाम,
  • (3) बोलूग़ (बालिग़)
  • (4) आ़क़िल (बुद्धिमान)
  • (5) आज़ाद होना
  • (6) सेहतमंद हो
  • (7) सफर के खर्च का मालिक और सवारी पर ताक़त हो,
  • (8) वक्त (समय)

हज वाजिब होने की शर्तें विस्तार के साथ:
  • (1) इस्लाम,

लेहाज़ा अगर मुसलमान होने से पहले मालदार था फिर फक़ीर हो गया तो कुफ्र के ज़माना में मालदार होने की वजह से इस्लाम लाने के बाद हज फर्ज़ ना होगा,
  • (2) दार-उल-हरब,
में हो तो यह भी ज़रूरी है कि  जानता हो कि इस्लाम के तमाम फर्ज़ों में हज है,
लेहाज़ा जिस वक्त मालदार था यह मसअला मालूम ना था और जब मालूम हुआ तब यह फकीर हो गया तो अब फर्ज़ नहीं,
 और दार-उल-इस्लाम में है तो चाहे फर्ज़ होना उसे मालूम हो या ना मालूम हो फर्ज़ हो जाएगा,क्युंकि दार-उल-इस्लाम में फर्ज़ों का मालूम होना ना होना उज़्र नहीं।

  • (3) बोलूग़ (बालिग़)

नाबालिग़ ने हज किया यानी अपना आप जब कि समझदार हो या उस के वली ने उस की तरफ से अहराम बांधा हो जब कि ना समझ हो, बहरहाल वह नफ्ल का हज हुआ,फर्ज़ हज की जगह नही हो सकता, 

  • (4) आ़क़िल (बुद्धिमान)

अक़्लमंद (बुद्धिमान) होना शर्त है लिहाज़ा मजनून (पागल) पर हज फर्ज़ नहीं, 
मजनून (पागल) था और वक़ुफ-ए-अरफा से पहले पागलपन जाता रहा और नया अहराम बांध कर हज किया तो यह हज फर्ज़ का हज हुआ वरना नहीं,
हज करने के बाद पागल हुआ फिर अच्छा हुआ तो 
इस पागलपन का हज पर कोई असर नही, यानी दोबारा हज करने की ज़रूरत नहीं,

  • (5) आज़ाद होना,

बांदी गुलाम पर हज फर्ज़ नहीं ,

  • (6) सेहतमंद हो,

कि हज को जा सके,बदन के हर हिस्से सलामत हों, अंखियारा हो, अपाहिज फालिज वाले जिस के पांव कटे हों और बुढे पर कि सवारी पर खुद ना बैठ सकता हो,  हज फर्ज़ नहीं, युं ही अंधे पर भी हज वाजिब नहीं भले ही हाथ पकङ कर उसे ले चलने वाला मिले इन सब पर यह भी ज़रूरी नही कि किसी को भेज कर अपनी तरफ से हज करा दें  या वसियत कर जाएं और अगर तकलीफ उठा कर हज कर लिया तो सही हो गया।

  • (7) सफर के खर्च का मालिक हो और सवारी पर भी,

चाहे खुद की सवारी हो या इतना माल हो कि किराया पर ले सके,
किसी ने हज के लिए माल दिया तो कोबूल करना उस पर वाजिब नहीं,देने वाला अजनबी हो या मां बाप औवलाद वगैरह  मगर जब कोबूल कर लेगा  तो हज वाजिब हो जाएगा,
पैदल की ताक़त हो तो पैदल हज करना अफज़ल है हदीस़ में है  जो पैदल हज करे हर क़दम पर 700नेकियां हैं,, 
फक़ीर ने पैदल हज किया फिर मालदार हो गया तो उस पर दूसरा हज नहीं,

  • (8) वक्त (समय),

यानी हज के महीनों में तमाम शर्तें पाई जाएं और अगर दूर का रहने वाला हो तो जिस वक्त वहां के लोग जाते हों उस वक्त शर्तें पाई जाती हों और अगर एेसे वक्त पाई गईं कि अब नहीं पहुंच पाएगा तो ज़रूरी नहीं,

:: वाजिब अदा करने की शर्तें ::

अब तक आपने हज वाजिब होने की शर्ते पढीं अब आप यहां से वाजिब अदा करने की शर्तें पढेंगे,

  • रास्ता में अमन होना, डाका वगैरह से जान जाने का खतरा हो तो जाना जरूरी नही अगर ऐसा नही है तो वाजिब है,

  • अगर अमन के लिए कुछ रिश्वत देना पङे तब भी जब भी जानै वाजिब है क्युंकि यह अपना फर्ज़ अदा करने के लिए मजबूर है,लेहाज़ा उस देने वाले पर जुर्माना नहीं,


  • रास्ता में चुंगी (toll tex) वगैरह लेते हों तो यह अमन के विरुद्ध नहीं 


  • औरत को मक्का तक जाने में तीन दिन या ज़्यादा का रास्ता हो तो उस के साथ पति या महरम का जाना शर्त है चाहे वह औरत जवान हो या बुढिया, और ती दिन से कम का रास्ता  हो तो बेगैर महरम और पती को भी जा सकती है,

महरम: वह मर्द जिस से हमेशा के लिए उस औरत का निकाह हराम हो जैसे, बाप,बेटा,भाई,वगैरह रजाई भाई, रजाई बाप,रजाई बेटा वगैरह,

शौहर या महरम जिस के साथ सफर कर सकती है  उस का आकिल बालिग़ गैरे फासिक होना शर्त है,

बांदियों को बेग़ैर महरम सफर जायज़ है

  • औरत बेगैर महरम या शौहर के हज को गई तो गुनहगार हुई मगर हज हो जाएगी यानी फर्ज़ अदा हो जाएगा,


:: अदा की सेहत  की शर्तें ::
कि अगर यह ना पाई जाएं तो हज सही नहीं और यह 9हैं।
  • (1) इस्लाम: काफिर ने हज किया तो ना हुआ।
  • (2) अहराम: बेगैर अहराम हज नही हो सकता।
  • (3) ज़मान:  यानी हज के लिए जो ज़माना मुकर्रर (निश्चित) है उस से पहले हज नही हो सकते।
  • (4) मकान: तवाफ (प्रिक्रमा) की जगह मस्जिद-ए-हराम शरीफ है, और वक़ूफ के लिए अरफात व मुज़्दलफा, कंकरी मारने के लिए मेना, क़ुर्बानी के लिए हरम, यानी जिस काम के लिए जो स्थान रखा गया है वहीं करें।
  • (5) तमीज़: 
  • (6) अक्ल: जिस में तमीज़ ना हो जैसे ना समझ बच्चा या जिस में अक़्ल ना हो जैसे पागल, यह खुद वह काम नही कर सकते जिन में नियत की ज़रूरत है जैसे अहराम,तवाफ, और जिस में नियत शर्त नहीं वह खुद करे जैसे वकुफ-ए-अरफा। 
  • (7) हज के फर्ज़ों को अदा करना,बै गैर उज़्र में।
  • (8) अहराम के बाद वकूफ से पहले जेमा(पत्नी के साथ संभोग) ना होना अगर हो गया तो हज नही हुआ।
  • (9) जिस साल अहराम बांधा उसी साल हज करना,लेहाज़ा अगर उस साल हज किसी कारण फौत (छूट) हो गया तो उमरा कर के अहराम खोल दे, और आने वाले वर्ष में दोबारा अहराम से हज करे।


:: फर्ज़ हज अदा होने की शर्तें:: 
फर्ज़ हज अदा होने के लिए 9 शर्तें हैं:
  • (1) इस्लाम,
  • (2) मरते समय तक इस्लाम ही रहना,
  • (3) आक़िल, बुद्धीमान होना
  • (4) बालिग होना,
  • (5) आज़ाद होना,
  • (6) अगर ताकत हो तो खुद हज करना,
  • (7) नफ्ल की नियत होना,
  • (8) दुसरे की तरफ से हज की नियत ना होना,
  • (9) फासिद ना करना,


:: हज में यह चिज़ें फर्ज़ हैं ::
  • (1) अहराम: कि यह शर्त है।
  • (2)  वक़ूफ-ए-अरफा: यानी 9वीं ज़िलहिज्जा को सुरज ढलने (सुर्यास्त) से 10वीं की सुब्ह-ए-सादिक से पहले तक किसी समय अरफात में ठहरना।
  • (3) तवाफ-ए-ज़्यारत: का अक्सर हिस्सा।
  • (4) निय्यत।
  • (5) तरतीब: यानी पहले अहराम,फिर वक़ूफ,फिर तवाफ।
  • (6) हर फर्ज़ का अपने वक्त पर होना।
  • (7) मकान: यानी वक़ूफ अरफात की ज़मीन में होना और तवाफ का मस्जिद-ए-हराम शरीफ मे होना।

