neyaz ahmad nizami

Wednesday, April 19, 2017

इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा यानी कून्डे की फातेहा


हिन्दुस्तान एंव पाकिस्तान के मुख्तलिफ अलाक़ों के सुन्नी मुसलमान 22,रजब को इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ  की नेयाज़ दिलाते हैं, जिसे कुन्डों की फातेहा कहा जाता है।
यह कोई पूरानी रस्म नहीं,बल्की लगभग डेढसौ साल की रस्म है और कहा जाता है कि:
इस की शुरूआत शीओं ने की थी और हकीकत में वह 22 रजब को सहाबिये रसूल हज़रत अमीर मोआ़वीया رضی اللہ عنہ की वफात (मृत्यू) का जश्न मनाते हैं,
मगर, सुन्नियों के डर से इस का नाम इमाम जाफर सादिक़ की फातेहा रख दिया यानी इस रस्में फातेहा के परदे के पीछे शियों का डर की वजह से सच्ची बात छूपाना शामिल है।

किसी के इसाल-ए-स़वाब के लिए कोई वक्त (समय) कोई खास तरीका नही है।

साल के किसी भी दिन रात में जैसे और जिस तरह चाहें इसाल-ए-सवाब कर सकते हैं।
और किसी भी बज़ुर्ग की फातेहा दिला सकते हैं,

बेहतर यह है कि इमाम जाफर सादिक़ رضی اللہ عنہ की इसाल-ए-सवाब के लिए  उन के इन्तेक़ाल की तारीख का ख्याल रखा जाए जो 15 रजब है,

और जो 22 रजब ही को नेयाज़ दिलाना चाहें वह इसाल-ए-सवाब के समय हजरते अबूबकर, हजरते उमरे फारूक़, हज़रते उस्मान गनी, हज़रते अली, हज़रते अमीर मोआविया رضی اللہ عنھم  का नाम खासकर लें, इन हज़रात के अलावा जिन का भी नाम लेना चाहें और इसाल-ए-सवाब करना चाहें करें, इस तरह शीयों का मक़सद नाकाम हो जाएगा ।
और उन की मुशाबेहत  का शक भी अपने आप खत्म हो जाएगा।


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 हज़रत सय्यदुना इमाम जाफर सादिक़  رحمۃ اللہ علیہ
कुन्डों की फातेहा में तरह तरह  की औरतों के ख्यालात और रस्मे हैं, जो बिल्कुल बेकार और बेहुदा हैं। इन बे अस्ल व बे बुनियाद  रस्मों से अहल-ए-सुन्नत को सख्त परहेज ज़रूरी है,
अल्लाह तआला  तमाम अहल-ए-सुन्नत को हर तरह के खतरों से महफूज़ (सुरक्षित) रख कर उन्हे सीधे रास्ते और बज़ूर्गों के नक़्शे क़दम पे चलने की तौफीक़ दे ।।

आमीन
یا رب العالمین بجاہ حبیبک سیدِ المرسلین علیہ و علی آلہ و اصحابہ اجمعین
यासीन अख्तर मिस्बाही
बानी व अध्यक्ष:: दार-उल-कलम दिल्ली





मुरत्तिब,तरजुमा व तस्हील
 Neyaz Ahmad Nizami






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