neyaz ahmad nizami

Thursday, April 27, 2017

कव्वों की एकता (डा0 गूलाम जाबिर शम्स)


कव्वा बे ज़ुबान है नहीं......ज़ुबान रखता है ...... हम नहीं समझते......एक कव्वा पकङ कर देखो......एक कव्वा मार कर देखो......कोई ख़बर करे,ना करे......ख़ुद बाख़बर रहते हैं......बा ख़बर रखते हैं......आनन फानन सब जमा हो जाएंगे......जैसे बारिश में मेंढक टर टरा कर आसमान सर पर उठा लेते हैं......इसी तरह यह भी कांय कांय कर के सातों आसमान सर पर उठा लेंगे......कांव कांव के शोर से अन्दाज़ा होगा……जैसे कहते होंगे,किस ने मारा......क्यूं मारा......कैसे मारा......कहां मारा......कब मारा......देखो उस को......ढूंडो उसको......पकङो उस को......पूछो उस से.......सज़ा दो उस को......क़ैद करो उस को......क़त्ल करो उस को......आज एक मरा.......कल दो मरेंगे......परसों तीन मरेंगे......यूं हमारी नस्ल खत्म हो जाएगी......लेकिन हाय रे मुसलमान!कोई पिटता है...... तो पिटा करे......कोई क़ैद होता है.......तो हुआ करे......कोई क़त्ल करता है......तो किया करे......कोई मरता है......तो मरा करे......ना किसी को फिक्र......ना किसी को दर्द......ना दवा......ना तरस.......ना तङप.......ना मुहब्बत......ना अख़ुअत (भाई चारा)......ना जज़ब-ए-इत्तेहाद......ऐ काश! मुसलमान कव्वों से ही सही......मुहब्बत व इत्तेहाद का सबक़ सीख तो लेते......कव्वा बाहर से काला है......अन्दर से उजाला है......क्य मुसलमान ज़ाहिर से सफेद है.....बातिन से सेयाह (काला) है......अगर ऐसा है......तो ऐसे मुसलमानों को......कव्वों से उजालों की भीक मांग लेनी चाहिए......ऐसे साफ दिल कव्वों को......जिस किसी ने ज़िबह कर के खाने का हुक्म दिया......यक़ीनन उस का दिल रहम से ख़ाली था......शायद यह एहतजाज उसी बे रहम के ख़ेलाफ था।। (बोलती तस्वीरें पेज 15 डा0 ग़ुलाम जाबिर शम्स मिस्बाही)

Sunday, April 23, 2017

27 रजब


आज 27वीं रजब है

रजब की 27वीं तारीख बहुत फज़ीलत व अज़मत वाली रात है, क्युंकि इसी रात को नबी ﷺ की तरफ पहली वह़ी (रब का वह पैग़ाम जो नबियों पर उतरते हैं)  भेजी गई।
और इसी रात में सरकारे दोआलम ﷺ मेराज के लिए तशरीफ ले गए यही वजह है कि सत्ताईसवीं रात में इबादत करने और दिन में रोज़ा रखने वालों को ढेरों अज्र और स़वाब मिलता है। आईए इसी के बारे में 3 फरमाने मुस्तफा ﷺ पढते हैं।



इस महीने के बारे में और भी बहुत सारी बाते जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

1-100साल के रोज़ों का स़वाब
हजरते सलमान फारसी रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है की नबी ﷺ  ने फरमाया रजब में एक दिन और रात है जो उस दिन रोज़ा रखे और रात को क़ेयाम (इबादत) करे तो गोया उस ने 100साल के रोज़े रखे और 100साल की शब बेदारी (रातभर अल्लाह की इबादत) की और यह रजब की सत्ताइस (27) तारीख़ है,।( شعیب الایمان ج 3 ص1367)


2- 60महीनों का सवाब
हजरते अबू हुरैरा रजियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि,, जो कोई सत्ताइसवीं रजब का रोज़ा रखे अल्लाह तआला उस के लिए 60 महीनों के रोज़ों का सवाब लिखे,
(فضائل شھر رجب للخلال ص76)


3- 27 रजब को मुझे नोबूव्वत मिली जो इस दिन को रोज़ा रखे और इफ्तार के समय दुआ करे, दस बरस के गुनाहों का कफ्फारा हो, (فتاوی رضویہ ج 10ص648)