:: वह चिज़ें जो हज में वाजिब हैं ::
हज के वाजिबात (वाजिब का बहुबचन) यह हैं:
(1) मिक़ात से अहराम बांधना: यानी मिकात से बेगैर अहराम के ना गुज़रना और अगर मिक़ात से पहले ही अहराम बांध लिया तो भी जायज़ है।
(2) सफा (صفا) व मरवा (مروہ) के बीच दौङना: इस को सई़ (سعی) कहते हैं।
(3) सई को सफा से शुरू करना: और अगर मरवा से शुरू कू तो पहला फेरा शुमार ना किया जाए, उस का  एआदा करे (यानी दोबारा सफा से शुरू करे)।
(4) पैदल सई करना: 
(5) दिन में वकूफ किया तो उतनी उतनी देर तक वकूफ करे की सूरज डूब जाए,चाहे सूरज ढलते ही शुरू किया हो या बाद में, (यानी सुरेयासेत तक वकूफ में व्यस्त रहे) और अगर रात में वकूफ किया तो उस के लिए किसी खास हद तक वक़ूफ करना वाजिब नही, मगर वह उस वाजिब का तारिक (छोङने वाल) हुआ।

(6) वकूफ में रात का कुछ हिस्सा आ जाना।
(7) अरफात से वापसी में इमाम की पैरवी करना यानी जब तक इमाम ना निकले यह भी ना चले।
(8) मुज़दलेफा  ठहरने।
(9)मग़रीब और इशा की नमाज़ इशा के वक्त मुज़दलेफा में पढना।
(10) तिनों जमरों पर 10वीं 11वीं 12वीं तीनो दिन कंकरियां मारना यानी 10वी को सिर्फ जुमरत-उल-उक़बा पर और 11वीं 12वीं को तीनों पर रमी मारना।
(11) जुमरत-उल-उक़बा की रमी पहले दिन हलक़ से पहले होना।
(12) हर रोज़ की रमी का उसी दिन होना।
(13) सर मुंडाना या बाल कतरवाना 14: कुरबानी के दिनों में होना, 15: हरम शरीफ में होना अगरचे मेना में ना हो।
(16)क़ेरान और तमत्तोअ वाले को क़ुरबानी करना और।
{क़ेरान:हज और उमरा दोनो के अहराम की निय्यत करेउसे क़ेरान कहते हैं।
तमत्तोअ: मक्का में पहुंच कर 1शव्वाल से 10ज़िलहिज्जा में उमरा करके वहीं से हज का अहराम बांधे उसे तमत्तोअ कहते हैं}
[بہار شریعت جلد اول صفحہ70]
(17) उस कुरबानी का हरम और कुरबानी के दिनो में होना।
(18)  तवाफ-ए-एफादा (طواف افاضہ) का अक्सर हिस्सा कुरबानी के दिनो में होना 
नोट: अरफात से वापसी के बाद जो तवाफ किया जाता है उसे )  तवाफ-ए-एफादा (طواف افاضہ) कहा जाता है और इसे तवाफ-ए-ज़्यारत भी कहा जाता है।
(19) तवाफ हतीम के बाहर होना।
(20) दाहीनी तरफ से तवाफ करना यानी काबा शरीफ तवाफ करना वाले की बाईं जानिब हो।
(21) उज्र ना हो तो पांव से चल तवाफ करना।
(22) तवाफ करने में  नापाकी से पाक होना (पवित्र) होना अगर अपवित्रता में तवाफ किया तो ना हुआ।
(23) तवाफ के समय सतर (छुपाने वाला बदन का हिस्सा)छुपा होना अगर खुल गया तो दम वाजिब होगा यानी कुरबानी करनी पङेगी। 
(24) तवाफ के बाद दो रकात नमाज़ पढना, ना पढी तो दम वाजिब यानी जरूरी नहीं।
(25) कंकरीयां फेंकने, ज़बह और सर मुंडाने,और तवाफ में तरतीब यानी पहले कंकरीयां, फिर क़ुरबानी, फिर सर मुंडाए, फिर तवाफ करे।
(26) तवाफ-ए-सद्र यानी मिक़ात से बाहर रहने वालों के लिए रुख्सत का तवाफ करना।
(27)वक़ुफ-ए-अरफा के बाद सर मुंडाने तक जेमा (पत्नी से संभोग) ना होना।
(28) सिला कपङा मुंह और सर छुपाने से बचना।
मसअला: वाजिब के छोङने से दम ज़रूरी होता है चाहे जान कर या अनजाने या भूल कर किया हो, चाहे उसे वाजिब का होना याद हो या ना हो,
::हज की सुन्नतें::

  • (1) तवाफ-ए-क़ोदूम: यानी मिक़ात के बाहर से आने वाला मक्का मोअज़्ज़मा में हाज़िर होकर सब में पहला जो तवाफ करे उसे तवाफ-ए-क़ोदूम कहते हैं, यह मुफरद और क़ारिन के लिए सुन्नत है।
  • (2) तवाफ का हजर-ए-असवद से शुरू करना।
  • (3) तवाफ-ए-क़ोदूम  या फर्ज़ में रमल करना।
  • (4) सफवा मरवा को बीच जो दो मिल अखज़र (हरा निशान) है वहां दौङना ।
  • (5) इमाम का मक्कका में सातवीं,6: अरफात में 9वीं 7: मेना में ग्यारहवीं को ख़ुतबा पढना, 8: 8वीं की फज्र के बाद मक्का से रवाना होना कि मेना मे पांच नमाज़ें पढ ली जाएं ।
  • (9) 9वीं रात मेना में गुज़ारना।
  • (10) सुरज निकलने के बाद मेना से अरफात को रवाना होना।
  • (11) वक़ूफ-ए-अरफा के लिए गुस्ल (स्नान) करना।
  • (12) अरफात से वापसी में मुज़दलेफा में रात को रहना और।
  • (13) सुरज निकलने से पहले यहां से मेना को चले जाना।
  • (14) 10 और 11 के बाद जो दोनो रातें हैं उन को मेना में गुज़ारना और अगर 13वीं को भी मेना में रहा तो 12वीं के बाद की रात भी मेना में रहे।
  • (15) अब्तह यानी वादिए मुहस्सब में उतरना,भले ही थोङी देर के लिए हो, और उन के अलावा और भी सुन्नते हैं जिन का उल्लेख बाद में करुंगा,


:: संक्षिप्त में हज का तरीक़ा ::

मिक़ात का बयान:
मिक़ात उस जगह को कहते हैं कि मक्का शरीफ के जाने वाले को बेगैर अहराम वहां से आगे जाना जायज़ नहीं भले ही व्यापार वगैरह या किसी और  गर्ज़ से जाता हो, 
मसअला: मिक़ात 5 हैं, 
  • (1) ज़ुल हलीफा(ذوالحلیفہ) : यह मदीना मुनव्वेरा की मिक़ात है,भारत वाले हज से पहले अगर मदीना तय्येबा को जाएं और वहां से मक्का को तो वह भी ज़ुल हलीफा से अहराम बांधें।
  • (2) ज़ातेअरक़ (ذات عرق) : यह ईराक़ वीलों की मिक़ात है।
  • (3) जोहफा (جحفہ) : यह शाम (सीरिया) वालों की मिक़ात है। 
  • (4) क़रन (قَرن) : यह नज़्द वालों की मिक़ात यह ताएफ के क़रीब है। 
  • (5) यलमलम (یَلمَلَم) : यमन वालों के लिए मिक़ात है।


अहराम का बयान: 
यह तो मालूम हो गया कि हिन्दुस्तानियों के लिए मिक़ात यानी जहां से अहराम बांधते हैं ज़ुल हलीफा(ذوالحلیفہ) और यलमलम पहाङ का एरिया है ,जब यह जगह करीब आए मिस्वाक (दांतुअन) करे और वज़ू करे और खूब मल मल कर स्नान करे ना नहा सके तो सिर्फ वज़ू करें  हैज व नेफास वाली औरतें और बच्चे भी नहाएं यानी स्नान करें और पवित्र हो कर अहराम बांधे,
बालों में कंघा कर के ख़ुश्बूदार तेल डालें
स्नान से पहले नाखून काटें,खत बनवाएं, बगल (कांख) का बाल नाफ के निचे का बाल दूर करें, बदन और कपङो पर खुश्बू  लगाएं कि सुन्नत है,
मर्द सिले कपङे और मोज़े उतार दें एक चादर नई या धुली ओढें और ऐसा ही एक तहबंद बांधें यह कपङे सफेद और नए बेहतर हैं कुछ लोग उसी समय से चादर दाहिनी बगल के निचे करके दोनो पल्लू बाएं  मोंढे पर डाल लेते हैं  यह सुन्नत के खिलाफ है बलकि इस तरह का सुन्नत तवाफ के वक्त है, बाक़ी समय में अपनी आदत के हिसाब से चादर ओढी जाए यानी दोनो मोंढे पीठ सीना  सब छुपा रहे।
जब वह स्थान आए और समय मकरूह ना हो तो दो रकात अहराम की नियत से पढें पहली रकाअत में  अल्हम्दू लिल्लाह के बाद कुलिया अइयोहल काफेरून दूसरी रकाअत में कुल हुअल्लाहू अहद,
  • हज तीन तरह का होता है: 

