neyaz ahmad nizami

Friday, November 2, 2018

शराब और शराबी: लेखक" नेयाज़ अहमद निज़ामी



नशा  पिला के  गिराना तो सब को आता है 
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
                                  अल्लामा इक़बाल

किसी भी तरह का नशा जिस तरह घरेलू जीवन के लिए अभिशाप है, उसी तरह सामाजिक  जीवन को भी श्रापित कर देता है, इस लत से ना केवल एक इन्सान की आर्थिक, व्यवहारिक, व्यापारिक, आदि स्थिती खराब होती है बल्कि घर गृहस्थी पर भी इस का असर पङता दिखाई देता है, जब नशे की लत अपनी चर्म सीमा पर होती है तो उसे इस लत को पुर्ण करने के बदले हर क़ीमत देने को तैयार रहता है, यहां तक कि अपनी ज़मीन, जायदाद, धन, वगैरह के एलावा अपनी अर्धांगिनी,एंव बच्चों को भी लुटाने में हिचकिचाहट महसूस नही करता, जब इस में इतनी बुराईयां हैं तो आइए धार्मिक दृष्टीकोंङ से इस के सत्य असत्य होने में खोज करते हैं, ताकि हम इस बुरी लत से  जहां तक हो सके बचें। [नेयाज़ अहमद]

अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:

يَآ اَيُّـهَا الَّـذِيْنَ اٰمَنُـوٓا اِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِـرُ وَالْاَنْصَابُ وَالْاَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوْهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ (90)
اِنَّمَا يُرِيْدُ الشَّيْطَانُ اَنْ يُّوْقِــعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَآءَ فِى الْخَمْرِ وَالْمَيْسِـرِ وَيَصُدَّكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللّـٰهِ وَعَنِ الصَّلَاةِ ۖ فَهَلْ اَنْتُـمْ مُّنْتَـهُوْنَ (91)
وَاَطِيْعُوا اللّـٰهَ وَاَطِيْعُوا الرَّسُوْلَ وَاحْذَرُوْا ۚ فَاِنْ تَوَلَّيْتُـمْ فَاعْلَمُوٓا اَنَّمَا عَلٰى رَسُوْلِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِيْنُ (92
(سورہ مائدہ آیت نمبر 90-92)

तर्जुमा: ऐ इमान वालो! शराब और जुआ और बुत (मूर्ती) और तीरों से फाल निकालना यह सब नापाकी (अपवित्रता) हैं, शैतान के कामों मे से हैं, इन से बचो ताकि कामयाबी पाओ, शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुएं की वजह से तुम्हारे अन्दर दुश्मनी और बुग़्ज डाल दे और तुम को अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे तो क्या तुम हो उन से रुकने वाले,
और अताअत (पैरवी) करो अल्लाह की और रसूल की अताअत (पैरवी) करो और परहेज़ (बचो) करो और अगर तुम ने रूगर्दानी (फिरोगे) की तो जान लो कि हमारे रसूल पर सिर्फ साफ तौर पहुंचा देना है(हमारे अहकाम को),
शराब पीना हराम है और इस की वजह से बहुत से गुनाह (पाप) जन्म लेते हैं, अत: इसे पापों और बे हयाईयों की अस्ल (जङ) कहा जाए तो ठीक है,
(بہار شریعت جلد 2 حصہ 9 صفحہ 384)
शराब जो अन गिनत जिस्मानी रूहानी बिमारियों की वजह है भाई चारा और मआशी (आर्थिक) खराबियों की जङ और फितना फसाद की निशानी है इस्लाम के पवित्र कानून में इस की गुंजाइश कैसे हो सकती है  अल्लाह ने इसे सिरे से हराम कर दिया मगर हराम होने का आदेश आहिस्ता  आहिस्ता दऔर भाग भाग कर के दिया ताकि लोगों को इस की पैरवी करना आसान हो जाए, चुनांचे सुरह बकरा में सिर्फ इतना कहा गया,
قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ (سوره البقره 219)
तर्जुमा: इन दोनो (जुआ,शराब) में बङा गुनाह (पाप) है, और लोगों के दुनियवी नफा भी, 

इस के कुछ दिन बाद यह आयत उतरी,
لَا تَقْرَبُوا الصَّلَاةَ وَأَنْتُمْ سُكٰرٰى (النساء آیت 43)
तर्जुमा: नशा की हालत में नमाज़ के पास ना जाओ,
भले शराब के हराम होने का विस्तार से इस में बयान (वर्ण) नही था मगर कई संजीदा तबियत के लोगों नें उसी वक्त ही से शराब छोङ दी थी।
(حاشیہ تفسیر ضیاءالقرآن جلد اول صفحہ 507 )

हदीसों में इस के पीने पर बहुत ही सख्ती से वईदें आई हैं ,कुछ हदीसें यहां लिखी जाती हैं

❶ हदीस-: होजूर ﷺ ने फरमाया (कहा) जो चिज़ ज्यादा मात्रा में नशा लाए, वह थोङी भी हराम (अवैध) है, (جامع الترمذی 1872 )

❷ हदीस-: सही मुस्लिम में जाबिर رضی اللّٰہ عنہ से मरवी कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया (कहा) हर नशा वाली चीज़ हराम है।(صحیح مسلم کتاب الاشربہ)

❸ हदीस-: तारिक़ बिन सोवैद رضی اللّٰہ عنہ ने शराब के बारे में सवाल किया होजूर ﷺ ने मना किया, उन्होने कहा हम तो उसे दवा के लिए बनाते हैं आप ने कहा यह दवा नहीं यह तो खुद एक बिमारी है।
(صحیح مسلم کتاب الاشربہ)


عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ قَالَ : ( لَعَنَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي الْخَمْرِ عَشْرَةً عَاصِرَهَا وَمُعْتَصِرَهَا وَشَارِبَهَا وَحَامِلَهَا وَالْمَحْمُولَةُ إِلَيْهِ وَسَاقِيَهَا وَبَائِعَهَا وَآكِلَ ثَمَنِهَا وَالْمُشْتَرِي لَهَا وَالْمُشْتَرَاةُ لَهُ ).
❹ हदीस-: अनस बिन मालिक से मरवी कि जो शख्स (आदमी) शराब के लिए शीरा निकाले और जो निकलवाए और जो पिए और जो उठा कर लाए और जिस के पास लाई जाए और जो पिलाए और जो बेचे और जो इस के दाम खाए और जो खरीदे और जिस के लिए खरीदी जाए इन सब पर रसूल ﷺ ने लानत फरमाई।
(فتاوی رضویہ جلددھم صفحہ 47)

❺ हदीस-: रसूल ﷺ ने फरमाया कि शराब से बचो कि वह हर बुराई की कुंजी (चाबी) है।
(المستدرک الحاکم)

::हुक्म::
मुसलमान बालिग अक्लमंद बे गैर मजबूरी शराब की एक बूंद भी पिए तो उस पर हद (सज़ा) है, 
(بہار شریعت جلد 2 حصہ 9 صفحہ389)

उस की सज़ा में 80 कोङे मारे जाएंगे गुलाम को 40 और बदन के अलग अलग हिस्से में मारेंगे,
(بہار شریعت جلد 2 حصہ 9 صفحہ 392)

शराब हराम और पेशाब की तरह नापाक (अपवित्र) और उस का पीना गुनाह-ए-कबीरा (बङा पाप) है पीने वाला फासिक़ फाजिर नापाक बेबाक (निडर) मरदूद है 
सभी नशा लाने वाली चीज़ हराम है:
जितनी चिजे़ं बारीक और सेयाल होकर नशा लाती हैं चाहे वह महुवा से बनाई जाएं या गुङ (भेली) या अनाज या लकङी या किसी बला से वह सब शराब हैं,उन का हर कतरा (बूंद)हराम भी और पेशाब की तरह नजिस व  नापाक (अपवित्र) है
 (فتاوی رضویہ جلد دھم ص 85)

[।।समाप्त।।]

मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami

Monday, October 8, 2018

सूफी सय्यद फख़रूद्दीनرحمةاللّٰه عليه परसौनी बाज़ार : नेयाज़ अहमद निज़ामी,



किसी भी वस्तु का विस्तार, उस की सत्य / असत्य का परिचय होता है, बिना इस के उस का वजूद सम्भव नहीं, जब हम किसी का सम्पूर्ण रूप से परिचय पा लेते हैं तो उस की हैसियत का आंकङा लगाने मे आसानी हो जाती है,
हमारे जिला महाराजगंज यू.पी. के एक गांव, परसौनी बाज़ार में एक महान हस्ती अपनी क़ब्र में विश्राम कर रहे हैं, जिन को उन के मानने (अनुयाईय) वाले फख़रूल औलिया के नाम से जानते हैं,
जिन का उर्स इस्लामी महीना सफर-उल-मुज़फ्फर की 21 तारीख को परसौनी बाज़ार में मनाया जाता है, उन के जीवन के  संक्षिप्त हालात निम्न हैं।(نیاز احمد نظامی)

::वेलादत (जन्म दिन)::
27रजब-उल-मोरज्जब, 1262ھ को सुब्ह सादिक़ के समय ख़लीलपूर उर्फ मियां का पुरवा, अल्लाहाबाद शहर से पश्चिम गंगा के दूसरे पार आप का जन्म हुआ,
पिता श्री मखदूम सुफी सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर सोहरवर्दी अपने कमरे में क़ुरआन पढने  में व्यस्त थे, खबर दी गई , आप तशीरफ लाए, अपने पूत्र को गोद में लिया, दाएं कान में अज़ान और बाएं कान मे तकबीर कही, फिर शहादत की उंगली (अनामिका,अंगूठा के बगल वाली उंगली) के जरिए अपना थूक साहबजादे (पूत्र) के मुंह में डाला,

::नामकरण::
और उसी समय “मुहम्मद अहमद„ नाम रखा और इसी नाम पर सातवें दिन अक़ीक़ा भी किया, और बाद में उर्फी नाम “फखरूद्दीन„ रखा और दुनिया इन्हे  “फख्र-उल-औलिया/क़ूतुब-उल-औलिया„ के नाम से जानती है।

::शिक्षा दिक्षा::
पिता श्री सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर ने अपने पुत्र फखरूद्दीन की शिक्षा का शुभारंभ कराया, कायदा बगदादी, अम्मा पारा, नाज़रा-ए-कुरआन, और फारसी की शुरूआती किताबों के बाद  नहो(अरबी ग्रामर) सर्फ, फिक्ह, और ओसूल-ए-फिक्ह, की बुनियादी किताबें मिश्कात, जलालैन, हेदाया, शरह अकायद, फल्सफा, हिकमत, मंतिक़, आदि की शिक्षा पूरी कराई, इस के बाद फख्र-उल-औलिया दुनियावी पढाई की तरफ ध्यान दिए, मकामी स्कूल में एडमीसन  लिया मीडिल क्लास तक पढाई करते रहे, क्लास में फस्ट पोज़ीशन पर रहे, अच्छे नम्बर से इम्तेहान में पास हुए और 22 वर्ष की आयू में धार्मिक और दुनियावी पढाइ पूरी कर ली।

::बैअ़त (मूरीदी) व खेलाफत::
आप के पिता सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर ने आप को सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी की बारगाह में मिन्डारा शरीफ जिला ईलाहाबाद भेज दिया,
सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी एक पहुंची हुई हस्ती और बा करामत पीर थे फखरुल औलिया उन के पास जाकर अलौकिक शक्तियों की प्राप्ती के लिए जप तप कर  के उसे हासिल कीं और कई साल तक उन से शिक्षा लेते रहे,जब आप जाहिरी बातीनी ज्ञान प्राप्त कर लिए  तो सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी ने कादरी  सिलसिला में बैअत (गुरमुख) ली और इस की इजाज़त भी दी,

::शादी मुबारक::
मिन्डारा शरीफ मे रहने के जमाना ही में आप काफी मशहूर हो गए थे,इसी वजह से आप की शादी का रिश्ता दूर दूर से आने लगा, मगर पीर के हुक्म के मुताबिक सन 1294ھ को पिता ने फखर-उल-औलिया के लिए सय्यद शाह “सज्जाद अली„ की लड़की से रिश्ता मंजूर कर लिया और  निकाह हो गया और सय्यद शाह सुल्तान हसन क़ादरी علیہ الرحمہ ने निकाह पढाई।

::औलादें::
आप की तीन औलादें हुईं, तीनों लड़के, लड़कियां एक भी नहीं,
(1) हजरत शैख-ए-क़ादरियत अ़ल्लामा शाह सूफी सय्यद “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ क़ादरी علیہ الرحمہ मज़ार पाक शहडोल MP

(2) हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वसीयुद्दन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ नैनीचक अल्लाहाबाद

(3) हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वलीउद्दीन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ मज़ार पाक जहांगीर नगर, फतहपूर (यूपी)

हजरत  अ़ल्लामा सूफी सय्यद “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ क़ादरी علیہ الرحمہ के लड़के हज़रत सूफी सय्यद शाह अब्द-उर-रब साहब علیہ الرحمہ हैं, जो कालरी (कोईलरी)में सरकारी सर्विस कर रहे थे फरवरी 2013 मे रिटायर हुए,  इस के अलावा खानक़ाहे क़ादरिया, फखरिया (क़ादरी आस्ताना) के सज्जादा नशीन (उत्तराधिकारी) और दारुल उलूम क़ुद्दूसिया अहल-ए-सून्नत फखरुल उलूम परसौनी बाज़ार महाराजगंज (यूपी) के सरपरस्त (संगरक्षक) भी थे, जिन का इंतेक़ाल (देहांत) 5 मुहर्रम 1439 ھ मुताबिक़ 25 सितम्बर 2017 में हुआ,

हजरत मखदूम शाह सुफी सय्यद वसीयुद्दन अहमद क़ादरी علیہ الرحہ जिन के बारे में इन के पिता ने फरमाया था कि मेरा दुसरा बेटा हकीम सूफी होगा, इन के दो पुत्र हैं (1) सय्यद शाह वजीहुद्दीन उर्फ बन्दे मियां (2) सय्यद शाह मुहम्मद फोज़ैल साहब दोनो साहबज़ादे हयात से (जीवित) हैं और धर्म प्रचार प्रसार में व्यस्त हैं,

हजरत सुफी सय्यद वलीउद्दीन अहमद क़ादरी علیہ الرحمہ जिन के बारे में उन के पिता ने फरमाया कि यह आखरी शैख  होगा,
इन की दो शादी हुई, लगभग 30 साल की उम्र में पहली पत्नी सय्यदा आलिया जो बेटी हैं सय्यद मुज्तबा खलीलपूरी की का पैगाम आने पर हा कह दिया गया और निकाह कर दिया गया इन से दो औलादें हुईं एक लड़का और एक लड़की बाल अवस्था ही में दोनो का देहांत हो गया और आप की पत्नी भी इस दुनिया को अलविदा कह के बाकी रहने वाली दुनिया में चली गईं यानी इन का भी देहांत हो गया,पहली बीवी के इन्तेकाल के छ: सात वर्ष गुजर जाने के बाद घर वालों व कुछ लोगों के बार बार कहने के बाद मिनहाज पूर कोशाम्बी में आप का दुसरा निकाह हुआ,सय्यदा कनीज़ फातेमा मखदूम सय्यद मिनहाजुद्दीन हाजियुल हरमैन बिहारी के खानदान से थीं जो बहुत ही पाक सीफत परहेजगारी, वगैरह की मालकिन थीं,
दूसरी पत्नी सय्यदा कनीज़ फातेमा से छ: लड़के और 3 लड़कियां हुईं छ:में से 5 का बालावस्था ही में इन्तेकाल (देहांत) हो गया आखरी साहबजादे मखदूम शैख शोएब अहमद जो मश्हूर हैं सय्यद गुलाम ग़ौस़ मियां कादरी के नाम से हैं, जो आप के खलीफा और उत्तराधिकारी बने,
तीन लड़कियों के नाम यह हैं
(1) सय्यदा सितारा खातून
(2) सय्यदा नजमा खातून
(3) सय्यदा अंजुम खातून


::परसौनी बाज़ार में आगमन::
घरेलू  अवश्यकताओं को पूरा करने के बाद धर्म प्रचार की तरफ ध्यान केन्द्रित किया,
सुफी सय्यद शाह अब्द-उस-शकूर सोहरवर्दी के मूरीदीन (चेले) की अच्छी खासी संख्या बिहार बलिया के कुछ एलाक़ों में थी पहले आप ने वहां की यात्रा किया फिर बंगाल, अंडमान, तक गए वापसी में मखदूम-ए-बिहार के दरबार में हाज़री दी पटना आने के बाद मालूम हुआ कि बरेली शरीफ के बड़े हज़रत यहां आए हैं आप अल्लामा ज़फरुद्दीन बिहारी के पास गए वहीं सदरुश्शरिया और आला हज़रत رضی اللہ عنھما से मुलाक़ात की फिर कुछ दिनो तक उत्तर प्रदेश में टांडा के अलाक़ों में ठहरे धर्म प्रचार किया फिर नेपाल के सरहदी क्षेत्रों की तरफ ध्यान दिया और शाअ़बान 1338ھ को जुमा की नमाज पढने के लिए गोरखपूर की मस्जिद में हाज़िर हुए नमाज़ के बाद जप तप (औराद व वजीफा) में लीन हो गए, तभी परसौनी बाज़ार के कुछ लोग जैसे अब्दुल करीम उर्फ बंधू शैख, और अली एमाम, वगैरह नमाज़ के बाद मस्जिद के एक कोने में बैठे कुछ बाते कर रहे थे, उन लोगों की नज़र फख़रूल औलिया पर पड़ी इन को देख कर बहुत प्रभावित हुए  और फख़रूल औलिया के पास आकर बैठ गए,और उन्होने कहा होजूर हमारा एलाका बहुत ही पिछड़ा और जहालत का गढ है, इस्लाम बराए नाम है ,अगर हमारे तरफ ध्यान दें तो शायद आप की चर्णो की बरकत से कुछ सूधार बो जाए,
आप ने फरमाया: तुम मुझे जानते हो?
कहने लगे: जानते तो नहीं मगर नूरानी सूरत से पता चल रहा है कि इस्लाम के सच्चे प्रचारक हैं, गुस्ताखी मोआफ करें,
आप ने फरमाया: गुस्ताखी की कोई बात नहीं मेरा काम धर्म प्रचार है  अगर मेरी वहां जरूरत है तो फिर मुझे अपने साथ ले चलो,
उन लोगों ने फखरूल औलिया को अपने साथ परसौनी लाए और इन्ही लोगों के यहां रह कर दीन का प्रचार करना शूरू किया,लोगों नें दिल खोल कर आप की मदद की और हमेशा मदद कौ तत्पर रहे।

::शक्ल व सूरत::
कद: लम्बा,
जिस्म: भरा हुआ पुर गोश्त,
चोहरा: गोल,
रंग: सफेदी लिए हुए गोराई,
आंखें: गोल और जलाल से भरी हुई,
दाढी: काफी घनी सीने तक फैली हुई,
आखरी उम्र में सर और दाढी के बाल सफेद हो गए पैदल ज्यादा यात्रा करते, चलने में तेज़, लेहजा नरम, थकान का असर जाहिर नही होता यानी पता नही चलता,

::खाना पीना::
खिचड़ी, जौ या गेहुं की चपाती, कद्दू की सब्ज़ी साग, मुर्गा बकरा का गोश्त कभी क कभी कभी,

वस्त्र: कपड़े की दो पलिया टोपी, अमामा (पगड़ी), लुंगी, कभी कभी पजामा,चांदी की एक नग वाली अंगूठी, असा(लाठी), खद्दर की शिर्वानी, और खद्दर का कलिदार कुर्ता, खद्दर की बन्डी।

::वेसाल देहांत::
तब्लीगी दौरे  से वापसी के बाद अब्दुल करीम उर्फ बंधू शैख के घर रुके अब्दुर्रहीम (जिनकी बैलगाड़ी से सफर करते थे) को बुलाया और कहा:
अब तब्लीग (धर्म प्रचार) में नही जाना है तुम आज़ाद होकर अपने घरेलू काम में लग सकते हो, फिर अपनी मुरीदा (मुरीदनी) मरयम को बुलाया अपनी अंगूठी, अमामा (पगड़ी) दिया और फरमाया मेरा बड़ा लड़का “अब्द-उल-क़ुद्दूस„ जब परसौनी आए तो उसे दे देना उस के बाद नहाया कपड़ा बदले ज़ोहर की नमाज़ पढी, फिर चारपाई पर लेट गए मुरीदों से कहा कि ना मेरा बदन छूना, और ना ही चारपाई यहां से हटाना उस के बाद लीन होकर अल्लाह की याद में डूब गए।
लगातार कई दिनों तक उसी तरह धूप में बेगैर कुछ खाए पिए लीन रहे, इस से पहले भी ऐसे ही मोराकेबा में बैठते मगर इतना लम्बा नहीं, दो दिन गुजरने के बाद लोगों कू परिशानी बढी,धूप,शबनम(ओस), बारिश से बचने के लिए कुछ लोगों ने चारपाई उठा कर कमरा में कर दिया, और फखरूल औलिया को चारपाई पर लेटा दिया यह वाकेया “21 सफर 1348ھ मोताबिक 1928ई.„ का है,
लोगों ने देखा आंखें बंद है सांस रुकी है डॉक्टर बुलाए गए उन्होंन जांच किया और कहा जुबान का हिलना और और दिल की धड़कन अल्लाह का जिक्र करने की वजह से है वरना हकीकत में आप का इंतेकाल (देहांत) हो गया है, हालांकि बात यह नही थी,
यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई जवार के लोग उमंडते हुए सैलाब की तरह आने लगे, कुछ लोगों के जरिए, नहला धुला कर नमाज़-ए-जनाज़ा पढी गई गांव के उत्तर दिशा में दफन किया गया।
और एक अजीम हस्ती दुनिया की नजर से ओझल हो गई।

::करामत:
“किसी के वली होने के लिए करामत जरूरी नही ,
फखरूल औलिया करामत के बाब में फरमाते हैं कि तुम ने अकाबेरीन (बड़े विद्वान) की किताबों में नही पढा? एमाम ग़ेजाली के अकवाल(वाणी) नही सुना? कि आप फरमाते हैं, कि किसी को हवा में उड़ते देख कर यह ना समझो कि वह वली है जब तक कि उस के अन्दर अल्लाह का डर ना देख लो„ (سیرت فخرالاولیاء ص52)

करामत 1–: मुहम्मदपूर टांडा ज़िला फैज़ाबाद का वाक्या है एक बार फखरूल औलिया मुहम्मदपूर गांव में मौजूद थे इशा की नमाज़ के बाद आप मुरीदीन को ज्ञान की बातें बता रहे थे  उसी बीच जनाब लाल मुहम्मद साहब उर्फ कालू शैख (जिन के यहां फखरूल औलिया ठहरे हुए थे) कहा कि अमुक ने यह करिश्मा दिखाया अमुक ने यह करिश्मा दिखाया,कुतबुल औलिया को जोश आ गया क्या कमाल किया अगर मैं यह कहूं कि (इशारा करते हुए) यह पेड़ यहां से वहां चला जाए तो क्या कमाल किया कमाल तो यह है कि मुहम्मद की शरीयत पर डटा रहे ,आप का यह फरमाना था कि पेड़ उसी जगह जा लगा जिस जगह के लिए आप ने इशारा फरमाया था।

करामत 2–: हजरत कुतबुल औलिया के देहांत के एक साल बाद का वाकेया है, एक बार मास्टर अब्दुर्रशीद साहब बलियावी के पैर में बहुत बड़ा फोड़ा निकल आया था  डॉक्टरो नें जवाब दे दिया था उन के भाई अब्दुस्सुब्हान कल्कत्ता में कम्पाउंडर थे अब्दुर्रशीद अपने भाई अब्दुस्सुब्हान के साथ कलकत्ता ऑप्रेशन की नियत से गए घर से हस्पताल अपने भाई के साथ जा रहे थे अचानक सिन्दुरिया पट्टी के पश्चिम सड़क पर होजूर कुतबुल औलिया से मुलाकात हो गई आप ने फरमाया कि “कहां की तयारी है„ अब्दुर्रशीद ने बताया कि फोड़े का ऑप्रेशन कराने जा रहा हुं डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है, आप ने कह फोड़ा दिखाओ अब्दुर्रशीद ने फोड़े को दिखाया आप ने हाथ फेरा और कहा “कहां फोड़ा है„ फोड़ा फौरन (तुरंत) गायब हो गया।
(از منہ شیخ المشائخص 70)

 (और विस्तार से जानने के लिए किताब “सीरत-ए-फखरूल औलिया„ को पढें)

(ماخذ و مراجع:)
(سیرت فخرالاولیاء، اجالوں کا سفیر، از منہ شیخ المشائخ )

نوٹ: کہیں کہیں اصل کتاب کے جملوں کو چھوڑ کر صرف مفہوم جملہ لیا گیا ہیے تاکہ قاری کو سمجھنے میں آسانی ہںو٬ نیاز احمد نظامی)

तालीफ: नेयाज अहमद निज़ामी


Friday, September 28, 2018

नाप तौल इंसाफ से करो:मो0 ज़ीशान रज़ा मिस्बाही (हिन्दी:नेयाज़ अहमद



रब फरमाता है:
وَأَوْفُواْ الْكَيْلَ وَالْمِيزَانَ بِالْقِسْطِ لاَ نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلاَّ وُسْعَهَا, (سورہ الانعام ۱۵۲)
तरजुमा: और नाप और तौल इंसाफ के साथ पूरी करो,  हम किसी जान पर बोझ नहीं डालते मगर उस के मक़दूर (ताकत) भर।

दूसरी जगह अल्लाह फरमाता है:
وَأَوْفُوا الْكَيْلَ إِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ ۚ ذَٰلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا (سورہ الانعام ۳۵)
तरजुमा: और नापो तो पूरा नापो और बराबर तराजू से तौलो, यह बेहतर है और इस का परिणाम अच्छा।

सुरह रहमान में है:
وَوَضَعَ الْمِيزَانَ أَلَّا تَطْغَوْا فِي الْمِيزَانِ وَأَقِيمُوا الْوَزْنَ بِالْقِسْطِ وَلَا تُخْسِرُوا الْمِيزَانَ،(سورہ الرحمن ۷-۸-۹)
तरजुमा: यानी अल्लाह ने तराज़ू रखा ताकि उस से चीज़ों (वस्तुओं) की कमी ज़्यादती मालूम हो जाएं और लेन देन में इंसाफ बना रहे,और किसी का कोई हक़ ना मार सके,

सुरह हदीद में है:
وَأَنْزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ ۖ (الحدید 25)
तरजुमा: और उन के साथ केताब और अद्ल (इंसाफ) की तराज़ू उतारी कि लोग इंसाफ पर कायम (अटल) हों, 
इसयन कुरआनी आयतों से हमें मालूम होता है कि नाप तौल मे इंसाफ से काम लिया जाए और कमी से बचा जाए बल्कि बचना ज़रूरी है वरना हम अल्लाह की ना फरमानी की वजह से अज़ाब के ज़िम्मादार जैसा कि हम से अगली उम्मत पर हुआ था,

:: ना हक तौलने वालों पर अजाब ::
सूरह आअराफ में है:
وَإِلَى مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًا قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُواْ اللَّهَ مَا لَكُم مِّنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ قَدْ جَاءَتْكُم بَيِّنَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ فَأَوْفُواْ الْكَيْلَ وَالْمِيزَانَ وَلاَ تَبْخَسُواْ النَّاسَ أَشْيَاءَهُمْ وَلاَ تُفْسِدُواْ فِي الأَرْضِ بَعْدَ إِصْلاحِهَا ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ، (الاعراف 85)

तरजुमा:और मदयन की तरफ उन की बेरादरी से शोएब को भेजा (शोएब ने) कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह की इबादत (पूजा) करो, इस के सिवा तुम्हारा कोई माअबूद (पुज्यनीय) नही, बेशक तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से रोशन (खुली हुई) दलील आई (चमत्कार), तो नाप और तौल पूरी करो और लोगों की चीजे़ं घटा कर ना दो और जमीन में इंतेज़ाम के बाद फसाद ना फैलाओ यह तुम्हारा भला है अगर ईमान लाओ,

सूरह हूद में है:

وَاِلٰى مَدْيَنَ اَخَاهُـمْ شُعَيْبًا ۚ قَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللّـٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰـهٍ غَيْـرُهٝ ۖ وَلَا تَنْقُصُوا الْمِكْـيَالَ وَالْمِيْـزَانَ ۚ اِنِّـىٓ اَرَاكُمْ بِخَيْـرٍ وَّاِنِّـىٓ اَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ مُّحِيْطٍ (84) وَيَا قَوْمِ اَوْفُوا الْمِكْـيَالَ وَالْمِيْـزَانَ بِالْقِسْطِ ۖ وَلَا تَبْخَسُوا النَّاسَ اَشْيَآءَهُـمْ وَلَا تَعْثَوْا فِى الْاَرْضِ مُفْسِدِيْنَ (الھود 84-85)
तरजुमा: और मदयन की तरफ उन के हम कौम शोएब को (भेजा, शोएब ने) कहा ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह को पूजो उस के सिवा तुम्हारा कोई माअबूद (पुज्यनीय) नही और नाप और तौल में कमी ना करो बे शक मैं तुम्हे आसूदा हाल(कुशल मंगल) देखता हुं, और मुझे तुं पर घेर लेने वाले दिन के अजाब (दंड) का डर है, और ऐ मेरी क़ौम! नाप और तौल इंसाफ के साथ पूरी करो और लोगों को उन की चीज़ें घटा कर ना दो और ज़मीन में फसाद मचाते ना फिरो।

इन उपर की आयतों में हजरत शोएब علیہ السلام की कौम का जिक्र है,  हजरत शोएब علیہ السلام ने अपनी कौम को पहले तौहीद का आदेश दिया और उस के बाद उन के अन्दर जो बुराईयां थीं, उन से मना किया , उन में जो बुराई सब से ज़्यादा उन के अन्दर घर कर गई थीं, “वह नाप तौल में कमी थी,,  हजरत शोएब علیہ السلام इस बुराई से बार बार उन को रोकते रहे और खुदा के अज़ाब का डर दिलाते रहे कि अगर वह इस से नही रुके तो उन पर खुदा का ऐसा अजाब उतरेगा जिस में वह सब के सब बरबाद हो जाएंगे, मगर उन की कौम के घमंडी लोग इस से बाज नही आए, और  हजरत शोएब علیہ السلام को धमकी देने लगे कि हम तुम्हे और तुम्हारे साथ मुसलमानो को बस्ती से निकाल देंगे, इस के अलावा जो बुराईयां उन के अन्दर थीं वह उन से भी नहीं रुके, आखिर कार ऱब के अज़ाब में गिरफतार हुए और सब के सब हलाक हो गए,
उन की हलाकत का वाक्या कुरअान मजीद की जुबानी सुनिए,
فَأَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَأَصْبَحُواْ فِي دَارِهِمْ جَاثِمِينَ
الَّذِينَ كَذَّبُواْ شُعَيْبًا كَأَن لَّمْ يَغْنَوْا فِيهَا الَّذِينَ كَذَّبُواْ شُعَيْبًا كَانُواْ هُمُ الْخَاسِرِينَ.(الاعراف -91-92)
तरजुमा: तो उन्हे ज़लज़ले ने आ लिया, तो सुब्ह अपने घरों में ओंधे पङे रह गए शोएब को झुटलाने वाले, जैसा कि उन घरों में कभी रहे ही ना थे, शोएब को झुटलाने वाले ही तबाही में पङे।

हजरत इब्न अ़ब्बास ने फरमाया कि अल्लाह ने उस क़ौम पर जहन्नम (नर्क) का दरवाज़ा खोला और उन पर दोजख की तेज़ गर्मी भेजी जिस से सांस बंद हो गए, अब ना उन्हे साया काम देता था ना पानी,
इस हालत में वह तहखाना में घुस गए लेकिन वहां बाहर से ज्यादा गर्मी थी वहां से निकल कर जंगल की तरफ भागे, अल्लाह ने एक अब्र (बादल) जिस में ठंडी और अच्छी लगने वाली हवा थी उस के साए में आए और एक ने दुसरे को पुकार पुकार कर एकट्ठा कर लिया, मर्द औरत बच्चे सब एकट्ठा हो गए,तो वह अल्लाह के हुक्म (आदेश) से आग बन कर भङक उठा, तो वह उस में इस तरह जल गए जैसे भाङ में कोई चिज़ भुन जाती है।
यह हमारे लिए सीख है, लेहाजा हमें अपनी कमी देखनी चाहिए और उसे जल्द से जल्द समाप्त करनी चाहिए,यह बुराई बहुत पाई जाती है, खासकर व्यापारी इस में ज्यादा सम्मीलित हैं जो नापने तौलने का काम करते हैं,ऐसोंको जल्द से जल्द इस बुरी लत से बचना चाहिए। ||समाप्त||
(دس اھم احکام قرآن۹۵ تا ۹۸)


Thursday, September 27, 2018

मुसलमानों की आराम खोरी या हराम खोरी:नेयाज़ अहमद (हिन्दी अनुवादक)

लेखक: जावेद चौधरी::


हमने अपने 14सौ वर्षों के इतिहास में गैरों को इतना फतह नही किया जितना हम एक  दुसरे को फतह करते रहे,आप को शायद यह जान कर आश्चर्य होगा कि मुसलमानों नें दुनिया का 95% इलाक़ा इस्लामी सन की पहली शताब्दी में फतह कर लिया था ।
• मुसलमान 1350 साल उस एलाके के लिए एक दूसरे से लङते रहे,
• हमारे  ज्ञान, फलसफा, साइंस, और इजादात की 95% इतिहास भी सिर्फ 300साल तक घेरे हुए है,
• हम ने वाक़ई 1000 साल में जंगो के सिवा कुछ नही किया ,
• आप आज 2018 से हज़ार साल पीछे चले जाइए
आप को ..............
•महमूद गजनवी हिन्दुस्तान पर हमले करता मिलेगा,
सब से पहले मुल्तान पर हमला करके इस्माईली फिर्क़े के मुसलमानों का क़त्ल-ए-आम किया करता था और दौलत लूट ले जाता था,
• आप स्पेन में मुसलमान के हाथों मुसलमान  का गला कटते देखेंगे ,
• आप को तुर्की में सलजूक तलवारें  उठा कर फिरते नजर आएंगे,
• आप को अरब में लाशे बिखरी मिलेंगी,
• शिया सुन्नी - सुन्नी शिया के सर उतारते नज़र आएंगे,
• मुसलमान  मुसलमान  को फतह (विजय)  करता नज़र आएगा,
• मुसलमान  मुसलमान  की मस्जिदें जलाते दिखाई देंगे,
और........
•  आप मोमिन के हाथों मोमिनों के सरों के मिनार बनते देखेंगे,
• आप 1018ई0 से आगे आते चले जाएं आप के सारे तबक़ रोशन होते चले जाएंगे,
आप को.........
• मुसलमान मुसलमान की हत्या करते और उस के बीच हराम खोरी करते नजर आएंगे,
• हमने उस के बाद बाकी हजार साल तक हराम खोरी के सिवा कुछ नही किया ,

इस्लामी दुनिया हज़ार साल से.....

•कंघी से लेकर नील कटर (nail cutter) तक उन लोगों की इस्तेमाल कर रहा है ..जिन्हें हम दिन में पांच बार बद दुआएं देते हैं,
• आप कमाल देखिए, हम मस्जिदों यहुदियों के पंखे और AC लगा कर,
•इसाइयों की टोटियों से वज़ू करके,
• काफिरों (खुदा का ना मानने वाला) के साउंड सिस्टम पर अज़ान देकर,
और.....
• लादीनों (China) जाय नमाज (مُصلّٰی) पर सजदा करके सारी दुनिया के लादीनों (China) की बरबादी की बद दुआ करते हैं,
• हम दवाएं भी यहूदियों की खाते है,
• बारूद भी काफिरों का इस्तेमाल करते हैं ,
और

::पूरी दुनिया पर इस्लाम के विजयी होनेका स्वप्न भी देखते हैं ::

• आप को शायद यह जान कर आश्चर्य होगा कि हम खुद को दुनिया का सब से बहादुर क़ौम समझते हैं,

लोकिन........
हमने पिछले 500 वर्षो में काफिरों के खिलाफ कोई बड़ी जंग नही जीती, हम 5सदियों से मार और सिर्फ मार खा रहे हैं।

•प्रथम विश्व युद्ध से पहले पूरा अरब एक था यह खेलाफत-ए-उस्मानिया  का हिस्सा था,

•यूरोप ने 1918 में अरब को 12 देशों में बांट दिया, और विश्व की बहादुर क़ौम देखती की देखतू रह गई,

•हम अगर लड़ाकू थे, हमारा अगर लड़ने का 1400 वर्षों का तजरबा था को हम कम से कम लड़ाई ही में ‘‘प्रफेक्ट,, हो जाते,

•और कम से कम दुनिया के हर हथियार पे मैड बाई मुस्लिम (Made by Muslim) का ट्रेड मार्क ही लग जाता,

और...........
•हम अगर दुनिया की बहादुर फौज ही तयार कर लेते तो आज मार ना खा रहे होते,

•आज कम से कम इराक़, लीबिया, मिस्र, अफग़ानिस्तान, और शाम (सीरिया) मानवी विडंबना ना बन रहे होते,

::आप इस्लामी दुनिया की बद किस्मती (दुर्भाग्यता)देखिए::

•हम लोग आज युरोपिय बन्दूक़ों, टेंकों, तोपों, गोलों, गोलियों, और अमेरिकी जंगी जहाज़ों के बेगैर और उन की ‘‘war technologies,, की मदद के बेगैर काबा शरीफ की सुरक्षा भी नही कर सकते,

• हमारी शिक्षा का हाल यह है दुनिया की 100 ही यूनिवर्सीटियों की सूची में इस्लामी देशों की एक भी यूनिवर्सीटि नही आती,

• सारी इस्लामी दुनिया मिलकर जितने रिसर्च पेपर तयार करती है, वह अमेरिकी के एक शहर बोस्टन में होने वाली रिसर्च आधा बनता है,

• पूरी इस्लामी दुनिया के राजा इलाज के लिए युरोप और अमेरिका जाते हैं,

•यह अपने जीवन का आखरी हिस्सा यूरोप, अमेरिका, कैनेडा, और न्यूज़िलैंड में व्यतित (गूजारना) चाहते हैं,

•दुनिया का 90% इतिहास इस्लामी दुनिया में है लोकिन इस्लामी दुनिया के 90% खुश्हाल लोग घूमने फिरने के लिए  पश्चिमी देशों में जाते हैं,

• हम ने 500 साल से दुनिया को कोई दवा कोई हथियार, कोई नया फलसफा, कोई खुराक, कोई अच्छी पुस्तक, कोई नया खेल,
और कोई अच्छा कानून नहीं दिया,

• हमने अगर इन 500 वर्षों में कोई अच्छा जूता ही बना लिया होता तो हमारा फर्ज-ए- कफाया अदा हो जाता,

• हम हजार बरसों में साफ सुथरा मुत्रालय नहीं बना सके, हमने मोज़े,और सिलीपर चप्पल, और गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम लिबास तक नहीं बनाया,

• हमने अगर कुरान मजीद की छपाई के लिए कागज प्रिंटिंग मशीन और स्याही ही बना ली होती तो हमारी इज्जत रह जाती, मगर यह भी हमारे अलीमों की बुलंद सोच में बसने वाले ‘‘काफिरों,, ने ही बनाई है,

• हम तो काबा शरीफ के गिलाफ के लिए कपड़ा भी इटली से तैयार कराते हैं,

• हम तो मक्का मदीना के लिए साउंड सिस्टम भी यहूदी कंपनियों से खरीदते हैं,

•हमारे लिए आबे जमजम भी काफिर कंपनियां निकालती है,

• हमारी तस्बीहात और जा नमाज भी चीन से आती है,

• और हमारे अहराम और कफन भी जर्मन मशीनों पर तैयार होते हैं,
• हम माने या ना माने लेकिन यह सत्य है दुनिया के डेढ़ अरब मुसलमान खरीदार से ज्यादा कोई हैसियत नहीं रखते,

• यूरोप जीवन की नेमत तयार करता है बनाता है इस्लामी दुनिया तक पहुंचाता है,

और हम इस्तेमाल करते हैं.......

• और इसके बाद बनाने वालों को आँखें निकालते हैं, और उन पर लाखो मर्तबा लानत और मला मत भेज कर सर फख्र से ऊंचा करते हैं,

• आप विश्वास कीजिए जिस साल ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने सऊदी अरब को भेड़ देने से इंकार कर दिया उस साल मुसलमान हज पर कुर्बानी नहीं कर सकेंगे,

• और जिस दिन यूरोप और अमेरिका ने इस्लामी दुनिया को गाड़ियां, जहाज, और कंप्यूटर, बेचना बंद कर दिए हम उस दिन घरों में कैद होकर रह जाएंगे,
• हम शहर में नहीं निकल सकेंगे यह हैं हम और यह है हमारी औकात लेकिन आप किसी दिन अपने दावे सुन लें,
• आप उन नौजवानों के नारे सुन लें जो मैट्रिक का इम्तिहान पास नहीं कर सके,



जिन्हें पेच तक नहीं लगाना आता......
मगर जिस दिन उनके बुढे पिता की दिहाड़ी ना लगे उस दिन उनके घर चूल्हा नहीं जलता,

आप उनके नारे
 उनके दावे सुन लीजिए.....

• यह लोग पूरी दुनिया में इस्लाम (और अब सिर्फ अपने पीर साहब का) झंडा लहराना चाहते हैं,

• यह गैरों को नेस्तनाबूद करना चाहते हैं,

::आप अपने आलिम की तकरीर भी सुन लीजिए::

• अपने माइक की तार ठीक नहीं कर सकते यह अल्लाह और अल्लाह के रसूल का नाम अपने मुरीद को मार्क जुकरबर्ग (Facebook) के जरिए पहुंचाते हैं,

• यह लोगों को थूकने की तमीज नहीं सिखा सके,

• आज तक इब्ने कसीर.(महान इस्लामी विद्वान) इमाम गजाली (महान इस्लामी विद्वान) और मौलाना रूम से आगे नहीं बढ़ सके,

• पूरे इस्लामी देशों में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो इब्न अरबी (महान इस्लामी विद्वान) को समझने का दावा कर सके,

 इब्ने रुश्द (महान इस्लामी विद्वान) भी हमें यूरोप के स्कॉलर्स ने समझाया था,

• ईब्न होशाम (महान इस्लामी विद्वान) और इब्न इस्हाक़ (महान इस्लामी विद्वान) भी हम तक ऑक्सफोर्ड प्रिंटिंग प्रेस के जरिए पहुंचे थे,

• लेकिन आप अलीमों की तकरीर सुन लें आपको महसूस होगा कि पूरी दुनिया का सिस्टम इनके पीर साहब चला रहे हैं,

• यह जिस दिन आदेश देंगे उस दिन सूर्योदय नहीं होगा और यह जिस दिन फरमा देंगे उस दिन पृथ्वी पर अन्न (अनाज) नहीं उगेगा,

:: हमने आखिर आज तक किया क्या है::

 हम किस कर्म पर दुनिया की सबसे बड़ी कौम समझते हैं जो आज तक हर जुम्मा के खुतबा में गला फाड़ फाड़कर मुस्तफा का कानून पर फख्र करने के बावजूद उसे मुसलमानों के किसी भी मुल्क में लागू नहीं कर सके,

 मुझे आज तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल सका::

 हम अगर दिल पर पत्थर रख कर यह सच मान लें तो फिर हमें पता चलेगा हमारी ‘‘हराम खोरी,, हमारी जींज का हिस्सा बन चुकी है।
{ہندی ترجمہ کرتے وقت کچھ جگہ لغوی معنہ کو نہ لکھکر عرفی و مفہومی معنہ کر دیا گیا تاکہ قاری کو سمجھنے میں آسانی ہںو،نیاز احمد ،}

लेखक: जावेद चौहदरी
मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami

Wednesday, September 12, 2018

हमारा कपड़ा कैसा हो?: नेयाज़ अहमद निज़ामी

इस्लाम और लेबास/इस्लामी पहनावा
इस्लाम और लेबास/इस्लामी पहनावा


सब से अच्छा कपड़ा कैसा हो?:
(1) रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया सब में अच्छे वह कपड़े जिन्हे पहन कर तुम खुदा की ज़्यारत (दर्शन) क़ब्रों, मस्जिदों में करो सफेद है।
यानी सफेद कपड़ो में नमाज़ पढना और मुर्दे को सफेद कफन पहनाना अच्छा है, (ابن ماجه)
(2) मुहम्मद ﷺ की कमिस की आस्तीन गट्टे तक थी (ترمذي و ابو داؤد)
हज़रत आएशा रजियल्लाहो अन्हा कहती हैं होज़ूर ﷺ ने फरमाया कपड़े को पूराना ना समझो जब तक पैवंद (चकती) ना लगा लो।(ترمذي)

अब्दुर्रहमान की बेटी हफसा हज़रत आएशा रजियल्लाहो अन्हा के पास बारीक दुपट्टा ओढ कर आईं हज़रत आएशा ने उनका दुपट्टा फाड़ दिया और मोटा दुपट्टा दे दिया। (امام مالك)

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया जो कोई शोहरत का कपड़ा पहने क़यामत (प्रलय) के दिन अल्लाह उसे ज़िल्लत (रुस्वाई) का कपड़ा पहनाएगा,
शोहरत का कपड़ा यानी कोई तकब्बुर (घमंड) के तौर पर अच्छे कपड़े पहने, या जो कोई दर्वेश (फक़ीर) ना हो वह ऐसे कपड़े पहने जिस से लोग उसे दर्वेश समझें या आलिम (मौलाना,मोलवी,मुफ्ती वगैरह) ना हो और उन के कपड़े पहनकर लोगो के सामने आलीम होना जताता है, यानी कपड़े पहनने का मक़सद किसी खूबी को ज़ाहिर करना हो,
 (ابو داؤد و ابن ماجه)

हजरत अब-उल-अहवस के पिता जी कहते हैं मैं रसूलुल्लाह ﷺ के पास हाज़िर हुआ और मेरे कपड़े घटिया थे रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: क्या तुम्हारे पास माल नहीं?
मैने कहा हां है,
उन्होने कहा किस तरह का माल है?
मैने कहा उंट,गाय, बकरियां, घोड़े, ग़ुलाम,
उन्होने कहा जब खुदा नें तुम्हे माल दिया है तो उस की नेअमत व करामत का तुम पर असर दिखाई देना चाहिए (نسائي وغيره)

नबी रहमत ﷺ ने फरमाया सोना और रेशम मेरी उम्मत के औरतों पर हलाल (जायज़)है और मर्दों पर हराम, (ترمذي/نسائي)

कपड़ा पहनने की दुआ::
तिर्मीज़ी में है हजरत उमर रजियल्लाहो अन्हु ने नया कपड़ा पहना और यह पढा।
 الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي كَسَانِي مَا أُوَارِي بِهِ عَوْرَتِي ، وَأَتَجَمَّلُ بِهِ فِي حَيَاتِي,
फिर कहा कि मैने रसूलुल्लाह ﷺ से सुना कि जो कोई नया कपड़ा पहनते वक्त यह पढे और पूराने कपड़े को सदक़ा (दान) कर दे वह ज़िन्दगी में और मरने के बाद किन्फ व हिफ्ज़ व सतर (كنف،حفظ،و ستر) में रहेगा, तीनों शब्दों के एक ही माना है, यानी अल्लाह तआला उस का हाफिज़ व निगहबान है, और फरमाया जो कोई जिस क़ौम से तशब्बोह (रूप धारण) करे वह उसी मे से है,
नबी आखेरुज़्जमां ﷺ ने उस मर्द पर लानत की जो औरतों का कपड़ा पहनता है और उन औरतों पर लानत की जो मर्दाना लेबास पहनती है (ابو داؤد)

हमारा कपड़ा कैसा हो?

कितना कपड़ा पहनना ज़रूरी है:
इतना कपड़ा जिस से सतर-ए-औरत (छुपाने वाली जगह) हो जाए और गरमी ठंडी की तकलीफ से बचे  फर्ज़ है यानी जरूरी है और इस से ज़्यादा जिस से बनाव सिंगार करना मकसद हो और यह भी कि अल्लाह ने दिया है तो नेमत का इज़हार मकसद हो तो 'मुस्तह़ब, है।
खास मौक़े पर जैसे ईद या जुमा के दिन उम्दा कपड़े पहनना मुबाह है, इस तरह के कपड़े रोज़ ना पहने,
घमंड के तौर पे जो कपड़ा हो वह मना है ।

कपड़ा किस तरह का होना चाहिए:
बेहतर यह है कि उनी सूती या कतान के कपड़े बनवाया जाए जो सुन्नत हो,
ना बहुत उम्दा हो ना बहुत घटिया,बलकी बीच वाला कपड़ा हो,
सफेद कपड़े बेहतर हैं कि हजीस में इस की तारीफ आई है और स्याह (काला) कपड़े भी बेहतर है कि रसूलुल्लाह ﷺ फतह-ए-मक्का के दिन जब मक्का में आए तो सर पर काला अमामा था, कुछ किताबों में हरा कपड़ा भी सुन्नत लिखा है।

कपड़े की साईज़:
सुन्नत यह है कि दामन की लम्बाई आधी पिन्डली तक हो और आस्तीन की उंगलियों के पौरों तक, और चौड़ाई एक बालिश्त (बित्ता) हो,(ردُّالمُحتار)
कुर्ते की आस्तीन कहनियों से उपर रहती है,यह ःी सुन्नत के खेलाफ है,
हदीस में है कि إِيَّاكُمْ وَزِيَّ الأَعَاجِمِ यानी अजमियों के भेस से बचो, उन के जैसा फैशन ना बना लेना।
फोकहा (फक़ीह का बहुवचन) ओलमा (आलिम का बहुवचन) को ऐसा कपड़ा पहनना चाहिए कि वह पहचाने जाएं ताकि लोगों को उन फायदा लेने का मौक़ा मिले, और इल्म (ज्ञान) की वुक्अत लोगों को मिले,(رد المحتار)



मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami








Tuesday, August 28, 2018

:: हज की फज़ीलत कुरआन व हदीस की रोशनी में ::


कुरआन पाक में अल्लाह तआला फरमाता है ::
إِنَّ أَوَّلَ بَيْتٍ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكًا وَهُدًى لِّلْعَالَمِينَ فِيهِ آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ مَّقَامُ إِبْرَاهِيمَ ۖ وَمَن دَخَلَهُ كَانَ آمِنًا ۗ وَلِلَّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ
(آل عمران پارہ 4 آیت 96-97)
तर्जुमा: बेशक पहला घर जो लोगों के लिए बनाया गया वह है जो मक्का में है, बरकत वाला और हिदायत तमाम जहांन (दुनिया)  के लिए, उस में खुली हुई निशानियां हैं, मक़ाम-ए-इब्राहीम और जो शख्स (व्यक्ती) उस में दाखिल हो (प्रवेश करे) अमान में है और अल्लाह के लिए लोगो पर बैतुल्लाह का हज है,जो शख्स (व्यक्ती) रास्ता के हिसाब से हज की ताकत रखे, और जो कुफ्र करे अल्लाह सारे जहान से बे परवाह है।

अल्लामा नईमुद्दीन मुरादाबादी अपनी तफ्सीर में इस आयत करीमा की शान-ए-नोज़ूल के तहत फरमाते हैं कि यहूद ने मुसलमानो से कहा था कि बैतुल मक़्दिस (जो फिलिस्तीन में है) हमारा क़िबला है, काबा से अफज़ल (बेहतर) और उस से पहला है अम्बिया का मक़ाम-ए-हिजरत और क़िबल-ए-इबादत है, मुसलमानों ने कहा काबा अफज़ल है, इस पर यह आयत करीमा नाज़िल हुय़ी,

दूसरी जगह अल्लाह फरमाता है::

وَاَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلّـٰهِ (پ2 ت 196 س بقرہ)
तर्जुमा: और हज और उमरा अल्लाह के लिए पूरा करो,

हदीस 1: सहीह मुस्लिम शरीफ में अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से मरवी कि रसूल ﷺ ने फरमाया :
 ऐ लोगो!  तूम पर हज फर्ज़ किया गया लेहाज़ा हज करो, एक शख्स ने अर्ज़ की  क्या हर साल या रसूलल्लाह ﷺ ? होज़ूर ﷺ खामोश (चुप) रहे उन्होने तीन बार यह कहा इर्शाद फरमाया कि अगर मैं हां कह देता तो तुम पर वाजिब (जरूरी) हो जाता और तुम से ना हो सकता फिर फरमाया, जब तक मैं किसी बात को ब्यान (बताउं) करूं तुम मुझसे सवाल ना करो,अगले लोग सवाल ज़्यादा करने और अम्बिया की मुखालेफत से हलाक (बरबाद) हुए, लेहाज़ा जब मैं किसी बात का हुक्म दूं तो जहां तक हो सके उसे  करो, और जब मैं किसी बात से मना करूं तो उसे छोङ दो (صحیح مسلم، کتاب الحج ،حدیث 1338)

हदीस 2: मुस्लिम व इब्न ख़ज़ीमा अ़मर इब्न आ़स رضی اللہ عنہ से रावी, रसूल ﷺ फरमाते हैं "हज उन पापों को खत्म कर देता है जो पहले हुए हैं।
(صحیح مسلم،، کتاب الایمان،، حدیث 121)

हदीस 3: इब्न माजा उम्म-ए-सलमा  رضی اللہ تعالٰی عنہا से रावी रसूल ﷺ ने फरमाया हज कमज़ोरों के लिए ज़िहाद है। 
(سنن ابن ماجہ،، ابواب المناسک،، باب الحج جہاد النساء ح2902)
(↑بہار شریعت ج اول ح ششم ص 1030-31 ↑)

हदीस 4: और फरमाया कि इस से बढ कर और कोई गुनाह (पाप) नहीं कि आदमी हज में मक़ाम-ए-अ़रफात में खङा हो और गुमान करे कि मैं नहीं बख्शा गया। (کیمیاء سعادت صفحہ نمبر188)

:: हज किसे कहते हैं और कब फर्ज़ हुआ? ::
हज नाम है अहराम बांध कर नव्वीं (9th) ज़िल्हिज्जा (इस्लामी महीना) को अरफात  में ठहरने और काबा मोअज़्ज़मा के तवाफ (प्रिक्रमा) का और उस के लिए एक खास समय रखा गया है, कि उसी समय पर यह काम किया जाए तो हज है।
हज 9हिजरी में फर्ज़ हुआ, उस की फर्ज़ियत क़तई है, जो इस की फर्ज़ियत का इन्कार करे काफिर है,मगर उम्र भर में सिर्फ एक बार फर्ज़ है। 

मसअला 1: दिखावे के लिए हज करना और हराम माल से हज को जाना हराम है।

मसअला 2: जब हज पर जाने की ताक़त हो  तो तुरंत हज फर्ज़ हो गया (उसी साल में) अब देर करेगा तो गुनहगार (पापी) होगा, मगर जीवन में कभी भी हज करेगा तो हो जाएगा।
  ::हज का समय::
मसअला 3: हज का समय शव्वाल (इस्लामी 10वां महीना) से 10वीं ज़िल्हिज्जा (इस्लामी बारहवां महीना)तक है 

:: हज वाजिब होने की शर्तें ::
हज वाजिब होने की 8 शर्तें हैं, 
जब तक यह सब ना पाई जाएं  हज फर्ज़ नहीं, वह शर्तें यह हैं 
  • (1) इस्लाम,
  • (2) दार-उल-हरब,दार-उल-इस्लाम,
  • (3) बोलूग़ (बालिग़)
  • (4) आ़क़िल (बुद्धिमान)
  • (5) आज़ाद होना
  • (6) सेहतमंद हो
  • (7) सफर के खर्च का मालिक और सवारी पर ताक़त हो,
  • (8) वक्त (समय)

हज वाजिब होने की शर्तें विस्तार के साथ:
  • (1) इस्लाम,

लेहाज़ा अगर मुसलमान होने से पहले मालदार था फिर फक़ीर हो गया तो कुफ्र के ज़माना में मालदार होने की वजह से इस्लाम लाने के बाद हज फर्ज़ ना होगा,
  • (2) दार-उल-हरब,
में हो तो यह भी ज़रूरी है कि  जानता हो कि इस्लाम के तमाम फर्ज़ों में हज है,
लेहाज़ा जिस वक्त मालदार था यह मसअला मालूम ना था और जब मालूम हुआ तब यह फकीर हो गया तो अब फर्ज़ नहीं,
 और दार-उल-इस्लाम में है तो चाहे फर्ज़ होना उसे मालूम हो या ना मालूम हो फर्ज़ हो जाएगा,क्युंकि दार-उल-इस्लाम में फर्ज़ों का मालूम होना ना होना उज़्र नहीं।

  • (3) बोलूग़ (बालिग़)

नाबालिग़ ने हज किया यानी अपना आप जब कि समझदार हो या उस के वली ने उस की तरफ से अहराम बांधा हो जब कि ना समझ हो, बहरहाल वह नफ्ल का हज हुआ,फर्ज़ हज की जगह नही हो सकता, 

  • (4) आ़क़िल (बुद्धिमान)

अक़्लमंद (बुद्धिमान) होना शर्त है लिहाज़ा मजनून (पागल) पर हज फर्ज़ नहीं, 
मजनून (पागल) था और वक़ुफ-ए-अरफा से पहले पागलपन जाता रहा और नया अहराम बांध कर हज किया तो यह हज फर्ज़ का हज हुआ वरना नहीं,
हज करने के बाद पागल हुआ फिर अच्छा हुआ तो 
इस पागलपन का हज पर कोई असर नही, यानी दोबारा हज करने की ज़रूरत नहीं,

  • (5) आज़ाद होना,

बांदी गुलाम पर हज फर्ज़ नहीं ,

  • (6) सेहतमंद हो,

कि हज को जा सके,बदन के हर हिस्से सलामत हों, अंखियारा हो, अपाहिज फालिज वाले जिस के पांव कटे हों और बुढे पर कि सवारी पर खुद ना बैठ सकता हो,  हज फर्ज़ नहीं, युं ही अंधे पर भी हज वाजिब नहीं भले ही हाथ पकङ कर उसे ले चलने वाला मिले इन सब पर यह भी ज़रूरी नही कि किसी को भेज कर अपनी तरफ से हज करा दें  या वसियत कर जाएं और अगर तकलीफ उठा कर हज कर लिया तो सही हो गया।

  • (7) सफर के खर्च का मालिक हो और सवारी पर भी,

चाहे खुद की सवारी हो या इतना माल हो कि किराया पर ले सके,
किसी ने हज के लिए माल दिया तो कोबूल करना उस पर वाजिब नहीं,देने वाला अजनबी हो या मां बाप औवलाद वगैरह  मगर जब कोबूल कर लेगा  तो हज वाजिब हो जाएगा,
पैदल की ताक़त हो तो पैदल हज करना अफज़ल है हदीस़ में है  जो पैदल हज करे हर क़दम पर 700नेकियां हैं,, 
फक़ीर ने पैदल हज किया फिर मालदार हो गया तो उस पर दूसरा हज नहीं,

  • (8) वक्त (समय),

यानी हज के महीनों में तमाम शर्तें पाई जाएं और अगर दूर का रहने वाला हो तो जिस वक्त वहां के लोग जाते हों उस वक्त शर्तें पाई जाती हों और अगर एेसे वक्त पाई गईं कि अब नहीं पहुंच पाएगा तो ज़रूरी नहीं,

:: वाजिब अदा करने की शर्तें ::

अब तक आपने हज वाजिब होने की शर्ते पढीं अब आप यहां से वाजिब अदा करने की शर्तें पढेंगे,

  • रास्ता में अमन होना, डाका वगैरह से जान जाने का खतरा हो तो जाना जरूरी नही अगर ऐसा नही है तो वाजिब है,

  • अगर अमन के लिए कुछ रिश्वत देना पङे तब भी जब भी जानै वाजिब है क्युंकि यह अपना फर्ज़ अदा करने के लिए मजबूर है,लेहाज़ा उस देने वाले पर जुर्माना नहीं,


  • रास्ता में चुंगी (toll tex) वगैरह लेते हों तो यह अमन के विरुद्ध नहीं 


  • औरत को मक्का तक जाने में तीन दिन या ज़्यादा का रास्ता हो तो उस के साथ पति या महरम का जाना शर्त है चाहे वह औरत जवान हो या बुढिया, और ती दिन से कम का रास्ता  हो तो बेगैर महरम और पती को भी जा सकती है,

महरम: वह मर्द जिस से हमेशा के लिए उस औरत का निकाह हराम हो जैसे, बाप,बेटा,भाई,वगैरह रजाई भाई, रजाई बाप,रजाई बेटा वगैरह,

शौहर या महरम जिस के साथ सफर कर सकती है  उस का आकिल बालिग़ गैरे फासिक होना शर्त है,

बांदियों को बेग़ैर महरम सफर जायज़ है

  • औरत बेगैर महरम या शौहर के हज को गई तो गुनहगार हुई मगर हज हो जाएगी यानी फर्ज़ अदा हो जाएगा,


:: अदा की सेहत  की शर्तें ::
कि अगर यह ना पाई जाएं तो हज सही नहीं और यह 9हैं।
  • (1) इस्लाम: काफिर ने हज किया तो ना हुआ।
  • (2) अहराम: बेगैर अहराम हज नही हो सकता।
  • (3) ज़मान:  यानी हज के लिए जो ज़माना मुकर्रर (निश्चित) है उस से पहले हज नही हो सकते।
  • (4) मकान: तवाफ (प्रिक्रमा) की जगह मस्जिद-ए-हराम शरीफ है, और वक़ूफ के लिए अरफात व मुज़्दलफा, कंकरी मारने के लिए मेना, क़ुर्बानी के लिए हरम, यानी जिस काम के लिए जो स्थान रखा गया है वहीं करें।
  • (5) तमीज़: 
  • (6) अक्ल: जिस में तमीज़ ना हो जैसे ना समझ बच्चा या जिस में अक़्ल ना हो जैसे पागल, यह खुद वह काम नही कर सकते जिन में नियत की ज़रूरत है जैसे अहराम,तवाफ, और जिस में नियत शर्त नहीं वह खुद करे जैसे वकुफ-ए-अरफा। 
  • (7) हज के फर्ज़ों को अदा करना,बै गैर उज़्र में।
  • (8) अहराम के बाद वकूफ से पहले जेमा(पत्नी के साथ संभोग) ना होना अगर हो गया तो हज नही हुआ।
  • (9) जिस साल अहराम बांधा उसी साल हज करना,लेहाज़ा अगर उस साल हज किसी कारण फौत (छूट) हो गया तो उमरा कर के अहराम खोल दे, और आने वाले वर्ष में दोबारा अहराम से हज करे।


:: फर्ज़ हज अदा होने की शर्तें:: 
फर्ज़ हज अदा होने के लिए 9 शर्तें हैं:
  • (1) इस्लाम,
  • (2) मरते समय तक इस्लाम ही रहना,
  • (3) आक़िल, बुद्धीमान होना
  • (4) बालिग होना,
  • (5) आज़ाद होना,
  • (6) अगर ताकत हो तो खुद हज करना,
  • (7) नफ्ल की नियत होना,
  • (8) दुसरे की तरफ से हज की नियत ना होना,
  • (9) फासिद ना करना,


:: हज में यह चिज़ें फर्ज़ हैं ::
  • (1) अहराम: कि यह शर्त है।
  • (2)  वक़ूफ-ए-अरफा: यानी 9वीं ज़िलहिज्जा को सुरज ढलने (सुर्यास्त) से 10वीं की सुब्ह-ए-सादिक से पहले तक किसी समय अरफात में ठहरना।
  • (3) तवाफ-ए-ज़्यारत: का अक्सर हिस्सा।
  • (4) निय्यत।
  • (5) तरतीब: यानी पहले अहराम,फिर वक़ूफ,फिर तवाफ।
  • (6) हर फर्ज़ का अपने वक्त पर होना।
  • (7) मकान: यानी वक़ूफ अरफात की ज़मीन में होना और तवाफ का मस्जिद-ए-हराम शरीफ मे होना।

:: वह चिज़ें जो हज में वाजिब हैं ::
हज के वाजिबात (वाजिब का बहुबचन) यह हैं:
(1) मिक़ात से अहराम बांधना: यानी मिकात से बेगैर अहराम के ना गुज़रना और अगर मिक़ात से पहले ही अहराम बांध लिया तो भी जायज़ है।
(2) सफा (صفا) व मरवा (مروہ) के बीच दौङना: इस को सई़ (سعی) कहते हैं।
(3) सई को सफा से शुरू करना: और अगर मरवा से शुरू कू तो पहला फेरा शुमार ना किया जाए, उस का  एआदा करे (यानी दोबारा सफा से शुरू करे)।
(4) पैदल सई करना: 
(5) दिन में वकूफ किया तो उतनी उतनी देर तक वकूफ करे की सूरज डूब जाए,चाहे सूरज ढलते ही शुरू किया हो या बाद में, (यानी सुरेयासेत तक वकूफ में व्यस्त रहे) और अगर रात में वकूफ किया तो उस के लिए किसी खास हद तक वक़ूफ करना वाजिब नही, मगर वह उस वाजिब का तारिक (छोङने वाल) हुआ।

(6) वकूफ में रात का कुछ हिस्सा आ जाना।
(7) अरफात से वापसी में इमाम की पैरवी करना यानी जब तक इमाम ना निकले यह भी ना चले।
(8) मुज़दलेफा  ठहरने।
(9)मग़रीब और इशा की नमाज़ इशा के वक्त मुज़दलेफा में पढना।
(10) तिनों जमरों पर 10वीं 11वीं 12वीं तीनो दिन कंकरियां मारना यानी 10वी को सिर्फ जुमरत-उल-उक़बा पर और 11वीं 12वीं को तीनों पर रमी मारना।
(11) जुमरत-उल-उक़बा की रमी पहले दिन हलक़ से पहले होना।
(12) हर रोज़ की रमी का उसी दिन होना।
(13) सर मुंडाना या बाल कतरवाना 14: कुरबानी के दिनों में होना, 15: हरम शरीफ में होना अगरचे मेना में ना हो।
(16)क़ेरान और तमत्तोअ वाले को क़ुरबानी करना और।
{क़ेरान:हज और उमरा दोनो के अहराम की निय्यत करेउसे क़ेरान कहते हैं।
तमत्तोअ: मक्का में पहुंच कर 1शव्वाल से 10ज़िलहिज्जा में उमरा करके वहीं से हज का अहराम बांधे उसे तमत्तोअ कहते हैं}
[بہار شریعت جلد اول صفحہ70]
(17) उस कुरबानी का हरम और कुरबानी के दिनो में होना।
(18)  तवाफ-ए-एफादा (طواف افاضہ) का अक्सर हिस्सा कुरबानी के दिनो में होना 
नोट: अरफात से वापसी के बाद जो तवाफ किया जाता है उसे )  तवाफ-ए-एफादा (طواف افاضہ) कहा जाता है और इसे तवाफ-ए-ज़्यारत भी कहा जाता है।
(19) तवाफ हतीम के बाहर होना।
(20) दाहीनी तरफ से तवाफ करना यानी काबा शरीफ तवाफ करना वाले की बाईं जानिब हो।
(21) उज्र ना हो तो पांव से चल तवाफ करना।
(22) तवाफ करने में  नापाकी से पाक होना (पवित्र) होना अगर अपवित्रता में तवाफ किया तो ना हुआ।
(23) तवाफ के समय सतर (छुपाने वाला बदन का हिस्सा)छुपा होना अगर खुल गया तो दम वाजिब होगा यानी कुरबानी करनी पङेगी। 
(24) तवाफ के बाद दो रकात नमाज़ पढना, ना पढी तो दम वाजिब यानी जरूरी नहीं।
(25) कंकरीयां फेंकने, ज़बह और सर मुंडाने,और तवाफ में तरतीब यानी पहले कंकरीयां, फिर क़ुरबानी, फिर सर मुंडाए, फिर तवाफ करे।
(26) तवाफ-ए-सद्र यानी मिक़ात से बाहर रहने वालों के लिए रुख्सत का तवाफ करना।
(27)वक़ुफ-ए-अरफा के बाद सर मुंडाने तक जेमा (पत्नी से संभोग) ना होना।
(28) सिला कपङा मुंह और सर छुपाने से बचना।
मसअला: वाजिब के छोङने से दम ज़रूरी होता है चाहे जान कर या अनजाने या भूल कर किया हो, चाहे उसे वाजिब का होना याद हो या ना हो,
::हज की सुन्नतें::

  • (1) तवाफ-ए-क़ोदूम: यानी मिक़ात के बाहर से आने वाला मक्का मोअज़्ज़मा में हाज़िर होकर सब में पहला जो तवाफ करे उसे तवाफ-ए-क़ोदूम कहते हैं, यह मुफरद और क़ारिन के लिए सुन्नत है।
  • (2) तवाफ का हजर-ए-असवद से शुरू करना।
  • (3) तवाफ-ए-क़ोदूम  या फर्ज़ में रमल करना।
  • (4) सफवा मरवा को बीच जो दो मिल अखज़र (हरा निशान) है वहां दौङना ।
  • (5) इमाम का मक्कका में सातवीं,6: अरफात में 9वीं 7: मेना में ग्यारहवीं को ख़ुतबा पढना, 8: 8वीं की फज्र के बाद मक्का से रवाना होना कि मेना मे पांच नमाज़ें पढ ली जाएं ।
  • (9) 9वीं रात मेना में गुज़ारना।
  • (10) सुरज निकलने के बाद मेना से अरफात को रवाना होना।
  • (11) वक़ूफ-ए-अरफा के लिए गुस्ल (स्नान) करना।
  • (12) अरफात से वापसी में मुज़दलेफा में रात को रहना और।
  • (13) सुरज निकलने से पहले यहां से मेना को चले जाना।
  • (14) 10 और 11 के बाद जो दोनो रातें हैं उन को मेना में गुज़ारना और अगर 13वीं को भी मेना में रहा तो 12वीं के बाद की रात भी मेना में रहे।
  • (15) अब्तह यानी वादिए मुहस्सब में उतरना,भले ही थोङी देर के लिए हो, और उन के अलावा और भी सुन्नते हैं जिन का उल्लेख बाद में करुंगा,


:: संक्षिप्त में हज का तरीक़ा ::

मिक़ात का बयान:
मिक़ात उस जगह को कहते हैं कि मक्का शरीफ के जाने वाले को बेगैर अहराम वहां से आगे जाना जायज़ नहीं भले ही व्यापार वगैरह या किसी और  गर्ज़ से जाता हो, 
मसअला: मिक़ात 5 हैं, 
  • (1) ज़ुल हलीफा(ذوالحلیفہ) : यह मदीना मुनव्वेरा की मिक़ात है,भारत वाले हज से पहले अगर मदीना तय्येबा को जाएं और वहां से मक्का को तो वह भी ज़ुल हलीफा से अहराम बांधें।
  • (2) ज़ातेअरक़ (ذات عرق) : यह ईराक़ वीलों की मिक़ात है।
  • (3) जोहफा (جحفہ) : यह शाम (सीरिया) वालों की मिक़ात है। 
  • (4) क़रन (قَرن) : यह नज़्द वालों की मिक़ात यह ताएफ के क़रीब है। 
  • (5) यलमलम (یَلمَلَم) : यमन वालों के लिए मिक़ात है।


अहराम का बयान: 
यह तो मालूम हो गया कि हिन्दुस्तानियों के लिए मिक़ात यानी जहां से अहराम बांधते हैं ज़ुल हलीफा(ذوالحلیفہ) और यलमलम पहाङ का एरिया है ,जब यह जगह करीब आए मिस्वाक (दांतुअन) करे और वज़ू करे और खूब मल मल कर स्नान करे ना नहा सके तो सिर्फ वज़ू करें  हैज व नेफास वाली औरतें और बच्चे भी नहाएं यानी स्नान करें और पवित्र हो कर अहराम बांधे,
बालों में कंघा कर के ख़ुश्बूदार तेल डालें
स्नान से पहले नाखून काटें,खत बनवाएं, बगल (कांख) का बाल नाफ के निचे का बाल दूर करें, बदन और कपङो पर खुश्बू  लगाएं कि सुन्नत है,
मर्द सिले कपङे और मोज़े उतार दें एक चादर नई या धुली ओढें और ऐसा ही एक तहबंद बांधें यह कपङे सफेद और नए बेहतर हैं कुछ लोग उसी समय से चादर दाहिनी बगल के निचे करके दोनो पल्लू बाएं  मोंढे पर डाल लेते हैं  यह सुन्नत के खिलाफ है बलकि इस तरह का सुन्नत तवाफ के वक्त है, बाक़ी समय में अपनी आदत के हिसाब से चादर ओढी जाए यानी दोनो मोंढे पीठ सीना  सब छुपा रहे।
जब वह स्थान आए और समय मकरूह ना हो तो दो रकात अहराम की नियत से पढें पहली रकाअत में  अल्हम्दू लिल्लाह के बाद कुलिया अइयोहल काफेरून दूसरी रकाअत में कुल हुअल्लाहू अहद,
  • हज तीन तरह का होता है: 

(1) एक यह कि सिर्फ "हज„ करे, और उसे अफराद कहते हैं और हाजी क मुफरद इस में सलाम के बाद युं कहे: 
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ الْحَجَّ فَیَسِّرْہُ لِیْ وَتَقَبَّلْہُ مِنِّیْ نَوَیْتُ الْحَجَّ وَ اَحْرَمْتُ بِہٖ مُخْلِصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-हज्जा फयस्सिरहो ली व तक़ब्बल्हो मिन्नी नवैत-उल-हज्जा व अहरमतो बेही मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं हज का इरादा करता हुं उसे तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उसे मुझ से तू क़ोबूल कर मैने हज की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
(2) दूसरा यह कि यहां से सिर्फ उमरे की नियत करे मक्का मोअज़्ज़मा में हज का अहराम बांधे उसे "तमत्तोअ„ कहते हैं और हाजी क मुतमत्तेअ इस सलाम के बाद यह कहे:
اَللّٰھُمَ اِنِّیْ اُرِیْدُالْعُمْرَۃَ فَیَسِّرْھَالِیْ وَ تَقَبَّلْھَا مِنِّی نَوَیْتُ الْعُمْرَۃَ وَاَحْرَمْتُ بِھَا مُخلصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-उमरता फयस्सिरहा ली व तक़ब्बल्हा मिन्नी नवैत-उल-उमरता व अहरमतो बेहा मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं उमरा का इरादा करता हुं उसे तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उसे मुझ से तू क़ोबूल कर मैने उमरा की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
(3) तीसरा यह कि हज व उमरा दोनो की यहीं से नियत करे और यह सब से बेहतर है इसे "किरान„ कहते हैं और हाजी क क़ारिन इस में बाद सलाम के युं कहे: 




اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ الْحَجَّ وَ الْعُمْرَۃَ فَیَسِّرْھُمَا لِیْ وَتَقَبَّلْھُمَا مِنِّیْ نَوَیْتُ الْحَجَّ وَالْعُمْرَۃَ وَ اَحْرَمْتُ بِھِمَامُخلصًا لِلّٰہِ تَعَالٰی
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीद-उल-हज्जा वल उमरता फयस्सिरहोमा ली व तक़ब्बल्होमा मिन्नी नवैत-उल-हज्जा वल उमरता व अहरमत बेहेमा मुख़्लेसन लिल्लाहे तआला,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं हज और उमरा का इरादा करता हुं उन दोनो को तू मेरे लिए मोयस्सर कर और उन दोनो को मुझ से तू क़ोबूल कर मैने हज और उमरा की निय्यत की और खास अल्लाह के लिए मैं ने अहराम बांधा।
फिर बुलंद आवाज़ में तलबिया यानी लब्बैक कहे लब्बैक यह है,
لَبَّیْکَ اَللّٰھُمَّ لَبَّیْکَ لَبَّیْکَ لَا شَرِیْکَ لَکَ لَبَّیْکَ اِنَّ الْحَمْدَ وَ النِّعْمَۃَ لَکَ وَ الْمُلْکَ لَا شَرِیْکَ لَک،
लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीकsssलक लब्बैक इन्नल हम्दा व न्नेअ़मता, लका वलमुल्क लाशरीक लका।
तर्जुमा: मैं तेरे पास हाज़िर (उपस्थित) हुआ, ऐ अल्लाह मैं तेरे होज़ूर हाज़िर हुआ, तेरा कोई शरीक नहीं मैं तेरे होज़ूर हाज़िर हुआ  बेशक तारीफ और नेअमत और मुल्क तेरे ही लिए है तेरा कोई शरीक नही है। 
लब्बैक तीन बार कहे और दोरूद शरीफ पढे फिर दुआ मांगे एक दुआ यह भी है
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَسْئَلُکَ رِضَاکَ وَ الْجَنَّۃَ وَ اَعُوْذُ بِکَ مِنْ غَضَبِکَ وَ النَّارِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अस अलोका  रेदाका वल जन्नता व अइ़जो बेका मिन ग़ज़बेका वन्नार,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तेरी रज़ा (इच्छा) और जन्नत का साइल (सवाली ) हूं और तेरे गज़ब और जहन्नम से तेरी ही पनाह (श्रण) मांगता हूं।
जब हरम को पास पहुंचे सर झुकाए आंखें शर्म व गुनाह से नीची किए  प्रवेश करे हो सके तो पैदल नॆगे पांव तलबिया व दोरूद पढता रहे बेहतर यह है कि दिन में नहां कर दाखिल (प्रवेश) हो ,
जब मक्का मोअज़्ज़मा दिखाई दे तो यह दुआ पढे:
اَللّٰھُمَّ اجْعَلْ لِّیْ بِھَا قَرَارًا وَّارْزُقْنِیْ فِیھَا رِزْقًا حَلَالًا.
अल्लाहुम्मा अजअ़ल ली  बेहा क़रारवं वर्ज़ुक़्नी फिहा रिज़्क़न हलाला।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तु मुझे उस में बरक़रार रख और मुझे उस में हलाल रोज़ी दे।
फिर मक्का मोअ़ज़्ज़मा मे दाखिल हो और यह दुआ पढे.
اللهم أنْتَ رَبِيْ وَأنا عَبْدُكَ وَالْبَلَدُ بَلَدُكَ جِئْتُكَ هَارِبًا مِنكَ إلَيْكَ لِاُؤَدِّيْ فَرَائِضَكَ وَأطْلُبَ رَحمَتَكَ وَأَلْتَمِسَ رِضْوَانَكَ أسْأَلُكَ مَسْئَالَةَ الْمُضْطَرِّيْنَ إِلَيْكَ الْخَائِفِينَ عُقُوْبَتَكَ أسأَلُكَ أَنْ تُقَبِّلَنِيَ الْيَوْمَ بِعَفْوِِكَ وتُدخِلَنِيْ فِيْ رَحْمَتِكَ وتَتَجَاْوَزَ عَنِّي بِمَغْفِرَتِكَ وَتُعِيْنَنِي عَلٰى أَدَاْءِ فَرَائِضِكَ الّٰلهُمَّ نَجِّنِي مِن عَذَابِكَ وَافْتَحْ لِي أبْوَاْبَ رَحْمَتِكَ وَأدْخِلْنِيْ فِيْهَا وَأَعِذْنِيْ مِنَ الْشَّيْطَانِ الرَّجِيْم
अल्लाहुम्मा अन्ता रबब्बी व अना अब्दोका वलबलदो बलदोका जेअतोका हारेबान मिनका एलैक ले ओवद्देया फराएज़ाका व अतलोबा रहमतका वलतमेसा रिज़वानका अस्अलोका मस्अलताल मुज़्तर्रीना एलैकल खाएफीना ओक़ूबतका अस्अलोका अन तोकब्बेवलनेयलयौमा  बे अ़फवेका व तुदखेलनी फी रहमतेका वदखिलनी फिहा, वअइ़ज़नी मेनश्शैतॉनिर्रजीम
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरा रब है और मैं तेरा बंदा हूं और यह शहर तेरा शहर है, मैं तेरे पास तेरे अज़ाब से भाग कर हाज़िर हुआ कि तेरे फर्ज़ों को अदा करूं और तेरी रहमत को मांगू और तेरी रज़ा (मर्ज़ी) को तलाश करूं , मैं तुझसे इस तरह सवाल करता हुं जैसे मुज़तर और तेरे अज़ाब से डरने वालो सवाल करते हैं, मैं तुझ से सवाल करतालहूं कि आज तूं अपने अ़फू के साथ मुझको क़बूल कर और अपनी रहमत में मुझे दाखिल कर और अपनी मग़फिरत के साथ मुझ से दरगुज़र फरमा और फरज़ो के अदा करने पर मेरी मदद फरमा,  ऐ अल्लाह! मुझको अपनी अ़ज़ाब से निजात दे और मेरो लिए अपनी रहंत के दरवाज़े खोल दे,और उस में मुझे दाखिल कर और शैतान मरदूद से मुझे पनाह (शरण) में रख ।

जब मदआ मे पहुंचे जहां से काबा नज़र आता है यहां ठहर कर सभी मुसलमानों की मगफिरत की दुआ करे और सच्चे दिल से दरूद शरीफ पढता रहे और तीन बार अल्लाहु अकबर और तीन बार लाइलाहा इल्लल्लाह कहे और यह पढे,
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا سَأَلَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، وَاعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا اسْتَعَاذَكَ مِنْهُ نَبِيُّكَ مُحَمَّدٌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ،
रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार, अल्लाहुम्मा इन्ना नस्अलोका मिन खैरे मा सआलका मिनहो नबिय्येका मुहमदुन ﷺ व अउ़ज़ोबेका मिन शर्रे मस्तअ़ाज़का मिन्हो नबिय्येका मुहमदुन ﷺ,।
तर्जुमा: ऐ रब तू दुनिया में हमें भलाई दे और आखेरत में भलाई दे और जहन्नम के अ़ज़ाब से हमें बचा ऐ अल्लाह मैं इस खैर में से सवाल करता हूं, जिस का तेरे नबी  मुहम्मद ﷺ ने तुझसे सवाल किया और तेरी पनाह मांगता हूं उन चीज़ों के शर से जिन से तेरे नबी मुहम्मद ﷺ ने पनाह मांगी,
जब मक्का मुकर्रमा में पहुंच जाए तो सबसे पहले मस्जिदे हराम में जाए अल्लाह का ज़िक्र करते हुए  लब्बैक कहता हुआ बाबुस्सलाम तक पहुँचे पहले दाहिना पैर दाखिल करे और यह पढे। 
أَعُوذُ بِاللَّهِ الْعَظِيمِ وَبِوَجْهِهِ الْكَرِيمِ وَسُلْطَانِهِ الْقَدِيمِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ بِسمِ اللہ اَلحَمْدُ لِلّٰہ وَالسَّلْامُ عَلٰی رَسُولِ اللہ الّٰھُمَّ صَلِّ عَلٰی سَیّدِنَا مُحمّدِ وَ عَلٰی اٰلِ سَیّدِنَا مُحمّدِ وَّ اَزْواجِ سَیّدِنَا مُحمّدِ اَلّٰلھُمَّ اغْفِرلِی ذُنُوبِی وَفْتَحلِیْ اَبْوَابَ رَحمَتِکَ♦
अऊज़ो बिल्लाहिल अज़ीम व बे वजहेहिल करीम व सुल्तानेहिल कदीम मेनश्शैतॉनिर्रजीम बिस्मिल्लाहे  अल्हमदुलिल्लाहे वस्सलामो अला रसूलिल्लाह अल्लाहुम्मै सल्ले अला सय्यदेना मुहम्मदिंव व अला अाले सय्यदेना मुहंम्मदिंव व अज़वाजे सय्यदेना मुहम्मदिन  अल्लाहुम्मग्फिरली ज़ोनूबी वफ्तहली अब्वाब रहमतेका♦•

तर्जुमा: मै खुदा की पनाह मांगता हुं, और इस की वज्हे करीम की और क़दीम सल्तनत की मर्दूद शैतान से, अल्लाह के नां की मदद से सब खूब्यां अल्लाह के लिए और रसूलुल्लाह पर सलाम, ऐ! अल्लाह  दरूरद भेज हमारे आका मुहम्मद ﷺ और उन की आल और उन की बीवियों पर ऐ! अल्लाह मेरे गुनाह बख्श दे और मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।

जब काबा शरीफ पर नज़र पङे तो तीन बार,"ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर,, कहे 
(لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ)
और दरूद शरीफ और यह दुआ पढे "रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार,,
(رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ)
अब अल्लाह का नाम लेकर तवाफ (प्रिक्रमा)करे, तवाफ मताफ में हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के पास से शुरू होगा इस तरह कि हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के करीब पहुंच कर यह दुआ पढे,
لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَ حْدَہُ صَدَقَ وَعْدَہُ وَ نَصَرَ عَبْدَہ وَ ھَزَمَ الاَحْزَابَ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ المُلْكُ ؛ وَلَهُ الحَمْدُ ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ،
साइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू सदका वादहू व नसरा अब्दहू व ह़ज़मल अहज़ाबा वहदहू ला शरीक लहू, लहुल मुल्को व लहुल हम्दो वहुवा अ़ला कुल्ले शइन क़दीर।
तर्जुमा: अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही वह तन्हा है उस का कोई शरीक नही उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए हम्द है और वह हर चीज़ पर कादिर है।
तवाफ शुरू करने से पहले मर्द चादर को दाहिना बगल के नीचे से निकाल कर बाएं कंधे पर डाल ले दाहिना मुंढा खुला रहे,
अब काबा की तरफ मुंह कर के  हज्र-ए-अस्वद की दहीनी तरफ रुक्न-ए-यमानी की जानिब संग-ए-अस्वद के क़रीब यूं खङा हो कि तमाम पत्थर दाहिनी तरफ रहे फिर तवाफ की नियत करे,
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीदो तवाफ बैतेकल मुहर्रमे फयस्सिर्हो ली व तक़ब्बल हो मिन्नी,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اُرِیْدُ طَوَافَ بَیْتِکَ الْمُحَرَّامِ فَیَسِّرْہُ لِیْ وَ تَقَبَّلْہُ مِنِّیْ، 
तर्जमा: ऐ अल्लाह मैं तेरे इज़्ज़त वाले घर का तवाफ करना चाहता हुं इस को तू मेरे लिए आसान कर और इस को मुझ से क़बूल कर,
फिर काबा को मुंह किए अपनी दाहिनी तरफ चले जब हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) के सामने हो जाए तो कानो तक इस तरह हाथ उठाए कि हथेलिया हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) की तरफ रहें और कहे,
بِسْمِ اللّٰہِ وَالْحَمْدُِﷲِ وَاﷲُ أَکْبَرُ وَالْحَمْدُِﷲِ واَلصَّلاةُ وَالسَّلَامُ عَلٰی رَسُولِ اللّٰه 
बिस्मिल्लाहे वलहम्दुल्ल्लाह वल्लाहु अकबर वलहम्दुल्ल्लाह वस्सलात व वस्सलाम अ़ला रसूलिल्लाह,
तर्जुमा: अब हो सके तो हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) पर दोनो हथेलियां और उन के बीच में मुंह रख कर यूं चूमो कि आवाज़ ना पैदा हो तीन बार ऐसा करो यह नसीब हो तो बङी भाग्य की बात हो ,और अगर भीङ की वजह से  चूम ना सके तो धक्का मुक्की ना करे बल्कि हाथ से छू कर हाथ को चूम ले,यह भी ना हो सके तो हाथों को उस की तरफ करके हाथो को चूम ले,
 इन तरीक़ों से चुमने का नाम इस्तेलाम है,
इस्तेलाम के समय यह दुआ पढे,
 اللَّهُمَّ اغْفِرْلِی ذُنُوْبِیْ وَ طَھًِّرْلِیْ قَلَبِی وَاشْرَح لِی صَدَرِی وَ یسِّرْلِیْ اَمٔرِیْ وَ عَافٍنِی فِیْمَن عَافَیْتَ फिर اللَّهُمَّ  إِيمَانًا بِكَ , وَتَصْدِيقًا بِكِتَابِكَ ,وَوَفَاءً بِعَھْدِکَ وَاِتِّبَاعًا لِسُنَّةِ نَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللّٰه تَعَالٰي عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَشْهَدُ أَنَّ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ اللّٰه وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، وَاَشْهَدُأَنَّ مُحَمَّدا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ، آمَنْتُ يِا اللّٰه و كَفَرْتُ بِالْجِيْتِ وَالطَّاغُوْتِ.
 अल्लाहुम्मग्फिर्ली ज़ोनूबी व तह्हिरली क़लबी वश्रहली सदरी व यस्सिरली अमरी  व आफिनी फीमन आ़फैता
‘‘फिर‚‚ अल्लाहुम्म ईमानन बेका व तस्दीक़न बे किताबेका व वफाअ़न बे अ़हदेका व इत्तेबाअन ले सुन्नते नबिय्येका मुहम्मदिन ﷺ अश्हदो अन्ना ला इलाहा इल्लल्लाहो वह्दहू ला शरीका लहू,व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन अ़ब्दूहू व रसूलोहू, आमनतो बिल्लाहे व कफरतो बिलजीते वत्तागूते।

तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे दिल के पाक कर और मेरे सीना को खोल दे, और मेरे काम को आसान कर और मुझे आफियत दे उन लोगों में जिन को तू ने आ़फियत दी,
ऐ अल्लाह तुझ पर  ईमान लाते हुए और तेरी किताब की तस्दीक़ करते हुए और तेरे अहद (वादा) को पूरा करते हुए और तेरे नबी मुहम्मद ﷺ की इत्तेबा (अनुश्रण ) करते हुए मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा (अलावा) कोई माबूद (पुज्यनिय) नही जो अकेला है उस का कोई शरीक नहीं और गवाही देता हूं कि मुहम्मद ﷺ उस को बन्दे और रसूल हैं  अल्लाह पर मैं ईमान लाया और बुत और शैतान से मैने इन्कार किया।

कहते हुए काबा के दर्वाज़े की तरफ बढे जब  हज्र-ए-अस्वद के सामने से बढ जाए तो सीधा हो जाए और ऐसे चले की काबा बांए हाथ की तरफ पड़े,
चलने में किसी को तकलीप ना दे,
और काबा से जितना नज़दीक रहे बेहतर है मगर इतना नहीं कि बदन या कपड़ा दिवार से लगे,

1⃣ जब मुल्तज़िम (مُلتَزِم)(पूरब दीवार का वह हिस्सा जो रूक्न-ए-अस्वद से काबा के दरवाज़े तक है) को सामने आए यह दुआ पढे,
اَللّٰھُمَّ ھٰذَ الْبَیْتُ بَیْتُکَ وَالْحَرَمُ حَرَمُکَ وَالْاَمْنُ اَمَنُکَ وَھٰذَا مَقَامُ الْعَائِذِبِکَ مِنَ النَّارَ فَاَجِرْنِیْ مِنَ النَّارِ اَللّٰھُمَّ قَنِّعْنِیْ بِمَارَزَقْتُنِیْ وَبَارِکْ لِیْ فِیْہِ وَاخْلُفْ عَلٰی کُلِّ غَائِبَۃٍ م بِخَیْرٍ لَآ اِلٰہَ اِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہٗ لَہٗ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْیٍٔ قَدِیْرٌ
अल्लाहुम्मा हाज़ल बैतो बैतोका वलहरमो  हरमोका वलअमनो अमनोका व हाज़ा मक़ाम-उल-आ़एज़ेबेका मिनन्नारे फाजिर्नी मिनन्नारे अल्लाहुम्मा क़न्नेअनी, बेमा रज़क़तोनी व बारिक ली फीहे वख्लुफ अला कुलेलो गायेबतिन बेखैरिन लाइलाहा इल्लल्लाहो वहदहू ला शरीक लहू लहुलमुल्को वलहुल हम्दो व हुआ अ़ला कुल्ले शैइन क़दीर।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह यह घर तेरा घर है, और हरम तेरा हरम है और अमन तेरी ही अमन है, और जहन्नम से तेरी पमाह मांगने वाले की यह जगह है तू मुझको जहन्नम से पनाह (श्रण) दे ऐ अल्लाह जो तूने मुझको दिया मुझे उस पर क़ानेए कर दे और मेरे लिए उस में बरकत दे और हर ग़ायब पर भलाई के साथ तो ख़लीफा हो जा अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पुज्यनीय) नहीं, जो अकेला है उस का कोई शरीक नही और उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए हम्द और वह हर चीज़ पर क़ादिर है।

2⃣ और जब रुक्न-ए-इराक़ी (पूरब और उत्तर के कोने में) के सामने आए तो यह दुआ पढे,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَعُوْذُبِکَ مِنَ الشَّکِّ وَالشِّرْک وَالشِّقَاقِ وَالنِّفَاقِ وَسُوْئِ الْاَخْلَاقِ وَسُوْئِ الْمُنْقَلَبِ فِی الْمَالِ وَالْاَھْلِ وَالْوَلَدِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अउज़ोबेका मेनश्शक्के वश्शिर्के  वश्शेक़ाके़ वन्नेफाक़े व सुइल अख़लाक़े व सुइल मुन्क़लबे फिल माले वलअहले वलवलदे, 
तर्जुमा: ऐ अल्लाह मैं तेरी पनाह मांगता हूं शक और शिर्क और इख्तेलाफ और नफाक़ से और माल और अहल और औलाद में वापस होकर बुरी बात देखने से।
और जब मिज़ाब-ए-रहमत(सोने का परनाला:जो रुक्न-ए-इराक़ी व रुक्न-ए-शामी के बीच की उत्तरी दिवार पर छत मे लगा है।) के सामने आए तो यह पढे,
اَللّٰھُمَّ اَظِلَّنِیْ تَحْتَ ظِلِّ عَرْشِکَ یَومَ لَاظِلِّ اِلَّا ظِلُّکَ وَلَا بَاقِیَ اِلَّا وَجْھُکَ وَاسْقِنِیْ مِنْ حَوْضِ نَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّمْ شَرْبَۃً ھَنِیْئَۃٌ لَّا اَظْمَاُبَعْدَ ھَا اَبَدًا
अल्लाहुम्मा अज़िल्लनी तहता ज़िल्ले अ़र्शेका यौमा ला ज़िल्ला इल्ला ज़िल्लोका व ला बाकेया इल्ला वज्होका वस्क़ेनी मिन हौज़े नबिय्येका मुहम्मदिन ﷺ शर्बतन हनीयतन ला अज़माओ बाअ़दहा अ़बदन। 
तर्जुमा: इलाही तू मुझको अपने अ़र्श के साया (छांवों) में रख जिस दिन तेरो साया के निचे कोई साया नही और तेरी जा़त के सिवा कोई बाक़ी नही और तेरे नबी मुहम्मद ﷺ के हौज़ से मुझे खुश गवार पानी पिला कि इस के बाद कभी प्यास ना लगे।

3⃣ और जब रुक्न-ए-शामी (उत्तर पश्चिम कोने में) के पास पहुंचे तो यह पढे,
اَللّٰھُمَّ اجْعَلْہُ حَجّاً مَّبْرُوْرًاوَّسَعْیًامَّشْکُوْرًا وَّذَنْباًمَّغْفُوْرًاوَّتِجَارَۃً لَّنْ تَبُورَیَاعَالِمَ مَافِیْ الصُّدُوْرِ اَخْرِجْنِیْ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلٰی النُّورِ 
अल्लाहुम्म अजअ़लहो हज्जन मबरूरन व सअ़यन मश्कूरा व ज़म्बन मग़फूरा व तेजारतन लन तबूरा या आलेमा मा फि स्सोदूरे अख़्रिजनी मेनज्ज़ोलोमाते एलन नूर
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू इसे हज्ज-ए-मबरूर कर और सई़ मशकूर कर और गुनाह को बख्श दे और उस को वह तेजारत करदे जो हलाक (बरबाद) ना हो, ऐ! सीनों की बातें जानने वाले मुझ को तारीकियों (अंधेरों) से नूर (रोशनी/किरण) की तरफ निकाल।

4⃣ और जब रुक्न-ए-यमानी  (पश्चिम और दक्षिण का कोना) के पास आए तो उसे दोनो हाथों या दाहिने हाथ से छूए और चाहे तो चूम भी ले और यह दुआ पढे,
، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي الدِّيْنِ وَ الدُّنْيَا وَالْاٰخِرَةِ.
अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोकल अफ्व वलआ़फियता फिद्दीने व द्दनिया वल आखेरते,
तर्जुमा:
रुक्न-ए-यमानी से आगे बढते ही मुस्तजाब (रुक्न-ए-यमानी और रूक्न-ए-अस्वद के बीच की दीवार,यहां 70,000फरिश्ते दुआ में आमीन कहने के लिए तैनात हैं)
यहां उपर वाली या यह दुआ पढे
رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ,
रब्बना आतेना फिद्दुनिया हसनतौं व फिल आख़िरते हसनतौं वक़िना अ़ज़ाबन्नार,
तर्जुमा: ऐ रब तू दुनिया में हमें भलाई दे और आखेरत में भलाई दे और जहन्नम के अ़ज़ाब से हमें बचा,
या सिर्फ दोरूद शरीफ पढे दुआ दरूद चिल्ला कर ना पढे, अब चारो तरफ घूमता हुआ हज्र-ए-अस्वद पर लौट आया तो यह एक फेरा हुआ  इस वक्त भी हज्र-ए-अस्वद का इस्तेलाम करे अब ऐसे ही 6फेरे और करे यानी कुल 7 फेरे करे पहले तीन फेरों में रमल (सीना उभार कर शाना हिलाते हुए ज़रा तेज़ चलना) भी करे अब जब यह 7 फेरे पूरे हो चुके तो एक तवाफ हुआ इसे तवाफ-ए-क़ोदूम कहते हैं, तवाफ के बाद मक़ाम-ए-इब्राहीम पर आए और यहां यह आयत पढे, 
وَاتَّخِذُوا مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى ۖ 
वत्तखेज़ू मिम्मक़ामे इब्राहीमा मुसल्ला।
तर्जुंमा: और मक़ाम इब्राहीम से नमाज़ की जगह बनाअो,

::तवाफ की नमाज़::
फिर दो रकात नमाज़े तवाफ पढे यह नमाज़ वाजिब  इस की पहली रकाअत में सूरह काफेरून दूसरी में क़ुल हुअल्लाह पढे, यह नमाज़ पढ कर दुआ मांगे हदीस में यह दुआ है،
اللَّهُمَّ إِنَّكَ تَعْلَمُ سِرِّي وَعَلانِيَتِي فَاقْبَلْ مَعْذِرَتِي ، وَتَعْلَمُ حَاجَتِي فَأَعْطِنِي سُؤْلِي ، وَتَعْلَمُ مَا فِي نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي ذُنُوبِي ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ إِيمَانًا يُبَاشِرُ قَلْبِي , وَيَقِينًا صَادِقًا حَتَّى أَعْلَمَ أَنَّهُ لا يُصِيبُنِي إِلَّا مَا كَتَبْتَ لِي وَرِضًي مِنَ الْمَعِيْشَةِ بِمَا قَسَمْتَ لِي يَا ارْحَمَ الرَّحِمِينَ،
अल्लाहुम्मा इन्नका तअ्लमो सिर्री व अलानियती फाकबल माज़ेरती व तअलमो हाजती फआअ़तीनी सुअली, व तअलमो मा फी नफसी फगफिरली ज़ोनूबी अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोका  इमानन योबाशेरो क़लबी, व यक़ीनन सादेकन हत्ता आअलमो अन्नहू ला योसीबोनी इल्ला मा कतबता ली व रेजाअन मेनल मइशते बेमा क़समता ली या अरहमर्राहेमीन।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह तू मेरे पोशीदा (छुपा हुआ) ज़ाहिर को जानता है तू  मेरी माज़रत को कबूल कर और तू मेरी  जरूरत को जानता है  मेरा सवाल मुझ को अता कर (दे) और जो कुछ मेरे नफ्समें है तू उसे जानता है तू मेरो गुनाहों को बख्श दे ऐ अल्लाह मैं तुझ से उस ईमान का सवाल करता हूं जा मेरे दिल में चला जाए और सच्चा यकीन मांगता हूं ताकि मैं जान लूं कि मुझे वही पहुंचेगा जो तुने मेरे लिए लिखा है और जो कुछ तुने मेरी क़िस्मत में किया है उस पर राज़ी रहूं ऐ सब मेहरबानों से ज़्यादा मेहरबान।
मुल्तज़िम से लिपटना::
नमाज़ और दुआ से फारिग़ होकर मुल्तज़िम के पास जाए और हज्र-ए-असवद के क़रीब मुल्तज़िम से लिपटे सीना दाहिना बायां चेहरा उस पर रखे और दोनो हाथ सर से उंचा कर के दिवार पर फैलाए और यह दुआ पढे،
يَا وَاجِدُ يَا مَاجِدُ  لَا تُزِلْ عَنِّي نِعْمَةً اَنْعَمْتَهَا عَلَيَّ.
या वाजेदो या माजेदो ला तोज़िल अन्नी नेअमतन अनअ़मतहा अलय्या।
तर्जुमा: ऐ क़ुदरत वाले, ऐ बुज़ुर्ग तुने मुझे जो नेअमत दी उस को मुझ से खत्म ना कर ।

ज़मज़म::
फिर ज़मज़म पर आओ और काबा को मुंह कर के तीन सांसों में पेट भर कर जितना पिया जाए  खड़े होकर पियो, हर बार बिस्मिल्लाह से शुरू करो और अल्हम्दु लिल्लाह पर खत्म और हर बार काबा मोअज़्ज़मा की तरफ निगाह उठा कर देख लो , बाकी बदन पर डाल लो या मुंह सर और बदन पर मसह कर लो और पीते वक्त दुआ करो कि क़बूल है, रसूल ﷺ फरमाते हैं ‘‘ज़मज़म जिस मुराद से पिया जाए उसी के लिए है‚‚ 
( سنن ابن ماجہ کتاب الناسک حدیث ۳۰۶۲)
ज़मज़म पीेने की दुआ यह है,
اَللّٰھُمَّ اِنِّیْ اَسْأَلَكَ عِلْمًا نَافِعًا وَ رِزقًا وَاْسِعًا وَشِفَآء مِنْ کُلِّ دَآءٍ.
अल्लाहुम्मा इन्नी असआलोका इल्मन नाफेअन व रिज़्क़न वासेअन व शिफाअ मिन कुल्ले दाअ।
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मैं तुझ से इल्मे नाफेअ (मुनाफा) और कुशादा रिज़्क़ और हर बिमारी से शेफा का सवाल करता हूं।

सफा मरवा की सई़ ::
फिर बाब-ए-सफा (सफा का दरवाज़ा)  से सफा पहाड़ी की तरफ चले ज़िक्र व दरूद पढते हुए सफा की पहली सीढी पर चढे और चढने से पहले यह दुआ पढे,

اَبْدَأُ بِمَا بَدَأَ اللّٰهُ بِهٖ إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ,
(ملا علی قاری،مرقاة المفاتيح،الفصل الاول، 7: 6)
मैं इस को शुरू करता हूं जिस को अल्लाह ने पहले ज़िक्र किया, बेशक सफ़ा और मरवा अल्लाह की निशानियों से है, जीस ने  हज़ या उमराह किया, उस पर इन के तवाफ करने में कोई गुनाह नहीं है और जो व्यक्ती नेक काम करे तो बेशक अल्लाह बदला लेने वाला जानने वाला है।
फिर काबा की तरफ मुंह करके दोनो हाथ कंधों तक दोआ की तरह फैले हुए उठाओ, और इतनी देर तक ठहरो जितनी देर में सूरह बक़रा की 25 आयतों  की तेलावत की जाए, और तस्बीह तहलील दोरूद पढो अपने और दोस्तों के लिए दुआ करो। 

सई़ की नियत ::
जब दुआ कर चुके तो सई की नियत करे،
اَللّٰـھُمَّ اِنِّـیْ اُرِیْدُ السَّــعْيَ بَــيْنَ الصَّفَــاو الْمَرْوَةَ فَیَسِّــرْہُ لِیْ وَ تَقَبَّلْہُ مِنِّيْ•
अल्लाहुम्मा इन्नी ओरीदुस्सअया बैन स्सफा वलमरवा फयस्सिरहो ली व तक़ब्बलहो मिन्नी।
फिर सफा से उतर कर मरवा को चले ज़िक्र व दरूद पढता रहे, जब पहला मील आए(जो की छत की जानिब एक मील तक हरी रोशनी लगा दी गई है) यहां से मर्द दौड़ना शुरू करे (मगर ना हद से ज़्यादा और ना किसी को तकलीफ देते) फिर दूसरे मील से थोड़ा आगे तक दौड़ता चला जाए, फिर आहिस्ता चले और यह पढता हुआ,
رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَتَجَاوَزْ عَمَّا تَعْلَمُ وَ تَعْلَمُ مَا لَا نَعْلَمُ، إِنَّکَ أَنْتَ الْأَعَزُّ الْأَکْرَمُ، اَللّٰهُمَّ اجْعَلْه حَجًّا مَّبْرُوْرًا وَّسَعْيًا مَّشْکُورًا وَّذَنْبًا مَّغْفُوْرًا. اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِيْنَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَا مُجِيْبَ الدَّعْوَاتِ، رَبَّنَا تَقَبَّلْ  مِنَّا اِنّكَ اَنْتَ السَّمِيْع الْعَلِيْمُ وَتُبْ عَلَيْنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ. رَبَّنَا اٰتِنَا فِی الدُّنْيَا حَسَنَةً وَّفِي الْآخِرَةِ حَسَنةً وَّقِنَا عَذابَ النَّارِ.
रब्बिग्फिर वर्ह़म व तजावज़ अ़म्मन तअ़लम व तअ़लमो मा ला नअ़लमो इन्नका अन्तल आअज्जुल अकरमो अल्लाहुम्मा अजअलहो हज्जन मबरूरा व सअ़यन मश्कूरा व जनबन मगफूरा अल्लाहुम्मा इग्फिर्ली वले वालेदय्या वलमुअमेनीना वल मुअमिनात या मुजीब द्दावात रब्बना तक़ब्बल मिन्ना इन्नका अन्तल समिय्युल अलीम व तुब अलैना इन्नका अन्त त्तव्वाब -उर- रहीम रब्बना आतेना फिद्दनिय हसनतव व फिल आखिरते हसनतंव वकिना अ़जाबन नार।
मरवा तक पहुंचो यहां पहली सीढी पर चढने बल्कि उस के क़रीब होने से मरवा पर चढना हो गया लेहाजा बिल्कुल दिवार से ना मिलै रहे कि यह जाहिलों का तरीक़ा है, यहां से काबा नज़र नही आता मगर काबा की तरफ मुंह करके जैसे सफा पर किया था तस्बीह,तकबीर, हम्द व स़ना दरूद दुआ,यहां भी करो।
यह एक फेरा मुकम्मल यानी पूरा हुआ, 
फिर यहां से सफा को ज़िक्र व दरूद और दुआएं पढते हुए जाओ, जब हरा ट्यूब लाइट के पास पहुंचो तो उसी तरह दौड़ो और फिर आहिस्ता होलो, फिर आओ जाओ यहां तक कि सातवां फेरा मरवा पर खत्म होगा और हर फेरे में उसी तरह करो इस का नाम सईं है ।
अब सई के बाद मक्का में 8वीं तारीख तक ठहरे और लब्बैक कहा करे ,और खाली/सिर्फ तवाफ किया करे और हर सात फेरे पूरे होने पर मक़ाम-ए-इब्राहीम में दो रकात नमाज़ पढा करे 7वीं तारीख ज़ुहर बाद मस्जिद-ए-ह़राम में जो खुत्बा इमाम पढे उसे सुने,

:: मेना को रवानगी ::
फिर जब 8वीं तारीख (يوالتَّرويه) की सुब्ह हो तो सूरज निकलने को बाद मक्का से मेना की तरफ चले रास्ता भर लब्बैक व दुआ व दरूद व स़ना पढता रहे जब मेना दिखाई पड़े यह पढे,
 اَللَّہُمَّ ھَذِہِ مِنَی فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتُ بِہِ عَلَی اَوْلِیَائِکَ،
अल्लाहुम्मा हाज़ेही मेनयन  फमनुन अ़लय्या बेमा मननतो बेही।
तर्जुमा: एलाही यह मेना है मुझ पर तु वह एहसान कर जो अपने औलिया पर तूने किया,
मेना पहुंच कर यहां रात को ठहरे आज ज़ोहर से नवीं की सुबह तक पांचो नमाज़ें यहीं मस्जिद-ए-ख़ीफ में पढे।
अरफात::
अरफा की रात यानी नवीं रात को मेना में इबादत में गुज़ारे जब नवीं की सुबह हो तो फज्र पढ कर ज़िक्र व दरूद में लगा रहे जब सूरज बुलन्द हो जाए तो अरफात की तरफ चले रास्ता भर लब्बैक दरूद दुआ  पढता रहे, जब जबल-ए-रहमत दिखाई दे ज़िक्र व दुआ ज़्यादा करे कि यह क़बूलियत का समय है, अरफात में जहां जगह मिले रास्ते से हट कर खड़े हो जाए, जब दोपहर करीब हो तो नहाए कि सुन्नत -ए- मुअक्केदा है और ना हो सके तो सिर्फ वजू करे दोपहर ढलते ही मस्जिद-ए-नमरा पहुंचे सुन्नत पढ कर खुत्बा सुने और इमाम के साछ ज़ोहर पढे उस के बाद ही अस्र की तकबीर होगी साथ ही जमात से अस्र पढे ज़ोहर अस्र के बीच सलाम व कलाम कैसा, सुन्नतें भी ना पढे और अस्र के बाद भी नफ्ल नहीं,

 वक़ूफ-ए-अरफा:
अब अस्र पढते ही मुक़फ में जाए और सुर्यास्त तक ज़िक्र दरूद दुआ में लगा रहे, जब सूरज डूब जाए फौरन मुज़्दल्फा में जाए इमाम के साथ, अगर ईमाम देर करे तो उस का इन्तेज़ार ना करे रास्ता भर लब्बैक,दुआ,दरूद में लगे रहो रास्ता में अगर हो सके तो तेज़ चलें चाहे पैदल या सवारी पर।
जब मुस्तफा दिखाई पड़ी है तो पैदल हो जाना पैदल हो जाना बेहतर है और नहा कर दाखिल होना अच्छा है दाखिल होते वक्त यह दुआ पढ़ें, 

اللَّهُمَّ هٰذاجَمـعُ نَسْئَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ،
अल्लाहुम्मा हाजा़ जमअा  नसअलोकल अफ्वा वलआफियता फिद्दुनिया वलआखेरते।
यहां पहुंचकर जबल-ए-क़ज़ह (एक पहाड़ी का नाम) के पास रास्ता से बच कर उतरे यह ना हो सके तो जहां जगह मिले, अब यहां मग़रिब व ई़शा साथ पढे चाहे मगरिब का वक्त बाक़ी ही क्यूं ना हो यहां ईशा के समय में मगरीब व इशा दोनो अदा की नीयत से पढी जाएगी, पहले मगरिब के फर्ज़ पढे उस के फौरन बाद इशा की फर्ज़ फिर मगरीब व ईशा की सुन्नतें फिर वित्र, इन नमाज़ों के बाद बाक़ी रात ज़िक्र,दुआ दरूद में गुज़ारना बेहतर है कि यह बहुत अफज़ल (बेहतर) अफज़ल रात है।

मशअर-उल-हराम का वकूफ::
सुबह बहुत अंधेरे फज्र पढी जाए, और फज्र के बाद मशअर-उल-हराम मे यानी खास पहाड़ी पर और ना हो सके तो उस के दामन में और यह भी ना हो सके तो वादि-ए-मुहस्सिर (एक फिल्ड का नाम)  के सिवा जहां जगह मिले वक़ूफ करो यानी ठहर कर जैसे अरफात में किया था लब्बैक दुआ दरूद में लगे रहो,
समय: इस का समय फज्र का वक्त शुरू होने से उजाला होने तक है, इस वक्त यहां ना आया तो वकूफ ना पाया गया।

::10वीं  तारीख की इबादत::
अब जब सूरज निकलने में दो रकात पढने की समय बाकी रह जाए इमाम के साथ मिना को जाए और यहां से 7छोटी छोटी कंकरियां खोजूर की गुठली बराबर की,पाक (पवित्र) जगह से उठा कर तीन बार धो कर साथ रखे रास्ता भर लब्बैक दरूद दुआ में लगा रहे और यह दुआ भी पढे,
اللَّهُمَّ لاَ تَقْتُلْنَا بِغَضَبِكَ وَلاَ تُهْلِكْنَا بِعَذَابِكَ وَعَافِنَا قَبْلَ ذَلِكَ.
अल्लहुम्मा ला तक़तुलना बे ग़ज़बेका वला तुहलिकना बे अज़ाबेका व आ़फिना क़ब्ला ज़ालेका,
तर्जुमा: ऐ अल्लाह अपने गजब (गुस्सा) से हमे क़त्ल ना कर और अपने अज़ाब से हलाक ना कर और इस से पहले हमे आफियत (राहत/आराम) दे।

जब मेना दिखाई दे यह पढे,
اَللَّہُمَّ ھَذِہِ مِنَی فَامْنُنْ عَلَیَّ بِمَا مَنَنْتُ بِہِ عَلَی اَوْلِیَائِکَ،
अल्लाहुम्मा हाज़ेही मेनयन  फमनुन अ़लय्या बेमा मननतो बेही।
तर्जुमा: एलाही यह मेना है मुझ पर तु वह एहसान कर जो अपने औलिया पर तूने किया,
जब मेना को पहुंचे तो सब कामों से पहले जमरत-उल-उक़बा (جمرةالعقبه) जाए जमरा से कम से कम 5 हाथ दूर यूं खड़ा हो कि मक्का मोअज़्ज़मा से पहले नाले के बीच में सवारी पर रहे, मेना दाहिने हाथ पर और काबा शरीफ बांए हाथ को हो, और मुंह जमरा की तरफ हो।

रमी का तरीका::
एक कंकरी चुटकी में ले  और हाथ उठा कर कि बगली दिखाई देने लगे यह पढ कर،
بِسْمِ اللّٰهِ اَللّٰهُ اَكْبَرُ رَجمًا لِلشَّيْطَانِ رِضًا لِلْرَحْمٰنِ اللَّهُمَّ اجْعَلْهُ حَجًّا مَبْرُورًا وَ سَعْيًا مَشْكُوْرَا وَذَنْبًا مَغْفُورًا
बिस्मिल्लाहे अल्लाहु अकबर रजमन लिश्शैतान राजाअन लिर्रहमाने अल्लाहुम्मा अजअलहो हज्जन मबरूरा व सअंयन मश्कूरा व जनबन मग़्फूरा।
तर्जुमा: अल्लाह के नाम से शुरू अल्लाह बहुत बड़ा है शैतान के ज़लील करने के लिए अल्लाह की रेजा के लिए ऐ अल्लैह इस को हज्ज-ए-मबरूर कर और सई मश्कूर कर और गुनाह बख्श दे।
मारो बेहतर है कि कंकरियां जमरा चक पहुंचे नही तो तीन हाथ की दूरी तक रहे इस से ज़्यादा दूर तक जो गिरेगी उस की गिन्ती ना होगी,इसी तरह 7 कंकरी एक एक करके मारे पहले ही कंकरी से लब्बैक बंद कर दे जब सातों कंकरी मार चुके तो वहां ना खड़ा रहे ज़िक्र व दुआ करते हुए लौट आए,

समय: इस रमी का समय 10वीं की फज्र से 11वीं की फज्र तक हैमगर सुन्नत यह है कि सुरज निकलने के बाद से ज़वाल तक कर ले।
(در مختار،ردالمحتاركتاب الحج ج3ص 610)

हज की क़ुर्बानी:
अब रमी को करने के बाद कुर्बानी में लग जाए, कुर्बानी करके अपने और सब मुसलमानो के हज और कुर्बानी क़बूल होने की दुआ मांगे फिर क़ुर्बानी की दुआ मांगे, फिर कुर्बानी के बाद क़िब्ला रुख बैठ कर हलक करें यानी पूरा सर मुंडवाएं या बाल कतरवाएं लेकिन मुंडाना बेहतर है मगर औरतों को बाल मुंडवाना हराम है वह एक पौरा बराबर कतरवा दे  बाल को दफन करदें यहां बाल बनवाने से पहले ना नाखुन कतरवाए ना दाढी मंछ बनवाएं वरना दम लाज़िम आएगा, हां अगर सर मुंडाने के बाद मुंछ बनावे ,नाफ के बाल बनाए तो कोई हर्ज नहीं  बल्ती मुस्तहब है, लेकिन दाढी फिर ऩा बनाए पहले दाहिनी तरफ के बाल मुंडाए फिर बाएं का और मुंडाते वक्त 
اللّٰهُ أكبَرُ اللّٰهُ أكبَرَ لَاْ إِلٰهٰ إِلَّا اللّٰهُ وَ اللّٰهُ أكبَرُ اللّٰه أكبرُ ولِلّٰهِ الْحَمْدُ،
अल्लाहो अकबरो  अल्लाहो अकबरो ला इलाहा इल्लल्लाह वल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर व लिल्लाहिल् हम्द।
यह पढो,शुरू से आखिर तक बार बार यह कहते जाओ और बाद में भी कहो, और मुंडाते वक्त यह भी पढो،
الْحَمْدُلِلّٰهِ عَلٰي مَا هَدانَا وَاَنْعَمَ عَلَيْنَا وَ قَضَا عَنَّا نُسْكَنَا اَللّهُمَّ هَذِهٖ نَا صِيَتِي بَيَدِكَ فَاجْعَلْ لِي بِكُلِّ شَعْرَةٍ نُورا يَّومَ الْقِيَامَةِ وَامْحُ عَنِّي بِهَا سَيِّـئَةً وَارْفَع لِيْ بِهَا دَرَجَةً فِي الْجَنَّةِ الْعَالِيَةِ،
اَللّٰهُمَّ بَاْرِك لِي فِي نَفْسِيْ و َ تَقَبَّلْ مِنِّيْ،
اَللّٰـهُمَّ اغْفِرْلِي و لِلْمُـحَـلِّقِيْنَ وَالْمُقَصِّرِيْنَ يَا وَاسِعَ الْمَـغْفِرَةِ اٰمِيْن

अल्हम्दु लिल्लाह अ़ला मा हदाना व अनअमा अ़लैना व क़ज़ा अ़न्ना नुस्कना,
अल्लाहुम्मा हाजेही नासेयती बेयदेका फजअल्ली बेकुल्ले शअ़रतिन नुरय्यौमाल क़्यामते वम्हो अ़न्नी बेहा सय्येआतिन वर्फअ़ ली बेहा दरजतन फील जन्नतिल आलिया,
अल्लाहुम्मा बारिक ली फी नफ्सी व तक़ब्बल मिन्नी،
अल्लाहुम्मा ग्फिरली व लिलमुहल्लेक़ीना वल मुक़स्सेरीना या वासेयल मगफिरते आमीन।
अब सब मुयलमानो की बख्शिश की दुआ करे।
अब बाल बनवाने के बाद अहराम की वजह से जो बातें हराम थीं अब वह हलाल हो गईं सेवाए औरत से सोहबत (sex) और उसे शहवत की नज़र से हाथ लगाने बोसा (kiss) शर्मगाह देखने के कि यह बीतें अब भी हराम है,
अब बाल बनवाने के बाद बेहतर यह है कि आज 10वीं को मक्का पहुंचो फर्ज़ तवाफ के लिए यह तवाफ हज का दूसरा रूक्न है,य ह तवाफ भी वैसे ही होगा जैसे पहला चवाफ हुआ था मगर इस में इज्तेबाअ़ नही है, उस के बाद भी दो रकात बदस्तूर पढे इस तवाफ के बाद अपनी औरतें हलाल हो जाएंगी अब अस्ल हज पूरा हो गया, लेकिन अभी फिर मेना वापस आए ग्यारहवीं बारहवीं रातें मेना में गुज़ारे कि सुन्नत है जैसा कि दसेवी रात मेना में  रहना सुन्नत है।

::11वीं  तारीख की इबादत::
11वीं  तारीख ज़ोहर के बाद इमाम का ख़ुतबा सुन कर फिर रमी को जाए  इन दिनो में रमी जमरा उला से शुरू करे जो मस्जिद-ए-खीफ के क़रीब है इस रमी के लिए मक्का के रास्ते की तरफ आ कर चढाई पर चढे यां क़िब्ला रू होकर 7 कंकरियां मारे जैसे दस्वीं को रमी की थी सातवीं कंकरी मार कर जमरा से आगे बढ जाए और काबा की तरफ मुंह करके दुआ के लिए यूं हाथ बढाए की हथेलिया किबला की तरफ हो और कम से कम 20 आयतें  पढने के बराबर देर तक हम्द दरूद अस्तगफार व दुआ करता रहे या ज़्यादा देर तक इतना कि सुरह बक़र पढी जा सके फिर जमर-ए-वुस्ती पर जाकर यूं ही रमी और दुआ करे फिर जमरत-उल-उक़बा पर मगर यहां रमी करके ना ठहरे, उसी दम पलट आए पलटते में दुआ करे फिर बारहवीं तारीख बिलेकुल इसी तरह ज़वाल के बाद तीनों जमरों की रमी करे।
बारहवीं की रमी करके सूरज डूबने से पहले मक्का को रवाना हो जाए और चाहे तो रहे तेरहवीं को वापस हो, लेकिन फिर तेरहवीं को दोपहर ढले रमी करके जाना होगा यही बेहतर है, अखीर दिन यानी बारहवीं या तेरहवीं को जब मेना से रुख्सत हो कर मक्का को चले तो वादिये मुहस्सब में जो जन्नत-उल-मुअल्ला के क़रीब है कुछ देर ठहर कर दुआ करे बेहतर यह है कि इशा तक नमाज़ें यहीं पढे, एक निंद लेकर मक्का में प्रवेश करे,अब तेरहवीं के बाद जब तक जी चाहे मक्का में ठहरे रहो उमरे और ज़्यारत करते रहो जब मक्का से जाने का इरादा हो तो बेगैर रमल और सई के तवाफ करो यह तवाफ बाहर वालों पर वाजिब है तवाफ के बाद बदस्तूर दो रकात मक़ाम-ए-इब्राहीम मे पढो,फिर ज़मज़म के पास आकर उसी तरह पानी पिए और बदन पर डाले फिर काबे के दर्वाज़े के सामने खड़ा होकर उस की पाक (पवित्र) चौखट को चुमें और हज व ज़्यारत कबूल होने बारबार हाजिर होने की दुआ मांगे, और यह पढे
 اَلسَّائِلُ بِبَابِكَ يَسْلُكَ مِنْ فَضْلِكَ وَ مَعْرُوْفِكَ وَيَرْجُوْ رَحْمَتِكَ
अस्साएलो बेबाबेका यस अलोका मिन फजलेका व माअरूफेका व यरजू रहमतेका, 
तर्जुमा: तेरे दरवाज़े पर साएल तेरे फज़्ल व एहसान का सवाल करता है और तेरी रहमत का उम्मीदवार है।
फिर मुल्तज़िम पर आकर ग़लाफे काबा थाम कर उसी तरह लिपटो ज़िक्र दरूद व दुआ खूब पढो, उस वक्त यह दुआ पढो,
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي هَدَانَا لِهَٰذَا وَمَا كُنَّا لِنَـهْـتَدِيَ لَوْلَا أَنْ هَدَانَا اللَّهُ اَللّٰهُمَّ فَكَمَا هَدَيْتَنَا لِهَذا فَتَقَبَّلْهُ مِنَّاْ وَ لَا تَجْعَلْ هَذَا اٰخِرَالعَهْدِ مِن بَيْتِ الحَرَامِ وَرْزُكْنِي العَوْدِ اِلَيْهِ حَتّي تَرْضٰي بِرَحْمَتِكَ يَاْ اَرْحَمَ الْرَّاحِمِيْنِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ وَصَلَّي اللّٰـهُ عَلَيْ سَيِّدِنَا مُحَمّدِوَّاٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ اَجْمَعِيْنَ،
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी हदाना लेहाज़ा व मा कुन्ना ले नहतदेय लौ ला अ़न हदाना अल्लाहु अल्लाहुम्मा फकमा हदैतना लेहाज़ा फतक़ब्बल्हू मिन्ना व ला तजअ़ल हाज़ा आखेरल अ़हदे मिन बैतिल हरामे वर्ज़ुक़निल औदे इलैहे हत्ता तरदा बे रहमतेका या अरहमर्राहेमीन वलहम्दूलिल्लाहे रब्बिल आलमीन व सल्लल्लाहू अला सय्यदेना मुहम्मजिव व आलेही व सहबेही अजमईन,

फिर हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) को चूमो और रोरो कर यह पढो,
يَا يَمِينَ اللّٰهِ فِي اَرْضِهٖ اِنِّي اُشْهِدُكَ وَ كفٰي بِا اللّٰه شَهِيْداً اِنِّي أَشْهَدُ أَنْ لَّا إِلَٰهَ إِلَّإ اللّٰهُ وَأَشْهَدُ انَّ مُحَمّداً رَّسُوْلُ اللّٰهِ وَ اَنَا اُوَدِّعُكَ هَذِهٖ الشَّهَادَةَ لِتَشْهَدَلِيْ بِهَا عِنْدَ اللّٰهِ تَعَالٰي فِي يَوْمِ الْقِيَامَةِ يَومِ الفَرْعِ الْاَكْبَرِ اَللّٰهُمَّ اِنِّي اُشْهِدُكَ عَلَي ذَالِكَ وَاُشْهِدُمَلٰئِكَتِكَ الْكِرَاْمِ وَصَلَّي اللّٰـهُ عَلَيْ سَيِّدِنَا مُحَمّدِوَّاٰلِهٖ وَصَحْبِهٖ اَجْمَعِيْنَ،
या यमीन ल्लाहेलफी अर्जेका इन्नी उश्हेदोका व कफा बिल्लाहे शहीदन इन्नी अश्हदो अन लाइलाहा इल्लल्लाहू व अश्हदू अन्ना मुहम्मदर्रसूलूल्लाह  व अना ओवद्देओका हाज़ेही श्शहादता ले तश्हदली बेहा इन्द ल्लाहे तआला  फी यौमील क़यामते यौमिल फर्ईल अकबर अल्लाहुम्मा इन्नी उश्हेदुका अ़ला ज़ालेका व उश्हेदू मलाएकतेकल केरामे व सल्लल्लाहू अला सय्यदेना मुहम्मजिव व आलेही व सहबेही अजमईन,

फिर उलटे पांव काबा की तरफ मुंह करके या सीधे चलने में उलट उलट कर हसरत से देखता रहे उस की जुदाई पर रोते रहे और मस्जिद-ए-हराम से बाया पैर पहले निकाले और मस्जिद से निकलने वाली दुआ पढे, फिर मक्का के फकीरों को जो कुछ हो सके दे।
(استفاده از : بہار شریعت و قانون شریعت و کیمیاء سعادت باب بیانِ حج)

मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami