हज़रत ख़्वाजा फरीदुद्दीन गंजशकर चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया(कहा) कि रसूल-ए-खुदा ﷺ ने फरमाया कि,
مَن اَحب العِلم وَالعلماء لَا یکتب خطیۃ
तर्जुमा: यानी जो व्यक्ती इल्म और ओलमा (ज्ञान और ज्ञानी) से प्रेम करता है उस का कोई गुनाह (पाप) नही लिखा जाता, सच्चा प्रेम ऊन का अनुसण करना है जब कोई उन से मुहब्बत करेगा तो ज़रूर उन का अनुसण करेगा और ना पसंदीदा बातों से रूका रहेगा और जब यह हालत होगू तो गुनाह (पाप) नही लिखा जाएगा ।
ओलमा और संतों की दोस्ती रसूल-ए-खुदा ﷺ की दोस्ती है,
पस ऐ दर्वेश (फक़ीर) ! जो इन्सान 7 दिन साफ दिल से आलिमों कि सेवा सत्कार करता है,गोया सात हज़ार साल अल्लाह की इबादत करता है,
इबेलीस लईन सब को धोका दे जाता है, लेकिन आलिमों और संतों को नहीं दे सकता, इस लिए कि आलिमों और संतों की दोस्ती से बढकर कोई चीज़ नही,जिस दिल में आलिमों और सूफियों का प्रेम हो उन के पापों का खलिहान उन की मुहब्बत का एक ज़र्रा जलाकर नाचीज़ कर देता है। फिर फरमाया कि आलिम हैं जो रात को जागे और दिन को रोज़ा रखें, आलिम की एक दिन की इबादत (पूजा) उस आबिदों (एबादत करने वाले) की 40 साल इबादत (पूजा) के बराबर है जो आलिम ना हो,
जब बलाएं मुसीबतें आसमान से उतरती हैं तो उस शहर पर कम उतरती होती हैं जिस में ओलमा और मशाईख हों। {ھشت بھشت /اسرارالاولیاء ص 129}
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