(1) एक यह कि सिर्फ "हज„ करे, और उसे अफराद कहते हैं और हाजी क मुफरद इस में सलाम के बाद युं कहे: 
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ الْحَجَّ فَیَسِّرْہُ لِیْ وَتَقَبَّلْہُ مِنِّیْ نَوَیْتُ الْحَجَّ وَ اَحْرَمْتُ بِہٖ مُخْلِصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-हज्जा फयस्सिरहो ली व तक़ब्बल्हो मिन्नी नवैत-उल-हज्जा व अहरमतो बेही मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं हज का इरादा करता हुं उसे तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उसे मुझ से तू क़ोबूल कर मैने हज की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
(2) दूसरा यह कि यहां से सिर्फ उमरे की नियत करे मक्का मोअज़्ज़मा में हज का अहराम बांधे उसे "तमत्तोअ„ कहते हैं और हाजी क मुतमत्तेअ इस सलाम के बाद यह कहे:
اَللّٰھُمَ اِنِّیْ اُرِیْدُالْعُمْرَۃَ فَیَسِّرْھَالِیْ وَ تَقَبَّلْھَا مِنِّی نَوَیْتُ الْعُمْرَۃَ وَاَحْرَمْتُ بِھَا مُخلصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-उमरता फयस्सिरहा ली व तक़ब्बल्हा मिन्नी नवैत-उल-उमरता व अहरमतो बेहा मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं उमरा का इरादा करता हुं उसे तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उसे मुझ से तू क़ोबूल कर मैने उमरा की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
(3) तीसरा यह कि हज व उमरा दोनो की यहीं से नियत करे और यह सब से बेहतर है इसे "किरान„ कहते हैं और हाजी क क़ारिन इस में बाद सलाम के युं कहे: 




اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ الْحَجَّ وَ الْعُمْرَۃَ فَیَسِّرْھُمَا لِیْ وَتَقَبَّلْھُمَا مِنِّیْ نَوَیْتُ الْحَجَّ وَالْعُمْرَۃَ وَ اَحْرَمْتُ بِھِمَامُخلصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-हज्जा वल उमरता फयस्सिरहोमा ली व तक़ब्बल्होमा मिन्नी नवैत-उल-हज्जा वल उमरता व अहरमत बेहेमा मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं हज और उमरा का इरादा करता हुं उन दोनो को तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उन दोनो को मुझ से तू क़ोबूल कर मैने हज और उमरा की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
फिर बुलंद आवाज़ में तलबिया यानी लब्बैक कहे लब्बैक यह है,
لَبَّیْکَ اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ لَبَّیْکَ لَا شَرِیْکَ لَکَ لَبَّیْکَ اِنَّ الْحَمْدَ وَ النِّعْمَۃَ لَکَ وَ الْمُلْکَ لَا شَرِیْکَ لَک،
लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीकsssलक लब्बैक इन्नल हम्दा व न्नेअ़मता, लका वलमुल्क लाशरीक लका।
तर्जुमा: मैं तेरे पास हाज़िर (उपस्थित) हुआ, ऐ अल्लाह मैं तेरे होज़ूर हाज़िर हुआ, तेरा कोई शरीक नहीं मैं तेरे होज़ूर हाज़िर हुआ  बेशक तारीफ और नेअमत और मुल्क तेरे ही लिए है तेरा कोई शरीक नही है। 
लब्बैक तीन बार कहे और दोरूद शरीफ पढे फिर दुआ मांगे एक दुआ यह भी है
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَسْئَلُکَ رِضَاکَ وَ الْجَنَّۃَ وَ اَعُوْذُ بِکَ مِنْ غَضَبِکَ وَ النَّارِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अस अलोका  रेदाका वल जन्नता व अइ़जो बेका मिन ग़ज़बेका वन्नार,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तेरी रज़ा (इच्छा) और जन्नत का साइल (सवाली ) हूं और तेरे गज़ब और जहन्नम से तेरी ही पनाह (श्रण) मांगता हूं।
जब हरम को पास पहुंचे सर झुकाए आंखें शर्म व गुनाह से नीची किए  प्रवेश करे हो सके तो पैदल नॆगे पांव तलबिया व दोरूद पढता रहे बेहतर यह है कि दिन में नहां कर दाखिल (प्रवेश) हो ,
जब मक्का मोअज़्ज़मा दिखाई दे तो यह दुआ पढे:
اَللّٰھُمَّ اجْعَلْ لِّیْ بِھَا قَرَارًا وَّارْزُقْنِیْ فِیھَا رِزْقًا حَلَالًا.
अल्लाहुम्मा अजअ़ल ली  बेहा क़रारवं वर्ज़ुक़्नी फिहा रिज़्क़न हलाला।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तु मुझे उस में बरक़रार रख और मुझे उस में हलाल रोज़ी दे।
फिर मक्का मोअ़ज़्ज़मा मे दाखिल हो और यह दुआ पढे.
اللهم أنْتَ رَبِيْ وَأنا عَبْدُكَ وَالْبَلَدُ بَلَدُكَ جِئْتُكَ هَارِبًا مِنكَ إلَيْكَ لِاُؤَدِّيْ فَرَائِضَكَ وَأطْلُبَ رَحمَتَكَ وَأَلْتَمِسَ رِضْوَانَكَ أسْأَلُكَ مَسْئَالَةَ الْمُضْطَرِّيْنَ إِلَيْكَ الْخَائِفِينَ عُقُوْبَتَكَ أسأَلُكَ أَنْ تُقَبِّلَنِيَ الْيَوْمَ بِعَفْوِِكَ وتُدخِلَنِيْ فِيْ رَحْمَتِكَ وتَتَجَاْوَزَ عَنِّي بِمَغْفِرَتِكَ وَتُعِيْنَنِي عَلٰى أَدَاْءِ فَرَائِضِكَ الّٰلهُمَّ نَجِّنِي مِن عَذَابِكَ وَافْتَحْ لِي أبْوَاْبَ رَحْمَتِكَ وَأدْخِلْنِيْ فِيْهَا وَأَعِذْنِيْ مِنَ الْشَّيْطَانِ الرَّجِيْم
अल्लाहुम्मा अन्ता रबब्बी व अना अब्दोका वलबलदो बलदोका जेअतोका हारेबान मिनका एलैक ले ओवद्देया फराएज़ाका व अतलोबा रहमतका वलतमेसा रिज़वानका अस्अलोका मस्अलताल मुज़्तर्रीना एलैकल खाएफीना ओक़ूबतका अस्अलोका अन तोकब्बेवलनेयलयौमा  बे अ़फवेका व तुदखेलनी फी रहमतेका वदखिलनी फिहा, वअइ़ज़नी मेनश्शैतॉनिर्रजीम
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरा रब है और मैं तेरा बंदा हूं और यह शहर तेरा शहर है, मैं तेरे पास तेरे अज़ाब से भाग कर हाज़िर हुआ कि तेरे फर्ज़ों को अदा करूं और तेरी रहमत को मांगू और तेरी रज़ा (मर्ज़ी) को तलाश करूं , मैं तुझसे इस तरह सवाल करता हुं जैसे मुज़तर और तेरे अज़ाब से डरने वालो सवाल करते हैं, मैं तुझ से सवाल करतालहूं कि आज तूं अपने अ़फू के साथ मुझको क़बूल कर और अपनी रहमत में मुझे दाखिल कर और अपनी मग़फिरत के साथ मुझ से दरगुज़र फरमा और फरज़ो के अदा करने पर मेरी मदद फरमा,  ऐ अल्लाह! मुझको अपनी अ़ज़ाब से निजात दे और मेरो लिए अपनी रहंत के दरवाज़े खोल दे,और उस में मुझे दाखिल कर और शैतान मरदूद से मुझे पनाह (शरण) में रख ।

