neyaz ahmad nizami

Wednesday, August 28, 2019

अपनों की क़ब्र पर जाने से मुर्दा को सोकून मिलता है: नेयाज़ अहमद निज़ामी



अपने अज़ीज़,प्यारे, जाने पहचाने लोगों की क़ब्र  पर जाने से उन्हे उन्स सोकून मिलता है,
पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:
„انس ما يكون للميت في قبره اذا زاره من كان في دار الدنيا“
तर्जुमा: क़ब्र में मुर्दा का ज़्यादा जी बहलने का वह समय होता है, जब ज़्यारत (दर्शन) को वह व्यक्ती आए जिसे दुनिया में मित्र रखता था। ( شفاءالسقام ص 65)

हज़रत आएशा रजियल्लाहू अन्हू से रावी कि होज़ूर ﷺ ने फरमाया:
ما من رجل یزور قبر اخیه و يجلس عليه الا استانس ورد عليه حتي يقوم.
तर्जुमा: जो व्यक्ती अपने भाई की क़ब्र की ज़्यारत को जाए, और उस के पास बैठे तो वह मुर्दा उस से उन्स (सोकून) हासिल (प्राप्त) करता है। उस का दिल उस को बैठने से बहलता है, और जब तक वह व्यक्ती उस के पास से ना उठे उस का जवाब देता है। (القبور از ابن ابی الدنیا)

अहयाउल ऊलूम की शरह(गाइड) पेज नंम्बर 367में है,
الفضل بن الموفق ابن خال سفيان بن عيينة قال:  لما مات أبي جزعت جزعا شديدا فكنت آتي قبره في كل يوم ثم اني قصرت عن ذلك فرأيته في النوم  فقال: يا بني! ما أبطأ بك عني؟ قلت وإنك لتعلم بمجيئي؟ قال ما جئت مرة إلا علمتها وقد كنت تأتيني فأسر بك ويسر من حولي بدعائك قال:  فكنت آتيه بعد كثيرا.

तर्जुमा:  फज़्ल बिन मोफिक़ सुफियान बिन ऐनिया के मामू ज़ाद भाई कहते हैं कि जब मेरो पिता का देहांत हुआ मैं बहुत परिशान हुआ तो हर रोज़ उन की क़ब्र को दर्शन (ज़्यारत) क जाता था, फिर मैं ने इस में कुछ सुस्ती कर दी, तो उन को ख्वाब ( स्वपन/सपना) में देखा तो कहा:
ऐ मेरे बेटे! क्यूं तुझे मुझसे देर होने लगी?
मैं ने  कहा कि क्या आप को मेरे आने की खबर होती थी?
उन्होने कहा: जब जब तुम आए मुझे खबर हो गई,
और जब तुम आते थे तो मैं तुम्हारे आने की वजह से ख़ुश होता था,
और तुम्हारी दुआ की वजह से मेरे इर्द गिर्द (आजू बाजू) के लोग ख़ुश होते थे,
फज़ल बिन मोफिक कहते हैं यह सुन कर मैं बहुत ज़्यादा जाने लगा।
और इसी किताब में है
قال الحافظ ابو طاھر السلفی سمعت ابا البرکات عبد الواحد بن عبدالرحمن ابن غلاب السوسی بالاسکندریة يقول: سمعت والدتی تقول: رأیت امی فی المنام بعد موتھا و ھی تقول یا ابنتی! اذا جِئتنی زائرۃ فا اقعدی عند قبری ساعة  اتملی من النظر الیک ثم ترحمی علی الخ،
तर्जुमा: हाफिज अबू ताहिर सल्फी कहते हैं:
कि मैने अबुल बरकात अब्दुल वाहिद सूसी से अस्कन्दरीया में सुना, वह कहते थे: मैं ने अपनी मां से सुना कि मैं ने अपनी मां को ख़्वाब में देखा, वह कहती थीं कि मेरी बेटी! जब तु मेरी ज़्यारत (कब्र दर्शन) के लिए मेरे पास आया कर तो एक घंटा मेरी क़ब्र के पास बैठी रह, ताकि मैं जी भर कर तुझ को देखुं फिर मेरे लिए रहमत की दुआ कर।
نُصْرَۃُالاصحاب صفحہ 111


मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami



Sunday, August 11, 2019

हलाल जानवर का कौन सा हिस्सा खाएं अथवा ना खाएं।

हलाल जानवरों के सभी बदन के हिस्सों का खाना हलाल यानी जायज़ हैं, मगर कुछ हिस्से ऐसे हैं जो हराम या मना या मकरूह हैं।
और वह 22 हैं, जिस का विवरण इस प्रकार हैं।

1 रगों का खून,

2 पित्ता,

3 मसाना,

4 - 5 नर मादा पहचानने की जगह,

6 बैज़े(कपूरे),

7 ग़दूद (गलदोद),

8 हराम मगज़,

9 गरदन के दो पट्ठे,

10 जिगर का खून,

11 तिल्ली का खून,

12 ग़ोश्त खून जो ज़बह करने के बाद निकलता है,

13 दिल का खून,

14 पित्त यानी वह पिला पानी जो पित्ते में होता है,

15 नाक का पानी,

16 पाखाना करने की जगह,

17 ओझङी,

18. आंत(अंतङी),

19 नुत्फा (विर्य),

20 वह नुत्फा (विर्य) कि खून हो गया,

21वह नुत्फा (विर्य)कि गोश्त का लोथङा हो गया,

22 वह नुत्फा (विर्य)कि पूरा जानवर बन गया और मुर्दा निकला  या बेगैर ज़बह मर गया।


(فتوٰی رضویہ جلد 20 صفحہ 240/241)

नोट: इन 22 जगहों को छोङकर बाकी सब का खाना हलाल है, कोई धार्मिक दृष्टीकोण सो कोई हर्ज नही।

