neyaz ahmad nizami

Wednesday, May 15, 2019

इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा टूटता है या नहीं?:





 चाहे रग(नस) में लगवाया जाए चाहे गोश्त(मांस) में इंजेक्शन लगवाने से रोज़ा नही टूटता,
क्युंकि इस के बारे में कानून यह है कि जेमाअ(पत्नी के साथ संभोग) और उस से जुङी हुयी चीज़ों के अलावा रोज़ा को तोङने वाली सिर्फ वह दवा और ग़ेज़ा (आहार) है जो जिस्म के मसामात (Pores/छिद्र) और रगों के अलावा किसी सुराख से सिर्फ दिमाग या पेट में पहुंचे,दुर्रे मुख्तार जिल्द 2 पेज 108 में है,
الضابط وصول ما فيه صلاح بدنه لجوفه
रद्दुल मुहतार में है ,
الذي ذكره المحققون أن معنى الفطر وصول ما فيه صلاح البدن إلى الجوف أعم من كونه غذاء أو دواء
और फतावा आलमगीरी जिल्द 1 प्रकाशक मिस्र पेज न. 191 में है,
أكثر المشايخ على أن العبرة للوصول إلى الجوف والدماغ،
इन सब अरबी वाक्यों का खुलासा यह है,कि आहार और दवा (अवसधी)उसी वक्त रोज़ा तोङेगी जब दिमाग़ या पेट तक किसी सुराख से पहुंचे,
फतावा आलमगीरी जिल्द1 प्रकाशक मिस्र पेज नम्बर 190 में है
 ”وما یدخل من مسام البدن من الدھن لا یفطر“
 यानी: जो तेल बदन के मसाम  (Pores/छिद्र) के ज़रिए जिस्म में प्रवेश करता है उस से रोज़ा नहीं टूटता,
 अब बात साफ हो गई कि जो इंजेक्शन गोश्त (मांस) में लगता है उस के बारे में तो ज़ाहिर है कि वह पूरे जिस्म में मसाम (Pores/छिद्र) ही के ज़रिए पहुंचता है अत: उस से रोज़ा नही टूटता,
 रह गया रग (नस) का इंजेक्शन तो उस के जिस्म में पहुंचने की कैफियत यह है कि दवा खून के साथ जिस्म में फैलती है, और जानकार लोग यह जानते हैं कि खून नसों से होते हुए दिल में जाता है और वहीं से फिर वापस नसों में आता है इस लिए रगों के इंजेक्शन से भी रोज़ा नही टूटेगा।
 (فتاوٰی فیض الرسول جلد اول ص517/518)


 roza


नेयाज़ अहमद निज़ामी




Wednesday, May 8, 2019

रोज़ा के कुछ मसअले: हजरत मौलाना खालिद अय्यूब मिस्बाही




1:- क्या रोजे के दौरान मुहं में खून आ जाए तो रोजा टूट जाएगा?
1:- सिर्फ खून आने से रोजा नहीं टूटता बल्कि अगर किसी ने उसे निगल लिया तो रोजा जाता रहेगा वरना नहीं।

2:- क्या रोजा रख कर कोई व्यक्ति खून या शुगर की जांच करवा सकता है?
2:- जी हां! इसकी इजाजत है क्योंकि रोजा खाने-पीने और अपनी बीवी से मुलाकात करने से टूटता है जबकि खून की जांच या शुगर की जांच में जिस्म के अंदर कुछ नहीं जाता बल्कि जिस्म से खून निकाला जाता है।

3:- कोई व्यक्ति सुबह की अजान से पहले रोजे की नियत करके सो जाए और मगरिब की नमाज के बाद जागे तो क्या रोजा पूरा माना जाएगा?
3:- जी वह रोजादार माना जाएगा, शर्तें पाई जाने के बाद पूरे दिन सोने से रोजे पर कोई फर्क नहीं पड़ता अलबत्ता जान बूझ कर नमाज़ का एहतमाम ना करने की सूरत में उसका गुनाह बहर हाल होगा।

4:- रमजान की पहली रात क्या पूरे महीने के रोजों की नियत की जा सकती है?
4:- एक बार की नियत एक बार के रोजे के लिए काफी होगी पूरे महीने के लिए नहीं।

5:- रोजे की हालत में नकली दांत लगाए रहने से क्या रोजा मकरूह हो जाएगा?
5:- नकली या असली दांतो से रोजों का कोई तअल्लुक नहीं, रोजा बहर हाल हो जाता है।
दैनिक भास्कर 8/ मई 2019 में छपा हज़रत मौलाना खालिद अय्यब मिस्बाही से किए गए सवालात और उनके जवाबात का सिलसिला

