neyaz ahmad nizami

Tuesday, February 19, 2019

हज़रत सय्यद बदीउद्दीन (ज़िन्दा शाह मदार): नेयाज़ अहमद निज़ामी


सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (शाह मदार)  رحمۃ اللّٰه عليه


सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه सूफी बजुर्ग हैं जिन्हे भारत नेपाल में मदार बाबा के नाम से जानते हैं,
कुछ लोगों से इन के बारे में पूछने पर बताने से स्मर्थ रहे तो सोचा कि क्यूं ना इन के बारे में एक संक्षिप्त परिचय लिखा जाए जिस से जन मानस को इन के बारे में जानकारी मिले।

:: जन्म एंव खानदान ::

तज़केरतुल मुत्तकीन किबात में है कि,
پس حضرت شاہ کونین حسنی و حسینی از سادات جعفریہ اند  و در شہر حلب ملک شام بروز دو شنبہ بوقت صبح صادق یکم شوال سنہ چہارصد وچہل و دو ہجرۃالنبیﷺ خانہ حضرت قدوۃالدین سید علی حلبی را از فیض مقدم منور و پرنور فرمودند (تذکرۃالمتَّقِین ص 4


खुलासा: हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه मुल्के शाम (सीरिया/syriya) के शहर हलब में 1 शव्वाल (इस्लामी महीना का नाम) 242ھ को सुब्ह के समय पैदा हुए,आप के पीता श्री का नाम क़ाज़ी सय्यद अली हल्बी था, आप बनी फातेमा के सादात (सय्यदों) में से थे,

आप के पीता की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है,
सय्यद बदीउद्दीन बिन सय्यद अली हल्बी बिन सय्यद बहाउद्दीन बिन सय्यद ज़हूरुद्दीन बिन सय्यद अहमद बिन सय्यद इस्माईल बिन सय्यद मुहम्मद बिन सय्यद  इस्माईल सानी बिन सय्यद इमाम जाफर सादिक़ बिन सय्यद मुहम्मद बाक़र बिन सय्यद इमाम ज़ैनुलआबेदीन बिन सय्यद इमाम हुसैन शहीदे करबला बिन अ़ली رضي اللّٰه عنھم اجمعين

आप की माता की तरफ से खानदानी सिलसिला यूं है,
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार رحمۃاللّٰه عليه की माता,फातेमा सानी बिन्त सय्यद अब्दुल्ला बिन सय्यद ज़ाहिद बिन सय्यद मुहम्मद बिन सय्यद आ़बिद बिन सय्यद सॉलेह बिन सय्यद अबू यूसुफ बिन सय्यद अबुल क़ासिम मुहम्मद बिन सय्यद अब्दुल्लाह बिन हसन मुसन्ना बिन सय्यदना इमाम हसन बिन सय्यदना इमाम अली मुर्तुज़ा बिन अबी तालिब,
(تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص 1377/1378)

MADAR BABA

:: पीरी एंव मुरीदी ::
हज़रत सय्यद बदीउद्दीन ज़िन्दा शाह मदार को ज़ाहिर में पीरी एंव मुरीदी हज़रत तैफूर शामी उर्फ बायज़ीद बुस्तामी से प्राप्त हुयी। और यह सिलसिला यूं है,

“सय्यद बदीउद्दीन क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه, हज़रत शैख़ बा यज़ीद बुस्तामी, हज़रत ख़्वाजा हबीब अ़जमी, हज़रत ख़्वाजा हसन बसरी, हज़रत सय्येदुना अली  رضی اللّٰه عنہ، हज़रत मुहम्मद ﷺ„
हज़रत क़ूतुब मदार (ज़िंदा शाह मदार) رحمۃ اللّٰه عليه को बेगैर किसी वास्ता के होज़ूर ﷺ से फैज (फायेदा) पहुंचा है, एक बार हज़रत क़ाजी महमूद कंतूरी ने हज़रत ज़िंदा शाह मदार رحمۃ االلّٰه عليه से कहा कि अपना सिलसिला मुझे तहरीर करा दीजिए, तो आप ने कहा:
اُكْتُبْ اِسْمَكَ ثُمَّ اِسْمِي ثُمَّ اِسْمَ رَسُوْلِ اللّٰه ﷺ
तर्जुमा: अपना नाम लिख फिर मेरा फिर होज़ूर ﷺ का (اخبارالاصفیاء ص54)

ख़ूबी:
तमाम इतिहासकार आप के बारे मे लिखते हैं कि आप कुछ खाते पीते ना थे और आप का कपङा ही मैला ना होता था, और ना ही मख्यिां उन पर बैठती थीं,और चेहरे पर नूर (प्रकाश) इतना कि हमेशा चेहरा ढांप कर रखते थे,जैसा कि “मदार-ए-आज़म„ नामी किताब में है कि हज़रत शाह मदार जब “हज़रत बा यज़ीद बुस्तामी„ की सेवा मे पहुंचे तो हज़रत ने «हब्स-ए-दम» का ज्ञान दिया जिस से आप सालों साल तक खाने पीने की इच्छा ना होती थी, (مدار اعظم اردو 34-34)


:: हज़रत स0 बदीउद्दीन शाह मदार رحمۃ اللّٰه عليه का मक़ाम व मर्तबा::
आप ने तमाम दुनिया का पैदल यात्रा किया और बङे बङे फक़ीरों और संतों से मुलाक़ात की और बहुत से लोगों ने आप से रूहानी (अंतरात्मिक) फायदा प्राप्त किया, क्यूंकि आप अपने वक़्त के क़ूतुब-उल-मदार थे इसी लिए आप को आज भी “ज़िन्दा शाह मदार„ कहते हैं,

:: क़ूतुब-उल-मदार,शाह मदार,या मदारिया बाबा 
क्यूं कहते हैं?::
जब विलायत का मर्तबा (पोस्ट) प्राप्त होता है तो उस को “वली„ कहते हैं, फिर जब तरक्की होती है तो “अब्दाल„ का मर्तबा हासिल (प्राप्त) होता है, फिर “औताद„ का फिर “क़ूतुब-उल-अक़्ताब„ का फिर “क़ूतुब-उल-मदार„ का यह सब सरकार दोआलम ﷺ की उस खास इनायत और तवज्जो का नतीजा (प्रिणाम) था जो हज़रत शाह मदार के साथ थी।
क़ूतुब-उल-मदार नबी ﷺ के बरकत वाले दिल से फायेदा प्राप्त करता है और उस का फैज (साया/असर) तमाम “अलवी और सिफली„ दुनिया पर होता है, और 12क़ूतुब उन के हुक्म के ताबेअ़ (अंडर) में होते हैं, क़ूतुब-ए-मदार का नाम “अब्दुल्लाह„ होता है और सातों आसमान के उपर से लेकर सातों ज़मीन के निचे तक की दुनिय उस की नज़र में रहती है, (مدار اعظم ص53)
«आप के मदार नाम के बारे में जो मशहूर है कि मदार का दूध पीने की वजह से मदार नाम जुङा यह गलत है نیاز احمد»

हज़रत शाह सय्यद ग़ुलाम अली मुजद्दीदी नक़्श बंदी ने फरमाया है कि:
حضرت سید بدیع الدین قطب مدار قُدِّس سِرَّہ قطب مدار بودند و شان عظیم دارند و ایشاں دعائے کردہ بودند کہ الٰہی مُرا گُرسَنگی نہ شود و لباسِ من کُہنہ نہ گَردند و لباسِ ایشاں کہنہ نگشت ہمو وے یک لباس تا بہ ممات کفایت کرد.
तर्जुमा: हज़रत हज़रत स0 बदीउद्दीन ज़िन्दा शाह मदार رحمۃ اللّٰه عليه अपने समय में क़ूतुब-ए-मदार थे और बहुत उंचा मर्तबा रखते थे और उन्होने अपने लिए दोआ फरमाई थी कि “ऐ अल्लाह! मुझे भूक और प्यास ना लगे और मेरा कपङा कभी मैला और पूराना ना हो और ना फटे„  और ऐसा ही हुआ कि इस दुआ के बाद तमाम जीवन खाना नही खाया और कपङा पूराना नही हुआ और एक ही कपङा मौत के वक्त तक बदन मुबारक पर पङा रहा। (مدارالامعارف ص 253)
मज़ार ज़िंदा शाह मदार

:: भारत में आगमन ::
अपने भाई सय्यद “अब्दुल्लाह„ के तीनों बेटों 🕕हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अर्ग़ोन हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबू तोराब कन्सूरी और हज़रत ख़्वाजा सय्यद अबुल हसन को सरकार क़ूतुब-उल-मदार अपने साथ हिन्दुस्तान और फिर मकन पूर तशरीफ लाए और वेसाल (देहांत) से पहले इन्ही तीनों जिगर गोशों को कूतुब-ए-मदार ने अपने खलीफा और चेलों के भरे भीङ में अपना सहायक और खलीफा (उत्तराधिकारी) बनाया और उसी समय से इन्ही तीनों ख्वाजों के बीच खलीफा होते चले आ रहे हैं।
दूसरी बार नबी ﷺ की दरबार में हाजरी के बाद हज़रत शाह मदार को स्थाई भारत मे रहने का आदेश मिल गया, और दीन -ए- इस्लाम के पर्चार पर्सार में लग गए,
आप समुंदर से होते हुए एक जंगल में पहुंचे जहां नबी मुहतर जनाब मुहम्मद ﷺ से मुलाकात हुई आप ने बैअत की और होजूर ﷺ ने अपने हाथों से 9 लुक़्मे खिलाए और वह जन्नती कपङा पहना  जो जीवन भर के लिए काफी हो गया।और आप ने तमाम दुनिया का दौरा किया आप जहां भी पहुंचे आप की निशानियां यादगारें मौजूद हैं, जो आप के आने और धर्म पर्चार पर्सार की निशानियां ब्यान कर रही हैं, कहीं मदार चिल्ला„ मदार दरवाज़ा„ मदार टिकरी„ मदार पहाङी„ मदार गेट„ मदार ढाल„ मदार गंज„ मदार पूर और रौज़ा मदार वगैरह वगैरह हैं। (تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص 1431/1432)
MADAR BABA KI JIVANI
:करामत:
1-इसी सिलसिले में आप कंतूर फिर घाटमपूर पहुंचे यहां का राजा ला वल्द (बे औलाद) था आप की दुआ से साहब-ए-औलाद हुआ और इस्लाम लाया।

2- शहर दर शहर दावत-ए-दीन देते हुए “सूरत„ में पहुंचे यहां पर एक नाबीना (अंधा) भीक मांग रहा था हज़रत शाह मदार को रहम आ गया आप ने दुआ किया वह अंधा अंखियारा हो गया ,यहां बहुत से लोग ईमान लाए ।

3- एक दिन आप ने सेवक मुहम्मद यासीन से पानी वजू के लिए मांगा मगर पानी नही मिला फिर आप की करामत से पानी का चश्मा (सोता) नज़र आया जो अब तक ऐसन(ایسن) के नाम सो मश्हूर है। (کتب عامہ)

4- एक जोङा रोता हुआ मदार शाह की बारगाह में पहुंचा कि मेरा एक बच्चा था जो मर गया है अल्लाह से दुआ करिए कि वह जी जाए क्युंकि उस के जीवन में हमारा भी जीवन है इस में कोई संदेह नही कि अल्लाह ने आप को वह ताकत दी है जो चाहें वही हो जाए,हजरत क़ूतुब-ए-मदार उन से बहुत प्रेम का परिचय दिया और बच्चे की लाश के पास पहुंच कर फरमाया (कहा) قُمْ بِاِذنِ اللّٰه यानी अल्लाह के आदेश से उठ वह लङका ला इलाहा इल्लल्ाह  पढता हुआ उठा और कहा कि दुनिया की ज़िन्दगी में कोयी भलाई नहीं, आप आखेरत में भेज दें आप ने फरमाया कि ऐश-ए-दुनिया नेकी व परहेज़गारी के साथ बेहतर है उस मौत से जो बे गैर अमल (कर्म) है ।تاریخ سلاطین و صوفیاء جونپور ص) 1434)

HISTORY OF MADAR BABA

:: इंतेक़ाल (देहांत) ::
हज़रत शाह बदीउद्दीन कूतुब मदार ने फरमाया कि मेरे जनाज़ा की नमाज़ “मौलाना होसामुद्दीन सलामती„ पढेंगे, यह उस समय मौजूद ना थे जौनपूर थे कि यकाएक हज़रत के देहांत का हाल मालूम हुआ, और वहा से चलदिए और यहां हज़रत शाह  मदार साहब ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया मौलाना होसामुद्दीन जिस समय मकनपूर हाज़िर हुए हां देखते हैं कि मकान का दरवाज़ा बंद है, उनहोने दस्तक दी तो दरवाज़ा खुल गया देखा तो हज़रत शाह मदार साहब नहलाए और कफनाए हुए मौजूद हैं (यह काम अदृश्य लोगों नें कर दिया था) उस के बाद खादिमों (सेवकों) नें और चारों तरफ से जो लोग हज़रत के इंतेक़ाल की ख़बर सुन के आए थे जनाज़ा उठाया मौलाना होसामुद्दीन सलामती साहब ने जनाज़ा की नमाज़ पढाई उस के बाद पवित्र जिस्म को दफन कर दिया गया।  यह गम मे डूबा हुआ हादेसा 17जमादिल अव्वल 838 हिजरी को हुआ साकिन-ए-बहिश्त (ساکن بہشت) देहांत की तारीख है। (مدار اعظم ص 87-88)

dam madar beda paar


तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami




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