neyaz ahmad nizami

Saturday, April 20, 2019

शब-ए-बराअत और उस की नफ्ल नमाज़ें:


नयाज़ अहमद निज़ामी

इस्लामी महीना शाअबान की पंद्रहवीं तारीख की रात का नाम “शब-ए-बराअत„ यानी निजात की रात (छुटकारा की रात) है, इस बरकत वाली रात के चार नाम हैं,
लैलतुल बराअत (ْْلَيْلَةُ الْبَرَاءَة) निजात वाली रात,

लैलतु-उर-रहमा  (لَيْلَةُالرَّحْمَة) रहमत वाली रात,

लैलतु-उल-मुबारका (لَيْلَةُ الْمباركة) बरकत वाली रात,

लैलतु-उल-सक (لَيْلَةُ الصَّک) निजात का चेक मिलने वाली रात,

क़ुरआन मजीद में अल्लाह ने इस मुबारक रात के बारे मे इस तरह फरमाया:
فِـيْـهَا يُفْرَقُ كُلُّ اَمْرٍ حَكِـيْمٍ
तर्जुमा: इस रात में हमारे हुक्म से हर हिकमत वाला काम बांट दिया जाता है। (سورہ دُخّانْ ت 4)
यानी शब-बराअत में बंदों की रोज़ियां, उनकी मौत व जन्म, लङाईयां,ज़लज़ले, हादेसा, साल भर में होने वाले तमाम वाकेयात के हुक्म अलग अलग बांट दिए जाते हैं, और हर काम के फरिश्तों को उन का काम दे दिया जाता है जिस का वह साल भर तक पालन करते हैं,

शफाअत की रात:
तेरहवीं शअबान को होज़ूरने अल्लाह की बारगाह में अपनी उम्मत की शफाअत की कही तो एक तिहाई उम्मत शफाअत क़बूल हुई, फिर चौदहवीं रात में दुआ की तो दो तिहाई बख़्शी गई, फिर पंद्रहवीं रात में मोनाजात (दुआ) की तो उन ना फरमान बंदों के सिवा जो खुदा से मुंह मोङ कर भागते हैं सारी उम्मत के हक़ में शेफाअत कोबूल हो गई,(صاوی)

शब-ए-बराअत के ख़ुश नसीब और बद नसीब:
होज़ूर ﷺ ने फरमाया कि इस रात में अल्लाह तआला तमाम मुसलमानों को बख्श देता है मगर नजूमी, जादूगर, शराबी, ब्लात्कारी, माता पिता का आज्ञाकारी, सूद खाने वाला, बंदों का हक मारने वाला, मुसलमानों में फूट डालने वाला, किसी मुसलमान से जलन रखने वाला, बे गैर किसी धर्मिक वजह के रिश्तेदारी छोङ देने वाला, इस रात में नही बख्शा जाता,
होज़ूर ﷺ ने फरमाया कि अल्लाह तआला पंद्रहवीं शअबान की रात में आसमान दुनिया (सब से नीचे वाले आसमान) पर तजल्ली फरमाता है, और बनी कल्ब कबीला की तमाम बकरियों के बालों से भी ज़्यादा बंदों को बख्श देता है,
हजरत आइशा رضی اللہ عنہا फरमाती हैं कि मैं ने देखा कि होज़ूर ﷺ मदीना की क़ब्रिस्तान (بقيع الغرقد ) में तशरीफ ले गए और मुसलमान मर्दों औरतों और शहीदों के लिए दुआ फरमाई, फिर क़ब्रिस्तान से वापस होकर नमाज़ में व्यस्त हो गए  और सजदे में बङी देर तक आप यह दुआ करते रहे।
أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَأَعُوذُ بِعَفْوِكَ مِنْ عِقَابِكَ، وَأَعُوذُبِكَ مِنْكَ، لَا أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ، أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ اَقُولُ کَمَا قَالَ اَخِی دَاوُدُ اُعَفِّرُ وَجْھِی فِی التُّرَابِ لِسَیَّدِی وَ حُقَّ لَہُ اَنْ یُسْجَدَ،
तर्जुमा: (ऐ अल्लाह!) पनाह (श्रण) मांगता हूं मैं तेरी रज़ा (मरजी) के साथ तेरे गजब (गुस्सा) से और पनाह मांगता हूं मैं तेरी माफी के साथ तेरे अ़ज़ाब से, और तुझ से तेरी ही पनाह लेता हूं, मैं तेरी तारीफ की ताकत (शक्ती) नही रखता हूं जितना तेरा हक है, तेरी ज़ात वैसी ही है जैसी तुने खुद अपनी तारीफ की है,  मैं वही कहता हूं जो मेरे भाई दाऊद अलैहिस्सलाम ने कहा है, मैं अपने चेहरे को धूल में मिलाता हूं अपने मौला के लिए, और वह उसी लाएक़ है कि उस को सजदा किया जावे, फिर होज़ूर ने सजदे से सर उठा कर देर तक यह दुआ पढी,

· اللَّهُمَّ ارزقني قَلْباً تَقِيَّاً نَقِيَّاً ، مِنَ الشِّرْكِ نقيا ، لاَ فِاجراًوَلاَ شَقِيَّا،
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मुझ को परहेज़गार दिल अता कर जो शिर्क से पाक व साफ हो जो ना बदकार हो ना बदनसीब,

आधे शअबान की दुआ:
«اللَّهُمَّ يَا ذَا الْمَنِّ وَلَا يُمَنُّ عَلَيْهِ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَالإِكْرَامِ، يَا ذَا الطَّوْلِ وَالإِنْعَامِ. لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ظَهْرَ اللَّاجِئينَ، وَجَارَ الْمُسْتَجِرِينَ، وَأَمَانَ الْخَائِفِينَ. اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ كَتَبْتَنِي عِنْدَكَ فِي أُمِّ الْكِتَابِ شَقِيًّا أَوْ مَحْرُومًا أَوْ مَطْرُودًا أَوْ مُقَتَّرًا عَلَيَّ فِي الرِّزْقِ، فَامْحُ اللَّهُمَّ بِفَضْلِكَ شَقَاوَتِي وَحِرْمَانِي وَطَرْدِي وَإِقْتَارَ رِزْقِي، وَأَثْبِتْنِي عِنْدَكَ فِي أُمِّ الْكِتَابِ سَعِيدًا مَرْزُوقًا مُوَفَّقًا لِلْخَيْرَاتِ، فَإِنَّكَ قُلْتَ وَقَوْلُكَ الْحَقُّ فِي كِتَابِكَ الْمُنْزَلِ عَلَى لِسَانِ نَبِيِّكَ الْمُرْسَلِ: ﴿يَمْحُو اللهُ مَا يَشَاءُ وَيُثْبِتُ وَعِنْدَهُ أُمُّ الْكِتَابِ﴾، إِلهِي بِالتَّجَلِّي الْأَعْظَمِ فِي لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَهْرِ شَعْبَانَ الْمُكَرَّمِ، الَّتِي يُفْرَقُ فِيهَا كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ وَيُبْرَمُ، أَنْ تَكْشِفَ عَنَّا مِنَ الْبَلَاءِ وَالْبَلْوَآءِ مَا نَعْلَمُ وَمَا لَا نَعْلَمُ وَمَا أَنْتَ بِهِ أَعْلَمُ، إِنَّكَ أَنْتَ الْأَعَزُّ الْأَكْرَمُ. وَصَلَّى اللهُ تَعَالٰی عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍوَّ عَلٰی آلِهِ وَصَحْبِهِ وَسَلَّمَ والْحَمْدُ لِلّٰہ رَبِّ العٰلَمِینَ،
तर्जुमा: ऐ मेरे अल्लाह! तू ही सब पर एहसान करने वाला है और तुझ पर कोई एहसान नही कर सकता है, ऐ बूज़ुर्गी और मेहरबानी रखने वाले और ऐ बख़्शिश और इनआम वाले तेरे सिवा कोई पूज्यनीय नही तू ही गिर्तों को थामने वाला है, बे पनाहों को पनाह (श्रण) देने वाला, और डरने वालों का सहारा है,
ऐ अल्लाह! अगर तूने मुझे  अपने पास किताब कुरआन में भटका हूआ ,महरूम, कम नसीब, लिख दिया है तो ऐ अल्लाह! अपने फज़्ल से बद बख्ती रांदी और रोज़ी की कमी को मिटा दे,
और अपने पास कुरआन मजीद में खुश नसीब ज़्यादा रिज़्क़ वाला , और  नेक कर दे, बे शक तेरा यह कहना  तेरी किताब में  जो नबी-ए-मुर्सल  पर उतारी गई वह सच है, कि अल्लाह जो चाहता है मिटाता है, और जो चाहता है बना देता है, और उसी के पास कुरआन है,
ऐ खुदा! सब से बङी तजल्ली का वास्ता! इस आधे शअबान की रात में जिस में हर हिकमत वाले कामों का बटवारा और लागू होता है, मेरी बलाओं को दूर फरमा, चाहे मैं उन को जानता हूं या ना जानता हूं और जिन को तू पहले  से जानता है, बे शक तू ही सब से बर तर (बङ कर) और बढ कर एहसान करने वाला है, अल्लाह की रहमत और सलामती हो, हमारे आक़ा मुहम्मद ﷺ पर और उन की आल और सहाबा पर, आमीन सुम्मा आमीन,

शब-ए-बराअत की नफ्ल नमाज़ें:

(1) इशा के बाद 12रकात नफ्ल पढे हर रकात में अल-हम्दो के बाद 10 बार कुल हुअल्लाहू पढे और नमाज़ के बाद 10मरतबा कलमा तौहीद 10मरतबा कलमा तमजीद और एक सौ (100) बार दोरूद शरीफ पढें।

(2) जो इस रात 100रकात नमाज़े नफ्ल पढेगा अल्लाह उस के पास एक सौ फरिश्तों को भेजेगा 30 फरिश्ते उस को जन्नत की खुश्खबरी देंगे, और 30 फरिश्ते उस को जहन्नम से निडर होने की खुश्खबरी सुनाएंगे, और 30फरिश्ते दुनिया की आफतों को उस से टालते रहेंगे, और 10 फरिश्ते उस को शैतान के मकर और फरेब से बचाते रहेंगे।

(3) मगरीब के बाद 2-2 रकात कर के 6 रकात नमाज़ पढे और हर दो रकात के बाद सूरह यासीन एक बार या क़ुल हुअल्लाह 21 बार पढे पहली बार सूरह यासीन लम्बी उम्र, दुसरी बार रोज़ी की तरक्की के लिए और तीसरी बार मूसीबत के दफा के लिए,

(4) 14 रकात हर रकात में अलहम्दो के बाद जो सूरह चाहे पढे, जो भी दुआ मांगे क़ोबूल होगी ,

(5) 4रकात एक सलाम से हर रकात में अलहम्दो के बाद 50 बार क़ुल हुअल्लाहु अहद, गुनाहों से ऐसे पाक हो जाएगा जैसे मां को पेट से अभी निकला हो,
{موسم رحمت شب براءت کا بیان/سنی جنتری20

19}

हिंदी अनुवादक:
 नेयाज़ अहमद निज़ामी

Friday, April 12, 2019

الفقہ


فقہ کا کھیت عبداللّٰه بن مسعود نے بویا، اور  علقمہ  بن قیس نے اس کو سینچا، اور ابراھیم نخعی نے اس کو کاٹا، اور حماد بن مسلم اس کو مانڈا یعنی بھوسی سے اناج جُدا کیا، اور ابو_حنیفہ نے اس کو پیسا، اور ابو_یوسف نے اس کو گوندھا، اور محمد_بن_حسن نے اس کی روٹیاں پکائیں،
اور

[ باقی اس کے کھانے والے ہیں ]


حدائق الحنفیہ ص39