neyaz ahmad nizami

Tuesday, May 30, 2017

रमज़ान



मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील नेयाज़ अहमद निज़ामी 

::रमज़ान के मसाइल व  फ़ज़ाइल::

रमज़ान का माना,व फर्ज़ होना::
रमज़ान-उल-मुबारक- इस्लामी साल का 9वां महीना है,
बगवी का क़ौल है कि रमज़ान "रमज़ा„ से निकला जिस के माना गरम पत्थर के हैं क्युंकि ऩबी ﷺ से पहले मुसलमान तेज़ गरमी में रोज़ा रखा करते थे अरब क़बीलों नें जब महीनों के नाम रखना चाहे तो उन दिनों में यह महीना बहुत ही गरमी के मौसम में आया इसी लिए इस का नाम रमज़ान रखा गया,
 कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह महीना गुनाहों को जला देता है इस लिए इस लिए इसे रमज़ान कहते हैं।
इस की हर घङी रहमत भरी है,
शरिअत में रोज़ा के माना हैं  अल्लाह की इबादत की नियत से सुबहे सादिक से लेकर सूरज डुबने तक खाने पीने और जेमा (बीवी से हमबिस्तरी)से अपने आप को रोके रखना
अल्लाह तआ़ला इर्शाद फरमाता है::
 " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ,,
तर्जुमा: ऐ लोगों जो ईमान लाए हो तुम पर रोज़े फर्ज़ किए गए हैं जैसे तुम से पहले वाले लोगों पर फर्ज़ किए गए थे। (सूरह,बक़रा.आयत,283. पारा-2)
हज़रत सईद बिन जुबैर رضی اللہ عنہ का क़ौल है कि हम से पहले वाले लोगों पर ई़शा से लेकर दूसरी रात के ईशा तक रोज़ा होता था जैसा कि इस्लाम के शुरू में भी ऐसा ही दस्तूर था।
कहा जाता है कि कोई उम्मत ऐसी नही मगर अल्लाह ने उन पर माहे रमज़ान के रोज़े फर्ज़ किए थे मगर वह उन से फिर गए।
रमज़ान के रोज़े हिजरत के दूसरे साल फर्ज़ किए गए यह दीन का एक बहुत ही अहम रुक्न है,इस का वाजिब होने का इन्कार करने वाला काफिर कहलाएगा,

रमज़ान की फज़ीलत::
होज़ूर ﷺफरमाते हैं  कि जब रमज़ान की पहली रात आती है तो जन्नत के तमाम दरवाज़े खोल दिए जाते हैं,और पूरा रमज़ान के महीना कोई भी दरवाज़ा बन्द नही किया जाता,और अल्लाह तआला पुकारने वाले को हुक्म देता है जो नेदा (आवाज़) देता है ऐ नेकी के मांगने वालों ध्यान दो और ऐ गुनाहों के मांगने वाले रुक जा। (1643 ابن ماجہ)
फिर वह कहता है : कोई बखशिश मांगने वाला है जिसे बख्श दिया जाए ?
 कोई सवाल करने वाला है जिसे दिया जाए?
कोई तौबा करने वाला है जिसकि तौबा क़ोबूल की जाए,?
और सुब्ह होने तक यह आवाज़ (नेदा) आती रहती है। और अल्लाह ﷻ हर ईद -उल- फित्र के दिन दस लाख (10,00000.) ऐसे बन्दों को बख़्शता है जिन पर अ़ज़ाब वाजिब हो चुका होता है। (ابن ماجہ،کتاب الصیام حدیث 1643)

बहुत लम्बे ख़ुत्बा का कुछ हिस्सा मुलाहेज़ा हों कि नबी ﷺ फरमाते हैं जिस शख्स ने इस महीने में किसी रोज़ा दार का रोज़ा इफ्तार कराया उसे ग़ुलाम आज़ाद करने का स़वाब  मिलता है और उस के गुनाह बख्श दिए जाते हैं,
एक सहाबी नें अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ﷺ हम में से हर शख़्स ऐसी चीज़  नही पाता जिस से वह रोज़ादार का रोज़ा इफ्तार कराए, आप ﷺ ने फरमाया: अल्लाह तआला यह सवाब हर उस शख़्स को देता है जो किसी रोज़ादार का रोज़ा दुध के घुंट या पानी के घूंट या खोजूर से इफ्तार कराता है,
और जिस ने किसी रोज़ादार को सैर (भर पेट) कराया तो यह उस के गुनाहों की बख़्शिश होगी, और अल्लाह तआला मेरे हौज़ से उसे ऐसा  सैर (भर पेट)  करेगा कि वह कभी प्यासा नही होगा ऐर उसे भी रोज़ादार के बराबर अज्र मिलेगा लेकिन रोज़ादार के सवाब से कुछ कम नही किया जाएगा (مکاشفۃ القلوب638)


सरवरे कौनेन ﷺ. फरमाते हैं कि रमज़ान के महीना में मेरी उम्मत को पांच चीज़ें दि गई हैं जो इस से पहले किसी उम्मत को नही दी गई,
1 रोज़ादार के मुंह की महक अल्लाह ﷻ मुश्क से ज़्यादा उम्दा है

2 रोज़ादार के इफ्तार तक फरिश्ते उन के लिए बख़्शिश तलब (मांगते) करते रहते है,

3 शैतान क़ैद कर दिए जाते हैं,

4 अल्लाह ﷻ हर दिन जन्नत को संवारता है और फरमाता है बहुत जल्द इस में मेरे नेक बन्दे दाखिल होंगे उन से तकलीफ दुर कर दी जाएगी,

5 औऱ इस महीना की आखरी रात में उन्हे बख़्शा जाएगा, पूछा गया : या रसूलल्लाह ﷺ क्या इस से मुराद लैलतुल कद्र है? आप ﷺ ने फरमाया नहीं लेकिन काम करने वाला काम पूरा करके अपना अज्र (बदला) पाता है।(مسند احمد 7922)

नसीहत

::रमज़ान के ज़रूरी मसअले::

रोज़े की नियत का समय::
रमज़ान के अदा रोज़े की नियत का समय सूरज डूबने से लेकर ज़हवाए कुबरा यानी पौ फटने तक है,
इस वक्त जब नियत करले यह रोज़े हो जाएंगे लेकिन रात ही में कर लेना बेहतर है,

नियत के माना::
जिस तरह और इबादतों में बताया गया है कि नियत दिल के एरादे का नाम है ज़ुबान से कुछ कहना ज़रूरी नही इसी तरह रोज़ा में भी वही मुराद है,हां ज़ुबान से कह लेना बेहतर है ,अगर रात में या सुबह फज्र की अज़ान से पहले पहले नियत करे तो यह कहे "नियत की मैने कि अल्लाह ﷻ के लिए फर्ज़ रोज़ा कल रखुंगा„ और अगर दिन में रोज़ा की नियत  करे तो यूं कहे  "नियत की मैने कि अल्लाह ﷻ के लिए आज फर्ज़ रोज़ा रखुंगा„




मसअला: दिन में नियत करे तो ज़रूरी है कि यह नियत करे कि "मैं सुबहे सादिक़ से रोज़ादार हुं„ और अगर यह नियत की कि अब से रोज़ा दार हूं सूबह सादिक (अज़ाने फज्र से पहले) से पहले नहूं तो रोज़ी ना हुआ।(جوہرہ ردالمختار و بہار)

नोट: कुछ लोग फज्र की अज़ान खत्म होने तक खाते पीते हैं उनका रोज़ा नही होगा,क्युंकि सहरी का आखरी वक्त अज़ान से पहले पहले खत्म हो जाता है, नेयाज़ अहमद निज़ामी

ईद के दिन का रोज़ा::
मसअला: ईद के दिन का रोज़ा मकरूहे तहरीमी यानी हराम के बराबर इसी तरह बक़रईद के दिन का और उस के बाद 11-12-13 तारीख तक का,

::रोज़ा तोङने वाली चीज़ों का बयान::

मसअला: खाने या पीने या जेमाअ(बीवी के साथ हम्बिस्तरी) करने से रोज़ा टूट जाता है जबकि रोज़ादार होना याद हो,मसअला: मर्द ने औरत का बोसा (kiss)लिया या छूआ या या गले लगाया और इन्ज़ाल (विर्य) हो गया तो रोज़ा टूट गया और अगर औरत ने मर्द को छूआ और मर्द कोइन्ज़ाल (विर्य) हो गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: हुक़्क़ा,सिगरेट,बीङी,सिगार,पीने से रोज़ा टूट जाता है, 
मसअला: पान,या तम्बाकू,या सुर्ती खाने से भी रोज़ा टूट जाता है अगरचे पीक थूक दी हो
मसअला: चीनी,गुङ या वगैरह या ऐसी चीज़ जो मुंह में रखने से घुल जाती है मुंह मे रखी और और थूक निगल गया तो रोज़ा टूट गया।
मसअला: दांतो में कोयी चीज़ चने बराबर या उस से ज़्यादा थी उसे खा गया या कम ही थी उसे मुंह से निकाल कर दोबारा खा गया तो रोज़ा टूट गया,
 मसअला: कान में तेल डाला या किसी तरह चला गया तो रोज़ा टूट गया, और अगर पानी कीन में चला गया या डाला तो रोज़ा नही टूटा,
 मसअल: औरत ने शर्मगाह की जगह पानी या तेल डाला तो रोज़ा टूट गया, जबकी मर्द ने डाला तो नही टूटा,
 मसअला: जानबूझ कर भरमुंह क़ै (उल्टी,बोमेटी) की और रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा टूट गया और अगर इस से कम की तो रोज़ा ना गया,
मसअला: बे अख्तेया ऐसे ही क़ै (उल्टी,बोमेटी)  हुई  और अपने आप अन्दर चली गई तो रोज़ा ना टूटा चाहे थोङी हो या ज़्यादा रोज़ा याद हो या ना हो,
मसअला: रमज़ान में बेगार किसी वजह के ख़ुलेआम जो शख्स खाए पीए तो हुक्म है कि उसे क़त्ल कर दिया जाए।। (ردالمختار)

::उन चीज़ों का बयान जिन से रोज़ा नही टूटता::

मसअला: भूल कर खाया पिया या जेमाअ (बीवी के साथ हम्बिस्तरी) किया तो रोज़ा ना टूटा,
मसअला: मक्खी या धूआं या या ग़ोबार (धूल) हलक़ में जाने से रोज़ा नही टूटता,
मसअला: तेल या सुर्मा लगाया तो रोज़ी ना गया,
मसअला: दांत से खून निकल कर हलक से निचे अगर नही गया तो रोज़ा ना गया,
मसअला: भूले से खाना खा रहा था याद आते ही फौरन नवाला थूक दिया तो रोज़ा ना गया और अगर निगल लिया तो रोज़ा टूट गया,
मसअला: कान में पानी चला गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: बऔरत का बोसा (kiss)लिया या छूआ या या गले लगाया और इन्ज़ाल (विर्य) ना हुआ तो रोज़ा ना टूटा,
मसअला: एहतलाम (स्वपनदोष) हो गया तो रोज़ा ना टूटा, मसअला: नापाकी की हालत में सुबह की बल्कि सारे दिन नापाक रहा रोज़ा तो हो जाएगा मगर इतनी देर तक जानबूझ कर नापाक रहना और नमाज़ का ना पढना हराम है।।

::किन किन हालतो में रोज़ा ना रखने की इजाज़त है::

मसअला: सफर, हमल (प्रेग्नेन्ट), बच्चा को दुध पिलाना, बिमारी, बुढापा, और मर जाने का डर,यह सब रोज़ा ना रखने के लिए ऊज्र है यानी छूट है,इन सब बातों की बजह से रोज़ा ना रखना गूनाह नही,हां जब वह वजह जाती रहे तो बाद में रोज़ा रखना फर्ज है,
मसअला: सफर से मुराद सफरे शरई है यानी इतना दूर निकले की यहां से वहां तक तीन दिन का रास्ता हो,
मसअला:खुद मुसाफिर को और उस के साथ वाले को रोज़ा रखने में नुक्सान ना हो तो रोज़ा रखना सफर में बेहतर है और अगर नुकसान का खौफ हो तो ना रखना बेहतर है,
मसअला: हमल वाली या दूध पिलाने वाली को अगर अपनी जान या बच्चा का डर हो तो तो उस वक्त रोज़ा ना रहे,
मसअला: मरीज़ को बिमारी बढ जाने या देर में अच्छा हो जाने का या सेहतमंद को बिमार पङ जाने का यकीन हो तो उस दिन रोज़ा न रखे

इन तमाम सुरतों में गालिब गुमान यानी सौफीसद यक़ीन हो कि हां ऐसा होगा,तब रोज़ा ना रखने की इजाज़त है,

गालिब गुमान यानी मुकम्मल यकीन की तीन वजहे हैं
1 उस की ज़ाहिरी निशानी पाई जाती हो,
2 उस शख्सकी अपना तजरबा हो,
3 कोई मुसलमान डॉक्टर जो फासिक़ ना हो उस ने खबर दी हो,

और अगर कोई निशानी ना हो ,कोई तजरबा भी ना हो और डॉक्टर ने भी ना कहा हो  तो रोज़ा छोङना जायज़ नही,बल्कि सिर्फ वहम या काफिर व फासिक डॉक्टर के कहने पर रोज़ा छोङ दिया तो कफ्फारा भी देना पङेगा।।

::कफ्फारा की तारीफ::
एक रोज़ा छोङने के बदले लगातार 60 रोज़ा रखे यह ना हो सके तो 60मसेकीनो को दोनो टाइम भरभर पेट खाना खिलाए,
अगर रोज़ा रखने को बीच में एक भी रोज़ा छूट गया तो फिर से गिन्ती शूरू करे,

(استفادہ از قانون شریعت" روزہ حصہ اول)


मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami



Tuesday, May 9, 2017

शअबान का महीना




शअबान का मतलब::
शअबान इस्लामी महीनों में से 8वीं महीना है, अरब के लोग शअबान के महीने में अपने घरों और ख़ेमों से निकल कर पानी की तलाश में दूर दूर तक निकल जाते थे और अक्सर लोग अपने क़बीलों से जूदा हो जाते थे इस लिए इस महीने का नाम शअबान पङ गया। (لسان العرب 8/87، داراصادر بیروت)

शअबान में अल्लाह तआला अपने बन्दों के लिए बहुत ज़्यादा ख़ैर (भलाई) व बरकत नाज़ील फरमाता  (उतारता)  है और साल भर होने वाला काम और बन्दों को मिलने वाला रिज़्क़ इसी महीना में बांटा जाता है। इस लिए इस महीना को शअबान कहा जाता है।
रजब के महीने की पहली तारीख को प्यारे  नबी ﷺ की नज़र चांद पर पङती तो अपना हाथ उठा कर यह दुआ करते
( اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِي رَجَب، وَشَعْبَانَ، وَبَلِّغْنَا رَمَضَانَ )
यानी: ऐ अल्लाह रजब और शअबान को बा बरकत (बरकत वाला) बना और हम को रमज़ान तक पहुंचा।


इस्लामी विद्वान फरमाते हैं की शअबान (شعبان) शब्द में एक बहुत बेहतरीन राज़ छुपा है वह यह कि शअबान (شعبان)  के अन्दर पांच हरूफ (अक्षर) हैं
1 शीन (ش)
2 ऐन.  (ع)
3 बा    (ب)
4 अलिफ (ا)
5 नून    (ن)

शीन (ش) से मुराद शर्फ (बुजुर्गी) है,यानी इस महीना को दूसरे महीनों पर सेवाए रमज़ान के खास बुजुर्गी हासिल है।

ऐन  (ع)  से मुराद उक़बा है, यानी इस बात की तरफ इशारा है कि शअबान की अज़मत करने वाले की दुनिया में इज़्ज़त होगी और आख़ेरत में बङा मरतबा मिलेगा।

बा  (ب)  से मुराद बरकत, बहबूद, बेहतरी और बोहतात है, यानी इस बात की तरफ इशारा है  कि दुनिया में बरकत व बहबूद हासिल होगी और क़ब्र में रोशनी की बोहतात (ज़्यादती) होगी और क़्यामत के मैदान में दरजात बुलन्द होंगे।

अलिफ (ا)  से मुराद अमन व अमान और उल्फत व अनवार है, यानी शअबान की इज़्ज़त करने वाले को दुनिया में अमन व अमान मिलेगा और आखेरत के दिन अमान हासिल होगा, वह क़्यामत की हौलनाकियों से महफूज़ रहेगा।

 नून  (ن) से मुराद नार (आग) है, यानी शअबान की खैर व बरकत हासिल करने वाला जहन्नम से निजात (छुटकारा) पाएगा और इस महीना में नफ्ल नमाज़ पढने वाले के दिल में नूर पैदा होता है और जो शख्स शअबान की अज़मत का लेहाज़ रखता है और इस की ताज़ीम करता है उस को दुनिया में इमान का नूर और आखेरत में आग से निजात (छुटकारा) मिलती है।। (غنیۃ الطالبین 1/188)


शअबान की फज़ीलत::
सय्यदे आलम ﷺ ने शब-ए-मेराज (मेराज की रात) अल्लाह तआला की बारगाह में मुनाजात की थी कि
अए अल्लाह! तुने हज़रत मुसा علیہ السلام को अ़सा (डंडा) दिया था, मुझे अपनी बारगाह से क्या चीज़ एनायत की?
अल्लाह तआला ने फरमाया आप को शअबान का महीना दिया,यह महीना आप की उम्मत के गुनाहों और शैतानी फरेब कारियों को दूर करेगा और सारे गुनाहों को मिटा देगा।

तमाम नबियों के सरदार जनाब अहमदे मुज्तबा ﷺ ने फरमाया:
رجب شھر اللہ و شعبان شھری و رمضان شھر امتی
यानी: रजब अल्लाह का महीना है, और शअबान मेरा महीना है, और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है।

प्यारे आक़ा व मौला मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने शअबान के बारे में फरमाया:
فضل شعبان شھری علٰی سائرالشھور کفضلی علٰی سائرالانبیاء۔
यानी: मेरे महीना शअबान को तमाम महीनों पर ऐसी फज़ीलत हासील है, जैसी मुझे फज़ीलत हासिल है तमाम नबियों पर। (شعب الایمان 3/369)

इसी मुबारक महीना में चांद को दो टुकङे करने वाला मोअजेज़ा भी नबी अलैहिस्सलाम से हुआ था।
अल्लामा इब्न हजर अ़स्कलानी फरमाते हैं कि
شعبان انشق فیہ القمر لسید ولد عدنان
यानी: शअबान वह मुबारक महीना हैजिस में होज़ूर ﷺ से चांद दो टुकङा हुआ।

हज़रते ओसामा रज़िृल्लाहु अन्हू फरमाते हैं कि मैने अर्ज़ की या रसूलल्लाह ﷺ मैं देखता हूं कि जिस तरह आप ﷺ शअबान में रोज़े रखते हैं इस तरह किसी भी महीना में नहीं रखते ?
नबी ﷺ ने फरमाया कि रजब और रमज़ान के बीच में यह महीना है, लोग इस से ग़ाफिल हैं इस में लोगों के आमाल अल्लाह की तरफ उठाए जाते हैं और मुझे यह महबूब है कि मेरा अ़मल इस हाल में उठाया जाए कि मैं रोज़ादार हूं। سنن نسائی ص 387حدیث 2354

(استفادہ از :  آقا کا مہینہ و منیرالایمان فی فضائل شعبان)

इस के अलावा भी दरजनों हदीसें हैं जिस में शअबान की अज़मत व फज़ीलत का ज़िक्र बार बार वारिद हुआ है और यही वह अज़मत वाला महीना है जिस में शब-ए-बरात जैसी अज़ीम रात भी है ,मैं कहता हूं एक मुसलमान के लिए इतना ही काफी है कि इस महीना को प्यारे आक़ा ﷺ नें रमज़ान के बाद सब से ज़्यादा महबूब रखा है,इस महीना में नबीﷺका  रोज़ा की कसरत फरमाना ही इस बात पर दलील है कि य़ह महीना अपने अन्दर कितनी बरकत समेटे हुए है। واللہ اعلم