जब मदआ मे पहुंचे जहां से काबा नज़र आता है यहां ठहर कर सभी मुसलमानों की मगफिरत की दुआ करे और सच्चे दिल से दरूद शरीफ पढता रहे और तीन बार अल्लाहु अकबर और तीन बार लाइलाहा इल्लल्लाह कहे और यह पढे,
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَأَلَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَاعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا اسْتَعَاذَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ،
रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार, अल्लाहुम्मा इन्ना नस्अलोका मिन खैरे मा सआलका मिनहो नबिय्येका मुहमदुन ﷺ व अउ़ज़ोबेका मिन शर्रे मस्तअ़ाज़का मिन्हो नबिय्येका मुहमदुन ﷺ,।
तर्जुमा: ऐ रब तू दुनिया में हमें भलाई दे और आखेरत में भलाई दे और जहन्नम के अ़ज़ाब से हमें बचा ऐ अल्लाह मैं इस खैर में से सवाल करता हूं, जिस का तेरे नबी  मुहम्मद ﷺ ने तुझसे सवाल किया और तेरी पनाह मांगता हूं उन चीज़ों के शर से जिन से तेरे नबी मुहम्मद ﷺ ने पनाह मांगी,
जब मक्का मुकर्रमा में पहुंच जाए तो सबसे पहले मस्जिदे हराम में जाए अल्लाह का ज़िक्र करते हुए  लब्बैक कहता हुआ बाबुस्सलाम तक पहुँचे पहले दाहिना पैर दाखिल करे और यह पढे। 
أَعُوذُ بِاللَّهِ الْعَظِيمِ وَبِوَجْهِهِ الْكَرِيمِ وَسُلْطَانِهِ الْقَدِيمِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ بِسمِ اللہ اَلحَمْدُ لِلّٰہ وَالسَّلْامُ عَلٰی رَسُولِ اللہ الّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیّدِنَا مُحمّدِ وَ عَلٰی اٰلِ سَیّدِنَا مُحمّدِ وَّ اَزْواجِ سَیّدِنَا مُحمّدِ اَلّٰلھُمَّ اغْفِرلِی ذُنُوبِی وَفْتَحلِیْ اَبْوَابَ رَحمَتِکَ♦
अऊज़ो बिल्लाहिल अज़ीम व बे वजहेहिल करीम व सुल्तानेहिल कदीम मेनश्शैतॉनिर्रजीम बिस्मिल्लाहे  अल्हमदुलिल्लाहे वस्सलामो अला रसूलिल्लाह अल्लाहुम्मै सल्ले अला सय्यदेना मुहम्मदिंव व अला अाले सय्यदेना मुहंम्मदिंव व अज़वाजे सय्यदेना मुहम्मदिन  अल्लाहुम्मग्फिरली ज़ोनूबी वफ्तहली अब्वाब रहमतेका♦•

तर्जुमा: मै खुदा की पनाह मांगता हुं, और इस की वज्हे करीम की और क़दीम सल्तनत की मर्दूद शैतान से, अल्लाह के नां की मदद से सब खूब्यां अल्लाह के लिए और रसूलुल्लाह पर सलाम, ऐ! अल्लाह  दरूरद भेज हमारे आका मुहम्मद ﷺ और उन की आल और उन की बीवियों पर ऐ! अल्लाह मेरे गुनाह बख्श दे और मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।

जब काबा शरीफ पर नज़र पङे तो तीन बार,"ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर,, कहे 
(لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ)
और दरूद शरीफ और यह दुआ पढे "रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार,,
(رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ)
अब अल्लाह का नाम लेकर तवाफ (प्रिक्रमा)करे, तवाफ मताफ में हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के पास से शुरू होगा इस तरह कि हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के करीब पहुंच कर यह दुआ पढे,
لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَ حْدَہُ صَدَقَ وَعْدَہُ وَ نَصَرَ عَبْدَہ وَ ھَزَمَ الاَحْزَابَ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ المُلْكُ ؛ وَلَهُ الحَمْدُ ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ،
साइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू सदका वादहू व नसरा अब्दहू व ह़ज़मल अहज़ाबा वहदहू ला शरीक लहू, लहुल मुल्को व लहुल हम्दो वहुवा अ़ला कुल्ले शइन क़दीर।
तर्जुमा: अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही वह तन्हा है उस का कोई शरीक नही उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए हम्द है और वह हर चीज़ पर कादिर है।
तवाफ शुरू करने से पहले मर्द चादर को दाहिना बगल के नीचे से निकाल कर बाएं कंधे पर डाल ले दाहिना मुंढा खुला रहे,
अब काबा की तरफ मुंह कर के  हज्र-ए-अस्वद की दहीनी तरफ रुक्न-ए-यमानी की जानिब संग-ए-अस्वद के क़रीब यूं खङा हो कि तमाम पत्थर दाहिनी तरफ रहे फिर तवाफ की नियत करे,
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीदो तवाफ बैतेकल मुहर्रमे फयस्सिर्हो ली व तक़ब्बल हो मिन्नी,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ طَوَافَ بَیْتِکَ الْمُحَرَّامِ فَیَسِّرْہُ لِیْ وَ تَقَبَّلْہُ مِنِّیْ، 
तर्जमा: ऐ अल्लाह मैं तेरे इज़्ज़त वाले घर का तवाफ करना चाहता हुं इस को तू मेरे लिए आसान कर और इस को मुझ से क़बूल कर,
फिर काबा को मुंह किए अपनी दाहिनी तरफ चले जब हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के सामने हो जाए तो कानो तक इस तरह हाथ उठाए कि हथेलिया हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) की तरफ रहें और कहे,
بِسْمِ اللّٰہِ وَالْحَمْدُِﷲِ وَاﷲُ أَکْبَرُ وَالْحَمْدُِﷲِ واَلصَّلاةُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُولِ اللّٰه 
बिस्मिल्लाहे वलहम्दुल्ल्लाह वल्लाहु अकबर वलहम्दुल्ल्लाह वस्सलात व वस्सलाम अ़ला रसूलिल्लाह,
तर्जुमा: अब हो सके तो हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) पर दोनो हथेलियां और उन के बीच में मुंह रख कर यूं चूमो कि आवाज़ ना पैदा हो तीन बार ऐसा करो यह नसीब हो तो बङी भाग्य की बात हो ,और अगर भीङ की वजह से  चूम ना सके तो धक्का मुक्की ना करे बल्कि हाथ से छू कर हाथ को चूम ले,यह भी ना हो सके तो हाथों को उस की तरफ करके हाथो को चूम ले,
 इन तरीक़ों से चुमने का नाम इस्तेलाम है,
इस्तेलाम के समय यह दुआ पढे,
 اللَّهُمَّ اغْفِرْلِی ذُنُوْبِیْ وَ طَھًِّرْلِیْ قَلَبِی وَاشْرَح لِی صَدَرِی وَ یسِّرْلِیْ اَمٔرِیْ وَ عَافٍنِی فِیْمَن عَافَیْتَ फिर اللَّهُمَّ  إِيمَانًا بِكَ , وَتَصْدِيقًا بِكِتَابِكَ ,وَوَفَاءً بِعَھْدِکَ وَاِتِّبَاعًا لِسُنَّةِ نَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللّٰه تَعَالٰي عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَشْهَدُ أَنَّ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ اللّٰه وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، وَاَشْهَدُأَنَّ مُحَمَّدا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ، آمَنْتُ يِا اللّٰه و كَفَرْتُ بِالْجِيْتِ وَالطَّاغُوْتِ.
 अल्लाहुम्मग्फिर्ली ज़ोनूबी व तह्हिरली क़लबी वश्रहली सदरी व यस्सिरली अमरी  व आफिनी फीमन आ़फैता
‘‘फिर‚‚ अल्लाहुम्म ईमानन बेका व तस्दीक़न बे किताबेका व वफाअ़न बे अ़हदेका व इत्तेबाअन ले सुन्नते नबिय्येका मुहम्मदिन ﷺ अश्हदो अन्ना ला इलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शरीका लहू,व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन अ़ब्दूहू व रसूलोहू, आमनतो बिल्लाहे व कफरतो बिलजीते वत्तागूते।

तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे दिल के पाक कर और मेरे सीना को खोल दे, और मेरे काम को आसान कर और मुझे आफियत दे उन लोगों में जिन को तू ने आ़फियत दी,
ऐ अल्लाह तुझ पर  ईमान लाते हुए और तेरी किताब की तस्दीक़ करते हुए और तेरे अहद (वादा) को पूरा करते हुए और तेरे नबी मुहम्मद ﷺ की इत्तेबा (अनुश्रण ) करते हुए मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा (अलावा) कोई माबूद (पुज्यनिय) नही जो अकेला है उस का कोई शरीक नहीं और गवाही देता हूं कि मुहम्मद ﷺ उस को बन्दे और रसूल हैं  अल्लाह पर मैं ईमान लाया और बुत और शैतान से मैने इन्कार किया।

कहते हुए काबा के दर्वाज़े की तरफ बढे जब  हज्र-ए-अस्वद के सामने से बढ जाए तो सीधा हो जाए और ऐसे चले की काबा बांए हाथ की तरफ पड़े,
चलने में किसी को तकलीप ना दे,
और काबा से जितना नज़दीक रहे बेहतर है मगर इतना नहीं कि बदन या कपड़ा दिवार से लगे,

