neyaz ahmad nizami

Tuesday, January 9, 2018

ग्यारहवीं शरीफ की हक़ीक़त: नेयाज़ अहमद निज़ामी




हर साल रबीउल अव्वल (इस्लामी महीना) की ग्यारहवीं तारीख को पूरी दुनिया में हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ के इन्तेक़ाल के दिन पर धार्मिक काम करने के पक्क्ष में बङे धूम धाम से मनाया जाता है, इस तारीख को सय्यदोना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ की रूह को सवाब पहुंचाने की नियत से गरीबों मस्कीनों खाना खिलाने,कपङा बांटने, और अपनी पुंजी को हिसाब से  लोगों पर खर्च करने का एहतमाम करते हैं,
दुआ, सदका, खैरात के सवाब का फायेदा मुर्दो को और पहुंचाने वालों को मिलता है,
हदीस: हज़रत अनस رضی اللہ عنہ  से रिवायत है कि
 उन्होने सरकारे दोआलम ﷺ से पूछा या रसूलल्लाह हम अपने मुर्दों की तरफ से सदक़ा और हज करते हैं और उन के लिए दुआ करते हैं,तो क्या यह उन को पहुंचता है?
 सरकार ﷺ ने फरमाया हां बेला शुब्हा वह पहुंचता है और इस से वह ख़ुश होते हैं।

हज़रत शैख अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी हर साल ग्यारहवीं बङे अदब और एहतराम से मनाते थे,

रहा यह सवाल कि उसी ख़ास दिन को निर्धारित करना कैसा?
इस बारे में शैख अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी फरमाते हैं किसी दिन के निर्धारित करने से कोई फर्क़ नही पङता ,किसी भी उर्स में एक तरह की दावत और ज़ेयाफत (मेहमान नवाज़ी) होती है,और यह ज़ेयाफत (मेहमान नवाज़ी) सुन्नत है अत: (लेहाजा़) एक दिन ख़ास कर के दावत का इन्तेज़ाम करना उस आम सुन्नत से बाहर नही कहलाएगा,,
और किसी  अच्छे कार्य के लिए दिनो को निर्धारित करना तो रसूल ﷺ से साबित है जैसा कि
हदीस: मुहम्मद बिन नोअमान  رضی اللہ عنہ  से मरवी है वह नबी ﷺ  मरफूअन बेयान करते हैं कि: जो अपने मां बाप या इन दोनो में से किसी एक की क़ब्र की हर जुमा को ज़्यारत करे उस को बख़्श दिया जाता है और उसे नेंक और फरमांबरदार लिख दिया जाता है,
दिनो के निर्धारित करने हेतू हबहुत सारे सोबूच मौजुद हैं जैसा कि हजरत ईसा علیہ السلام के बारे मे सुरह मर्यम आयत 33 में है
وَالسَّلَامُ عَلَىَّ يَوْمَ وُلِـدْتُّ وَيَوْمَ اَمُوْتُ وَيَوْمَ اُبْعَثُ حَيًّا

तर्जुमा: और सलामती मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ और जिस दिन मैं मरूं और जिस दिन मैं ज़िन्दा उठाया जाऊं,,
इन वाक़ेयात से पता चला कि पैदाईश का दिन और मौत का दिन दोनो मुहतरम (इज़्ज़त वाला) दिन हैं इसी लिए ओलमा (आलीम) ने वेसाल (मृत्यू) के दिन खाने की दावत, तिलावते कुरआन, अल्लाह ती तस्बीह, और उस जिन माली बदनी इबादत का सवाब बज़ुर्गाने दीन में से कीसी बुजूर्ग की रूह को इसाले सवाब करने को ख़ास फरमाया है,

जब ग्यारहवीं शरीफ का खास दिन मनाना जायज़ हुआ तो उस दिन मेहमानें की मेहमान नवाज़ी के लिए मूर्ग़ा बकरा वगैरह जिबह (हलाल) करना भी जायज हुआ,यह ध्यान रहे कि इस मौक़ा से जो जानवर  जिबह (हलाल) किया जाता है उस के जिबह (हलाल) के समय अल्लाह तअाला ही का नाम लिया जाता है और "बिस्मिल्लाहे अल्लाहु अकबर,, (بسم الله الله اكبر) कह कर ही जिबह (हलाल) किया जाता है,उस जानवर को गौसे आज़म का नाम लेकर नही जिबह किया जाता है,
हज़रत मौलाना शाह अब्दुर्रहमान अपनी मलफुज़ात मे फरमाते हैं कि,
"ग्यारहवीं की हकिकत यह है कि हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ  हर महीना रबिउल अव्वल की 11 तारीख रसूले अकरम ﷺ का फातेहा चहल्लुम मनाते थे आप के मानने वाले(अनूयाई) भी इन्ही तारीखों में यही फातेहा ग्यारहवीं के नाम से मनाने लगे,धीरे धीरे यह ग्यारहवीं खुद सय्यदोना अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ  की तरफ मन्सूब हो गई,आज कल जो ग्यारहवीं मनाई जाती है उस में सय्यदोना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ  का फातेहा होता है और उन के नाम से नेयाज़ दिलाई जाती है,
 (मफहूमे तजकेर-ए-मशाईखे एजाम पेज 175-176-177-178)


मुरत्तिब,तर्जुमा: व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami


Sunday, January 7, 2018

जीवनी ग़ौस़-ए-आज़म-: नेयाज़ अहमद निज़ामी




:: आप का जन्म मुबारक ::
सय्यदोना गौस-ए-आ़ज़म का जन्म मुबारक 1 रमज़ान शरीफ जुमा (शुक्रवार) के दिन 470ھ मुताबिक़ 1077ء गिलान में हुआ आप के पुर्वज का वतन जियाल या जील या जिलान था इसी निस्बत से आप को जिलानी या गिलानी कहते हैं। (مفھوم مرآۃالاسرار ص562 و تزکرہ مشائخ عظام ص 188)

:: नाम नसब ::
आप का नाम नामी अब्दुल क़ादिर और कुन्नियत अबू मुहम्मद लक़ब मोहियुद्दीन महबूबे सुब्हानी है, और दुनिया इन्हे गौस-ए-आज़म,ग़ौस पाक, बङे पीर, पीरान-ए-पीर ,पीर दस्तगीर, सुल्तानुल अवलिया,दानाए असरारे ग़ैब, गौस़ुस्सकलैन, शेर बेशए मारफत,वगैरह के नाम से भी जानती है।

वालिद माजिद (पिता श्री) की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है::
हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी बिन सय्यद अबू सालेह मूसा जंगी दोस्त बिन सय्यद अबू अब्दुल्लाह बिन सय्यद यहया ज़ाहिद बिन सय्यद मुहम्मद रूमी बिन सय्यद दाऊद बिन सय्यद मुसा जौन बिन सय्यद अब्दुल्लाह स़ानी बिन सय्यद अब्दुल्लाह महज़ बिन सय्यद हसन मुस़न्ना बिन सय्यदोना इमामे हसन बिन अमीरुल मुमेनीन सय्यदोना अ़ली इब्न अबी तालिब رضی اللہ عنھم اجمعین ،

वालिदा माजिदा (माता श्री ) की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है::
हज़रत उम्मुल ख़ैर फातेमा बिन्त सय्यद अब्दुल्लाह सोमई ज़ाहिद बिन सय्यद अबू जमाल बिन सय्यद मुहम्मद बिन सय्यद अबुलअ़ता अब्दुल्लाह बिन सय्यद कमालुद्दीन ईसा बिन सय्यद अबू अ़लाउद्दीन अल जव्वाद बिन इमाम अली रज़ा बिन इमाम मुसा काज़िम बिन इमाम जाअ़फर सादिक़ बिन इमाम मुहम्मद बाक़र बिन इमाम ज़ैनूलआबेदीन बिन इमाम हुसैन बिन अमीरुल मुमेनीन सय्यदोना अ़ली इब्न अबी तालिब رضی اللہ عنھم اجمعین (تزکرہ مشائخ عظام ص188)

पिता की तरफ से हसनी और माता की तरफ से हुसैनी सय्यद होने के नाते आप رحمۃ اللہ عیہ को नजीबुत्तरफैन सय्यद भी कहा जाता है।

:: आप का बचपन ::
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ की माता श्री कहती हैं कि जब मेरा लङका पैदा हुआ तो रमज़ान शरीफ में दिन भर दूध नहीं पीता था जन्म के दूसरे साल आसमान में बादल होने की वजह से लोगों को रमज़ान का चांद दिखाई ना दिया इस लिए लोगों नें मेरे पास आकर सय्यदोना अब्दुल क़ादिर जिलानी के बारे में पूछा कि इन्होंने दुध पिया है कि नही? तो मैने उन को बताया कि मेरे बेटे ने आज दूध नही पिया है, इस के बाद छानबीन करने पर पता चला कि उस दिन रमज़ान की पहली तारीख थी यानी उस दिन रोज़ा था,(سیرت غوث اعظم- عالم فقری ص26)
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ फरमाते हैं कि मेैं उस समय अपने घर में बच्चा था जब मैं बच्चों के साथ खेलने का इरादा करता तो मैं कहने वाले को सुनता कि वह मुझसे कहता है ऐ बरकत वाले किधर जाते हो तब मैं डर कर भागता और अपनी मां की गोद में पङ जाता।
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ जब घर से मदरसा को जाते तो अध्यापक लङकों से कहते थे कि वली अल्लाह के लिए जगह चौङी करो ताकि वह बैठ जाए। (بہجۃالاسرار ص 50)

:: आप का होलिया मुबारक ::
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी رحمۃ اللہ علیہ ज़ईफ-उल-बदन, दरमियाना क़द, चौङा सीना, चौङी दाङी, लम्बी गरदन, गन्दुमी रंग, मिले हुए भंव, काली आंखें, बुलंद आवाज़,के मालिक थे।(غوث پاک کے حالات ص 24)

:: तालीम व तरबियत (शिक्षा व पोषण) ::
ग़ौस पाक رحمۃ اللہ علیہ ने अभी होश भी ना सम्भाला था कि वालीद माजिद (पिता श्री) का साया सर से उठ गया और अाप के नाना हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह सोमई ज़ाहिद رحمۃ اللہ علیہ ने ग़ौस पाक के पालन पोशण की ज़िम्मेदारी अपने सर लेली और इस तरह अपनी मां की छत्र छाया तले आप परवान चढते रहे जब मकतब जाने की उम्र हुई तो तालीम का आग़ाज़ हुआ रहमते ख़ुदावन्दी शामिल-ए-हाल रही,(تزکرہ مشائخ عظام ص189)
बग़दाद का सफर ::
आप 18 साल की उम्र यानी 488ھ में अपनी मां की ख़िदमत में जाकर अर्ज़ किया कि मुझे राहे हक़ तआला पर चलने की इजाज़त दें ताकि बद़गाद जाकर इल्म (शिक्षा) प्राप्त करूं आप रोईं और 40 दिनार गौस पाक के कपङे के बगल में सी कर इजाजत दे दिया और उन्होने दुआ के साथ साथ नसीहत भी कीं कि झूट ना बोलना , मैं एक क़ाफिले के साथ बगदाद को रवाना हो गया हमदान से क़ाफिला गुज़र चुका तो 60डाकुओं ने क़ाफिले के उपर हमला कर दिया और सामान को लूटने लगे मगर मेरी तरफ किसी ने भी ध्यान ना दिया अचानक एक डाकू मेरे पास आकर पूछा ऐ फक़ीर तेरे पास क्या है मैने कहा 40 दिनार मेरे कपङों में सिले हुए हैं, लेकिन उसे यक़ीन ना आया और वह चला गया एक और डाकू ने वही सवाल किया मैने वही जवाब दिया वह भी चला गया दोनो ने अपने सरदार के पास जाकर वही माजरा बयान किया सरदार ने भी वही सवाल किया और मैने वही जवाब दिया, मेरा कपङा फाङकर देखा तो 40 दिनार पाकर डाकू के सरदार ने कहा कि तुमने अपने माल को जाहिर क्यु किया? मैने कहा कि मेरी मां ने झूट बोलने से मना किया था,यह सूनकर चोरों के सरदार ने रोना शुरू कर दिया और मेरे हाथ पर अपने साथियों के साथ तौबा कर ली और छीना हुआ सामान वापस दे दिया(مرآۃالاسرار ص563/564)
डाकुओं के सरदार का नाम अहमद बदवी था। (تذکرہ مشائخ عظام ص190)
रेयाज़त और मुजाहिदात::
जब आप बगदाद में 488ھ में शिक्षा के लिए आए तो उसी समय से तसव्वुफ की जानिब ध्यान और तप जारी था सुन सान जगहों में जाकर ज़िक्र व अज़कार में लगे रहते सबक (कलास) के बाद जंगल की तरफ निकल जाते दिन हो या रात आंधी हो या बारिश हर चीज़ से ला परवाह हो कर जंगलों में फिरते रहते सर पे छोटा सा अमामा (पगङी) होता, नंगे पैर कांटो और पथरीली ज़मीन पर चलते रहते दरिया-ए-दजला के किनारे साग या दुसरी तरकारियां खा लेते गरज़ेकि गौस-ए-आज़म के उपर जो भी मुसीबत पङती उसे बरदाश्त कर लेते।
खुद फरमाते हैं कि इल्मे शरीयत (धर्म ज्ञान) पुर्ण करने के बाद पूरे तौर पर सोलूक तसव्वफ की तरफ मुंह मोङ लिया और बगदाद के सब से बङे शैख तरीक़त हज़रत अबुल ख़ैर हम्माद बिन मुस्लिम दब्बास رحمۃاللہ علیہ से तरीक़त व माअरेफत का ज्ञान प्राप्त किया और जब ज़ौक़ बढता गया तो विरानो जंगलों का रुख अपना कर अपने आप को तरह तरह की रियाज़तों और मुशक्कतों में डाला,
आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि नफ्स अपने इच्छा अनुसार मुझपे कभी हावी नही हुआ और ना ही दुनिया की सुन्दरता ने मुझे आकरसित किया

:: बैअ़त और ख़ेलाफता ::
नफ्स की सफाई के बाद किसी पीर कामिल की आरज़ू पैदा हुई और शैख अबू सईद मुबारक मख़ज़ूमी رحمۃاللہ علیہ से बैअ़त और खेलाफत लेने के बाद तरीकत व सोलूक के रोसूम सीखीं, इस के अलावा शैख़ मुहम्मद बिन मुस्लिम-उल-अयास से भी तसव्वफ व माअरेफत हासिल की, (تذکرہ مشائخ عظام ص192)

:: मुतफर्रिक़ात ::
आप ने कोई नया मदरसा नहीं खोला बल्कि अपने उस्ताद शैख अबू सईद मुबारक मख़ज़ूमी رحمۃاللہ علیہ के मदरसे ही में लोगों को इल्म के नूर से मनव्वर करते रहे,
हज़रत गौस़-ए-आज़म इर्शाद फरमाते हैं कि शुरू ज़माना में मैंने नबी अलैहिस्सलाम और हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु को ख़्वाब (सपने) में देखा कि मुझे वाज़ (पर्वचन) कहने का हुक्म फरमा रहे हैं और मेरे मुंह में अपना लुआबे दहन (मुंह का थूक) डाला , बस उस का असर यह हुआ कि मेरे लिए वाज़ (पर्वचन) कहने की बङी उप्लब्धी मिल गई,
आप की मजलिस (बैठकी) में कुल अवलिया व अम्बिया, हयात व अजसाद और अमवात अरवाह के साथ जिन और फरिश्ते हाज़िर होते थे खिज्र अलैहिस्सलाम तो कभी कभी मजलिस (बैठकी) में शरीक होते थे और वक़्त के मशाएख को मजलिस (बैठकी) में आने की दावत देते थे और कहते कि जिसे कामियाबी चाहिए वह शैख गौसे आज़म की मजलिस की नोकरी को जरूरी जान ले।

:: इन्तेक़ाल  (मृत्यू) ::
आप का वेसाल (मृत्यू) 27 शअबान सोमवार को 513 हिजरी में बद़दाद शरीफ में हुआ, मगर कुछ लोगों नें 4 शअबान, 10 मुहर्रम, 7 शअबान,508हिजरी भी लिखा है,
आप का मज़ार मुबारक बगदाद शरीफ मेंआप के मदरसे के बाबुल अजज़ में है।(سیرت غوث اعظم ص67)

::बीवियां और औलादें ::
गौसे आज़म रजियाल्लाहु अन्हु ने 51 साल की उम्र में शादी की,वह भी अल्लाह की रेज़ा के लिए आप ने फरमाया कि बहुत ज़माना से नबी अलैहिस्सलाम की सुन्नत के लिए निकाह की ख्वाहिश रखता था मगर यह सोच कर हिम्मत नही जुटा पाता कि कहीं शादी मेरी इबादत में रुकावट की वजह ना बन जाए मगर अल्लाह ने हर काम होने का एक समय मुक़र्रर कर रखा है लिहाज़ा जब वह समय आया तो अल्लाह के करम से मेरी शादी हो गई और अल्लाह ने 4बीवियां दीं और उन में से हर एक मुझ से मुहब्बत रखती थी (سیرت غوث اعظم247)
औलाद-:
हजरत शैख अब्दुल क़ादिर जिलानीرحمۃ اللہ علیہ की बहुत औलाद थे चुंकि आप की 4 बीवियां थीं इस लिए उन्ही से बहुत से बेटे और बेटियां पैदा हुईं, कहा जाता है कि आप के कुल 49 औलादें हुईं इतनी औलादें होने के बावजूद उन का पालन पोषण बहुत अच्छे तरीक़े से किए,
गौसे आज़म رضی اللہ تعالی عنہ फरमाते हैं कि जब मेरे घर कोई बच्चा पैदा होता है तो मैं उसे अपने हाथों में लेता हूं और यह कह कर कि वह मुर्दा है, फिर अगर वह मर भी जाता है तो मुझे उस की मौत से कोई रंज गम नही होता,
आप की औलादों में से कई इल्म के समुन्दर निकले। (سیرت غوث اعظم248)
आप के जिन बेटों का नाम सिरत व सवानेह की किताबों मे मिलता है उन के नाम यह हैं,
1-हज़रत सयदोना सैफुद्दीन अब्दुल वहाब जिलानी
2- हज़रत शैख़ शरफुद्दीन ईसा जिलानी
3- हज़रत शैख़ सेराजुद्दीन अब्दुल जब्बार
4- हज़रत शैख़ शमसुद्दीन अब्दुल अज़ीज़
5- हज़रत शैख़ अबू इस्हाक़ इब्राहीम
6- हज़रत शैख़ अबूल फज़्ल सय्यद मुहम्मद
7- हज़रत शैख़ अबू अब्दुर्रहमान सय्यद अब्दुल्लाह
8- हज़रत शैख़ ज़्याउद्दीन अबू नसर मुसा
9- हज़रत अबू ज़कर यहया
10- हज़रत शैख़ अबू अब्दुल्लाह अली
11- हज़रत शैख़ अबू बकर ताजुद्दीन अब्दुर्रज़ाक
मनाक़िबे गौसिया किताब में निम्न नाम और हैं
12- हज़रत शैख़ सय्यद यूसुफ
13- हज़रत शैख़ सय्यद अबू सॉलेह
14- हज़रत शैख़ सय्यद अब्दुल गफ्फार
15- हज़रत शैख़ सय्यद हबीबुल्लाह
16- हज़रत शैख़ सय्यद ज़ाहिद
17- हज़रत शैख़ सय्यद मंसूर
18- हज़रत शैख़ सय्यद अब्दुल ख़ालिक़
19- हज़रत शैख़ सय्यद अब्दुर्रउफ
20- हज़रत शैख़ सय्यद मज़दुद्दीन
तफरीहुल ख़ातिर नामी किताब में दो नाम और है,
21- हज़रत शैख़ सय्यद अब्दुल ग़नी
22- हज़रत शैख़ सय्यद अब्दुल गफूर  رحمھم اللہ تعالی علیھم اجمعین  (تذکرہ مشائخ عظام ص 170)

:: आप की करामात ::
गौसे पाक رحمۃ اللہ علیہ के पास उमर बिन सॉलेह अपनी उंटनी लेकर आया और उस ने कहा कि मेरा हज का इरादा है और मेरी इकलौती उंटनी चल नही सकती पस आप رحمۃ اللہ علیہ ने उस को एक उंगली लगाई और और उस की पेशानी (माथा) पर अपना हाथ रखा वह कहता था कि उस की हालत यह थी कि तमाम सवारियों से आगे चलती थी ।
गौसे पाक رحمۃ اللہ علیہ के पास अबुल मोआली आए और कहने लगे कि मेरे बेटे मुहम्मद को 15 महीने से बोखार आ रहा है, गौसे पाक رحمۃ اللہ علیہ ने फरमाया कि जाओ और उस के कान में कह दो ऐ उम्मे मुल्दुम तुम से अब्दुल क़ादिर फरमाते हैं कि मेरो बेटे से निकल कर हुल्ला की तरफ चले जाओ, यह कहने के बाद फिर कभी बुख़ार उन्हे हुआ ही नहीं। (غوث پاک کے حالات ص 50-51)
و آخر دعوان الحمد لللہ رب العالمین
जमा,तरतीब, तसहील,
 नेयाज़ अहमद निज़ामी