तो पता चला कि  27वीं रजब हम गुनहगारों के लिए ढेर सारी रहमतें बरकतें लेकर आता है, अगर हमें इस दिन रोज़ा रखने इबादत करने की खुश्नसीबी हासील हो जाए तो अल्लाह की ज़ात से उम्मीद है कि यह सब सवाब हमें मिल सकते हैं।

منقول:  کفن کی واپسی



             मुरत्तिब
NEYAZ AHMAD NIZAMI
 http://neyaznizami.blogspot.com

Saturday, April 22, 2017

الجامعۃالاشرفیہ میری نظر میں

درسگاہ و دفتر الجامعۃ الاشرفیہ

اس سے کسی کو انکار نہیں کہ ہماری جماعت میں بہت سے معیاری  مدارس ہیں، جن کا تعلیمی ڈھانچہ بہت ہی مضبوط اور عمدہ ہیے
جن میں سرفہرست الجامعۃ الاشرفیہ کوماناجاتاہے.

یہی وجہ ہے کہ جوتعمیری ذہن الجامعۃ الاشرفیہ کے فارغین میں پاے جاتے ہیں وہ ہندوستان کے اکثر مدارس کے طلبامیں  نہیں پاےجاتے.
ظاہر سی بات ہیے اس کا سہرا صرف اور صرف طلبا کو نہیں جاتا بلکہ قابل تعریف ہیں وہ با صلاحیت علماجو ادنی کواعلی بناکرقوم کےسامنے دین مذہب کی خاطرپیش کرتے ہیں.


مزار حضور حافظ ملت علیہ الرحمۃ

یوں ہی طلباکی کامیابی کے لیے  باصلاحیت علماکامدارس میں ہںونا کافی نہیں ،کیونکہ بہت سارے مدارس ھم نے دیکھے  جس میں علم و فن کے حامل علماکو موجود پایا. مگرنظام تعلیم بہتر نہ ہونے کے سبب وہاں تدریسی خدمات نا کے برابر انجام پاتی ہیں .جس کی بہتر صحت موقوف ہے منتظمین پر.
لائق ستائش ہیں الجامعۃ الاشرفیہ مبارکپور کے وہ منتظمین جو تدریسی نظام کو اتنا مستحکم اور پائدار بنا ئےہوے ہیں کہ عوام کی خدمت میں بہترین ،تقریری،تحریری،تبلیغی، علما پیش کیئے


ہم جب کسی عالم کے نام کے ساتھ اس کے مادر علمی کا نام سنتے ہیں تو اول فرصت ذہن میں یہ بات آتی ہیے کہ ان کی تعلیم فلاں مدرسہ سے ہںوئی ہیے،مگر جب کسی عالم کے نام کے ساتھ مصباحی سنتے ہیں تو یہ تصوربعد میں ہوتاہیے کہ جامعہ اشرفیہ ان کا مادر علمی ہیے،پہلے یہی خیال آتا ہیے کہ سامنے علم کا ٹھاٹھیں مارتا ہںو ا سمندر کھڑا ہیے گویا باصلاحیت عالم کا دوسرا نام مصباحی ہیے

        نیاز احمد نظامی
24/رجب المرجب 1438ھ
 22/ اپریل 2017ء .بروز شنبہ

Thursday, April 20, 2017

अगर आप में इन्सानियत (मानवता) है तो:





"अजनबी लोग" भी अपनी ख़ूनी रिश्ते दारों से कहीं ज़्यादा अ़ज़ीज़ (प्यारे) हो जाते हैं।
और अगर आप मे इन्सानियत नहीं है तो अपने ख़ूनी रिश्ते भी बेगाने हो जाते हैं।




सिर्फ आप की इ़ज़्ज़त इ़ज़्ज़त नहीं है, दूसरो की इ़ज़्ज़त भी इ़ज़्ज़त ही है।
सिर्फ आप की बहन बहन बहन नही है बल्की दूसरों की बहन भी बहन है।
दूसरों की इ़ज़्ज़त की क़ीमत को समझिए.
जी हां ! यही इन्सानियत है और मज़हब इसी की तालीम (शिक्षा) देता है।।
_________________________________
ह0 अल्लामा सय्यद शाह क़मर-उल-इस्लाम साहब क़िबला


اگر آپ میں انسانیت ہے تو :

"اجنبی لوگ" بھی اپنے خونی رشتے داروں سے کہیں زیادہ عزیز ہو جاتے ہیں.
اور اگر آپ میں انسانیت نہیں ہے تو اپنے خونی رشتے بھی بیگانے ہو جاتے ہیں
 .
صرف آپ کی عزت عزت نہیں ہے، 
دوسروں کی عزت بھی عزت ہی ہے
 .
صرف آپ کی بہن بہن نہیں ہے بلکہ دوسروں کی بہن بھی بہن ہے
.
دوسروں کی عزت کی قیمت کو سمجھیے
.
جی ہاں یہی انسانیت ہے اور مذہب اسی کی تعلیم دیتا ہے.
_________________________________
از -: حضرت علامہ سید شاہ  قمرالاسلام  صاحب قبلہ

Wednesday, April 19, 2017

इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा यानी कून्डे की फातेहा


हिन्दुस्तान एंव पाकिस्तान के मुख्तलिफ अलाक़ों के सुन्नी मुसलमान 22,रजब को इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ  की नेयाज़ दिलाते हैं, जिसे कुन्डों की फातेहा कहा जाता है।
यह कोई पूरानी रस्म नहीं,बल्की लगभग डेढसौ साल की रस्म है और कहा जाता है कि:
इस की शुरूआत शीओं ने की थी और हकीकत में वह 22 रजब को सहाबिये रसूल हज़रत अमीर मोआ़वीया رضی اللہ عنہ की वफात (मृत्यू) का जश्न मनाते हैं,
मगर, सुन्नियों के डर से इस का नाम इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा रख दिया यानी इस रस्में फातेहा के परदे के पीछे शियों का डर की वजह से सच्ची बात छूपाना शामिल है।

किसी के इसाल-ए-स़वाब के लिए कोई वक्त (समय) कोई खास तरीका नही है।

साल के किसी भी दिन रात में जैसे और जिस तरह चाहें इसाल-ए-सवाब कर सकते हैं।
और किसी भी बज़ुर्ग की फातेहा दिला सकते हैं,

बेहतर यह है कि इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ की इसाल-ए-सवाब के लिए  उन के इन्तेक़ाल की तारीख का ख्याल रखा जाए जो 15 रजब है,

और जो 22 रजब ही को नेयाज़ दिलाना चाहें वह इसाल-ए-सवाब के समय हजरते अबूबकर, हजरते उमरे फारूक़, हज़रते उस्मान गनी, हज़रते अली, हज़रते अमीर मोआविया رضی اللہ عنھم  का नाम खासकर लें, इन हज़रात के अलावा जिन का भी नाम लेना चाहें और इसाल-ए-सवाब करना चाहें करें, इस तरह शीयों का मक़सद नाकाम हो जाएगा ।
और उन की मुशाबेहत  का शक भी अपने आप खत्म हो जाएगा।


यह भी पढे ::  
 हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़  رحمۃ اللہ علیہ
कुन्डों की फातेहा में तरह तरह  की औरतों के ख्यालात और रस्मे हैं, जो बिल्कुल बेकार और बेहुदा हैं। इन बे अस्ल व बे बुनियाद  रस्मों से अहल-ए-सुन्नत को सख्त परहेज ज़रूरी है,
अल्लाह तआला  तमाम अहल-ए-सुन्नत को हर तरह के खतरों से महफूज़ (सुरक्षित) रख कर उन्हे सीधे रास्ते और बज़ूर्गों के नक़्शे क़दम पे चलने की तौफीक़ दे ।।

आमीन
یا رب العالمین بجاہ حبیبک سیدِ المرسلین علیہ و علی آلہ و اصحابہ اجمعین
यासीन अख्तर मिस्बाही
बानी व अध्यक्ष:: दार-उल-कलम दिल्ली





मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami






Thursday, April 13, 2017

مولود کعبہ کون؟.


آج کل سوشل میڈیا پر یہ بات بہت تیزی سے گرد ش کر رہی ہیے کہ مولودکعبہ کون؟. آیا حضرت  حکیم بن حزام رضی اللہ تعالی عنہ ہیں یا حضر علی رضی اللہ تعالی عنہ ؟.
اس سے متعلق حضرت علامہ و مولانا قاری محمد لقمان صاحب کی ایک تحقیقی کتاب آپ حضرات کی بارگاہ میں حاضر ہیے

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مطالعہ کرنے کے لیئے یہاں کلک کریں
https://drive.google.com/file/d/0B_OAZUmbYXq8cG1yR2ZuQjRyUjQ/view?usp=drivesdk


Tuesday, April 11, 2017

हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ رحمۃ اللہ علیہ



रजब के महीना को कई बज़ुर्गों  से निस्बत हासिल है इन्ही में से एक हस्ती ऐसी भी है जिसने भटके हुए लोगों को राह दिखाई,उम्दा (उच्च) किरदार की खुश्बू से परिशान हालों की परिशानी दूर की, इल्म के नुर से जहालत  की तारीकी को खत्म किया,वह महान शख्सियत हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ रज़ियल्लाहु अन्हु हैं,

नाम नसब (खानदान) :  आप का नाम '' जाफर ,, और कुन्नियत ''अबू अब्दुल्लाह,, है, आप का जन्म 80 हिजरी में हुआ, आप के दादा हजरत इमाम ज़ैनुल आबेदीन और वालिद (पिता) इमाम मुहम्मद बाक़र हैं,जबकि वालिदा (माँ) हजरत उम्मे फरवा बिन्त क़ासिम बिन मुहम्मद बिन अबू-बकर सिद्दीक़ हैं (رحمۃ اللہ تعالی علیھم اجمعین)

इस तरह आप पिता की तरफ से हुसैनी सय्यद और माँ की तरफ से सिद्दीक़ी हैं,सच बोलने की वजह से आप को सादिक़ के लक़ब से जाना जाता है।

तालीम व तरबियत :  आप ने मदीना शरीफ में आंख खोलीं और अपने पिता इमाम मुहम्मद बाक़र,हजरत सय्यदना ओबैदुल्लाह  बिन अबी राफेअ, हजरत सय्यदना उर्वा बिन ज़ुबैर, हजरत सय्यदना अ़ता और हजरत सय्यदना नाफेअ़ علیھم الرحمۃ के इल्मी गहवारे में तरबियत हासिल की (تزکرۃالحفاظ 1/126) दो अज़ीम (महान) सहाबा हजरत सय्यदना अनस बिन मालिक और  हजरत सय्यदना सहल बिन साअ़द رضی اللہ تعالی عنھما  की ज़ियारत (देखने) करने की वजह से आप  رحمۃ اللہ تعالی علیہ  ताबई़ हैं  (سیر اعلام النبلاء ۶/۴۳۸)

http://neyaznizami.blogspot.com/2017/04/blog-post_11.html
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दीनी ख़िदमात (मज़हबी सेवाएं) :  हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़ رحمۃ اللہ علیہ की सोहबत (साथ) में रह कर कई लोग क़ौम के लिए रोशन भविष्य बने, आप  رحمۃ اللہ علیہ के इल्मी फैज़ान से फायदा हासिल करने वालों में आप के पुत्र इमाम मुसा काज़िम, इमाम आ़ज़म अबू हनिफा, इमाम मालिक, हज़रते सुफियान सोरी, हजरत सुफियान बिन ओययना, علیھم الرحمۃ  के नाम सब से उपर है, (تزکرۃ الحفاظ 1-125)

हिकायत : एक मरतबा गुलाम नें हाथ धुलवाने के लिए पानी हाथ पर डाला मगर हाथ पर गिरने को बजाए कपङों पर गिर गया, आप رحمۃ اللہ علیہ ने ना तो झाङा और ना तो सज़ा दी बल्कि उसे मुआफ कर दिया और आज़ाद भी कर दिया (بحرالدموع ص 202 )

विसाल व मदफन: आप رحمۃ اللہ علیہ  का विसाल 15 रजब 148 हिजरी को यानी 68 साल की उम्र में हुआ
और आप अपने दादा इमाम ज़ैनुल आबेदीन और अपने पिता इमाम बाक़र رحمۃ اللہ علیھا  की क़ब्रों के पास  जन्नतुल बक़िय में दफन हुए,

ماہنامہ فیضان مدینہ ص 42 شمارہ اپریل 2017

मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami















Monday, April 10, 2017

ہر زماں جویم رضائے محی الدین





ایں ہمہ نعمت کہ دیدم بے بہا
از عنایت غوث اعظــــم رہنما

غوث اعظم قطب عالم محی الدین
ہر زماں جویم  رضائے  محی الدین

محی الدین عالی معــــــلّٰے با صفا
کس ندارد مـثــــــــــل او از اصفیا

اصفیا از وصف او دیـــــــــوانہ اند
کاملاں از درکِ  او بیـــــــــگانہ اند

ہاں اگر جوئی شراب از وصل یار
باش دامنگیر قطب شہســـــــوار

قطب ربانی مــــــحقق بادشـــــــاہ
دیگراں ہستند لشــــکر یا سپـــــاہ

شد بہـــــادر از عنایت محی الدیں
محی الدیں دیدم بطف محی الدیں

نــــــور حق روشن منـــــــور بر جبیں
خود بفرمودند خوش بیں محی الدیں

از عنایت شاں شدم  با  حق قریں
لطف یزداں شد طفیل محی الدیں

شک نیاری اند ایں اسرار من
کرد واصل با خدایم محی الدیں

زود گردد با خدائے خود قریں
آنکہ باش در ہںوائے محی الدیں

نور شاں از عرش و کرسی بر تر است
بر  تر  است آنکہ بیند محـــــــی الدیں

ہر چہ ہست از عرش تا تحت الفرش
ہست در حـــــکمِ رضائے محی الدیں

مجمع الاسرار (اردو). ص3

نیـــــاز احمـــــد نظامی

चन्द कुफ्रिया कलेमात (बाते)

गरीबी, बिमारी, परिशानी, और मौत के मौकों पर कुछ लोग  ग़म या जज़बात में आकर  कभी कभी نَعُوذُ بِااللہ कुफ्रिया कलेमात(बातें) बक देते हैं।
याद रखिए! बेगैर शरई़ वजह के होश और हवास में खुला कुफ्र बकने वाला और माना (मतलब) समझने के बा-वजूद हां में हा मिलाने वाला बल्कि उस की हेमायत में सर हिलाने वाला भी काफिर हो जाता है,

मुश्किल घङी में बकी जाने वाली कुफ्रिया बातों की मिस़ालें
1- एतराज़ के तौर पे कहना: वह शख़्स लोगों के साथ कुछ भी करे अल्लाह की तरफ से उस को पूरी आज़ादी है।

2- अल्लाह ने हमेशा मेरे दुश्मनों का साथ दिया।

3- एतराज़ के तौर पे यूं कहना: कभी हम फुलां के साथ थोङा कुछ कर लें अल्लाह हमें  फौरन पकङ लेता है।

4- हमेशा सब कुछ अल्लाह पर छोङ कर भी देख लिया कुछ नहीं होता।

5- अल्लाह ने मेरी क़िस्मत अभी तक तो अच्छी नहीं बनाई।

6- एक शख़्स ने हमारी नाक में दम कर रखा है, मज़े की बात यह है ति अल्लाह भी ऐसों के साथ होता है।

7- जिस शख़्स ने  मुसीबतें पहुंचने पर कहा: ऐ अल्लाह! तूने माल ले लिया,फुलां चीज़ लेली, अब क्या करेगा? या अब क्या चाहिए? या अब क्या बाक़ी रह गया? यह सब बातें कुफ्र हैं।
8- जो कहे: अल्लाह ने मेरी बिमारी और बेटे की मुशक़्क़त के बावजूद मुझे अ़ज़ाब दिया तो उस ने मुझपर ज़ुल्म किया।

9- अल्लाह ने हमेशा बुरे लोगो़ का साथ दिया।

10- अल्लाह ने मजबूरों को और परिशान किया है






ग़रीबी की वजह से बकी जाने वाली कुफ्रिया बातों का मिसालें

11- जो कहे: ''ऐ अल्लाह! मुझे रिज़्क़ दे और मुझपर तंगदस्ती (गुरबत-ग़रीबी) डालकर ज़ुल्म ना कर। (فتاوی قاضی خاں )

12- यह कहना: कि अगर वाक़ई अल्लाह होता तो ग़रीबों का साथ देता कर्ज़दारों का सहारा देता, कुफ्र है।


ऐतेराज़ की सूरत में बकी जाने वाली कुफ्रिया बातें

13- मुझे नहीं मालूम कि अल्लाह ने जब मुझे दुनिया में कुछ नही दिया तो मुझे पैदा ही क्यूं किया।

14- किसी गरीब ने अपनी गरीबी देख कर यह कहा: या अल्लाह! फुलां तेरा बन्दा है  उसे तूने कितनी नेमतें दे रखी हैं और एक मैं भी तेरा बन्दा हूं मुझे  कितना रंज व तकलीफ देता है। आख़िर कैसा इन्साफ है?

15- कहते हैं: अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है , मैं कहता हूं यह सब बकवास है।

16- जिन लोगों को मैं प्यार करता हूं वह परिशानी में रहते हैं और जो मेरे दुश्मन होते हैं अल्लाह उन को बहुत ख़ुश्हाल रखता है।

17- काफिरों और मालदारों को राहतें और गरीबों नादारों को आफतें, बस जी अल्लाह के घर का तो निज़ाम ही उल्टा है।

18- ऐ मेरे रब! तू मुझ पर क्यूं ज़ुल्म करता है? हालांकि मैं ने तो कोई गुनाह किया ही नहीं,
यह तमाम बातें कुफ्रिया हैं।

मौत के मौक़ों पर बकी जाने वैली कुफ्रिया बातें

19- किसी की मौत पर किसी ने कहा: अल्लाह को ऐसा नहीं करना चाहिए था, यह कुफ्र है

20- किसी बच्चे की मौत पर किसी ने कहा: अल्लाह को इस की हाजत (ज़रूरत) रही होगी इसी लिए बुला लिया।

21- किसी की मौत पर आम तौर पे बक देते हैं कि अल्लाह को इसकी ना जाने क्या ज़रूरत पङ गई जो जल्दी बुला लिया,या यह कहते हैं अल्लाह को भी नेक लोगों की ज़रूरत पङती है इस लिए जल्द उठा लेता है (यह सुन कर इस का मतलब समझने के बावजूद हां में हां मिलाने वाला काफिर है)

22- किसी की मौत पर किसी ने कहा: या अल्लाह तुझे इस के छोटे छोटे बच्चों पर भी तरस नही आया?।

23- इस की भरी जवानी पर ही रहम किया होता अगर लेना ही था तो फलां बुढ्ढे या बुढिया को ले लेता।

24- या अल्लाह! आख़िर इस की ऐसी क्या ज़रूरत पङ गई कि अभी से वापस बुला लिया।

यह तमाम की तमाम बातें कुफ्र हैं, याद रहे कुफ्रिया कलेमात बकने से या हां में हां मिलाने से या सिर्फ ताइद के लिए सर हिलाने से इन्सान काफिर हो जाता है ,उस का निकाह टूट जाता है, ज़िन्दगी भर के नेक अमल बरबाद हो जाते हैं, अगर हज कर लिया था तो वह भी गया,
अल्लाह हमें कुफ्रिया कलेमात से बचने की तौफिक़ दे आमीन
(خلاصہ 28کفریہ کلمات)



मुरत्तिब, तर्जुमा, व तस्हील
नेयाज़ अहमद निज़ामी

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گناہںوں کا انجام اور توبہ کی فضیلت (اردو) pdf




مصلح قوم و ملت، خطیب نوجوانان،حضرت مولانا امجد علی نظامی صاحب قبلہ  کی ایک مایا ناز تصنیف  بنام

  ,,گناہںوں کا انجام اور توبہ کی فضیلت" 

عام فہم زبان میں عوام الناس کی اصلاح کے لیئے منظر عام پر آ گئی ہیے جس میں آپ پڑھ سکینگے

١   توبہ کی فضیلت

٢   غیبت کی مذمت

٣   ظلم کی مذمت
 
    ٤   حسد کی مذمت
 
 ٥   ر شوت اور اس کا انجام
 
ہر موضوع اپنے میں علم کا خزینہ لیئے ہںوئے،
قرآن پھر حدیث اس کے بعد سبق آموز اقوال، نصیحت آموز حکایت کا سنگم ملاحظہ ہںو
 



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