नेयाज़ अहमद निज़ामी

Wednesday, May 15, 2019

इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा टूटता है या नहीं?:





 चाहे रग(नस) में लगवाया जाए चाहे गोश्त(मांस) में इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा नही टूटता,
क्युंकि इस के बारे में कानून यह है कि जेमाअ(पत्नी के साथ संभोग) और उस से जुङी हुयी चीज़ों के अलावा रोज़ा को तोङने वाली सिर्फ वह दवा और ग़ेज़ा (आहार) है जो जिस्म के मसामात (Pores/छिद्र) और रगों के अलावा किसी सुराख से सिर्फ दिमाग या पेट में पहुंचे,दुर्रे मुख्तार जिल्द 2 पेज 108 में है,
الضابط وصول ما فيه صلاح بدنه لجوفه
रद्दुल मुहतार में है ,
الذي ذكره المحققون أن معنى الفطر وصول ما فيه صلاح البدن إلى الجوف أعم من كونه غذاء أو دواء
और फतावा आलमगीरी जिल्द 1 प्रकाशक मिस्र पेज न. 191 में है,
أكثر المشايخ على أن العبرة للوصول إلى الجوف والدماغ،
इन सब अरबी वाक्यों का खुलासा यह है,कि आहार और दवा (अवसधी)उसी वक्त रोज़ा तोङेगी जब दिमाग़ या पेट तक किसी सुराख से पहुंचे,
फतावा आलमगीरी जिल्द1 प्रकाशक मिस्र पेज नम्बर 190 में है
 ”وما یدخل من مسام البدن من الدھن لا یفطر“
 यानी: जो तेल बदन के मसाम  (Pores/छिद्र) के ज़रिए जिस्म में प्रवेश करता है उस से रोज़ा नहीं टूटता,
 अब बात साफ हो गई कि जो इंजेक्शन गोश्त (मांस) में लगता है उस के बारे में तो ज़ाहिर है कि वह पूरे जिस्म में मसाम (Pores/छिद्र) ही के ज़रिए पहुंचता है अत: उस से रोज़ा नही टूटता,
 रह गया रग (नस) का इंजेक्शन तो उस के जिस्म में पहुंचने की कैफियत यह है कि दवा खून के साथ जिस्म में फैलती है, और जानकार लोग यह जानते हैं कि खून नसों से होते हुए दिल में जाता है और वहीं से फिर वापस नसों में आता है इस लिए रगों के इंजेक्शन से भी रोज़ा नही टूटेगा।
 (فتاوٰی فیض الرسول جلد اول ص517/518)


 roza


नेयाज़ अहमद निज़ामी




Wednesday, May 8, 2019

रोज़ा के कुछ मसअले: हजरत मौलाना खालिद अय्यूब मिस्बाही




1:- क्या रोजे के दौरान मुहं में खून आ जाए तो रोजा टूट जाएगा?
1:- सिर्फ खून आने से रोजा नहीं टूटता बल्कि अगर किसी ने उसे निगल लिया तो रोजा जाता रहेगा वरना नहीं।

2:- क्या रोजा रख कर कोई व्यक्ति खून या शुगर की जांच करवा सकता है?
2:- जी हां! इसकी इजाजत है क्योंकि रोजा खाने-पीने और अपनी बीवी से मुलाकात करने से टूटता है जबकि खून की जांच या शुगर की जांच में जिस्म के अंदर कुछ नहीं जाता बल्कि जिस्म से खून निकाला जाता है।

3:- कोई व्यक्ति सुबह की अजान से पहले रोजे की नियत करके सो जाए और मगरिब की नमाज के बाद जागे तो क्या रोजा पूरा माना जाएगा?
3:- जी वह रोजादार माना जाएगा, शर्तें पाई जाने के बाद पूरे दिन सोने से रोजे पर कोई फर्क नहीं पड़ता अलबत्ता जान बूझ कर नमाज़ का एहतमाम ना करने की सूरत में उसका गुनाह बहर हाल होगा।

4:- रमजान की पहली रात क्या पूरे महीने के रोजों की नियत की जा सकती है?
4:- एक बार की नियत एक बार के रोजे के लिए काफी होगी पूरे महीने के लिए नहीं।

5:- रोजे की हालत में नकली दांत लगाए रहने से क्या रोजा मकरूह हो जाएगा?
5:- नकली या असली दांतो से रोजों का कोई तअल्लुक नहीं, रोजा बहर हाल हो जाता है।
दैनिक भास्कर 8/ मई 2019 में छपा हज़रत मौलाना खालिद अय्यब मिस्बाही से किए गए सवालात और उनके जवाबात का सिलसिला

6:- कौनसी बातें है जिनसे रोजा मकरूह हो जाता है?
6:- रोजे में बहुत सी चीजें मकरूह हैं जैसे: कोई चीज चबाना, या मुंह में डाले रखना, या मुंह में थूक इकट्ठा करना, या किसी चीज को चखना अलबत्ता अगर किसी औरत का शौहर या किसी नौकर का मालिक बहुत सख्त मिजाज हो और खाना चखना जरूरी महसूस हो तो उन्हें इस बात की इजाजत है कि जबान पर रख कर मजा मालूम कर लें और फिर थूक दें लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रहे कि मुंह के अंदर कुछ भी ना जाए, कुल्ली करने या नाक में पानी डालने में बहुत मुबालगा करना, गीबत करना, झूठ बोलना, चुगली करना, गाली बकना, बेहूदा बातें करना, किसी को तकलीफ देना, रोज़ा रखने के वजह से अपनी परेशानी जाहिर करना, बिना जरूरत के मंजन करना, रोजे की हालत में वीडियो गेम, शतरंज वगैरह खेलते रहना, अगर इंजाल होने या जिमा करने का अंदेशा हो तो अपनी औरत को बोसा देना, गले लगाना और बदन को छूना मकरूह है जबकि होंट और जबान चूसना हर हालत में मकरूह है आदि।