1⃣ जब मुल्तज़िम (مُلتَزِم)(पूरब दीवार का वह हिस्सा जो रूक्न-ए-अस्वद से काबा के दरवाज़े तक है) को सामने आए यह दुआ पढे,
اَللّٰھُمَّ ھٰذَ الْبَیْتُ بَیْتُکَ وَالْحَرَمُ حَرَمُکَ وَالْاَمْنُ اَمَنُکَ وَھٰذَا مَقَامُ الْعَائِذِبِکَ مِنَ النَّارَ فَاَجِرْنِیْ مِنَ النَّارِ اَللّٰھُمَّ قَنِّعْنِیْ بِمَارَزَقْتُنِیْ وَبَارِکْ لِیْ فِیْہِ وَاخْلُفْ عَلٰی کُلِّ غَائِبَۃٍ م بِخَیْرٍ لَآ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہٗ لَہٗ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْیٍٔ قَدِیْرٌ
अल्लाहुम्मा हाज़ल बैतो बैतोका वलहरमो  हरमोका वलअमनो अमनोका व हाज़ा मक़ाम-उल-आ़एज़ेबेका मिनन्नारे फाजिर्नी मिनन्नारे अल्लाहुम्मा क़न्नेअनी, बेमा रज़क़तोनी व बारिक ली फीहे वख्लुफ अला कुलेलो गायेबतिन बेखैरिन लाइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू ला शरीक लहू लहुलमुल्को वलहुल हम्दो व हुआ अ़ला कुल्ले शैइन क़दीर।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह यह घर तेरा घर है, और हरम तेरा हरम है और अमन तेरी ही अमन है, और जहन्नम से तेरी पमाह मांगने वाले की यह जगह है तू मुझको जहन्नम से पनाह (श्रण) दे ऐ अल्लाह जो तूने मुझको दिया मुझे उस पर क़ानेए कर दे और मेरे लिए उस में बरकत दे और हर ग़ायब पर भलाई के साथ तो ख़लीफा हो जा अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पुज्यनीय) नहीं, जो अकेला है उस का कोई शरीक नही और उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए हम्द और वह हर चीज़ पर क़ादिर है।

2⃣ और जब रुक्न-ए-इराक़ी (पूरब और उत्तर के कोने में) के सामने आए तो यह दुआ पढे,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَعُوْذُبِکَ مِنَ الشَّکِّ وَالشِّرْک وَالشِّقَاقِ وَالنِّفَاقِ وَسُوْئِ الْاَخْلَاقِ وَسُوْئِ الْمُنْقَلَبِ فِی الْمَالِ وَالْاَھْلِ وَالْوَلَدِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अउज़ोबेका मेनश्शक्के वश्शिर्के  वश्शेक़ाके़ वन्नेफाक़े व सुइल अख़लाक़े व सुइल मुन्क़लबे फिल माले वलअहले वलवलदे, 
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह मांगता हूं शक और शिर्क और इख्तेलाफ और नफाक़ से और माल और अहल और औलाद में वापस होकर बुरी बात देखने से।
और जब मिज़ाब-ए-रहमत(सोने का परनाला:जो रुक्न-ए-इराक़ी व रुक्न-ए-शामी के बीच की उत्तरी दिवार पर छत मे लगा है।) के सामने आए तो यह पढे,
اَللّٰھُمَّ اَظِلَّنِیْ تَحْتَ ظِلِّ عَرْشِکَ یَومَ لَاظِلِّ اِلَّا ظِلُّکَ وَلَا بَاقِیَ اِلَّا وَجْھُکَ وَاسْقِنِیْ مِنْ حَوْضِ نَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّمْ شَرْبَۃً ھَنِیْئَۃٌ لَّا اَظْمَاُبَعْدَ ھَا اَبَدًا
अल्लाहुम्मा अज़िल्लनी तहता ज़िल्ले अ़र्शेका यौमा ला ज़िल्ला इल्ला ज़िल्लोका व ला बाकेया इल्ला वज्होका वस्क़ेनी मिन हौज़े नबिय्येका मुहम्मदिन ﷺ शर्बतन हनीयतन ला अज़माओ बाअ़दहा अ़बदन। 
तर्जुमा: इलाही तू मुझको अपने अ़र्श के साया (छांवों) में रख जिस दिन तेरो साया के निचे कोई साया नही और तेरी जा़त के सिवा कोई बाक़ी नही और तेरे नबी मुहम्मद ﷺ के हौज़ से मुझे खुश गवार पानी पिला कि इस के बाद कभी प्यास ना लगे।

3⃣ और जब रुक्न-ए-शामी (उत्तर पश्चिम कोने में) के पास पहुंचे तो यह पढे,
اَللّٰھُمَّ اجْعَلْہُ حَجّاً مَّبْرُوْرًاوَّسَعْیًامَّشْکُوْرًا وَّذَنْباًمَّغْفُوْرًاوَّتِجَارَۃً لَّنْ تَبُورَیَاعَالِمَ مَافِیْ الصُّدُوْرِ اَخْرِجْنِیْ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلٰی النُّورِ 
अल्लाहुम्म अजअ़लहो हज्जन मबरूरन व सअ़यन मश्कूरा व ज़म्बन मग़फूरा व तेजारतन लन तबूरा या आलेमा मा फि स्सोदूरे अख़्रिजनी मेनज्ज़ोलोमाते एलन नूर
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू इसे हज्ज-ए-मबरूर कर और सई़ मशकूर कर और गुनाह को बख्श दे और उस को वह तेजारत करदे जो हलाक (बरबाद) ना हो, ऐ! सीनों की बातें जानने वाले मुझ को तारीकियों (अंधेरों) से नूर (रोशनी/किरण) की तरफ निकाल।

4⃣ और जब रुक्न-ए-यमानी  (पश्चिम और दक्षिण का कोना) के पास आए तो उसे दोनो हाथों या दाहिने हाथ से छूए और चाहे तो चूम भी ले और यह दुआ पढे,
، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي الدِّيْنِ وَ الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ.
अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोकल अफ्व वलआ़फियता फिद्दीने व द्दनिया वल आखेरते,
तर्जुमा:
रुक्न-ए-यमानी से आगे बढते ही मुस्तजाब (रुक्न-ए-यमानी और रूक्न-ए-अस्वद के बीच की दीवार,यहां 70,000फरिश्ते दुआ में आमीन कहने के लिए तैनात हैं)
यहां उपर वाली या यह दुआ पढे
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ,
रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार,
तर्जुमा: ऐ रब तू दुनिया में हमें भलाई दे और आखेरत में भलाई दे और जहन्नम के अ़ज़ाब से हमें बचा,
या सिर्फ दोरूद शरीफ पढे दुआ दरूद चिल्ला कर ना पढे, अब चारो तरफ घूमता हुआ हज्र-ए-अस्वद पर लौट आया तो यह एक फेरा हुआ  इस वक्त भी हज्र-ए-अस्वद का इस्तेलाम करे अब ऐसे ही 6फेरे और करे यानी कुल 7 फेरे करे पहले तीन फेरों में रमल (सीना उभार कर शाना हिलाते हुए ज़रा तेज़ चलना) भी करे अब जब यह 7 फेरे पूरे हो चुके तो एक तवाफ हुआ इसे तवाफ-ए-क़ोदूम कहते हैं, तवाफ के बाद मक़ाम-ए-इब्राहीम पर आए और यहां यह आयत पढे, 
وَاتَّخِذُوا مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى ۖ 
वत्तखेज़ू मिम्मक़ामे इब्राहीमा मुसल्ला।
तर्जुंमा: और मक़ाम इब्राहीम से नमाज़ की जगह बनाअो,

::तवाफ की नमाज़::
फिर दो रकात नमाज़े तवाफ पढे यह नमाज़ वाजिब  इस की पहली रकाअत में सूरह काफेरून दूसरी में क़ुल हुअल्लाह पढे, यह नमाज़ पढ कर दुआ मांगे हदीस में यह दुआ है،
اللَّهُمَّ إِنَّكَ تَعْلَمُ سِرِّي وَعَلانِيَتِي فَاقْبَلْ مَعْذِرَتِي ، وَتَعْلَمُ حَاجَتِي فَأَعْطِنِي سُؤْلِي ، وَتَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي ذُنُوبِي ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ إِيمَانًا يُبَاشِرُ قَلْبِي , وَيَقِينًا صَادِقًا حَتَّى أَعْلَمَ أَنَّهُ لا يُصِيبُنِي إِلَّا مَا كَتَبْتَ لِي وَرِضًي مِنَ الْمَعِيْشَةِ بِمَا قَسَمْتَ لِي يَا ارْحَمَ الرَّحِمِينَ،
अल्लाहुम्मा इन्नका तअ्लमो सिर्री व अलानियती फाकबल माज़ेरती व तअलमो हाजती फआअ़तीनी सुअली, व तअलमो मा फी नफसी फगफिरली ज़ोनूबी अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोका  इमानन योबाशेरो क़लबी, व यक़ीनन सादेकन हत्ता आअलमो अन्नहू ला योसीबोनी इल्ला मा कतबता ली व रेजाअन मेनल मइशते बेमा क़समता ली या अरहमर्राहेमीन।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरे पोशीदा (छुपा हुआ) ज़ाहिर को जानता है तू  मेरी माज़रत को कबूल कर और तू मेरी  जरूरत को जानता है  मेरा सवाल मुझ को अता कर (दे) और जो कुछ मेरे नफ्समें है तू उसे जानता है तू मेरो गुनाहों को बख्श दे ऐ अल्लाह मैं तुझ से उस ईमान का सवाल करता हूं जा मेरे दिल में चला जाए और सच्चा यकीन मांगता हूं ताकि मैं जान लूं कि मुझे वही पहुंचेगा जो तुने मेरे लिए लिखा है और जो कुछ तुने मेरी क़िस्मत में किया है उस पर राज़ी रहूं ऐ सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान।
मुल्तज़िम से लिपटना::
नमाज़ और दुआ से फारिग़ होकर मुल्तज़िम के पास जाए और हज्र-ए-असवद के क़रीब मुल्तज़िम से लिपटे सीना दाहिना बायां चेहरा उस पर रखे और दोनो हाथ सर से उंचा कर के दिवार पर फैलाए और यह दुआ पढे،
يَا وَاجِدُ يَا مَاجِدُ  لَا تُزِلْ عَنِّي نِعْمَةً اَنْعَمْتَهَا عَلَيَّ.
या वाजेदो या माजेदो ला तोज़िल अन्नी नेअमतन अनअ़मतहा अलय्या।
तर्जुमा: ऐ क़ुदरत वाले, ऐ बुज़ुर्ग तुने मुझे जो नेअमत दी उस को मुझ से खत्म ना कर ।

ज़मज़म::
फिर ज़मज़म पर आओ और काबा को मुंह कर के तीन सांसों में पेट भर कर जितना पिया जाए  खड़े होकर पियो, हर बार बिस्मिल्लाह से शुरू करो और अल्हम्दु लिल्लाह पर खत्म और हर बार काबा मोअज़्ज़मा की तरफ निगाह उठा कर देख लो , बाकी बदन पर डाल लो या मुंह सर और बदन पर मसह कर लो और पीते वक्त दुआ करो कि क़बूल है, रसूल ﷺ फरमाते हैं ‘‘ज़मज़म जिस मुराद से पिया जाए उसी के लिए है‚‚ 
( سنن ابن ماجہ کتاب الناسک حدیث ۳۰۶۲)
ज़मज़म पीेने की दुआ यह है,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَسْأَلَكَ عِلْمًا نَافِعًا وَ رِزقًا وَاْسِعًا وَشِفَآء مِنْ کُلِّ دَآءٍ.
अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोका इल्मन नाफेअन व रिज़्क़न वासेअन व शिफाअ मिन कुल्ले दाअ।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तुझ से इल्मे नाफेअ (मुनाफा) और कुशादा रिज़्क़ और हर बिमारी से शेफा का सवाल करता हूं।

सफा मरवा की सई़ ::
फिर बाब-ए-सफा (सफा का दरवाज़ा)  से सफा पहाड़ी की तरफ चले ज़िक्र व दरूद पढते हुए सफा की पहली सीढी पर चढे और चढने से पहले यह दुआ पढे,

اَبْدَأُ بِمَا بَدَأَ اللّٰهُ بِهٖ إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ,
(ملا علی قاری،مرقاة المفاتيح،الفصل الاول، 7: 6)
मैं इस को शुरू करता हूं जिस को अल्लाह ने पहले ज़िक्र किया, बेशक सफ़ा और मरवा अल्लाह की निशानियों से है, जीस ने  हज़ या उमराह किया, उस पर इन के तवाफ करने में कोई गुनाह नहीं है और जो व्यक्ती नेक काम करे तो बेशक अल्लाह बदला लेने वाला जानने वाला है।
फिर काबा की तरफ मुंह करके दोनो हाथ कंधों तक दोआ की तरह फैले हुए उठाओ, और इतनी देर तक ठहरो जितनी देर में सूरह बक़रा की 25 आयतों  की तेलावत की जाए, और तस्बीह तहलील दोरूद पढो अपने और दोस्तों के लिए दुआ करो। 

सई़ की नियत ::
जब दुआ कर चुके तो सई की नियत करे،
اَللّٰـھُمَّ اِنِّـیْ اُرِیْدُ السَّــعْيَ بَــيْنَ الصَّفَــاو الْمَرْوَةَ فَیَسِّــرْہُ لِیْ وَ تَقَبَّلْہُ مِنِّيْ•
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीदुस्सअया बैन स्सफा वलमरवा फयस्सिरहो ली व तक़ब्बलहो मिन्नी।
फिर सफा से उतर कर मरवा को चले ज़िक्र व दरूद पढता रहे, जब पहला मील आए(जो की छत की जानिब एक मील तक हरी रोशनी लगा दी गई है) यहां से मर्द दौड़ना शुरू करे (मगर ना हद से ज़्यादा और ना किसी को तकलीफ देते) फिर दूसरे मील से थोड़ा आगे तक दौड़ता चला जाए, फिर आहिस्ता चले और यह पढता हुआ,
رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَتَجَاوَزْ عَمَّا تَعْلَمُ وَ تَعْلَمُ مَا لَا نَعْلَمُ، إِنَّکَ أَنْتَ الْأَعَزُّ الْأَکْرَمُ، اَللّٰهُمَّ اجْعَلْه حَجًّا مَّبْرُوْرًا وَّسَعْيًا مَّشْکُورًا وَّذَنْبًا مَّغْفُوْرًا. اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَا مُجِيْبَ الدَّعْوَاتِ، رَبَّنَا تَقَبَّلْ  مِنَّا اِنّكَ اَنْتَ السَّمِيْع الْعَلِيْمُ وَتُبْ عَلَيْنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ. رَبَّنَا اٰتِنَا فِی الدُّنْيَا حَسَنَةً وَّفِي الْآخِرَةِ حَسَنةً وَّقِنَا عَذابَ النَّارِ.
रब्बिग्फिर वर्ह़म व तजावज़ अ़म्मन तअ़लम व तअ़लमो मा ला नअ़लमो इन्नका अन्तल आअज्जुल अकरमो अल्लाहुम्मा अजअलहो हज्जन मबरूरा व सअ़यन मश्कूरा व जनबन मगफूरा अल्लाहुम्मा इग्फिर्ली वले वालेदय्या वलमुअमेनीना वल मुअमिनात या मुजीब द्दावात रब्बना तक़ब्बल मिन्ना इन्नका अन्तल समिय्युल अलीम व तुब अलैना इन्नका अन्त त्तव्वाब -उर- रहीम रब्बना आतेना फिद्दनिय हसनतव व फिल आखिरते हसनतंव वकिना अ़जाबन नार।
मरवा तक पहुंचो यहां पहली सीढी पर चढने बल्कि उस के क़रीब होने से मरवा पर चढना हो गया लेहाजा बिल्कुल दिवार से ना मिलै रहे कि यह जाहिलों का तरीक़ा है, यहां से काबा नज़र नही आता मगर काबा की तरफ मुंह करके जैसे सफा पर किया था तस्बीह,तकबीर, हम्द व स़ना दरूद दुआ,यहां भी करो।
यह एक फेरा मुकम्मल यानी पूरा हुआ, 
फिर यहां से सफा को ज़िक्र व दरूद और दुआएं पढते हुए जाओ, जब हरा ट्यूब लाइट के पास पहुंचो तो उसी तरह दौड़ो और फिर आहिस्ता होलो, फिर आओ जाओ यहां तक कि सातवां फेरा मरवा पर खत्म होगा और हर फेरे में उसी तरह करो इस का नाम सईं है ।
अब सई के बाद मक्का में 8वीं तारीख तक ठहरे और लब्बैक कहा करे ,और खाली/सिर्फ तवाफ किया करे और हर सात फेरे पूरे होने पर मक़ाम-ए-इब्राहीम में दो रकात नमाज़ पढा करे 7वीं तारीख ज़ुहर बाद मस्जिद-ए-ह़राम में जो खुत्बा इमाम पढे उसे सुने,

:: मेना को रवानगी ::
फिर जब 8वीं तारीख (يوالتَّرويه) की सुब्ह हो तो सूरज निकलने को बाद मक्का से मेना की तरफ चले रास्ता भर लब्बैक व दुआ व दरूद व स़ना पढता रहे जब मेना दिखाई पड़े यह पढे,
 اَللَّہُمَّ ھَذِہِ مِنَی فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتُ بِہِ عَلَی اَوْلِیَائِکَ،
अल्लाहुम्मा हाज़ेही मेनयन  फमनुन अ़लय्या बेमा मननतो बेही।
तर्जुमा: एलाही यह मेना है मुझ पर तु वह एहसान कर जो अपने औलिया पर तूने किया,
मेना पहुंच कर यहां रात को ठहरे आज ज़ोहर से नवीं की सुबह तक पांचो नमाज़ें यहीं मस्जिद-ए-ख़ीफ में पढे।
अरफात::
अरफा की रात यानी नवीं रात को मेना में इबादत में गुज़ारे जब नवीं की सुबह हो तो फज्र पढ कर ज़िक्र व दरूद में लगा रहे जब सूरज बुलन्द हो जाए तो अरफात की तरफ चले रास्ता भर लब्बैक दरूद दुआ  पढता रहे, जब जबल-ए-रहमत दिखाई दे ज़िक्र व दुआ ज़्यादा करे कि यह क़बूलियत का समय है, अरफात में जहां जगह मिले रास्ते से हट कर खड़े हो जाए, जब दोपहर करीब हो तो नहाए कि सुन्नत -ए- मुअक्केदा है और ना हो सके तो सिर्फ वजू करे दोपहर ढलते ही मस्जिद-ए-नमरा पहुंचे सुन्नत पढ कर खुत्बा सुने और इमाम के साछ ज़ोहर पढे उस के बाद ही अस्र की तकबीर होगी साथ ही जमात से अस्र पढे ज़ोहर अस्र के बीच सलाम व कलाम कैसा, सुन्नतें भी ना पढे और अस्र के बाद भी नफ्ल नहीं,

 वक़ूफ-ए-अरफा:
अब अस्र पढते ही मुक़फ में जाए और सुर्यास्त तक ज़िक्र दरूद दुआ में लगा रहे, जब सूरज डूब जाए फौरन मुज़्दल्फा में जाए इमाम के साथ, अगर ईमाम देर करे तो उस का इन्तेज़ार ना करे रास्ता भर लब्बैक,दुआ,दरूद में लगे रहो रास्ता में अगर हो सके तो तेज़ चलें चाहे पैदल या सवारी पर।
जब मुस्तफा दिखाई पड़ी है तो पैदल हो जाना पैदल हो जाना बेहतर है और नहा कर दाखिल होना अच्छा है दाखिल होते वक्त यह दुआ पढ़ें, 

اللَّهُمَّ هٰذاجَمـعُ نَسْئَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ،
अल्लाहुम्मा हाजा़ जमअा  नसअलोकल अफ्वा वलआफियता फिद्दुनिया वलआखेरते।
यहां पहुंचकर जबल-ए-क़ज़ह (एक पहाड़ी का नाम) के पास रास्ता से बच कर उतरे यह ना हो सके तो जहां जगह मिले, अब यहां मग़रिब व ई़शा साथ पढे चाहे मगरिब का वक्त बाक़ी ही क्यूं ना हो यहां ईशा के समय में मगरीब व इशा दोनो अदा की नीयत से पढी जाएगी, पहले मगरिब के फर्ज़ पढे उस के फौरन बाद इशा की फर्ज़ फिर मगरीब व ईशा की सुन्नतें फिर वित्र, इन नमाज़ों के बाद बाक़ी रात ज़िक्र,दुआ दरूद में गुज़ारना बेहतर है कि यह बहुत अफज़ल (बेहतर) अफज़ल रात है।

मशअर-उल-हराम का वकूफ::
सुबह बहुत अंधेरे फज्र पढी जाए, और फज्र के बाद मशअर-उल-हराम मे यानी खास पहाड़ी पर और ना हो सके तो उस के दामन में और यह भी ना हो सके तो वादि-ए-मुहस्सिर (एक फिल्ड का नाम)  के सिवा जहां जगह मिले वक़ूफ करो यानी ठहर कर जैसे अरफात में किया था लब्बैक दुआ दरूद में लगे रहो,
समय: इस का समय फज्र का वक्त शुरू होने से उजाला होने तक है, इस वक्त यहां ना आया तो वकूफ ना पाया गया।

::10वीं  तारीख की इबादत::
अब जब सूरज निकलने में दो रकात पढने की समय बाकी रह जाए इमाम के साथ मिना को जाए और यहां से 7छोटी छोटी कंकरियां खोजूर की गुठली बराबर की,पाक (पवित्र) जगह से उठा कर तीन बार धो कर साथ रखे रास्ता भर लब्बैक दरूद दुआ में लगा रहे और यह दुआ भी पढे,
اللَّهُمَّ لاَ تَقْتُلْنَا بِغَضَبِكَ وَلاَ تُهْلِكْنَا بِعَذَابِكَ وَعَافِنَا قَبْلَ ذَلِكَ.
अल्लहुम्मा ला तक़तुलना बे ग़ज़बेका वला तुहलिकना बे अज़ाबेका व आ़फिना क़ब्ला ज़ालेका,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह अपने गजब (गुस्सा) से हमे क़त्ल ना कर और अपने अज़ाब से हलाक ना कर और इस से पहले हमे आफियत (राहत/आराम) दे।

जब मेना दिखाई दे यह पढे,
اَللَّہُمَّ ھَذِہِ مِنَی فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتُ بِہِ عَلَی اَوْلِیَائِکَ،
अल्लाहुम्मा हाज़ेही मेनयन  फमनुन अ़लय्या बेमा मननतो बेही।
तर्जुमा: एलाही यह मेना है मुझ पर तु वह एहसान कर जो अपने औलिया पर तूने किया,
जब मेना को पहुंचे तो सब कामों से पहले जमरत-उल-उक़बा (جمرةالعقبه) जाए जमरा से कम से कम 5 हाथ दूर यूं खड़ा हो कि मक्का मोअज़्ज़मा से पहले नाले के बीच में सवारी पर रहे, मेना दाहिने हाथ पर और काबा शरीफ बांए हाथ को हो, और मुंह जमरा की तरफ हो।

रमी का तरीका::
एक कंकरी चुटकी में ले  और हाथ उठा कर कि बगली दिखाई देने लगे यह पढ कर،
بِسْمِ اللّٰهِ اَللّٰهُ اَكْبَرُ رَجمًا لِلشَّيْطَانِ رِضًا لِلْرَحْمٰنِ اللَّهُمَّ اجْعَلْهُ حَجًّا مَبْرُورًا وَ سَعْيًا مَشْكُوْرَا وَذَنْبًا مَغْفُورًا
बिस्मिल्लाहे अल्लाहु अकबर रजमन लिश्शैतान राजाअन लिर्रहमाने अल्लाहुम्मा अजअलहो हज्जन मबरूरा व सअंयन मश्कूरा व जनबन मग़्फूरा।
तर्जुमा: अल्लाह के नाम से शुरू अल्लाह बहुत बड़ा है शैतान के ज़लील करने के लिए अल्लाह की रेजा के लिए ऐ अल्लैह इस को हज्ज-ए-मबरूर कर और सई मश्कूर कर और गुनाह बख्श दे।
मारो बेहतर है कि कंकरियां जमरा चक पहुंचे नही तो तीन हाथ की दूरी तक रहे इस से ज़्यादा दूर तक जो गिरेगी उस की गिन्ती ना होगी,इसी तरह 7 कंकरी एक एक करके मारे पहले ही कंकरी से लब्बैक बंद कर दे जब सातों कंकरी मार चुके तो वहां ना खड़ा रहे ज़िक्र व दुआ करते हुए लौट आए,

समय: इस रमी का समय 10वीं की फज्र से 11वीं की फज्र तक हैमगर सुन्नत यह है कि सुरज निकलने के बाद से ज़वाल तक कर ले।
(در مختار،ردالمحتاركتاب الحج ج3ص 610)

हज की क़ुर्बानी:
अब रमी को करने के बाद कुर्बानी में लग जाए, कुर्बानी करके अपने और सब मुसलमानो के हज और कुर्बानी क़बूल होने की दुआ मांगे फिर क़ुर्बानी की दुआ मांगे, फिर कुर्बानी के बाद क़िब्ला रुख बैठ कर हलक करें यानी पूरा सर मुंडवाएं या बाल कतरवाएं लेकिन मुंडाना बेहतर है मगर औरतों को बाल मुंडवाना हराम है वह एक पौरा बराबर कतरवा दे  बाल को दफन करदें यहां बाल बनवाने से पहले ना नाखुन कतरवाए ना दाढी मंछ बनवाएं वरना दम लाज़िम आएगा, हां अगर सर मुंडाने के बाद मुंछ बनावे ,नाफ के बाल बनाए तो कोई हर्ज नहीं  बल्ती मुस्तहब है, लेकिन दाढी फिर ऩा बनाए पहले दाहिनी तरफ के बाल मुंडाए फिर बाएं का और मुंडाते वक्त 
اللّٰهُ أكبَرُ اللّٰهُ أكبَرَ لَاْ إِلٰهٰ إِلَّا اللّٰهُ وَ اللّٰهُ أكبَرُ اللّٰه أكبرُ ولِلّٰهِ الْحَمْدُ،
अल्लाहो अकबरो  अल्लाहो अकबरो ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर व लिल्लाहिल् हम्द।
यह पढो,शुरू से आखिर तक बार बार यह कहते जाओ और बाद में भी कहो, और मुंडाते वक्त यह भी पढो،
الْحَمْدُلِلّٰهِ عَلٰي مَا هَدانَا وَاَنْعَمَ عَلَيْنَا وَ قَضَا عَنَّا نُسْكَنَا اَللّهُمَّ هَذِهٖ نَا صِيَتِي بَيَدِكَ فَاجْعَلْ لِي بِكُلِّ شَعْرَةٍ نُورا يَّومَ الْقِيَامَةِ وَامْحُ عَنِّي بِهَا سَيِّـئَةً وَارْفَع لِيْ بِهَا دَرَجَةً فِي الْجَنَّةِ الْعَالِيَةِ،
اَللّٰهُمَّ بَاْرِك لِي فِي نَفْسِيْ و َ تَقَبَّلْ مِنِّيْ،
اَللّٰـهُمَّ اغْفِرْلِي و لِلْمُـحَـلِّقِيْنَ وَالْمُقَصِّرِيْنَ يَا وَاسِعَ الْمَـغْفِرَةِ اٰمِيْن

अल्हम्दु लिल्लाह अ़ला मा हदाना व अनअमा अ़लैना व क़ज़ा अ़न्ना नुस्कना,
अल्लाहुम्मा हाजेही नासेयती बेयदेका फजअल्ली बेकुल्ले शअ़रतिन नुरय्यौमाल क़्यामते वम्हो अ़न्नी बेहा सय्येआतिन वर्फअ़ ली बेहा दरजतन फील जन्नतिल आलिया,
अल्लाहुम्मा बारिक ली फी नफ्सी व तक़ब्बल मिन्नी،
अल्लाहुम्मा ग्फिरली व लिलमुहल्लेक़ीना वल मुक़स्सेरीना या वासेयल मगफिरते आमीन।
अब सब मुयलमानो की बख्शिश की दुआ करे।
अब बाल बनवाने के बाद अहराम की वजह से जो बातें हराम थीं अब वह हलाल हो गईं सेवाए औरत से सोहबत (sex) और उसे शहवत की नज़र से हाथ लगाने बोसा (kiss) शर्मगाह देखने के कि यह बीतें अब भी हराम है,
अब बाल बनवाने के बाद बेहतर यह है कि आज 10वीं को मक्का पहुंचो फर्ज़ तवाफ के लिए यह तवाफ हज का दूसरा रूक्न है,य ह तवाफ भी वैसे ही होगा जैसे पहला चवाफ हुआ था मगर इस में इज्तेबाअ़ नही है, उस के बाद भी दो रकात बदस्तूर पढे इस तवाफ के बाद अपनी औरतें हलाल हो जाएंगी अब अस्ल हज पूरा हो गया, लेकिन अभी फिर मेना वापस आए ग्यारहवीं बारहवीं रातें मेना में गुज़ारे कि सुन्नत है जैसा कि दसेवी रात मेना में  रहना सुन्नत है।

::11वीं  तारीख की इबादत::
11वीं  तारीख ज़ोहर के बाद इमाम का ख़ुतबा सुन कर फिर रमी को जाए  इन दिनो में रमी जमरा उला से शुरू करे जो मस्जिद-ए-खीफ के क़रीब है इस रमी के लिए मक्का के रास्ते की तरफ आ कर चढाई पर चढे यां क़िब्ला रू होकर 7 कंकरियां मारे जैसे दस्वीं को रमी की थी सातवीं कंकरी मार कर जमरा से आगे बढ जाए और काबा की तरफ मुंह करके दुआ के लिए यूं हाथ बढाए की हथेलिया किबला की तरफ हो और कम से कम 20 आयतें  पढने के बराबर देर तक हम्द दरूद अस्तगफार व दुआ करता रहे या ज़्यादा देर तक इतना कि सुरह बक़र पढी जा सके फिर जमर-ए-वुस्ती पर जाकर यूं ही रमी और दुआ करे फिर जमरत-उल-उक़बा पर मगर यहां रमी करके ना ठहरे, उसी दम पलट आए पलटते में दुआ करे फिर बारहवीं तारीख बिलेकुल इसी तरह ज़वाल के बाद तीनों जमरों की रमी करे।
बारहवीं की रमी करके सूरज डूबने से पहले मक्का को रवाना हो जाए और चाहे तो रहे तेरहवीं को वापस हो, लेकिन फिर तेरहवीं को दोपहर ढले रमी करके जाना होगा यही बेहतर है, अखीर दिन यानी बारहवीं या तेरहवीं को जब मेना से रुख्सत हो कर मक्का को चले तो वादिये मुहस्सब में जो जन्नत-उल-मुअल्ला के क़रीब है कुछ देर ठहर कर दुआ करे बेहतर यह है कि इशा तक नमाज़ें यहीं पढे, एक निंद लेकर मक्का में प्रवेश करे,अब तेरहवीं के बाद जब तक जी चाहे मक्का में ठहरे रहो उमरे और ज़्यारत करते रहो जब मक्का से जाने का इरादा हो तो बेगैर रमल और सई के तवाफ करो यह तवाफ बाहर वालों पर वाजिब है तवाफ के बाद बदस्तूर दो रकात मक़ाम-ए-इब्राहीम मे पढो,फिर ज़मज़म के पास आकर उसी तरह पानी पिए और बदन पर डाले फिर काबे के दर्वाज़े के सामने खड़ा होकर उस की पाक (पवित्र) चौखट को चुमें और हज व ज़्यारत कबूल होने बारबार हाजिर होने की दुआ मांगे, और यह पढे
 اَلسَّائِلُ بِبَابِكَ يَسْلُكَ مِنْ فَضْلِكَ وَ مَعْرُوْفِكَ وَيَرْجُوْ رَحْمَتِكَ
अस्साएलो बेबाबेका यस अलोका मिन फजलेका व माअरूफेका व यरजू रहमतेका, 
तर्जुमा: तेरे दरवाज़े पर साएल तेरे फज़्ल व एहसान का सवाल करता है और तेरी रहमत का उम्मीदवार है।
फिर मुल्तज़िम पर आकर ग़लाफे काबा थाम कर उसी तरह लिपटो ज़िक्र दरूद व दुआ खूब पढो, उस वक्त यह दुआ पढो,
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي هَدَانَا لِهَٰذَا وَمَا كُنَّا لِنَـهْـتَدِيَ لَوْلَا أَنْ هَدَانَا اللَّهُ اَللّٰهُمَّ فَكَمَا هَدَيْتَنَا لِهَذا فَتَقَبَّلْهُ مِنَّاْ وَ لَا تَجْعَلْ هَذَا اٰخِرَالعَهْدِ مِن بَيْتِ الحَرَامِ وَرْزُكْنِي العَوْدِ اِلَيْهِ حَتّي تَرْضٰي بِرَحْمَتِكَ يَاْ اَرْحَمَ الْرَّاحِمِيْنِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ وَصَلَّي اللّٰـهُ عَلَيْ سَيِّدِنَا مُحَمّدِوَّاٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ اَجْمَعِيْنَ،
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी हदाना लेहाज़ा व मा कुन्ना ले नहतदेय लौ ला अ़न हदाना अल्लाहु अल्लाहुम्मा फकमा हदैतना लेहाज़ा फतक़ब्बल्हू मिन्ना व ला तजअ़ल हाज़ा आखेरल अ़हदे मिन बैतिल हरामे वर्ज़ुक़निल औदे इलैहे हत्ता तरदा बे रहमतेका या अरहमर्राहेमीन वलहम्दूलिल्लाहे रब्बिल आलमीन व सल्लल्लाहू अला सय्यदेना मुहम्मजिव व आलेही व सहबेही अजमईन,

फिर हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) को चूमो और रोरो कर यह पढो,
يَا يَمِينَ اللّٰهِ فِي اَرْضِهٖ اِنِّي اُشْهِدُكَ وَ كفٰي بِا اللّٰه شَهِيْداً اِنِّي أَشْهَدُ أَنْ لَّا إِلَٰهَ إِلَّإ اللّٰهُ وَأَشْهَدُ انَّ مُحَمّداً رَّسُوْلُ اللّٰهِ وَ اَنَا اُوَدِّعُكَ هَذِهٖ الشَّهَادَةَ لِتَشْهَدَلِيْ بِهَا عِنْدَ اللّٰهِ تَعَالٰي فِي يَوْمِ الْقِيَامَةِ يَومِ الفَرْعِ الْاَكْبَرِ اَللّٰهُمَّ اِنِّي اُشْهِدُكَ عَلَي ذَالِكَ وَاُشْهِدُمَلٰئِكَتِكَ الْكِرَاْمِ وَصَلَّي اللّٰـهُ عَلَيْ سَيِّدِنَا مُحَمّدِوَّاٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ اَجْمَعِيْنَ،
या यमीन ल्लाहेलफी अर्जेका इन्नी उश्हेदोका व कफा बिल्लाहे शहीदन इन्नी अश्हदो अन लाइलाहा इल्लल्लाहू व अश्हदू अन्ना मुहम्मदर्रसूलूल्लाह  व अना ओवद्देओका हाज़ेही श्शहादता ले तश्हदली बेहा इन्द ल्लाहे तआला  फी यौमील क़यामते यौमिल फर्ईल अकबर अल्लाहुम्मा इन्नी उश्हेदुका अ़ला ज़ालेका व उश्हेदू मलाएकतेकल केरामे व सल्लल्लाहू अला सय्यदेना मुहम्मजिव व आलेही व सहबेही अजमईन,

फिर उलटे पांव काबा की तरफ मुंह करके या सीधे चलने में उलट उलट कर हसरत से देखता रहे उस की जुदाई पर रोते रहे और मस्जिद-ए-हराम से बाया पैर पहले निकाले और मस्जिद से निकलने वाली दुआ पढे, फिर मक्का के फकीरों को जो कुछ हो सके दे।
(استفاده از : بہار شریعت و قانون شریعت و کیمیاء سعادت باب بیانِ حج)

मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami