neyaz ahmad nizami

Monday, June 26, 2017

::शव्वाल के छ:(6) रोज़े:: अज़: नेयाज़ अहमद निज़ामी



हदीस::
عَنْ أَبِي أَيُّوبَ الْأَنْصَارِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "مَنْ صَامَ رَمَضَانَ ثُمَّ أَتْبَعَهُ سِتًّا مِنْ شَوَّالٍ كَانَ كَصِيَامِ الدَّهْرِ"

तर्जुमा: हज़रत अबू अय्यूब رضی اللہ عنہसे रेवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: "जिसने रमज़ान के रोज़े रखे फिर उस के बाद छ: रोज़े शव्वाल के रख लिए तो उस ने गोया हमेशा रोज़े रखे (मुस्लिम) ।
(ریاض الصالحین جلد دوم ص 120)

हदीस:: रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: जिस ने ईद उस फित्र के बाद छ:रोजे़ रख लिए  तो उसने पूरे साल का रोज़ा रखा , वह इस तरह कि "जो एक नेकी लाएगा उसे दस मिलेंगी तो रमज़ान के महीने का रोज़ा 10महीने के बराबर है और इन छ: दिनों के बदले में दो महीने„ तो पूरे साल  के के रोज़े हो गए।

हदीस:: अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा रावी कि रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं: जिस ने रमज़ान के रोज़े रखे फिर उस के बाद छ:दिन शव्वाल में रखे तो गुनाहों से ऐसे निकल गया, जैसे आज मां के पेट से पैदा हुआ है।
(بہار شریعت ج اول ص 1010)

नोट: बेहतर यह है कि यह रोज़े अलग अलग रखे जाएं ,और अगर ईद के बाद लगातार छ: दिन में एक साथ रख लिए तब भी कोई बात नही (حاشیہ بہار شریعت ج اول ص 1010)


तालीफ        
 Neyaz Ahmad Nizami



Tuesday, June 13, 2017

एअ़तेकाफ का बयान: नेयाज़ अहमद निज़ामी




::एअ़तेकाफ का कुरआन से सोबूत::
अल्लाह तआला फरमाता है:
وَلا تُباشِروهُنَّ وَأَنتُم عاكِفونَ فِي المَساجِدِ (پ2، س البقرۃ:187)

तर्जुमा: औरतों को हाथ ना लगाओ जब तुम मस्जिदों में एअतेकाफ से हो। (कन्ज़ुल ईमान)

::एअ़तेकाफ का हदीस से सोबूत::
हदीस: हज़रते आईशा सिद्दीक़ा رضی اللہ عنھاसे मरवी है कि नबी करीम ﷺ रमज़ान के आखरी अशरा (अन्तिम 10दिन) का एअतेकाफ फरमाया करते थे।
 (صراط الجنان و بہار شریعت بحوالہ بخاری و مسلم)

हदीस: हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मुहम्मदे अरबी ﷺ रमज़ान के आख़री अशरा (अन्तिम 10दिन) में एअतेकाफ करते थे, एक साल एअतेकाफ ना कर सके, जब अगला साल आया तो होजूर अनवर ﷺ ने 20 दिन एअतेकाफ किया।
 (ترمذی، کتاب الصوم، حدیث 803)


::एअतेकाफ की फज़ीलत::

दो हज और दो उमरों का सवाब:
हदीस: हज़रत अली رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि सय्यदुल मुर्सलीन ﷺ ने इर्शाद फरमाया "जिस ने रमज़ान में 10 दिन का एअतेकाफ कर लिया तो ऐसा है जैसे दो हज और दो उमरे किए„।
(صراط الجنان جلد اول ص 301)
नोट: यही हदीस हज़रत इमाम हुसैन رضی اللہ عنہ से भी मरवी है (बहारे शरीयत जिल्द1 हिस्सा5 पेज 1020)
【दो हज और दो उमरों का सवाब】


ना कर सकने वाले नेकियों का सवाब:
हदीस: हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्न अ़ब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी करीम रउफो रहीम ﷺ ने एअतेकाफ करने वाले के बारे में फरमाया कि "वह गुनाहों से बाज़ (बचा) रहता है और नेकियों से उसे इस क़दर स़वाब मिलता है जैसे उसने तमाम नेकियां कीं।
यानी जो नेकियां वह एअतेकाफ की वजह से नहीं कर पाता है जैसे मरीज़ को देखने जाना, जनाज़े में शरीक़ होना, आदि उस का भी सवाब उसे मिलता है: नेयाज़ अहमद निज़ामी
(صراطالجنان ج اول ص 301 بحولہ ابن ماجہ)

जहन्नम से 3ख़न्दक़ें दूर:
हदीस: हज़रत अ़ब्दुल्लाह इब्न अ़ब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि  प्यारे आक़ा ﷺ ने फरमाया: जिस ने अल्लाह ﷻ की रज़ा हासिल करने के लिए एक दिन का एअतेकाफ किया तो आल्लाह ﷻ उस के और जहन्नम के बीच तीन खन्दक़ें ला देगा और हर खन्दक़ पूरब और पश्चिम के इतनी दूरी होगी।
(صراطالجنان ج اول ص 301 بحولہ ابن ماجہ)

हर दिन हज का सवाब::
सईद बिन अब्दुल अ़ज़ीज़ फरमाते हैं कि मुझ तक हज़रत हसन बसरी رضی اللہ عنہ से  यह रिवायत पहुंची है कि मुअतकिफ (एअतेकाफ करने वाला) के लिए हर दिन में हज का सवाब है,
 (احکام تراویح و اعتکاف118)
हर दिन हज का सवाब::

::एअतेकाफ का शाब्दिक व धार्मिक मतलब(अर्थ)::

एअतेकाफ अरबी शब्द है जिस का अर्थ है ख़ुद को रोक लेना, बन्द कर देना, किसी की तरफ इतना ध्यान देना की चेहरा उस तरफ से ना हटे, (لسان العرب)
जबकि शरियत में "मस्जिद  में  अल्लाह ﷻ के लिए नियत के साथ ठहरना" एअतेकाफ कहलाता है,
(بہار شریعت پنجم ص 1020)

::एअतेकाफ के मसाईल::

मसअला: एअतेकाफ के लिए मुसलमान, आक़िल (अक़लवाला) और नापाकी,हैज़ (माहवारी) नेफास से पाक होना शर्त है,
बालिग़ होना शर्त नहीं बल्कि नाबालिग जिसे तमीज़ हो वह भी एअतेकाफ की नियत से मस्जिद में रुके तो सही है, (आलम गीरी)

मसअला: जामा मस्जिद होना एअ़तेकाफ के लिए ज़रूरी नही बल्कि  मस्जिदे जमाअत में भी हो सकता है,
मस्जिदे जमाअत वह है: जिस में इमाम और अज़ान देने वाले मुकर्रर हों,भले ही पांचो समय जमाअत ना होती हो, और आसानी इस में है कि हर मस्जिद में एअतेकाफ सही है अगरचे वह मस्जिदे जमाअत न हो,

मसअला:  सब से अफज़ल (अच्छा) मस्जिदे हरम में एअतकाफ है, फिर मस्जिदे नबवी में फिर मस्जिदे ला:अक्सा में फिर उस में जहां बङी जमाअत होती हो।

एअतेकाफ की तीन क़िस्में हैं:
(1) वाजिब , कि एअतेकाफ की मन्नत मानी यानी  ज़ुबान से कहा,महज़ दिल के एरादा से नही होगा।

(2) सुन्नते मुअक्केदा, कि रमज़ान के पूरे आखरी 10दिन में एअतेकाफ किया जाए यानी बीसवीं रमज़ान को सूरज डूबते समय एअतेकाफ की नियत से मस्जिद में हो और तीसवीं रमज़ान को सूरज के डूबने के बाद या उन्तीसवीं को चांद होने के बाद निकले, अगर बीसवीं तारीख को मगरीब की नमाज के बाद एअतेकाफ की नियत की तो सुन्नते मुअक्केदा अदा ना हूई, और यह एअतेकाफ "सुन्नते केफाया„ है कि अगर अगर सब छोङ देंगे तो सबसे पूछ होगी और अगर शहर में एक ने भी कर लिया तो सबकी ज़िम्मादारी ख़त्म हो जाएगी।

(3) इन दो के अलावा जो एअतेकाफ किया जाए मुस्तहब और सुन्नते ग़ैर मुअक्केदा है।।

मसअला: एअतेकाफे मुस्तहब और सुन्नत के लिए रोज़ा शर्त नही है और ना ही कोई खास समय रखा गया है ,बल्कि जब भी मस्जिद में एअतेकाफ की नियत की, जब तक मस्जिद में है मुअतकिफ है,मस्जिद से बाहर निकल आया एअतेकाफ ख़त्म हो गया (आलमगीरी)।

मसअला: रमज़ान शरीफ के आखरी 10दिनें में जो एअतेकाफ रखा जाता है उस में रोज़ा शर्त यानी ज़रूरी है,

मसअला: यह ज़रूरी नहीं कि खास एअतेकाफ ही के लिए रोज़ा हो बल्कि रमज़ान के रोज़े भी मुअतकिफ के लिए काफी हैं।

मसअला: मुअतकिफ का बेगैर किसी वजह के मस्जिद से निकलने पर एअतेकाफ जाता रहता है,

मसअला: मुअतकिफ ना चुप रहे , ना बात करे तो क्या करे,कुरआन मजीद की तिलावत करे हदीस फढे,दोरूद पढे, इल्में दीन का सीखना सिखाना, इस्लामी किताबों को पढे,या किताबत (कम्पोज़िंग) करे।

मसअला: मुअतकिफ (एअतेकाफ करने वाला) को मस्जिद से निकलने की दो वजहें हैं
(1) हाजते तबई' कि मस्जिद में पूरी ना हो सके जैसे, पाखाना, पेशाब, इस्तिंजा, वज़ू और ग़ुस्ल की ज़रूरत हो तो  गुस्ल (स्नान), मगर गुस्ल और वज़ू में शर्त यह है कि मस्जिद में ना हो सकें, और अगर मस्जिद में वज़ू और ग़ुस्ल के लिए जगह बनी है तो अब बाहर जाने की इजाज़त नही,

(2) हाजते शरई ईद या जुमा के लिए जाना,

मसअला: क़ज़ाए हाजत (शौच) के लिए गया तो तहारत (स्वछ) कर के तुरंत चला आए रुकने की इजाज़त नही,

मसअला: मुअतकिफ का मकान मस्जिद से दूर है और दोस्त का मकान क़रीब तो यह ज़रूरी नही कि दोस्त के मकान पे  क़ज़ाए हाजत (शौच) को जाए,बल्कि अपने मकान पर भी जा सकता है,

मसअला: अगर वह मस्जिद गिर गई  या किसी ने मजबूर करके वहां से निकाल दिया  और फौरन दूसरी मस्जिद में चला गया तो एअतेकाफ फासिद (टूटा) नहीं हुआ,

मसअला: डूबने या जलने वाले के बचाने के लिए मस्जिद से बाहर निकला या गवाही देने के लिए या जेहाद में सब लोगों का बुलावा आया और यह भी निकल गया, या मरीज़ की एआदत या नमाजे जनाज़ा के लिए गया, अगर्चे कोई दूसरा पढने वाला ना हो तो इन सब वजहों की हालत में एअतेकाफ टूट जाता है।

मसअला: पाखाना, पेशाब के लिए गया था  क़र्ज़ ख्वाह ने रोक लिया एअंतेकाफ टूट गया।

मसअला: औरत को छूना बोसा लेना वती (हमबिस्तरी) करना मुअतकीफीन के लिए हराम है।

मसअला: एहतेलाम (स्वप्नदोष) होने से एअतेकाफ टूट गया,

मसअला:  मुअतकिफ के गाली गलूच बकने या झगङा करने से एअतेकाफ टूटता नही।

मसअला:  मुअतकिफ मसजिद ही में खाए पीए सोए,अगर इस काम के लिए मस्जिद से  बाहर गया तो एअतेकाफ जाता रहा।

मसअला:  मुअतकिफ के अलावा और किसी को भी मस्जिद में खाने पीने सोने की इजाज़त नही, और अगर यह काम करना चाहे तो  एअतेकाफ की नियत करके मस्जिद में जाए और नमाज़ पढे या ज़िकरे इलाही करे,फिर यह काम कर सकता है।
(ماخوز از: بہار شریعت)

 तालीफ        
 Neyaz Ahmad Nizami

Tuesday, June 6, 2017

गर्मी की दुआ व इस का जन्म



जिस तरह हर चीज़ का पैदा करने वाला अल्लाह है,जैसा कि क़ूरआन में कहा गया है
  خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ तर्जुमा: हर चीज़ का पैदा करने वाला (س:الانعام، ت:102، پ7)
 यानी रब हर चीज़ का बनाने वाला है,ज़ाहिर सी बात है इस हर चीज़ में गर्मी,और ठंडी भी आ गई,लेहाज़ा रब की किसी चीज़ पर एतराज़ करना रब ही पर एतराज़ करना है जो एक मोमिन का शेवा हो ही नही सकता, इस लिए कभी जिन्दगी के ऐसे मोङ पे खङे हों तो ज़ुबान से ऐसे शब्दो का प्रयोग ना करें जिस से अल्लाह की शान में ज़र्रा बराबर भी तौहिन,गुस्ताखी,नज़र आए। बल्कि हर हाल में रब का शुक्र ही अदा करनी चाहिए
 وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ
तर्जुमा: मेरा हक़ मानो और ना फरमानी ना करो,(سورہ بقرہ152)

इसी लिए खुशी हो या ग़म हर हाल में अल्लाह को याद करने का हुक्म है,और इस्लाम ने हमें हर मोङ पे रहनुमाई (मार्गदर्शन) की है।।

::गरमी व सर्दी की पैदाइश (जन्म)::
गरमी जो हम दुनिया में महसूस करते हैं इसकी एक खास वजह है हदीस शरीफ में है कि

عن أَبی هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ يَقُولُ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ اشْتَكَتْ النَّارُ إِلَى رَبِّهَا فَقَالَتْ رَبِّ أَكَلَ بَعْضِي بَعْضًا فَأَذِنَ لَهَا بِنَفَسَيْنِ نَفَسٍ فِي الشِّتَاءِ وَنَفَسٍ فِي الصَّيْفِ فَأَشَدُّ مَا تَجِدُونَ مِنْ الْحَرِّ وَأَشَدُّ مَا تَجِدُونَ مِنْ الزَّمْهَرِيرِ ( صحيح بخاری: 3260)
तर्जुमा: अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया"जहन्नम ने अपने रब से शिकायत करते हुए कहा ऐ मेरे रब ! मेरे एक हिस्से ने दूसरे हिस्से को खा लिया तो अल्लाह ने उस के लिए दो सांसें लेने की इजाज़त दे दी ,एक सांस सर्दी के मौसम में और दूसरी सांस गर्मी के मौसम में,यही वजह है जो तुम तेज़ गरमी महसूस करते हो,और यही वजह है जिस से तेज़ सर्दी महसूस करते हो,

::गर्मी महसूस होने पर दुआ::
जिस नबी ﷺ ने हमें क़दम क़दम पे जीना सिखाया तो ऐसा कैसे हो सकता है कि गर्मी के तेज़ मौसम के बारे में कुछ ना कहा हो चुनांन्चे हदीस शरीफ में फरमाया गया,

 إِذَا كَانَ يَوْمٌ حَارٌّ فَقَالَ الرَّجُلُ : لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ ، مَا أَشَدَّ حَرَّ هَذَا الْيَوْمِ ، اللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنْ حَرِّ جَهَنَّمَ ، قَالَ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ لِجَهَنَّمَ : إِنَّ عَبْدًا مِنْ عِبَادِي اسْتَجَارَ بِي مِنْ حَرِّكِ ، فَاشْهَدِي أَنِّي أَجَرْتُهُ .

तर्जुमा: जिस दिन गर्मी तेज़ होती है तो बन्दा कहता है "ला इलाहा इल्लल्लाहु मा अशद्दा हर्रा हाज़ल यौमे,आल्लाहुम्मा अजिर्नी मिन हर्रे जहन्नम„ अल्लाह दोज़ख से फरमाता है मेरा बन्दा मुझ से तेरी गर्मी से पनाह मांग रहा  है  पस मैं तुझे गवाह बनाता हूं कि मैने इसे तेरी गर्मी से पनाह दी।(البدور السافرۃ ص418 حدیث 1495)

दुआ एंव तर्जुमा: "ला इलाहा इल्लल्लाहु मा अशद्दा हर्रा हाज़ल यौमे,आल्लाहुम्मा अजिर्नी मिन हर्रे जहन्नम„
नहीं है कोई पुज्यनीय सेवाए अल्लाह के आज बङी गर्मी है  ऐ अल्लाह मुझे जहन्नम की गर्मी से पनाह दे।।

गर्मी का मौसम भी अल्लाह की नेमत है और ईस में बहुत सारी हिकमतें हैं जो हमारी समझ से बहुत उपर  हैं इस लिए गर्मी तेज़ हो जाए तो सब्र से काम लेना चाहिए.      ( फक़त ) [गर्मी से हिफाज़त के मदनी फूल]

मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami


Tuesday, May 30, 2017

रमज़ान



मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील नेयाज़ अहमद निज़ामी 

::रमज़ान के मसाइल व  फ़ज़ाइल::

रमज़ान का माना,व फर्ज़ होना::
रमज़ान-उल-मुबारक- इस्लामी साल का 9वां महीना है,
बगवी का क़ौल है कि रमज़ान "रमज़ा„ से निकला जिस के माना गरम पत्थर के हैं क्युंकि ऩबी ﷺ से पहले मुसलमान तेज़ गरमी में रोज़ा रखा करते थे अरब क़बीलों नें जब महीनों के नाम रखना चाहे तो उन दिनों में यह महीना बहुत ही गरमी के मौसम में आया इसी लिए इस का नाम रमज़ान रखा गया,
 कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह महीना गुनाहों को जला देता है इस लिए इस लिए इसे रमज़ान कहते हैं।
इस की हर घङी रहमत भरी है,
शरिअत में रोज़ा के माना हैं  अल्लाह की इबादत की नियत से सुबहे सादिक से लेकर सूरज डुबने तक खाने पीने और जेमा (बीवी से हमबिस्तरी)से अपने आप को रोके रखना
अल्लाह तआ़ला इर्शाद फरमाता है::
 " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ,,
तर्जुमा: ऐ लोगों जो ईमान लाए हो तुम पर रोज़े फर्ज़ किए गए हैं जैसे तुम से पहले वाले लोगों पर फर्ज़ किए गए थे। (सूरह,बक़रा.आयत,283. पारा-2)
हज़रत सईद बिन जुबैर رضی اللہ عنہ का क़ौल है कि हम से पहले वाले लोगों पर ई़शा से लेकर दूसरी रात के ईशा तक रोज़ा होता था जैसा कि इस्लाम के शुरू में भी ऐसा ही दस्तूर था।
कहा जाता है कि कोई उम्मत ऐसी नही मगर अल्लाह ने उन पर माहे रमज़ान के रोज़े फर्ज़ किए थे मगर वह उन से फिर गए।
रमज़ान के रोज़े हिजरत के दूसरे साल फर्ज़ किए गए यह दीन का एक बहुत ही अहम रुक्न है,इस का वाजिब होने का इन्कार करने वाला काफिर कहलाएगा,

रमज़ान की फज़ीलत::
होज़ूर ﷺफरमाते हैं  कि जब रमज़ान की पहली रात आती है तो जन्नत के तमाम दरवाज़े खोल दिए जाते हैं,और पूरा रमज़ान के महीना कोई भी दरवाज़ा बन्द नही किया जाता,और अल्लाह तआला पुकारने वाले को हुक्म देता है जो नेदा (आवाज़) देता है ऐ नेकी के मांगने वालों ध्यान दो और ऐ गुनाहों के मांगने वाले रुक जा। (1643 ابن ماجہ)
फिर वह कहता है : कोई बखशिश मांगने वाला है जिसे बख्श दिया जाए ?
 कोई सवाल करने वाला है जिसे दिया जाए?
कोई तौबा करने वाला है जिसकि तौबा क़ोबूल की जाए,?
और सुब्ह होने तक यह आवाज़ (नेदा) आती रहती है। और अल्लाह ﷻ हर ईद -उल- फित्र के दिन दस लाख (10,00000.) ऐसे बन्दों को बख़्शता है जिन पर अ़ज़ाब वाजिब हो चुका होता है। (ابن ماجہ،کتاب الصیام حدیث 1643)

बहुत लम्बे ख़ुत्बा का कुछ हिस्सा मुलाहेज़ा हों कि नबी ﷺ फरमाते हैं जिस शख्स ने इस महीने में किसी रोज़ा दार का रोज़ा इफ्तार कराया उसे ग़ुलाम आज़ाद करने का स़वाब  मिलता है और उस के गुनाह बख्श दिए जाते हैं,
एक सहाबी नें अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ हम में से हर शख़्स ऐसी चीज़  नही पाता जिस से वह रोज़ादार का रोज़ा इफ्तार कराए, आप ﷺ ने फरमाया: अल्लाह तआला यह सवाब हर उस शख़्स को देता है जो किसी रोज़ादार का रोज़ा दुध के घुंट या पानी के घूंट या खोजूर से इफ्तार कराता है,
और जिस ने किसी रोज़ादार को सैर (भर पेट) कराया तो यह उस के गुनाहों की बख़्शिश होगी, और अल्लाह तआला मेरे हौज़ से उसे ऐसा  सैर (भर पेट)  करेगा कि वह कभी प्यासा नही होगा ऐर उसे भी रोज़ादार के बराबर अज्र मिलेगा लेकिन रोज़ादार के सवाब से कुछ कम नही किया जाएगा (مکاشفۃ القلوب638)


सरवरे कौनेन ﷺ. फरमाते हैं कि रमज़ान के महीना में मेरी उम्मत को पांच चीज़ें दि गई हैं जो इस से पहले किसी उम्मत को नही दी गई,
1 रोज़ादार के मुंह की महक अल्लाह ﷻ मुश्क से ज़्यादा उम्दा है

2 रोज़ादार के इफ्तार तक फरिश्ते उन के लिए बख़्शिश तलब (मांगते) करते रहते है,

3 शैतान क़ैद कर दिए जाते हैं,

4 अल्लाह ﷻ हर दिन जन्नत को संवारता है और फरमाता है बहुत जल्द इस में मेरे नेक बन्दे दाखिल होंगे उन से तकलीफ दुर कर दी जाएगी,

5 औऱ इस महीना की आखरी रात में उन्हे बख़्शा जाएगा, पूछा गया : या रसूलल्लाह ﷺ क्या इस से मुराद लैलतुल कद्र है? आप ﷺ ने फरमाया नहीं लेकिन काम करने वाला काम पूरा करके अपना अज्र (बदला) पाता है।(مسند احمد 7922)

नसीहत

::रमज़ान के ज़रूरी मसअले::

रोज़े की नियत का समय::
रमज़ान के अदा रोज़े की नियत का समय सूरज डूबने से लेकर ज़हवाए कुबरा यानी पौ फटने तक है,
इस वक्त जब नियत करले यह रोज़े हो जाएंगे लेकिन रात ही में कर लेना बेहतर है,

नियत के माना::
जिस तरह और इबादतों में बताया गया है कि नियत दिल के एरादे का नाम है ज़ुबान से कुछ कहना ज़रूरी नही इसी तरह रोज़ा में भी वही मुराद है,हां ज़ुबान से कह लेना बेहतर है ,अगर रात में या सुबह फज्र की अज़ान से पहले पहले नियत करे तो यह कहे "नियत की मैने कि अल्लाह ﷻ के लिए फर्ज़ रोज़ा कल रखुंगा„ और अगर दिन में रोज़ा की नियत  करे तो यूं कहे  "नियत की मैने कि अल्लाह ﷻ के लिए आज फर्ज़ रोज़ा रखुंगा„




मसअला: दिन में नियत करे तो ज़रूरी है कि यह नियत करे कि "मैं सुबहे सादिक़ से रोज़ादार हुं„ और अगर यह नियत की कि अब से रोज़ा दार हूं सूबह सादिक (अज़ाने फज्र से पहले) से पहले नहूं तो रोज़ी ना हुआ।(جوہرہ ردالمختار و بہار)

नोट: कुछ लोग फज्र की अज़ान खत्म होने तक खाते पीते हैं उनका रोज़ा नही होगा,क्युंकि सहरी का आखरी वक्त अज़ान से पहले पहले खत्म हो जाता है, नेयाज़ अहमद निज़ामी

ईद के दिन का रोज़ा::
मसअला: ईद के दिन का रोज़ा मकरूहे तहरीमी यानी हराम के बराबर इसी तरह बक़रईद के दिन का और उस के बाद 11-12-13 तारीख तक का,

::रोज़ा तोङने वाली चीज़ों का बयान::

मसअला: खाने या पीने या जेमाअ(बीवी के साथ हम्बिस्तरी) करने से रोज़ा टूट जाता है जबकि रोज़ादार होना याद हो,मसअला: मर्द ने औरत का बोसा (kiss)लिया या छूआ या या गले लगाया और इन्ज़ाल (विर्य) हो गया तो रोज़ा टूट गया और अगर औरत ने मर्द को छूआ और मर्द कोइन्ज़ाल (विर्य) हो गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: हुक़्क़ा,सिगरेट,बीङी,सिगार,पीने से रोज़ा टूट जाता है, 
मसअला: पान,या तम्बाकू,या सुर्ती खाने से भी रोज़ा टूट जाता है अगरचे पीक थूक दी हो
मसअला: चीनी,गुङ या वगैरह या ऐसी चीज़ जो मुंह में रखने से घुल जाती है मुंह मे रखी और और थूक निगल गया तो रोज़ा टूट गया।
मसअला: दांतो में कोयी चीज़ चने बराबर या उस से ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी उसे मुंह से निकाल कर दोबारा खा गया तो रोज़ा टूट गया,
 मसअला: कान में तेल डाला या किसी तरह चला गया तो रोज़ा टूट गया, और अगर पानी कीन में चला गया या डाला तो रोज़ा नही टूटा,
 मसअल: औरत ने शर्मगाह की जगह पानी या तेल डाला तो रोज़ा टूट गया, जबकी मर्द ने डाला तो नही टूटा,
 मसअला: जानबूझ कर भरमुंह क़ै (उल्टी,बोमेटी) की और रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा टूट गया और अगर इस से कम की तो रोज़ा ना गया,
मसअला: बे अख्तेया ऐसे ही क़ै (उल्टी,बोमेटी)  हुई  और अपने आप अन्दर चली गई तो रोज़ा ना टूटा चाहे थोङी हो या ज़्यादा रोज़ा याद हो या ना हो,
मसअला: रमज़ान में बेगार किसी वजह के ख़ुलेआम जो शख्स खाए पीए तो हुक्म है कि उसे क़त्ल कर दिया जाए।। (ردالمختار)

::उन चीज़ों का बयान जिन से रोज़ा नही टूटता::

मसअला: भूल कर खाया पिया या जेमाअ (बीवी के साथ हम्बिस्तरी) किया तो रोज़ा ना टूटा,
मसअला: मक्खी या धूआं या या ग़ोबार (धूल) हलक़ में जाने से रोज़ा नही टूटता,
मसअला: तेल या सुर्मा लगाया तो रोज़ी ना गया,
मसअला: दांत से खून निकल कर हलक से निचे अगर नही गया तो रोज़ा ना गया,
मसअला: भूले से खाना खा रहा था याद आते ही फौरन नवाला थूक दिया तो रोज़ा ना गया और अगर निगल लिया तो रोज़ा टूट गया,
मसअला: कान में पानी चला गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: बऔरत का बोसा (kiss)लिया या छूआ या या गले लगाया और इन्ज़ाल (विर्य) ना हुआ तो रोज़ा ना टूटा,
मसअला: एहतलाम (स्वपनदोष) हो गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: नापाकी की हालत में सुबह की बल्कि सारे दिन नापाक रहा रोज़ा तो हो जाएगा मगर इतनी देर तक जानबूझ कर नापाक रहना और नमाज़ का ना पढना हराम है।।

::किन किन हालतो में रोज़ा ना रखने की इजाज़त है::

मसअला: सफर, हमल (प्रेग्नेन्ट), बच्चा को दुध पिलाना, बिमारी, बुढापा, और मर जाने का डर,यह सब रोज़ा ना रखने के लिए ऊज्र है यानी छूट है,इन सब बातों की बजह से रोज़ा ना रखना गूनाह नही,हां जब वह वजह जाती रहे तो बाद में रोज़ा रखना फर्ज है,
मसअला: सफर से मुराद सफरे शरई है यानी इतना दूर निकले की यहां से वहां तक तीन दिन का रास्ता हो,
मसअला:खुद मुसाफिर को और उस के साथ वाले को रोज़ा रखने में नुक्सान ना हो तो रोज़ा रखना सफर में बेहतर है और अगर नुकसान का खौफ हो तो ना रखना बेहतर है,
मसअला: हमल वाली या दूध पिलाने वाली को अगर अपनी जान या बच्चा का डर हो तो तो उस वक्त रोज़ा ना रहे,
मसअला: मरीज़ को बिमारी बढ जाने या देर में अच्छा हो जाने का या सेहतमंद को बिमार पङ जाने का यकीन हो तो उस दिन रोज़ा न रखे

इन तमाम सुरतों में गालिब गुमान यानी सौफीसद यक़ीन हो कि हां ऐसा होगा,तब रोज़ा ना रखने की इजाज़त है,

गालिब गुमान यानी मुकम्मल यकीन की तीन वजहे हैं
1 उस की ज़ाहिरी निशानी पाई जाती हो,
2 उस शख्सकी अपना तजरबा हो,
3 कोई मुसलमान डॉक्टर जो फासिक़ ना हो उस ने खबर दी हो,

और अगर कोई निशानी ना हो ,कोई तजरबा भी ना हो और डॉक्टर ने भी ना कहा हो  तो रोज़ा छोङना जायज़ नही,बल्कि सिर्फ वहम या काफिर व फासिक डॉक्टर के कहने पर रोज़ा छोङ दिया तो कफ्फारा भी देना पङेगा।।

::कफ्फारा की तारीफ::
एक रोज़ा छोङने के बदले लगातार 60 रोज़ा रखे यह ना हो सके तो 60मसेकीनो को दोनो टाइम भरभर पेट खाना खिलाए,
अगर रोज़ा रखने को बीच में एक भी रोज़ा छूट गया तो फिर से गिन्ती शूरू करे,

(استفادہ از قانون شریعت" روزہ حصہ اول)


मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami



Tuesday, May 9, 2017

शअबान का महीना




शअबान का मतलब::
शअबान इस्लामी महीनों में से 8वीं महीना है, अरब के लोग शअबान के महीने में अपने घरों और ख़ेमों से निकल कर पानी की तलाश में दूर दूर तक निकल जाते थे और अक्सर लोग अपने क़बीलों से जूदा हो जाते थे इस लिए इस महीने का नाम शअबान पङ गया। (لسان العرب 8/87، داراصادر بیروت)

शअबान में अल्लाह तआला अपने बन्दों के लिए बहुत ज़्यादा ख़ैर (भलाई) व बरकत नाज़ील फरमाता  (उतारता)  है और साल भर होने वाला काम और बन्दों को मिलने वाला रिज़्क़ इसी महीना में बांटा जाता है। इस लिए इस महीना को शअबान कहा जाता है।
रजब के महीने की पहली तारीख को प्यारे  नबी ﷺ की नज़र चांद पर पङती तो अपना हाथ उठा कर यह दुआ करते
( اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِي رَجَب، وَشَعْبَانَ، وَبَلِّغْنَا رَمَضَانَ )
यानी: ऐ अल्लाह रजब और शअबान को बा बरकत (बरकत वाला) बना और हम को रमज़ान तक पहुंचा।


इस्लामी विद्वान फरमाते हैं की शअबान (شعبان) शब्द में एक बहुत बेहतरीन राज़ छुपा है वह यह कि शअबान (شعبان)  के अन्दर पांच हरूफ (अक्षर) हैं
1 शीन (ش)
2 ऐन.  (ع)
3 बा    (ب)
4 अलिफ (ا)
5 नून    (ن)

शीन (ش) से मुराद शर्फ (बुजुर्गी) है,यानी इस महीना को दूसरे महीनों पर सेवाए रमज़ान के खास बुजुर्गी हासिल है।

ऐन  (ع)  से मुराद उक़बा है, यानी इस बात की तरफ इशारा है कि शअबान की अज़मत करने वाले की दुनिया में इज़्ज़त होगी और आख़ेरत में बङा मरतबा मिलेगा।

बा  (ب)  से मुराद बरकत, बहबूद, बेहतरी और बोहतात है, यानी इस बात की तरफ इशारा है  कि दुनिया में बरकत व बहबूद हासिल होगी और क़ब्र में रोशनी की बोहतात (ज़्यादती) होगी और क़्यामत के मैदान में दरजात बुलन्द होंगे।

अलिफ (ا)  से मुराद अमन व अमान और उल्फत व अनवार है, यानी शअबान की इज़्ज़त करने वाले को दुनिया में अमन व अमान मिलेगा और आखेरत के दिन अमान हासिल होगा, वह क़्यामत की हौलनाकियों से महफूज़ रहेगा।

 नून  (ن) से मुराद नार (आग) है, यानी शअबान की खैर व बरकत हासिल करने वाला जहन्नम से निजात (छुटकारा) पाएगा और इस महीना में नफ्ल नमाज़ पढने वाले के दिल में नूर पैदा होता है और जो शख्स शअबान की अज़मत का लेहाज़ रखता है और इस की ताज़ीम करता है उस को दुनिया में इमान का नूर और आखेरत में आग से निजात (छुटकारा) मिलती है।। (غنیۃ الطالبین 1/188)


शअबान की फज़ीलत::
सय्यदे आलम ﷺ ने शब-ए-मेराज (मेराज की रात) अल्लाह तआला की बारगाह में मुनाजात की थी कि
अए अल्लाह! तुने हज़रत मुसा علیہ السلام को अ़सा (डंडा) दिया था, मुझे अपनी बारगाह से क्या चीज़ एनायत की?
अल्लाह तआला ने फरमाया आप को शअबान का महीना दिया,यह महीना आप की उम्मत के गुनाहों और शैतानी फरेब कारियों को दूर करेगा और सारे गुनाहों को मिटा देगा।

तमाम नबियों के सरदार जनाब अहमदे मुज्तबा ﷺ ने फरमाया:
رجب شھر اللہ و شعبان شھری و رمضان شھر امتی
यानी: रजब अल्लाह का महीना है, और शअबान मेरा महीना है, और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है।

प्यारे आक़ा व मौला मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने शअबान के बारे में फरमाया:
فضل شعبان شھری علٰی سائرالشھور کفضلی علٰی سائرالانبیاء۔
यानी: मेरे महीना शअबान को तमाम महीनों पर ऐसी फज़ीलत हासील है, जैसी मुझे फज़ीलत हासिल है तमाम नबियों पर। (شعب الایمان 3/369)

इसी मुबारक महीना में चांद को दो टुकङे करने वाला मोअजेज़ा भी नबी अलैहिस्सलाम से हुआ था।
अल्लामा इब्न हजर अ़स्कलानी फरमाते हैं कि
شعبان انشق فیہ القمر لسید ولد عدنان
यानी: शअबान वह मुबारक महीना हैजिस में होज़ूर ﷺ से चांद दो टुकङा हुआ।

हज़रते ओसामा रज़िृल्लाहु अन्हू फरमाते हैं कि मैने अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ मैं देखता हूं कि जिस तरह आप ﷺ शअबान में रोज़े रखते हैं इस तरह किसी भी महीना में नहीं रखते ?
नबी ﷺ ने फरमाया कि रजब और रमज़ान के बीच में यह महीना है, लोग इस से ग़ाफिल हैं इस में लोगों के आमाल अल्लाह की तरफ उठाए जाते हैं और मुझे यह महबूब है कि मेरा अ़मल इस हाल में उठाया जाए कि मैं रोज़ादार हूं। سنن نسائی ص 387حدیث 2354

(استفادہ از :  آقا کا مہینہ و منیرالایمان فی فضائل شعبان)

इस के अलावा भी दरजनों हदीसें हैं जिस में शअबान की अज़मत व फज़ीलत का ज़िक्र बार बार वारिद हुआ है और यही वह अज़मत वाला महीना है जिस में शब-ए-बरात जैसी अज़ीम रात भी है ,मैं कहता हूं एक मुसलमान के लिए इतना ही काफी है कि इस महीना को प्यारे आक़ा ﷺ नें रमज़ान के बाद सब से ज़्यादा महबूब रखा है,इस महीना में नबीﷺका  रोज़ा की कसरत फरमाना ही इस बात पर दलील है कि य़ह महीना अपने अन्दर कितनी बरकत समेटे हुए है। واللہ اعلم




Thursday, April 27, 2017

कव्वों की एकता (डा0 गूलाम जाबिर शम्स)


कव्वा बे ज़ुबान है नहीं......ज़ुबान रखता है ...... हम नहीं समझते......एक कव्वा पकङ कर देखो......एक कव्वा मार कर देखो......कोई ख़बर करे,ना करे......ख़ुद बाख़बर रहते हैं......बा ख़बर रखते हैं......आनन फानन सब जमा हो जाएंगे......जैसे बारिश में मेंढक टर टरा कर आसमान सर पर उठा लेते हैं......इसी तरह यह भी कांय कांय कर के सातों आसमान सर पर उठा लेंगे......कांव कांव के शोर से अन्दाज़ा होगा……जैसे कहते होंगे,किस ने मारा......क्यूं मारा......कैसे मारा......कहां मारा......कब मारा......देखो उस को......ढूंडो उसको......पकङो उस को......पूछो उस से.......सज़ा दो उस को......क़ैद करो उस को......क़त्ल करो उस को......आज एक मरा.......कल दो मरेंगे......परसों तीन मरेंगे......यूं हमारी नस्ल खत्म हो जाएगी......लेकिन हाय रे मुसलमान!कोई पिटता है...... तो पिटा करे......कोई क़ैद होता है.......तो हुआ करे......कोई क़त्ल करता है......तो किया करे......कोई मरता है......तो मरा करे......ना किसी को फिक्र......ना किसी को दर्द......ना दवा......ना तरस.......ना तङप.......ना मुहब्बत......ना अख़ुअत (भाई चारा)......ना जज़ब-ए-इत्तेहाद......ऐ काश! मुसलमान कव्वों से ही सही......मुहब्बत व इत्तेहाद का सबक़ सीख तो लेते......कव्वा बाहर से काला है......अन्दर से उजाला है......क्य मुसलमान ज़ाहिर से सफेद है.....बातिन से सेयाह (काला) है......अगर ऐसा है......तो ऐसे मुसलमानों को......कव्वों से उजालों की भीक मांग लेनी चाहिए......ऐसे साफ दिल कव्वों को......जिस किसी ने ज़िबह कर के खाने का हुक्म दिया......यक़ीनन उस का दिल रहम से ख़ाली था......शायद यह एहतजाज उसी बे रहम के ख़ेलाफ था।। (बोलती तस्वीरें पेज 15 डा0 ग़ुलाम जाबिर शम्स मिस्बाही)

Sunday, April 23, 2017

27 रजब


आज 27वीं रजब है

रजब की 27वीं तारीख बहुत फज़ीलत व अज़मत वाली रात है, क्युंकि इसी रात को नबी ﷺ की तरफ पहली वह़ी (रब का वह पैग़ाम जो नबियों पर उतरते हैं)  भेजी गई।
और इसी रात में सरकारे दोआलम ﷺ मेराज के लिए तशरीफ ले गए यही वजह है कि सत्ताईसवीं रात में इबादत करने और दिन में रोज़ा रखने वालों को ढेरों अज्र और स़वाब मिलता है। आईए इसी के बारे में 3 फरमाने मुस्तफा ﷺ पढते हैं।



इस महीने के बारे में और भी बहुत सारी बाते जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

1-100साल के रोज़ों का स़वाब
हजरते सलमान फारसी रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है की नबी ﷺ  ने फरमाया रजब में एक दिन और रात है जो उस दिन रोज़ा रखे और रात को क़ेयाम (इबादत) करे तो गोया उस ने 100साल के रोज़े रखे और 100साल की शब बेदारी (रातभर अल्लाह की इबादत) की और यह रजब की सत्ताइस (27) तारीख़ है,।( شعیب الایمان ج 3 ص1367)


2- 60महीनों का सवाब
हजरते अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि,, जो कोई सत्ताइसवीं रजब का रोज़ा रखे अल्लाह तआला उस के लिए 60 महीनों के रोज़ों का सवाब लिखे,
(فضائل شھر رجب للخلال ص76)


3- 27 रजब को मुझे नोबूव्वत मिली जो इस दिन को रोज़ा रखे और इफ्तार के समय दुआ करे, दस बरस के गुनाहों का कफ्फारा हो, (فتاوی رضویہ ج 10ص648)

तो पता चला कि  27वीं रजब हम गुनहगारों के लिए ढेर सारी रहमतें बरकतें लेकर आता है, अगर हमें इस दिन रोज़ा रखने इबादत करने की खुश्नसीबी हासील हो जाए तो अल्लाह की ज़ात से उम्मीद है कि यह सब सवाब हमें मिल सकते हैं।

منقول:  کفن کی واپسی



             मुरत्तिब
NEYAZ AHMAD NIZAMI
 http://neyaznizami.blogspot.com

Saturday, April 22, 2017

الجامعۃالاشرفیہ میری نظر میں

درسگاہ و دفتر الجامعۃ الاشرفیہ

اس سے کسی کو انکار نہیں کہ ہماری جماعت میں بہت سے معیاری  مدارس ہیں، جن کا تعلیمی ڈھانچہ بہت ہی مضبوط اور عمدہ ہیے
جن میں سرفہرست الجامعۃ الاشرفیہ کوماناجاتاہے.

یہی وجہ ہے کہ جوتعمیری ذہن الجامعۃ الاشرفیہ کے فارغین میں پاے جاتے ہیں وہ ہندوستان کے اکثر مدارس کے طلبامیں  نہیں پاےجاتے.
ظاہر سی بات ہیے اس کا سہرا صرف اور صرف طلبا کو نہیں جاتا بلکہ قابل تعریف ہیں وہ با صلاحیت علماجو ادنی کواعلی بناکرقوم کےسامنے دین مذہب کی خاطرپیش کرتے ہیں.


مزار حضور حافظ ملت علیہ الرحمۃ

یوں ہی طلباکی کامیابی کے لیے  باصلاحیت علماکامدارس میں ہںونا کافی نہیں ،کیونکہ بہت سارے مدارس ھم نے دیکھے  جس میں علم و فن کے حامل علماکو موجود پایا. مگرنظام تعلیم بہتر نہ ہونے کے سبب وہاں تدریسی خدمات نا کے برابر انجام پاتی ہیں .جس کی بہتر صحت موقوف ہے منتظمین پر.
لائق ستائش ہیں الجامعۃ الاشرفیہ مبارکپور کے وہ منتظمین جو تدریسی نظام کو اتنا مستحکم اور پائدار بنا ئےہوے ہیں کہ عوام کی خدمت میں بہترین ،تقریری،تحریری،تبلیغی، علما پیش کیئے


ہم جب کسی عالم کے نام کے ساتھ اس کے مادر علمی کا نام سنتے ہیں تو اول فرصت ذہن میں یہ بات آتی ہیے کہ ان کی تعلیم فلاں مدرسہ سے ہںوئی ہیے،مگر جب کسی عالم کے نام کے ساتھ مصباحی سنتے ہیں تو یہ تصوربعد میں ہوتاہیے کہ جامعہ اشرفیہ ان کا مادر علمی ہیے،پہلے یہی خیال آتا ہیے کہ سامنے علم کا ٹھاٹھیں مارتا ہںو ا سمندر کھڑا ہیے گویا باصلاحیت عالم کا دوسرا نام مصباحی ہیے

        نیاز احمد نظامی
24/رجب المرجب 1438ھ
 22/ اپریل 2017ء .بروز شنبہ

Thursday, April 20, 2017

अगर आप में इन्सानियत (मानवता) है तो:





"अजनबी लोग" भी अपनी ख़ूनी रिश्ते दारों से कहीं ज़्यादा अ़ज़ीज़ (प्यारे) हो जाते हैं।
और अगर आप मे इन्सानियत नहीं है तो अपने ख़ूनी रिश्ते भी बेगाने हो जाते हैं।




सिर्फ आप की इ़ज़्ज़त इ़ज़्ज़त नहीं है, दूसरो की इ़ज़्ज़त भी इ़ज़्ज़त ही है।
सिर्फ आप की बहन बहन बहन नही है बल्की दूसरों की बहन भी बहन है।
दूसरों की इ़ज़्ज़त की क़ीमत को समझिए.
जी हां ! यही इन्सानियत है और मज़हब इसी की तालीम (शिक्षा) देता है।।
_________________________________
ह0 अल्लामा सय्यद शाह क़मर-उल-इस्लाम साहब क़िबला


اگر آپ میں انسانیت ہے تو :

"اجنبی لوگ" بھی اپنے خونی رشتے داروں سے کہیں زیادہ عزیز ہو جاتے ہیں.
اور اگر آپ میں انسانیت نہیں ہے تو اپنے خونی رشتے بھی بیگانے ہو جاتے ہیں
 .
صرف آپ کی عزت عزت نہیں ہے، 
دوسروں کی عزت بھی عزت ہی ہے
 .
صرف آپ کی بہن بہن نہیں ہے بلکہ دوسروں کی بہن بھی بہن ہے
.
دوسروں کی عزت کی قیمت کو سمجھیے
.
جی ہاں یہی انسانیت ہے اور مذہب اسی کی تعلیم دیتا ہے.
_________________________________
از -: حضرت علامہ سید شاہ  قمرالاسلام  صاحب قبلہ

Wednesday, April 19, 2017

इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा यानी कून्डे की फातेहा


हिन्दुस्तान एंव पाकिस्तान के मुख्तलिफ अलाक़ों के सुन्नी मुसलमान 22,रजब को इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ  की नेयाज़ दिलाते हैं, जिसे कुन्डों की फातेहा कहा जाता है।
यह कोई पूरानी रस्म नहीं,बल्की लगभग डेढसौ साल की रस्म है और कहा जाता है कि:
इस की शुरूआत शीओं ने की थी और हकीकत में वह 22 रजब को सहाबिये रसूल हज़रत अमीर मोआ़वीया رضی اللہ عنہ की वफात (मृत्यू) का जश्न मनाते हैं,
मगर, सुन्नियों के डर से इस का नाम इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा रख दिया यानी इस रस्में फातेहा के परदे के पीछे शियों का डर की वजह से सच्ची बात छूपाना शामिल है।

किसी के इसाल-ए-स़वाब के लिए कोई वक्त (समय) कोई खास तरीका नही है।

साल के किसी भी दिन रात में जैसे और जिस तरह चाहें इसाल-ए-सवाब कर सकते हैं।
और किसी भी बज़ुर्ग की फातेहा दिला सकते हैं,

बेहतर यह है कि इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ की इसाल-ए-सवाब के लिए  उन के इन्तेक़ाल की तारीख का ख्याल रखा जाए जो 15 रजब है,

और जो 22 रजब ही को नेयाज़ दिलाना चाहें वह इसाल-ए-सवाब के समय हजरते अबूबकर, हजरते उमरे फारूक़, हज़रते उस्मान गनी, हज़रते अली, हज़रते अमीर मोआविया رضی اللہ عنھم  का नाम खासकर लें, इन हज़रात के अलावा जिन का भी नाम लेना चाहें और इसाल-ए-सवाब करना चाहें करें, इस तरह शीयों का मक़सद नाकाम हो जाएगा ।
और उन की मुशाबेहत  का शक भी अपने आप खत्म हो जाएगा।


यह भी पढे ::  
 हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़  رحمۃ اللہ علیہ
कुन्डों की फातेहा में तरह तरह  की औरतों के ख्यालात और रस्मे हैं, जो बिल्कुल बेकार और बेहुदा हैं। इन बे अस्ल व बे बुनियाद  रस्मों से अहल-ए-सुन्नत को सख्त परहेज ज़रूरी है,
अल्लाह तआला  तमाम अहल-ए-सुन्नत को हर तरह के खतरों से महफूज़ (सुरक्षित) रख कर उन्हे सीधे रास्ते और बज़ूर्गों के नक़्शे क़दम पे चलने की तौफीक़ दे ।।

आमीन
یا رب العالمین بجاہ حبیبک سیدِ المرسلین علیہ و علی آلہ و اصحابہ اجمعین
यासीन अख्तर मिस्बाही
बानी व अध्यक्ष:: दार-उल-कलम दिल्ली





मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami






Thursday, April 13, 2017

مولود کعبہ کون؟.


آج کل سوشل میڈیا پر یہ بات بہت تیزی سے گرد ش کر رہی ہیے کہ مولودکعبہ کون؟. آیا حضرت  حکیم بن حزام رضی اللہ تعالی عنہ ہیں یا حضر علی رضی اللہ تعالی عنہ ؟.
اس سے متعلق حضرت علامہ و مولانا قاری محمد لقمان صاحب کی ایک تحقیقی کتاب آپ حضرات کی بارگاہ میں حاضر ہیے

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http://www.mediafire.com/file/faedu7c4e5xa7tu/%D9%85%D9%88%D9%84%D9%88%D8%AF+%DA%A9%D8%B9%D8%A8%DB%81+%DA%A9%D9%88%D9%86%D8%9F.pdf

مطالعہ کرنے کے لیئے یہاں کلک کریں
https://drive.google.com/file/d/0B_OAZUmbYXq8cG1yR2ZuQjRyUjQ/view?usp=drivesdk


Tuesday, April 11, 2017

हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ رحمۃ اللہ علیہ



रजब के महीना को कई बज़ुर्गों  से निस्बत हासिल है इन्ही में से एक हस्ती ऐसी भी है जिसने भटके हुए लोगों को राह दिखाई,उम्दा (उच्च) किरदार की खुश्बू से परिशान हालों की परिशानी दूर की, इल्म के नुर से जहालत  की तारीकी को खत्म किया,वह महान शख्सियत हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु हैं,

नाम नसब (खानदान) :  आप का नाम '' जाफर ,, और कुन्नियत ''अबू अब्दुल्लाह,, है, आप का जन्म 80 हिजरी में हुआ, आप के दादा हजरत इमाम ज़ैनुल आबेदीन और वालिद (पिता) इमाम मुहम्मद बाक़र हैं,जबकि वालिदा (माँ) हजरत उम्मे फरवा बिन्त क़ासिम बिन मुहम्मद बिन अबू-बकर सिद्दीक़ हैं (رحمۃ اللہ تعالی علیھم اجمعین)

इस तरह आप पिता की तरफ से हुसैनी सय्यद और माँ की तरफ से सिद्दीक़ी हैं,सच बोलने की वजह से आप को सादिक़ के लक़ब से जाना जाता है।

तालीम व तरबियत :  आप ने मदीना शरीफ में आंख खोलीं और अपने पिता इमाम मुहम्मद बाक़र,हजरत सय्यदना ओबैदुल्लाह  बिन अबी राफेअ, हजरत सय्यदना उर्वा बिन ज़ुबैर, हजरत सय्यदना अ़ता और हजरत सय्यदना नाफेअ़ علیھم الرحمۃ के इल्मी गहवारे में तरबियत हासिल की (تزکرۃالحفاظ 1/126) दो अज़ीम (महान) सहाबा हजरत सय्यदना अनस बिन मालिक और  हजरत सय्यदना सहल बिन साअ़द رضی اللہ تعالی عنھما  की ज़ियारत (देखने) करने की वजह से आप  رحمۃ اللہ تعالی علیہ  ताबई़ हैं  (سیر اعلام النبلاء ۶/۴۳۸)

http://neyaznizami.blogspot.com/2017/04/blog-post_11.html
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दीनी ख़िदमात (मज़हबी सेवाएं) :  हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ رحمۃ اللہ علیہ की सोहबत (साथ) में रह कर कई लोग क़ौम के लिए रोशन भविष्य बने, आप  رحمۃ اللہ علیہ के इल्मी फैज़ान से फायदा हासिल करने वालों में आप के पुत्र इमाम मुसा काज़िम, इमाम आ़ज़म अबू हनिफा, इमाम मालिक, हज़रते सुफियान सोरी, हजरत सुफियान बिन ओययना, علیھم الرحمۃ  के नाम सब से उपर है, (تزکرۃ الحفاظ 1-125)

हिकायत : एक मरतबा गुलाम नें हाथ धुलवाने के लिए पानी हाथ पर डाला मगर हाथ पर गिरने को बजाए कपङों पर गिर गया, आप رحمۃ اللہ علیہ ने ना तो झाङा और ना तो सज़ा दी बल्कि उसे मुआफ कर दिया और आज़ाद भी कर दिया (بحرالدموع ص 202 )

विसाल व मदफन: आप رحمۃ اللہ علیہ  का विसाल 15 रजब 148 हिजरी को यानी 68 साल की उम्र में हुआ
और आप अपने दादा इमाम ज़ैनुल आबेदीन और अपने पिता इमाम बाक़र رحمۃ اللہ علیھا  की क़ब्रों के पास  जन्नतुल बक़िय में दफन हुए,

ماہنامہ فیضان مدینہ ص 42 شمارہ اپریل 2017

मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami















Monday, April 10, 2017

ہر زماں جویم رضائے محی الدین





ایں ہمہ نعمت کہ دیدم بے بہا
از عنایت غوث اعظــــم رہنما

غوث اعظم قطب عالم محی الدین
ہر زماں جویم  رضائے  محی الدین

محی الدین عالی معــــــلّٰے با صفا
کس ندارد مـثــــــــــل او از اصفیا

اصفیا از وصف او دیـــــــــوانہ اند
کاملاں از درکِ  او بیـــــــــگانہ اند

ہاں اگر جوئی شراب از وصل یار
باش دامنگیر قطب شہســـــــوار

قطب ربانی مــــــحقق بادشـــــــاہ
دیگراں ہستند لشــــکر یا سپـــــاہ

شد بہـــــادر از عنایت محی الدیں
محی الدیں دیدم بطف محی الدیں

نــــــور حق روشن منـــــــور بر جبیں
خود بفرمودند خوش بیں محی الدیں

از عنایت شاں شدم  با  حق قریں
لطف یزداں شد طفیل محی الدیں

شک نیاری اند ایں اسرار من
کرد واصل با خدایم محی الدیں

زود گردد با خدائے خود قریں
آنکہ باش در ہںوائے محی الدیں

نور شاں از عرش و کرسی بر تر است
بر  تر  است آنکہ بیند محـــــــی الدیں

ہر چہ ہست از عرش تا تحت الفرش
ہست در حـــــکمِ رضائے محی الدیں

مجمع الاسرار (اردو). ص3

نیـــــاز احمـــــد نظامی

चन्द कुफ्रिया कलेमात (बाते)

गरीबी, बिमारी, परिशानी, और मौत के मौकों पर कुछ लोग  ग़म या जज़बात में आकर  कभी कभी نَعُوذُ بِااللہ कुफ्रिया कलेमात(बातें) बक देते हैं।
याद रखिए! बेगैर शरई़ वजह के होश और हवास में खुला कुफ्र बकने वाला और माना (मतलब) समझने के बा-वजूद हां में हा मिलाने वाला बल्कि उस की हेमायत में सर हिलाने वाला भी काफिर हो जाता है,

मुश्किल घङी में बकी जाने वाली कुफ्रिया बातों की मिस़ालें
1- एतराज़ के तौर पे कहना: वह शख़्स लोगों के साथ कुछ भी करे अल्लाह की तरफ से उस को पूरी आज़ादी है।

2- अल्लाह ने हमेशा मेरे दुश्मनों का साथ दिया।

3- एतराज़ के तौर पे यूं कहना: कभी हम फुलां के साथ थोङा कुछ कर लें अल्लाह हमें  फौरन पकङ लेता है।

4- हमेशा सब कुछ अल्लाह पर छोङ कर भी देख लिया कुछ नहीं होता।

5- अल्लाह ने मेरी क़िस्मत अभी तक तो अच्छी नहीं बनाई।

6- एक शख़्स ने हमारी नाक में दम कर रखा है, मज़े की बात यह है ति अल्लाह भी ऐसों के साथ होता है।

7- जिस शख़्स ने  मुसीबतें पहुंचने पर कहा: ऐ अल्लाह! तूने माल ले लिया,फुलां चीज़ लेली, अब क्या करेगा? या अब क्या चाहिए? या अब क्या बाक़ी रह गया? यह सब बातें कुफ्र हैं।
8- जो कहे: अल्लाह ने मेरी बिमारी और बेटे की मुशक़्क़त के बावजूद मुझे अ़ज़ाब दिया तो उस ने मुझपर ज़ुल्म किया।

9- अल्लाह ने हमेशा बुरे लोगो़ का साथ दिया।

10- अल्लाह ने मजबूरों को और परिशान किया है






ग़रीबी की वजह से बकी जाने वाली कुफ्रिया बातों का मिसालें

11- जो कहे: ''ऐ अल्लाह! मुझे रिज़्क़ दे और मुझपर तंगदस्ती (गुरबत-ग़रीबी) डालकर ज़ुल्म ना कर। (فتاوی قاضی خاں )

12- यह कहना: कि अगर वाक़ई अल्लाह होता तो ग़रीबों का साथ देता कर्ज़दारों का सहारा देता, कुफ्र है।


ऐतेराज़ की सूरत में बकी जाने वाली कुफ्रिया बातें

13- मुझे नहीं मालूम कि अल्लाह ने जब मुझे दुनिया में कुछ नही दिया तो मुझे पैदा ही क्यूं किया।

14- किसी गरीब ने अपनी गरीबी देख कर यह कहा: या अल्लाह! फुलां तेरा बन्दा है  उसे तूने कितनी नेमतें दे रखी हैं और एक मैं भी तेरा बन्दा हूं मुझे  कितना रंज व तकलीफ देता है। आख़िर कैसा इन्साफ है?

15- कहते हैं: अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है , मैं कहता हूं यह सब बकवास है।

16- जिन लोगों को मैं प्यार करता हूं वह परिशानी में रहते हैं और जो मेरे दुश्मन होते हैं अल्लाह उन को बहुत ख़ुश्हाल रखता है।

17- काफिरों और मालदारों को राहतें और गरीबों नादारों को आफतें, बस जी अल्लाह के घर का तो निज़ाम ही उल्टा है।

18- ऐ मेरे रब! तू मुझ पर क्यूं ज़ुल्म करता है? हालांकि मैं ने तो कोई गुनाह किया ही नहीं,
यह तमाम बातें कुफ्रिया हैं।

मौत के मौक़ों पर बकी जाने वैली कुफ्रिया बातें

19- किसी की मौत पर किसी ने कहा: अल्लाह को ऐसा नहीं करना चाहिए था, यह कुफ्र है

20- किसी बच्चे की मौत पर किसी ने कहा: अल्लाह को इस की हाजत (ज़रूरत) रही होगी इसी लिए बुला लिया।

21- किसी की मौत पर आम तौर पे बक देते हैं कि अल्लाह को इसकी ना जाने क्या ज़रूरत पङ गई जो जल्दी बुला लिया,या यह कहते हैं अल्लाह को भी नेक लोगों की ज़रूरत पङती है इस लिए जल्द उठा लेता है (यह सुन कर इस का मतलब समझने के बावजूद हां में हां मिलाने वाला काफिर है)

22- किसी की मौत पर किसी ने कहा: या अल्लाह तुझे इस के छोटे छोटे बच्चों पर भी तरस नही आया?।

23- इस की भरी जवानी पर ही रहम किया होता अगर लेना ही था तो फलां बुढ्ढे या बुढिया को ले लेता।

24- या अल्लाह! आख़िर इस की ऐसी क्या ज़रूरत पङ गई कि अभी से वापस बुला लिया।

यह तमाम की तमाम बातें कुफ्र हैं, याद रहे कुफ्रिया कलेमात बकने से या हां में हां मिलाने से या सिर्फ ताइद के लिए सर हिलाने से इन्सान काफिर हो जाता है ,उस का निकाह टूट जाता है, ज़िन्दगी भर के नेक अमल बरबाद हो जाते हैं, अगर हज कर लिया था तो वह भी गया,
अल्लाह हमें कुफ्रिया कलेमात से बचने की तौफिक़ दे आमीन
(خلاصہ 28کفریہ کلمات)



मुरत्तिब, तर्जुमा, व तस्हील
नेयाज़ अहमद निज़ामी

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گناہںوں کا انجام اور توبہ کی فضیلت (اردو) pdf




مصلح قوم و ملت، خطیب نوجوانان،حضرت مولانا امجد علی نظامی صاحب قبلہ  کی ایک مایا ناز تصنیف  بنام

  ,,گناہںوں کا انجام اور توبہ کی فضیلت" 

عام فہم زبان میں عوام الناس کی اصلاح کے لیئے منظر عام پر آ گئی ہیے جس میں آپ پڑھ سکینگے

١   توبہ کی فضیلت

٢   غیبت کی مذمت

٣   ظلم کی مذمت
 
    ٤   حسد کی مذمت
 
 ٥   ر شوت اور اس کا انجام
 
ہر موضوع اپنے میں علم کا خزینہ لیئے ہںوئے،
قرآن پھر حدیث اس کے بعد سبق آموز اقوال، نصیحت آموز حکایت کا سنگم ملاحظہ ہںو
 



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Friday, March 31, 2017

हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह की करामात

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह वह रूहानी और मजहबी पेशवा थे जिनका अदना सा इशारा तकदीर बदलने के लिए काफी था। भला इस मक्बूल बारगााह की करामतों का भी शुमार (गिनती) हो सकता है ? आपकी जिन्दगी का एक-एक वाकिया करामत है। आपने जो करना चाहा, कर दिया और जो इरादा किया हो गया, आपकी दुआ बेरोक अर्श तक पहुंचती थी। इधर मुंह से निकली उधर कुबूलियत का दर्जा हासिल हुआ। आपसे बेशुमार करामतें जाहिर हुई, जिनमें से कुछ यहां लिखी जा रही है।

(1)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि मैं जब तक हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाह की खिदमत में रहा, कभी आपको नाराज होते नही देखा। एक रोज ख्वाजा साहब र0 अ0 के साथ मैं और एक दूसरा खादिम शेख अली रहमतुल्लाह बाहर जा रहे थे कि अचानक रास्ते में एक शख्स शेख अली रहमतुल्लाह का दामन पकड़ कर बुरा भला कहने लगा। हजरत पीर व मुर्शिद ने उस शख्स से झगड़ा करने की वजह मालूम की। उस ने जवाब दिया यह मेरा कर्जदार है और कर्ज अदा नही करता। 
आपने फरमाया-‘ इसे छोड़ दो तुम्हारा कर्जा अदा कर देगा।‘ लेकिन वह शख्स नही माना उस पर हजरत पीर व मुर्शिद को गुस्सा आ गया और तुरन्त अपनी चादर मुबारक उतारकर जमीन पर डाल दी और फरमाया-‘ जिस कदर तेरा कर्जा है इस चादर से ले ले मगर खबरदार ज्यादा लेने की कोशिश न करना। उस शख्य ने अपने कर्ज से कुछ ज्यादा ले लिया, उसी वक्त उसका हाथ सूख गया। वह देखकर चिल्लाने लगा और मांफी मांगी। आपने उसे माफ कर दिया, उसका हाथ फौरन दुरूस्त हो गया और वह हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया।  

(2)

कहते है कि एक बार जब कि आप अपने मुरीदों के साथ सफर कर रहे थे, आप का गुजर एक जंगल से हुआ। वहां आतिश परस्तों (आग पूजने वालों) का एक गिरोह आग की पूजा कर रहा था। उन की रियाजत इस कदर बढ़ी हुई थी कि छः छः माह तक बगैर खाए-पिए रह जाते थे।
अक्सर उन की सख्त रियाजत से लोग इस कदर प्रभावित होते कि उन से अकीदत रखने लगते। उन की इस हरकत से लोग गुमराह होते जाते थे। ख्वाजा गरीब नवाज साहब रहमतुल्लाह ने जब उनकी यह हालत देखी तो उन से पूछा-‘ 
ऐ गुमराहो!  रब को छोड़कर आग की पूजा क्यो करते हो ?,
 उन्होने अर्ज किया-‘ आग  हम इसलिए पूजते है कि हमें दोजख में तक्लीफ न पहुंचाए।‘ 
आप ने फरमाया-‘ यह तरीका दोजख से छुटकारे का नही है। जब तक खुदा की इबादत नही करोगे कभी आग से निजात न पाओगे। तुम लोग इतने दिनों से आग को पूज रहे हो जरा इसको हाथ में लेकर देखो तो मालूम होगा कि आग पूजने का फायदा क्या है ?‘‘
उन्होनें जवाब दिया कि बेशक यह हम को जला देगी। क्यों कि आग का काम ही जला देने का है। मगर हम को यह कैसे यकीन हो कि खुदा की इबादत करने वालों को आग न जला सकेगी। अगर आप आग को हाथ में उठा लें तो हमको विश्वास हो जाएगा। आपने जोश में आकर फरमाया-‘ मुझको तो क्या, खुदा के बन्दे मुईनुद्दीन की जूतियों को भी आग नही जला सकती।‘ आप ने उसी दम अपनी जूतियां उस आग के अलाव में डालते हुए आग की तरफ इशारा कर के फरमाया-‘ऐ आग अगर ये जूतियां खुदा के किसी मक्बूल बन्दे की है तो उसको जरा भी आंच न आए।‘ जूतियों का आग में पहुंचना था कि तुरन्त आग बुझ गयी और जूतियां सही सलामत निकल आई।‘ इस करामत को देखकर आग पूजने वालों ने कलिमा पढ़ लिया और दिल से मुसलमान हो गये।

(3)

कहते है कि एक बार आप एक घने जगल से गुजर रहे थे । वहां आपका सामना कुछ कुफ्फार लुटेरों से हो गया जिनका काम यह था कि मुसाफिरों को लूट लेते थे और अगर कोई मुसलमान मुसाफिर होता तो सामान लूटने के अलावा उसे कत्ल भी कर देते थे। जब वे डाकू बुरी नियत से आपकी तरफ आए तो अजीब तमाशा हुआ। जिस हथियारबन्द (सशस्त्र) गिरोह ने सैकड़ो हजारों मुसाफिरों को बिला वजह खाक व खून में तड़पाया था, आपकी एक ही निगाह से थरथरा उठा और कदमों में गिरकर बड़ी आजिजी से अर्ज किया-‘ हम आपके गुलाम है और नजरे करम के उम्मीदवार है।‘ जब वह अपने बुरे कामों से तौबा करने लगे तो आपने उनको कलिमा पड़ा कर इस्लाम में दाखिल कर लिया और उनको नसीहत फरमायी कि कभी किसी के माल को अपने लिए हलाल न समझें।

(4)

कहते है कि सैर व सफर के दिनों में एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह और शेख शहाबुद्दीन सहरवरदी रहमतुल्लाह एक जगह बैठे हुए किसी मसअले पर बातचीत कर रहे थे कि सामने से एक कम उम्र लड़का तीर कमान हाथ में लिए हुए गुजरा। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने उसे देखकर फरमाया यह लड़का देहली का बादशाह होगा।‘
आपकी यह पेशगोई (भविष्य वाणी) इस तरह पूरी हुई कि वही लड़का सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश के नाम से देहली के तख्त पर बैठा और छब्बीस साल तक बउ़े ठाठ से हुकुमत की।

(5)

एक रोज एक औरत रोती-चिल्लाती आपकी खिदमत में हाजिर हुई। बदहवासी व बेताबी में आपसे अर्ज करने लगी-‘ हुजूर ! शहर के हाकिम ने मेरे बेअे को बेकुसुर कत्ल कर दिया है, खुदा के लिए आप मेरी मदद कीजिए
उस औरत की दर्द भरी फरियाद से आपके अन्दर रहम व हमदर्दी पैदा हो गयी। आप तुरन्त असा-ए मुबारक हाथ में लेकर उठे और उस औरत के साथ रवाना हो गये। बहुत से खुद्दाम और हाजरीन भी आपके साथ होगए। जब आप लड़के की बे-जान लाश के पास पहुंचे तो बहुत देर तक चुप रहे और खड़े-खड़े उसी तरफ तकते रहे फिर आगे बढ़ कर और उसके जिस्म पर हाथ रखकर फरमाया-‘ ऐ मक्तूल! अगर तू बेगुनाह मारा गया है तो अल्लाह के हुक्म से जिन्दा हो जा ।‘ अभी आपकी जबाने मुबारक से ये शब्द निकले ही थे कि मक्तूल (मुर्दा) जिन्दा हो गया। आपने उसी वक्त फरमाया-‘ बन्दे को अल्लाह तआला से इस कदर निस्बत (सम्बन्ध) पैदा करनी चाहिए कि जो कुछ खुदा-ए- तआला की बारगाह में अर्ज करे कुबुल हो जाए। अगर इतना भी न हो तो फकीर नही है।

(6)

एक शख्स कत्ल करने की नीयत से आपके पास आया। आपको इसका इरादा मालूम हो गया। उस शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर बडे अकीदत का इज्हार (प्रदर्शन) किया। आपने उससे फरमाया-‘ मैं मौजूद हूं तुम जिस नीयत से मेरे पास आए हो उसे पूरा करो।‘ यह सुनते ही वह शख्स कांप उठा और बहुत आजिजी से कहने लगा-‘हुजूर! मेरी जाती ख्वाहीश यह नही थी, बल्कि फलां शख्स ने मुझे लालच देकर मजबूर किया कि मैं इस नामुनासिब हरकत को करूं।‘ फिर उसने अपनी बगल से छुरी निकाली और आपके सामने रखते हुए अर्ज किया-‘आप मुझे इसकी सजा दीजिए।‘ आपने फरमाया-‘ अल्लाह के बन्दों का मक्सद बदला लेना नही जा मैंने तुझे माफ किया।‘ उस शख्स ने उस वक्त आपके कदमों पर गिरकर तौबा की और ईमान लाकर मुरीद हो गया।

(7)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि जिस जमाने में मैं ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में रहता था, एक बार हम ऐसे घने जंगल में पहुचे जहां कोई जानदार दिखाई न दिया। तीन दिन और तीन रात बराबर उसी उजाड़ जंगल में चलते रहे अन्त में मालूम हुआ कि उस उजाड़ जंगल के करीब ही एक पहाड़ है और उसी पहाड़ पर एक बुजुर्ग रहते हैं। जब हम उस पहाड़ के करीब पहंुचे तो पीर व मुर्शिद ने मुझे अपने पास बुलाया और मुसल्ले के नीचे हाथ डालकर दो ताजा और गर्म रोटियां निकाल कर दी और फरमाया-‘ पहाड़ के अन्दर एक बुजुर्ग है ये रोटियां उनको दे आओं।‘ मैं रोटियां लेकर उनकी खिदमत में गया और सलाम अर्ज करके पेश कर दी उन्होने एक रोटी तो अपने इफ्तार के लिए रख ली और एक रोटी मुझे दे दी। अपने मुसल्ले के नीचे से चार खजूरें निकालकर मुझे देते हुए फरमाया-‘ यह शेख मुईनुद्दीन को पहुचा दो। जब मैनं आकर खजूरें ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में पेश की तो आप बेहद खुश हुए।

(8)

कहते है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह के कियामे अजमेर के जमाने में जो लोग अजमेर और उसके आस-पास से हज के लिए तशरीफ ले जाते थे वह वापस आकर यकीनी तौर पर बयान करते थे कि हमने सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाह को खाना-ए-काबा का तवाफ करते देखा है हालांकि अजमेर शरीफ में आने के बाद आपको फिर कभी हज करने का इतिफाक नही हुआ।

(9)

एक बार हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह देहली के किले में बादशाह के साथ बात करने में मसरूफ थे और सल्तनत के दूसरे ओहदेदार भी साथ थे कि इतने में एक बदकार औरत हाजिर हुई और बादशाह से फरियाद करने लगी। उसने अर्ज किया कि हुजूर मेरा निकाह करा दें। मै सख्त अजाब में मुब्तिला हूं। बादशाह ने पूछा कि किसके साथ निकाह करेगी और किस अजाब में घिरी है? वह कहने लगी कि यह साहब जो आपके हाथ में हाथ डाले कुतुब साहब बने घूम रहे हैं उन्होने मेरे साथ (नउजुबिल्लाह) हराम कारी की है जिससे मैं हामिला (गर्भवती) हो गई हूं। यह सुनकर बादशाह और हाजिरीन को बहुत हैरत हुई और सब ने शर्म से गर्दने झुका ली। उधर कुतुब साहब के माथे पर शर्मिन्दगी और हैरत से पसीना आ गया। आपको उस वक्त कुछ न सूझा और दिल ही दिल में अजमेर की तरफ रूख करके ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह को मदद के लिए याद किया। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह ने जैसे ही अपने मुरीद के दिल से खामोश चीख सुनी लब्बैक (हाजिर हूं) कहते हुए मदद के लिए फौरन आ गये। सब ने देखा कि सामने से हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह तशरीफ ला रहे है।
आपने कुतुब साहब रहमतुल्लाह से पूछा- मुझे क्यों याद किया है?‘ कुतुब साहब मुंह से तो कुछ न बोल सके लेकिन आंखो से आंसू जारी हो गये।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने इस बदकार औरत की तरफ रूख करके गुस्से से इर्शाद फरमाया-‘ ऐ गर्भ में रहने वाले बच्चे ! तेरी मां कुतुब साहब पर तेरे बाप होने का इल्जाम लगाती है, तू सच-सच बता।
उस औरत के पेट से इतनी साफ और तेज आवाज आई कि मौजूद सभी लोगों ने साफ सुनी। बच्चे ने कहा-‘हुजूर! इसका बयान बिल्कुल गलत है और यह और बड़ी हराम कार और झूठी है। कुतुब साहब के बदख्वाहों ने इसे सिखा कर भेजा है ताकि कुतुब साहब की इज्जत लोगों की नजर से गिर जाये।‘ यह बयान सुनकर मौजूद लोगों को बहुत हैरत हुई। उस औरत ने अपने झूठ बेालने और इल्जाम लगाने का इकरार किया।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  ने फरमाया-‘इज्जत अल्लाह के हाथ में है। और वापस अपनी जगह पर आ गये। हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह  के अलावा सब ही सरकार गरीब नवाज के तशरीफ लाने और गायब होने पर बहुत ज्यादा हैरत में थे।

(10)

कहते है कि एक रोज आपका एक मुरीद खिदमत में हाजिर हुआ। उस वक्त आप इबादत में थे। जब आप इबादत कर चुके तो उसकी तरफ ध्यान दिया। उसने अर्ज किया-‘ हुजूर! मुझे हाकिमे शहर ने  बिना किसी कुसूर के शहर बदर होने का हुक्म दिया है। मै बहुत परेशान हु।‘ आपने कुछ देर ध्यान लगाया और फरमाया-‘ जाओ, उसको सजा मिल गयी।‘ वह मुरीद जब शहर में वापस आया तो खबर मशहूर हो रही थी कि हाकिमे शहर घोड़े से गिरकर मर गया।

(11)

एक रोज ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  अना सागर के करीब बैठे हुए थे। उधर से एक चरवाहा गाय के कुछ बच्चों को चराता हुआ निकला। आपने फरमाया-‘ मुझे थोड़ा दूध पिला दे।‘ उसने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह  के फरमान को मजाक समझा और अर्ज किया-‘बाबा! यह तो अभी बच्चे है, इनमें दूध कहां ?‘ आपने मुस्कुराकर एक बछिया की तरफ इशारा किया और फरमाया-‘ भाई इसका दूध पियूंगा, जा दूह ला।‘ वह हंसने लगा। आपने दोबारा इर्शाद फरमाया-‘ बरतन लेकर जा तो सही। वह हैरान होकर बछिया के पास गया तो क्या देखता हे कि बछिया के थन पहले तो बराय नाम थे और अब उसके थनों में काफी दूध भरा हुआ है। अतः उसने कई बरतन भर दूध निकाला जिससे चालीस आदमियों ने पेट भर कर पिया। यह देखकर वह चरवाहा कदमों में गिर पड़ और आपका गुलाम हो गया।

(12)

एक रोज हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अकीदत मन्दों में बैठे हुए वअज व नसीहत फरमा रहे थे कि आपकी नजर दायी तरफ पड़ी आप तुरन्त ताजीम (सम्मान) के लिए खड़े हो गये। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा कि जब भी दायी तरफ नजर जाती तो आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते। जब वअज खत्म हुआ और लोग चले गये तो आपके खास खादिम ने अर्ज किया-‘ हुजूर आज यह क्या हालत थी कि जब भी आपको नजर दायी तरफ पड़ती आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते थे।‘ आपने फरमाया-‘ उसी जानिब मेरे पीर व मुर्शिद का मजार है और जब मेरी निगाह उस तरफ जाती तो रोजा-ए- अक्दा नजर आता, बस सम्मान के लिए खड़ा हो जाया करता था।

(13)

बुजुर्गो की मज्लिस में तय हुआ कि सब लोग कुछ करामात दिखाएं बस तुरन्त हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह मुसलले के नीचे हाथ ले गये और एक मुट्ठी सोने के टुकड़े निकालकर एक दुरवेश को जो वहां हाजिर था, दिया और दुरवेशों के लिए हलवा मंगवाने की फरमाइश की। शेख अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह ने एक लकड़ी पर हाथ मारा तो वह सोने की हो गयी। ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह के कहने पर हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने कश्फ (ध्यान मग्न) से मालूम किया कि इन्ही बुजुर्गो में एक दुरवेश बहुत भूखे है और शर्म की वजह से कुछ भी न कह सकते थे, बस आपने मुसल्ले के नीचे हाथ डाला और चार जौ की रोटियां निकालकर उस दुरवेश के सामने रख दी
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