6:- कौनसी बातें है जिनसे रोजा मकरूह हो जाता है?
6:- रोजे में बहुत सी चीजें मकरूह हैं जैसे: कोई चीज चबाना, या मुंह में डाले रखना, या मुंह में थूक इकट्ठा करना, या किसी चीज को चखना अलबत्ता अगर किसी औरत का शौहर या किसी नौकर का मालिक बहुत सख्त मिजाज हो और खाना चखना जरूरी महसूस हो तो उन्हें इस बात की इजाजत है कि जबान पर रख कर मजा मालूम कर लें और फिर थूक दें लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रहे कि मुंह के अंदर कुछ भी ना जाए, कुल्ली करने या नाक में पानी डालने में बहुत मुबालगा करना, गीबत करना, झूठ बोलना, चुगली करना, गाली बकना, बेहूदा बातें करना, किसी को तकलीफ देना, रोज़ा रखने के वजह से अपनी परेशानी जाहिर करना, बिना जरूरत के मंजन करना, रोजे की हालत में वीडियो गेम, शतरंज वगैरह खेलते रहना, अगर इंजाल होने या जिमा करने का अंदेशा हो तो अपनी औरत को बोसा देना, गले लगाना और बदन को छूना मकरूह है जबकि होंट और जबान चूसना हर हालत में मकरूह है आदि।

7:- रोजे की नियत कब तक की जा सकती है?
7:- रात से लेकर जवाल के वक्त से पहले तक रोजे की नियत का वक्त होता है।

8:- गर्मी की वजह से क्या मगरिब और तरावीह की नमाज छत पर पढ़ी जा सकती है?
8:- नमाज किसी भी पाक़ीज़ा जगह पर पढ़ी जा सकती है अलबत्ता जब तक बहुत सख्त गर्मी ना हो या बड़ी मजबूरी ना हो मस्जिद की छत पर चढ़ने से परहेज करना चाहिए और आज लगभग हर मस्जिद में हवा का इंतजाम होता है, ऐसे में मस्जिदों की छतों पर नमाजों की इजाजत नहीं होगी।

9:- नाबालिग बच्चा रोजा रख कर तोड़ दे या उसके मां बाप रहम की वजह से बीच में रोजा खुलवा दें तो क्या रोजे की कजा करनी होगी?
9:- कजा के अहकाम बड़ों के लिए होते हैं, बच्चों पर ना रोजे फर्ज और ना ही बच्चों के रोजों की कजा, लेकिन जब तक मजबूरी ना हो बच्चों को रोजा तुड़वाना नहीं चाहिए, या फिर उनको रोजा रखवाना ही नहीं चाहिए।

10:- क्या मरीज दवा से इफ्तार कर सकता है?
10:- हर पाक गिजा से इफ्तार किया जा सकता है फिर भी बेहतर है कि खुजुर वगैरह मीठी चीज से इफ्तार हो लेकिन अगर दवा जरूरी हो तो उससे इफ्तार करना बेशक जायज है।
*दैनिक भास्कर* के 9/ मई 2019 के एडीशन में छपा हज़रत मौलाना *खालिद अय्यूब मिस्बाही* से हुए *सवाल व जवाब* का सिलसिला






Friday, May 3, 2019

दहशत गर्द और नक़ाब



दहशत गर्द बुर्क़ा (नक़ाब) पहन कर  दहशत (आतंक) फैलाते हैं और दहशत गर्दी करते हैं, इस लिए रह रह कर बुर्क़ा पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जाती है,
अगर कानून यही है तो क्या नकली नोटों की वजह से असली नोटों पर पाबंदी लगा दी जाएगी?
और चोर डाकू भी पुलिस की वर्दी पहन कर अपनी वारदात को अंजाम देते हैं, तो क्या वर्दी पर पाबंदी लगा दी जाएगी?
या उसे चेंज किया जाएगा?
दर असल इन लोगों को इस्लाम और मुस्लिम से चिढ है, यह चाहते हैं कि इस्लामी पहचान खत्म हो,
नाकारा हुकूमतें और इन की खुफिया एजेंसियां अपनी नाकामी और कमज़ोरी को छुपाने के लिए इस क़िस्म की आवाज़ उठाते हैं, मशहूर कहावत है, नाच ना जाने आंगन टेंढा।
ह.मौ.अब्दुल ख़ालिक़ अशरफी(झारखन्ड)

 دہشتگرد برقع پہن کر دہشت پھیلا تے ہیں اور دہشتگردی کو انجام دیتے ہیں اس لئے رہ رہ کر برقع پر پابندی عائد کر نے کی آواز بلند کی جاتی ہے - اگر ضابطہ یہی ہے تو پھر کیا جعلی نوٹوں کی وجہ سے اصلی نوٹوں پر پابندی لگا دی جائیگی ؟ اور چور ڈاکو بھی پولیس کی وردی پہن کر اپنے واردات کو انجام دیتے ہیں تو کیا وردی پر پابندی لگا دی جائیگی یا اسے چینز کیا جائے گا ؟ در اصل ان لوگوں کو اسلام و مسلم سے چڑھ ہے - یہ چاہتے ہیں کہ اسلامی شناخت ختم ہو جائے -
ناکارہ حکومتیں اور ان کی خفیہ ایجنسیاں اپنی ناکامی اور کمزوری کو چھپانے کے لئے اس قسم کی آواز اٹھاتے ہیں - مشہور مقولہ ہے " خوۓ بد را بہانہ بسیار " اور  " ناچے نہ جانے آنگن ٹیڑھا "

عبد الخالق اشرفی راج محلی