7:- रोजे की नियत कब तक की जा सकती है?
7:- रात से लेकर जवाल के वक्त से पहले तक रोजे की नियत का वक्त होता है।

8:- गर्मी की वजह से क्या मगरिब और तरावीह की नमाज छत पर पढ़ी जा सकती है?
8:- नमाज किसी भी पाक़ीज़ा जगह पर पढ़ी जा सकती है अलबत्ता जब तक बहुत सख्त गर्मी ना हो या बड़ी मजबूरी ना हो मस्जिद की छत पर चढ़ने से परहेज करना चाहिए और आज लगभग हर मस्जिद में हवा का इंतजाम होता है, ऐसे में मस्जिदों की छतों पर नमाजों की इजाजत नहीं होगी।

9:- नाबालिग बच्चा रोजा रख कर तोड़ दे या उसके मां बाप रहम की वजह से बीच में रोजा खुलवा दें तो क्या रोजे की कजा करनी होगी?
9:- कजा के अहकाम बड़ों के लिए होते हैं, बच्चों पर ना रोजे फर्ज और ना ही बच्चों के रोजों की कजा, लेकिन जब तक मजबूरी ना हो बच्चों को रोजा तुड़वाना नहीं चाहिए, या फिर उनको रोजा रखवाना ही नहीं चाहिए।

10:- क्या मरीज दवा से इफ्तार कर सकता है?
10:- हर पाक गिजा से इफ्तार किया जा सकता है फिर भी बेहतर है कि खुजुर वगैरह मीठी चीज से इफ्तार हो लेकिन अगर दवा जरूरी हो तो उससे इफ्तार करना बेशक जायज है।
*दैनिक भास्कर* के 9/ मई 2019 के एडीशन में छपा हज़रत मौलाना *खालिद अय्यूब मिस्बाही* से हुए *सवाल व जवाब* का सिलसिला






Friday, May 3, 2019

दहशत गर्द और नक़ाब



दहशत गर्द बुर्क़ा (नक़ाब) पहन कर  दहशत (आतंक) फैलाते हैं और दहशत गर्दी करते हैं, इस लिए रह रह कर बुर्क़ा पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जाती है,
अगर कानून यही है तो क्या नकली नोटों की वजह से असली नोटों पर पाबंदी लगा दी जाएगी?
और चोर डाकू भी पुलिस की वर्दी पहन कर अपनी वारदात को अंजाम देते हैं, तो क्या वर्दी पर पाबंदी लगा दी जाएगी?
या उसे चेंज किया जाएगा?
दर असल इन लोगों को इस्लाम और मुस्लिम से चिढ है, यह चाहते हैं कि इस्लामी पहचान खत्म हो,
नाकारा हुकूमतें और इन की खुफिया एजेंसियां अपनी नाकामी और कमज़ोरी को छुपाने के लिए इस क़िस्म की आवाज़ उठाते हैं, मशहूर कहावत है, नाच ना जाने आंगन टेंढा।
ह.मौ.अब्दुल ख़ालिक़ अशरफी(झारखन्ड)

 دہشتگرد برقع پہن کر دہشت پھیلا تے ہیں اور دہشتگردی کو انجام دیتے ہیں اس لئے رہ رہ کر برقع پر پابندی عائد کر نے کی آواز بلند کی جاتی ہے - اگر ضابطہ یہی ہے تو پھر کیا جعلی نوٹوں کی وجہ سے اصلی نوٹوں پر پابندی لگا دی جائیگی ؟ اور چور ڈاکو بھی پولیس کی وردی پہن کر اپنے واردات کو انجام دیتے ہیں تو کیا وردی پر پابندی لگا دی جائیگی یا اسے چینز کیا جائے گا ؟ در اصل ان لوگوں کو اسلام و مسلم سے چڑھ ہے - یہ چاہتے ہیں کہ اسلامی شناخت ختم ہو جائے -
ناکارہ حکومتیں اور ان کی خفیہ ایجنسیاں اپنی ناکامی اور کمزوری کو چھپانے کے لئے اس قسم کی آواز اٹھاتے ہیں - مشہور مقولہ ہے " خوۓ بد را بہانہ بسیار " اور  " ناچے نہ جانے آنگن ٹیڑھا "

عبد الخالق اشرفی راج محلی

Saturday, April 20, 2019

शब-ए-बराअत और उस की नफ्ल नमाज़ें:


नयाज़ अहमद निज़ामी

इस्लामी महीना शाअबान की पंद्रहवीं तारीख की रात का नाम “शब-ए-बराअत„ यानी निजात की रात (छुटकारा की रात) है, इस बरकत वाली रात के चार नाम हैं,
लैलतुल बराअत (ْْلَيْلَةُ الْبَرَاءَة) निजात वाली रात,

लैलतु-उर-रहमा  (لَيْلَةُالرَّحْمَة) रहमत वाली रात,

लैलतु-उल-मुबारका (لَيْلَةُ الْمباركة) बरकत वाली रात,

लैलतु-उल-सक (لَيْلَةُ الصَّک) निजात का चेक मिलने वाली रात,

क़ुरआन मजीद में अल्लाह ने इस मुबारक रात के बारे मे इस तरह फरमाया:
فِـيْـهَا يُفْرَقُ كُلُّ اَمْرٍ حَكِـيْمٍ
तर्जुमा: इस रात में हमारे हुक्म से हर हिकमत वाला काम बांट दिया जाता है। (سورہ دُخّانْ ت 4)
यानी शब-बराअत में बंदों की रोज़ियां, उनकी मौत व जन्म, लङाईयां,ज़लज़ले, हादेसा, साल भर में होने वाले तमाम वाकेयात के हुक्म अलग अलग बांट दिए जाते हैं, और हर काम के फरिश्तों को उन का काम दे दिया जाता है जिस का वह साल भर तक पालन करते हैं,

शफाअत की रात:
तेरहवीं शअबान को होज़ूरने अल्लाह की बारगाह में अपनी उम्मत की शफाअत की कही तो एक तिहाई उम्मत शफाअत क़बूल हुई, फिर चौदहवीं रात में दुआ की तो दो तिहाई बख़्शी गई, फिर पंद्रहवीं रात में मोनाजात (दुआ) की तो उन ना फरमान बंदों के सिवा जो खुदा से मुंह मोङ कर भागते हैं सारी उम्मत के हक़ में शेफाअत कोबूल हो गई,(صاوی)

शब-ए-बराअत के ख़ुश नसीब और बद नसीब:
होज़ूर ﷺ ने फरमाया कि इस रात में अल्लाह तआला तमाम मुसलमानों को बख्श देता है मगर नजूमी, जादूगर, शराबी, ब्लात्कारी, माता पिता का आज्ञाकारी, सूद खाने वाला, बंदों का हक मारने वाला, मुसलमानों में फूट डालने वाला, किसी मुसलमान से जलन रखने वाला, बे गैर किसी धर्मिक वजह के रिश्तेदारी छोङ देने वाला, इस रात में नही बख्शा जाता,
होज़ूर ﷺ ने फरमाया कि अल्लाह तआला पंद्रहवीं शअबान की रात में आसमान दुनिया (सब से नीचे वाले आसमान) पर तजल्ली फरमाता है, और बनी कल्ब कबीला की तमाम बकरियों के बालों से भी ज़्यादा बंदों को बख्श देता है,
हजरत आइशा رضی اللہ عنہا फरमाती हैं कि मैं ने देखा कि होज़ूर ﷺ मदीना की क़ब्रिस्तान (بقيع الغرقد ) में तशरीफ ले गए और मुसलमान मर्दों औरतों और शहीदों के लिए दुआ फरमाई, फिर क़ब्रिस्तान से वापस होकर नमाज़ में व्यस्त हो गए  और सजदे में बङी देर तक आप यह दुआ करते रहे।
أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ، وَأَعُوذُ بِعَفْوِكَ مِنْ عِقَابِكَ، وَأَعُوذُبِكَ مِنْكَ، لَا أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ، أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ اَقُولُ کَمَا قَالَ اَخِی دَاوُدُ اُعَفِّرُ وَجْھِی فِی التُّرَابِ لِسَیَّدِی وَ حُقَّ لَہُ اَنْ یُسْجَدَ،
तर्जुमा: (ऐ अल्लाह!) पनाह (श्रण) मांगता हूं मैं तेरी रज़ा (मरजी) के साथ तेरे गजब (गुस्सा) से और पनाह मांगता हूं मैं तेरी माफी के साथ तेरे अ़ज़ाब से, और तुझ से तेरी ही पनाह लेता हूं, मैं तेरी तारीफ की ताकत (शक्ती) नही रखता हूं जितना तेरा हक है, तेरी ज़ात वैसी ही है जैसी तुने खुद अपनी तारीफ की है,  मैं वही कहता हूं जो मेरे भाई दाऊद अलैहिस्सलाम ने कहा है, मैं अपने चेहरे को धूल में मिलाता हूं अपने मौला के लिए, और वह उसी लाएक़ है कि उस को सजदा किया जावे, फिर होज़ूर ने सजदे से सर उठा कर देर तक यह दुआ पढी,

· اللَّهُمَّ ارزقني قَلْباً تَقِيَّاً نَقِيَّاً ، مِنَ الشِّرْكِ نقيا ، لاَ فِاجراًوَلاَ شَقِيَّا،
तर्जुमा: ऐ अल्लाह! मुझ को परहेज़गार दिल अता कर जो शिर्क से पाक व साफ हो जो ना बदकार हो ना बदनसीब,

आधे शअबान की दुआ:
«اللَّهُمَّ يَا ذَا الْمَنِّ وَلَا يُمَنُّ عَلَيْهِ، يَا ذَا الْجَلَالِ وَالإِكْرَامِ، يَا ذَا الطَّوْلِ وَالإِنْعَامِ. لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ ظَهْرَ اللَّاجِئينَ، وَجَارَ الْمُسْتَجِرِينَ، وَأَمَانَ الْخَائِفِينَ. اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ كَتَبْتَنِي عِنْدَكَ فِي أُمِّ الْكِتَابِ شَقِيًّا أَوْ مَحْرُومًا أَوْ مَطْرُودًا أَوْ مُقَتَّرًا عَلَيَّ فِي الرِّزْقِ، فَامْحُ اللَّهُمَّ بِفَضْلِكَ شَقَاوَتِي وَحِرْمَانِي وَطَرْدِي وَإِقْتَارَ رِزْقِي، وَأَثْبِتْنِي عِنْدَكَ فِي أُمِّ الْكِتَابِ سَعِيدًا مَرْزُوقًا مُوَفَّقًا لِلْخَيْرَاتِ، فَإِنَّكَ قُلْتَ وَقَوْلُكَ الْحَقُّ فِي كِتَابِكَ الْمُنْزَلِ عَلَى لِسَانِ نَبِيِّكَ الْمُرْسَلِ: ﴿يَمْحُو اللهُ مَا يَشَاءُ وَيُثْبِتُ وَعِنْدَهُ أُمُّ الْكِتَابِ﴾، إِلهِي بِالتَّجَلِّي الْأَعْظَمِ فِي لَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَهْرِ شَعْبَانَ الْمُكَرَّمِ، الَّتِي يُفْرَقُ فِيهَا كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ وَيُبْرَمُ، أَنْ تَكْشِفَ عَنَّا مِنَ الْبَلَاءِ وَالْبَلْوَآءِ مَا نَعْلَمُ وَمَا لَا نَعْلَمُ وَمَا أَنْتَ بِهِ أَعْلَمُ، إِنَّكَ أَنْتَ الْأَعَزُّ الْأَكْرَمُ. وَصَلَّى اللهُ تَعَالٰی عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍوَّ عَلٰی آلِهِ وَصَحْبِهِ وَسَلَّمَ والْحَمْدُ لِلّٰہ رَبِّ العٰلَمِینَ،
तर्जुमा: ऐ मेरे अल्लाह! तू ही सब पर एहसान करने वाला है और तुझ पर कोई एहसान नही कर सकता है, ऐ बूज़ुर्गी और मेहरबानी रखने वाले और ऐ बख़्शिश और इनआम वाले तेरे सिवा कोई पूज्यनीय नही तू ही गिर्तों को थामने वाला है, बे पनाहों को पनाह (श्रण) देने वाला, और डरने वालों का सहारा है,
ऐ अल्लाह! अगर तूने मुझे  अपने पास किताब कुरआन में भटका हूआ ,महरूम, कम नसीब, लिख दिया है तो ऐ अल्लाह! अपने फज़्ल से बद बख्ती रांदी और रोज़ी की कमी को मिटा दे,
और अपने पास कुरआन मजीद में खुश नसीब ज़्यादा रिज़्क़ वाला , और  नेक कर दे, बे शक तेरा यह कहना  तेरी किताब में  जो नबी-ए-मुर्सल  पर उतारी गई वह सच है, कि अल्लाह जो चाहता है मिटाता है, और जो चाहता है बना देता है, और उसी के पास कुरआन है,
ऐ खुदा! सब से बङी तजल्ली का वास्ता! इस आधे शअबान की रात में जिस में हर हिकमत वाले कामों का बटवारा और लागू होता है, मेरी बलाओं को दूर फरमा, चाहे मैं उन को जानता हूं या ना जानता हूं और जिन को तू पहले  से जानता है, बे शक तू ही सब से बर तर (बङ कर) और बढ कर एहसान करने वाला है, अल्लाह की रहमत और सलामती हो, हमारे आक़ा मुहम्मद ﷺ पर और उन की आल और सहाबा पर, आमीन सुम्मा आमीन,

शब-ए-बराअत की नफ्ल नमाज़ें:

(1) इशा के बाद 12रकात नफ्ल पढे हर रकात में अल-हम्दो के बाद 10 बार कुल हुअल्लाहू पढे और नमाज़ के बाद 10मरतबा कलमा तौहीद 10मरतबा कलमा तमजीद और एक सौ (100) बार दोरूद शरीफ पढें।

(2) जो इस रात 100रकात नमाज़े नफ्ल पढेगा अल्लाह उस के पास एक सौ फरिश्तों को भेजेगा 30 फरिश्ते उस को जन्नत की खुश्खबरी देंगे, और 30 फरिश्ते उस को जहन्नम से निडर होने की खुश्खबरी सुनाएंगे, और 30फरिश्ते दुनिया की आफतों को उस से टालते रहेंगे, और 10 फरिश्ते उस को शैतान के मकर और फरेब से बचाते रहेंगे।

(3) मगरीब के बाद 2-2 रकात कर के 6 रकात नमाज़ पढे और हर दो रकात के बाद सूरह यासीन एक बार या क़ुल हुअल्लाह 21 बार पढे पहली बार सूरह यासीन लम्बी उम्र, दुसरी बार रोज़ी की तरक्की के लिए और तीसरी बार मूसीबत के दफा के लिए,

(4) 14 रकात हर रकात में अलहम्दो के बाद जो सूरह चाहे पढे, जो भी दुआ मांगे क़ोबूल होगी ,

(5) 4रकात एक सलाम से हर रकात में अलहम्दो के बाद 50 बार क़ुल हुअल्लाहु अहद, गुनाहों से ऐसे पाक हो जाएगा जैसे मां को पेट से अभी निकला हो,
{موسم رحمت شب براءت کا بیان/سنی جنتری20

19}

हिंदी अनुवादक:
 नेयाज़ अहमद निज़ामी

Friday, April 12, 2019

الفقہ


فقہ کا کھیت عبداللّٰه بن مسعود نے بویا، اور  علقمہ  بن قیس نے اس کو سینچا، اور ابراھیم نخعی نے اس کو کاٹا، اور حماد بن مسلم اس کو مانڈا یعنی بھوسی سے اناج جُدا کیا، اور ابو_حنیفہ نے اس کو پیسا، اور ابو_یوسف نے اس کو گوندھا، اور محمد_بن_حسن نے اس کی روٹیاں پکائیں،
اور

[ باقی اس کے کھانے والے ہیں ]


حدائق الحنفیہ ص39



Friday, February 22, 2019

क़ूतुब मदार की शिक्षा [नेयाज़ अहमद]





ज़िंदा शाह मदार رَحمَةُ اللّٰه عَلَيه ऐसे फकीरों में से हैं कि पूरी दुनिया में आप की कोई मिस़ाल नही मिलती है, और ना ही आप के जीवन की कोई मिस़ाल मिल सकती है क्युंकि आप ऐसा समुंदर थे जिस का कोई किनारा नही था, और इंसानी ताकत से बाहर है कि आप की 600 वर्ष के जीवन को लीखित ला सके,मगर कुछ यहा लिख देता हूं ताकि जन मानस फायदा प्राप्त करते रहें।

• हर इंसान के पास एक ही दिल है फिर उस में दुनिया और आख़ेरत की एक ही तरह मुहब्बत कैसे संभव है।

History of baba madar

• अल्लाह से तौबा (क्षमा) मांगिए और उसी पर डटे रहिए क्युंकि शान तौबा (क्षमा) करने में नहीं तौबा (क्षमा) पर डटे रहने में है।

• ईमान (ایمان/Faith) की जङ तौहीद (एक खुदा) और एखलास पर क़ायम है  तौहीद एखलास के ज़रिए अपने अमल की बुनियाद को मज़बूत कीजिए।

•आप के अमल (कर्म) आप के अकीदे (Beliefs) को ज़ाहिर करते हैं और आप के ज़ाहिर आप के बातिन (अंतरात्मा) की निशानी है।

• आप अपने तमाम मामलों में होजूर ُصَلَّی اللّٰه عَلَيْهِ وَسَلَّم के समीप खङे हो जाएं और आदेश व पैरवी के लिए तयार रहें।
                   [Madar Baba]

• अगर दिल सादर सत्कार वाला बन जाए तो जिस्म के सभी हिस्से सादर सत्कार वाले हो जाएंगे।

• बे गैर अमल इल्म (ज्ञान) की कोई हैसियत नही है वह आखेरत में कोई फायदा नही दे सकता।

• सूफी वह है जो अपने पसंदीदी चीज़ को छोङ दे और अल्लाह के अलावा किसी के साथ  भी सुकून से ना रहे।
            
       [History Of Madar]

• आप ने कहा कि
  الفقر نور من انوار الله والغناء غضب من اغضاب الله
यानी गरीबी अल्लाह के नूर में से एक नूर है और अमीरी (मालदारी) अल्लाह के गज़ब में से एक ग़ज़ब है।
(नोट: अमीरी से मतलब दुनिया के माल दौलत की मुहब्बत है)
(تاريخ سلاطين و صوفياء جونپور1439/1440)


Neyaz Ahmad Nizami


ओहुद पहाङ से ज़्यादा सवाब {(पुन्य} नेयाज़ अहमद निज़ामी




ताजदार-ए-मदीना ﷺ ने एक बार इर्शाद फरमाया क्या तुम में से कोई ऐसा नही है जो रोज़ाना ओहुद पहाङ के बराबर नेकी (पुन्य) कर लिया करे?
सहाबा ने कहा: आकाﷺ इस की ताक़त कौन रखता है?
फरमाया: हर एक इस की ताक़त रखता है,
अर्ज़ किया: सरकार ﷺ कैसे?
फरमाया सुब्हानल्लाह (سُبْحَانَ اللّٰه) का स़वाब (पुन्य) ओह़ुद से बढ कर है 
ला इलाहा इल्लल्लाह (ُلَااِلٰه اِلَّا اللّٰه ) का स़वाब (पुन्य) ओह़ुद से बढ कर है। 
अल्लाहु अकबर (اللّٰهُ اَکْبَر) का स़वाब (पुन्य) ओह़ुद से बढ कर है। 
अल्हम्दुलिल्लाह (الْحَمْدُلِللّٰهُ ) का स़वाब (पुन्य) ओह़ुद से बढ कर है।

ohud pahad


::ओह़ुद पहाङ एक परिचय::
ओह़ुद पहाङ  मदीना शरीफ के पास है,इसी जगह जंग-ए-ओहुद भी हुइ थी, यह पहाङ जन्नत (स्वर्ग) में भी जाएगा, इस की चौङाई लगभग पौने चार मील है,

हो सके तो रोज़ाना यह तीन वाक़्य ज़रूर कह लिया करें,
(1)अल्लाहु अकबर (اللّٰهُ اَکْبَر)  10 बार, (2) सुब्हानल्लाह سُبْحَانَ اللّٰه) 10) बार (3)अल्लाहुम्मग़्फिरली اَلّٰھُمَّ الغْفِرْلِی) 10बार।
(فیضان سنت ذکر کی فضیلت ص120 اسلامک پبلشر)

नेयाज़ अहमद निज़ामी




Tuesday, February 19, 2019

हज़रत सय्यद बदीउद्दीन (ज़िन्दा शाह मदार): नेयाज़ अहमद निज़ामी


सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (शाह मदार)  رحمۃ اللّٰه عليه


सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه सूफी बजुर्ग हैं जिन्हे भारत नेपाल में मदार बाबा के नाम से जानते हैं,
कुछ लोगों से इन के बारे में पूछने पर बताने से स्मर्थ रहे तो सोचा कि क्यूं ना इन के बारे में एक संक्षिप्त परिचय लिखा जाए जिस से जन मानस को इन के बारे में जानकारी मिले।

:: जन्म एंव खानदान ::

तज़केरतुल मुत्तकीन किबात में है कि,
پس حضرت شاہ کونین حسنی و حسینی از سادات جعفریہ اند  و در شہر حلب ملک شام بروز دو شنبہ بوقت صبح صادق یکم شوال سنہ چہارصد وچہل و دو ہجرۃالنبیﷺ خانہ حضرت قدوۃالدین سید علی حلبی را از فیض مقدم منور و پرنور فرمودند (تذکرۃالمتَّقِین ص 4


खुलासा: हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه मुल्के शाम (सीरिया/syriya) के शहर हलब में 1 शव्वाल (इस्लामी महीना का नाम) 242ھ को सुब्ह के समय पैदा हुए,आप के पीता श्री का नाम क़ाज़ी सय्यद अली हल्बी था, आप बनी फातेमा के सादात (सय्यदों) में से थे,

आप के पीता की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है,
सय्यद बदीउद्दीन बिन सय्यद अली हल्बी बिन सय्यद बहाउद्दीन बिन सय्यद ज़हूरुद्दीन बिन सय्यद अहमद बिन सय्यद इस्माईल बिन सय्यद मुहम्मद बिन सय्यद  इस्माईल सानी बिन सय्यद इमाम जाफर सादिक़ बिन सय्यद मुहम्मद बाक़र बिन सय्यद इमाम ज़ैनुलआबेदीन बिन सय्यद इमाम हुसैन शहीदे करबला बिन अ़ली رضي اللّٰه عنھم اجمعين

आप की माता की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है,
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार رحمۃاللّٰه عليه की माता,फातेमा सानी बिन्त सय्यद अब्दुल्ला बिन सय्यद ज़ाहिद बिन सय्यद मुहम्मद बिन सय्यद आ़बिद बिन सय्यद सॉलेह बिन सय्यद अबू यूसुफ बिन सय्यद अबुल क़ासिम मुहम्मद बिन सय्यद अब्दुल्लाह बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना इमाम अली मुर्तुज़ा बिन अबी तालिब,
(تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص 1377/1378)

MADAR BABA

:: पीरी एंव मुरीदी ::
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन ज़िन्दा शाह मदार को ज़ाहिर में पीरी एंव मुरीदी हज़रत तैफूर शामी उर्फ बायज़ीद बुस्तामी से प्राप्त हुयी। और यह सिलसिला यूं है,

“सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه, हज़रत शैख़ बा यज़ीद बुस्तामी, हज़रत ख़्वाजा हबीब अ़जमी, हज़रत ख़्वाजा हसन बसरी, हज़रत सय्येदुना अली  رضی اللّٰه عنہ، हज़रत मुहम्मद ﷺ„
हज़रत क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه को बेगैर किसी वास्ता के होज़ूर ﷺ से फैज (फायेदा) पहुंचा है, एक बार हज़रत क़ाजी महमूद कंतूरी ने हज़रत ज़िंदा शाह मदार رحمۃ االلّٰه عليه से कहा कि अपना सिलसिला मुझे तहरीर करा दीजिए, तो आप ने कहा:
اُكْتُبْ اِسْمَكَ ثُمَّ اِسْمِي ثُمَّ اِسْمَ رَسُوْلِ اللّٰه ﷺ
तर्जुमा: अपना नाम लिख फिर मेरा फिर होज़ूर ﷺ का (اخبارالاصفیاء ص54)

ख़ूबी:
तमाम इतिहासकार आप के बारे मे लिखते हैं कि आप कुछ खाते पीते ना थे और आप का कपङा ही मैला ना होता था, और ना ही मख्यिां उन पर बैठती थीं,और चेहरे पर नूर (प्रकाश) इतना कि हमेशा चेहरा ढांप कर रखते थे,जैसा कि “मदार-ए-आज़म„ नामी किताब में है कि हज़रत शाह मदार जब “हज़रत बा यज़ीद बुस्तामी„ की सेवा मे पहुंचे तो हज़रत ने «हब्स-ए-दम» का ज्ञान दिया जिस से आप सालों साल तक खाने पीने की इच्छा ना होती थी, (مدار اعظم اردو 34-34)


:: हज़रत स0 बदीउद्दीन शाह मदार رحمۃ اللّٰه عليه का मक़ाम व मर्तबा::
आप ने तमाम दुनिया का पैदल यात्रा किया और बङे बङे फक़ीरों और संतों से मुलाक़ात की और बहुत से लोगों ने आप से रूहानी (अंतरात्मिक) फायदा प्राप्त किया, क्यूंकि आप अपने वक़्त के क़ूतुब-उल-मदार थे इसी लिए आप को आज भी “ज़िन्दा शाह मदार„ कहते हैं,

:: क़ूतुब-उल-मदार,शाह मदार,या मदारिया बाबा 
क्यूं कहते हैं?::
जब विलायत का मर्तबा (पोस्ट) प्राप्त होता है तो उस को “वली„ कहते हैं, फिर जब तरक्की होती है तो “अब्दाल„ का मर्तबा हासिल (प्राप्त) होता है, फिर “औताद„ का फिर “क़ूतुब-उल-अक़्ताब„ का फिर “क़ूतुब-उल-मदार„ का यह सब सरकार दोआलम ﷺ की उस खास इनायत और तवज्जो का नतीजा (प्रिणाम) था जो हज़रत शाह मदार के साथ थी।
क़ूतुब-उल-मदार नबी ﷺ के बरकत वाले दिल से फायेदा प्राप्त करता है और उस का फैज (साया/असर) तमाम “अलवी और सिफली„ दुनिया पर होता है, और 12क़ूतुब उन के हुक्म के ताबेअ़ (अंडर) में होते हैं, क़ूतुब-ए-मदार का नाम “अब्दुल्लाह„ होता है और सातों आसमान के उपर से लेकर सातों ज़मीन के निचे तक की दुनिय उस की नज़र में रहती है, (مدار اعظم ص53)
«आप के मदार नाम के बारे में जो मशहूर है कि मदार का दूध पीने की वजह से मदार नाम जुङा यह गलत है نیاز احمد»

हज़रत शाह सय्यद ग़ुलाम अली मुजद्दीदी नक़्श बंदी ने फरमाया है कि:
حضرت سید بدیع الدین قطب مدار قُدِّس سِرَّہ قطب مدار بودند و شان عظیم دارند و ایشاں دعائے کردہ بودند کہ الٰہی مُرا گُرسَنگی نہ شود و لباسِ من کُہنہ نہ گَردند و لباسِ ایشاں کہنہ نگشت ہمو وے یک لباس تا بہ ممات کفایت کرد.
तर्जुमा: हज़रत हज़रत स0 बदीउद्दीन ज़िन्दा शाह मदार رحمۃ اللّٰه عليه अपने समय में क़ूतुब-ए-मदार थे और बहुत उंचा मर्तबा रखते थे और उन्होने अपने लिए दोआ फरमाई थी कि “ऐ अल्लाह! मुझे भूक और प्यास ना लगे और मेरा कपङा कभी मैला और पूराना ना हो और ना फटे„  और ऐसा ही हुआ कि इस दुआ के बाद तमाम जीवन खाना नही खाया और कपङा पूराना नही हुआ और एक ही कपङा मौत के वक्त तक बदन मुबारक पर पङा रहा। (مدارالامعارف ص 253)
मज़ार ज़िंदा शाह मदार

:: भारत में आगमन ::
अपने भाई सय्यद “अब्दुल्लाह„ के तीनों बेटों 🕕हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अर्ग़ोन हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबू तोराब कन्सूरी और हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल हसन को सरकार क़ूतुब-उल-मदार अपने साथ हिन्दुस्तान और फिर मकन पूर तशरीफ लाए और वेसाल (देहांत) से पहले इन्ही तीनों जिगर गोशों को कूतुब-ए-मदार ने अपने खलीफा और चेलों के भरे भीङ में अपना सहायक और खलीफा (उत्तराधिकारी) बनाया और उसी समय से इन्ही तीनों ख्वाजों के बीच खलीफा होते चले आ रहे हैं।
दूसरी बार नबी ﷺ की दरबार में हाजरी के बाद हज़रत शाह मदार को स्थाई भारत मे रहने का आदेश मिल गया, और दीन -ए- इस्लाम के पर्चार पर्सार में लग गए,
आप समुंदर से होते हुए एक जंगल में पहुंचे जहां नबी मुहतर जनाब मुहम्मद ﷺ से मुलाकात हुई आप ने बैअत की और होजूर ﷺ ने अपने हाथों से 9 लुक़्मे खिलाए और वह जन्नती कपङा पहना  जो जीवन भर के लिए काफी हो गया।और आप ने तमाम दुनिया का दौरा किया आप जहां भी पहुंचे आप की निशानियां यादगारें मौजूद हैं, जो आप के आने और धर्म पर्चार पर्सार की निशानियां ब्यान कर रही हैं, कहीं मदार चिल्ला„ मदार दरवाज़ा„ मदार टिकरी„ मदार पहाङी„ मदार गेट„ मदार ढाल„ मदार गंज„ मदार पूर और रौज़ा मदार वगैरह वगैरह हैं। (تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص 1431/1432)
MADAR BABA KI JIVANI
:करामत:
1-इसी सिलसिले में आप कंतूर फिर घाटमपूर पहुंचे यहां का राजा ला वल्द (बे औलाद) था आप की दुआ से साहब-ए-औलाद हुआ और इस्लाम लाया।

2- शहर दर शहर दावत-ए-दीन देते हुए “सूरत„ में पहुंचे यहां पर एक नाबीना (अंधा) भीक मांग रहा था हज़रत शाह मदार को रहम आ गया आप ने दुआ किया वह अंधा अंखियारा हो गया ,यहां बहुत से लोग ईमान लाए ।

3- एक दिन आप ने सेवक मुहम्मद यासीन से पानी वजू के लिए मांगा मगर पानी नही मिला फिर आप की करामत से पानी का चश्मा (सोता) नज़र आया जो अब तक ऐसन(ایسن) के नाम सो मश्हूर है। (کتب عامہ)

4- एक जोङा रोता हुआ मदार शाह की बारगाह में पहुंचा कि मेरा एक बच्चा था जो मर गया है अल्लाह से दुआ करिए कि वह जी जाए क्युंकि उस के जीवन में हमारा भी जीवन है इस में कोई संदेह नही कि अल्लाह ने आप को वह ताकत दी है जो चाहें वही हो जाए,हजरत क़ूतुब-ए-मदार उन से बहुत प्रेम का परिचय दिया और बच्चे की लाश के पास पहुंच कर फरमाया (कहा) قُمْ بِاِذنِ اللّٰه यानी अल्लाह के आदेश से उठ वह लङका ला इलाहा इल्लल्ाह  पढता हुआ उठा और कहा कि दुनिया की ज़िन्दगी में कोयी भलाई नहीं, आप आखेरत में भेज दें आप ने फरमाया कि ऐश-ए-दुनिया नेकी व परहेज़गारी के साथ बेहतर है उस मौत से जो बे गैर अमल (कर्म) है ।تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص) 1434)

HISTORY OF MADAR BABA

:: इंतेक़ाल (देहांत) ::
हज़रत शाह बदीउद्दीन कूतुब मदार ने फरमाया कि मेरे जनाज़ा की नमाज़ “मौलाना होसामुद्दीन सलामती„ पढेंगे, यह उस समय मौजूद ना थे जौनपूर थे कि यकाएक हज़रत के देहांत का हाल मालूम हुआ, और वहा से चलदिए और यहां हज़रत शाह  मदार साहब ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया मौलाना होसामुद्दीन जिस समय मकनपूर हाज़िर हुए हां देखते हैं कि मकान का दरवाज़ा बंद है, उनहोने दस्तक दी तो दरवाज़ा खुल गया देखा तो हज़रत शाह मदार साहब नहलाए और कफनाए हुए मौजूद हैं (यह काम अदृश्य लोगों नें कर दिया था) उस के बाद खादिमों (सेवकों) नें और चारों तरफ से जो लोग हज़रत के इंतेक़ाल की ख़बर सुन के आए थे जनाज़ा उठाया मौलाना होसामुद्दीन सलामती साहब ने जनाज़ा की नमाज़ पढाई उस के बाद पवित्र जिस्म को दफन कर दिया गया।  यह गम मे डूबा हुआ हादेसा 17जमादिल अव्वल 838 हिजरी को हुआ साकिन-ए-बहिश्त (ساکن بہشت) देहांत की तारीख है। (مدار اعظم ص 87-88)

dam madar beda paar


तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami