neyaz ahmad nizami

Wednesday, May 8, 2019

रोज़ा के कुछ मसअले: हजरत मौलाना खालिद अय्यूब मिस्बाही




1:- क्या रोजे के दौरान मुहं में खून आ जाए तो रोजा टूट जाएगा?
1:- सिर्फ खून आने से रोजा नहीं टूटता बल्कि अगर किसी ने उसे निगल लिया तो रोजा जाता रहेगा वरना नहीं।

2:- क्या रोजा रख कर कोई व्यक्ति खून या शुगर की जांच करवा सकता है?
2:- जी हां! इसकी इजाजत है क्योंकि रोजा खाने-पीने और अपनी बीवी से मुलाकात करने से टूटता है जबकि खून की जांच या शुगर की जांच में जिस्म के अंदर कुछ नहीं जाता बल्कि जिस्म से खून निकाला जाता है।

3:- कोई व्यक्ति सुबह की अजान से पहले रोजे की नियत करके सो जाए और मगरिब की नमाज के बाद जागे तो क्या रोजा पूरा माना जाएगा?
3:- जी वह रोजादार माना जाएगा, शर्तें पाई जाने के बाद पूरे दिन सोने से रोजे पर कोई फर्क नहीं पड़ता अलबत्ता जान बूझ कर नमाज़ का एहतमाम ना करने की सूरत में उसका गुनाह बहर हाल होगा।

4:- रमजान की पहली रात क्या पूरे महीने के रोजों की नियत की जा सकती है?
4:- एक बार की नियत एक बार के रोजे के लिए काफी होगी पूरे महीने के लिए नहीं।

5:- रोजे की हालत में नकली दांत लगाए रहने से क्या रोजा मकरूह हो जाएगा?
5:- नकली या असली दांतो से रोजों का कोई तअल्लुक नहीं, रोजा बहर हाल हो जाता है।
दैनिक भास्कर 8/ मई 2019 में छपा हज़रत मौलाना खालिद अय्यब मिस्बाही से किए गए सवालात और उनके जवाबात का सिलसिला

6:- कौनसी बातें है जिनसे रोजा मकरूह हो जाता है?
6:- रोजे में बहुत सी चीजें मकरूह हैं जैसे: कोई चीज चबाना, या मुंह में डाले रखना, या मुंह में थूक इकट्ठा करना, या किसी चीज को चखना अलबत्ता अगर किसी औरत का शौहर या किसी नौकर का मालिक बहुत सख्त मिजाज हो और खाना चखना जरूरी महसूस हो तो उन्हें इस बात की इजाजत है कि जबान पर रख कर मजा मालूम कर लें और फिर थूक दें लेकिन इस बात का पूरा ख्याल रहे कि मुंह के अंदर कुछ भी ना जाए, कुल्ली करने या नाक में पानी डालने में बहुत मुबालगा करना, गीबत करना, झूठ बोलना, चुगली करना, गाली बकना, बेहूदा बातें करना, किसी को तकलीफ देना, रोज़ा रखने के वजह से अपनी परेशानी जाहिर करना, बिना जरूरत के मंजन करना, रोजे की हालत में वीडियो गेम, शतरंज वगैरह खेलते रहना, अगर इंजाल होने या जिमा करने का अंदेशा हो तो अपनी औरत को बोसा देना, गले लगाना और बदन को छूना मकरूह है जबकि होंट और जबान चूसना हर हालत में मकरूह है आदि।

7:- रोजे की नियत कब तक की जा सकती है?
7:- रात से लेकर जवाल के वक्त से पहले तक रोजे की नियत का वक्त होता है।

8:- गर्मी की वजह से क्या मगरिब और तरावीह की नमाज छत पर पढ़ी जा सकती है?
8:- नमाज किसी भी पाक़ीज़ा जगह पर पढ़ी जा सकती है अलबत्ता जब तक बहुत सख्त गर्मी ना हो या बड़ी मजबूरी ना हो मस्जिद की छत पर चढ़ने से परहेज करना चाहिए और आज लगभग हर मस्जिद में हवा का इंतजाम होता है, ऐसे में मस्जिदों की छतों पर नमाजों की इजाजत नहीं होगी।

9:- नाबालिग बच्चा रोजा रख कर तोड़ दे या उसके मां बाप रहम की वजह से बीच में रोजा खुलवा दें तो क्या रोजे की कजा करनी होगी?
9:- कजा के अहकाम बड़ों के लिए होते हैं, बच्चों पर ना रोजे फर्ज और ना ही बच्चों के रोजों की कजा, लेकिन जब तक मजबूरी ना हो बच्चों को रोजा तुड़वाना नहीं चाहिए, या फिर उनको रोजा रखवाना ही नहीं चाहिए।

10:- क्या मरीज दवा से इफ्तार कर सकता है?
10:- हर पाक गिजा से इफ्तार किया जा सकता है फिर भी बेहतर है कि खुजुर वगैरह मीठी चीज से इफ्तार हो लेकिन अगर दवा जरूरी हो तो उससे इफ्तार करना बेशक जायज है।
*दैनिक भास्कर* के 9/ मई 2019 के एडीशन में छपा हज़रत मौलाना *खालिद अय्यूब मिस्बाही* से हुए *सवाल व जवाब* का सिलसिला






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