neyaz ahmad nizami

Friday, March 31, 2017

हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह की करामात

हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह वह रूहानी और मजहबी पेशवा थे जिनका अदना सा इशारा तकदीर बदलने के लिए काफी था। भला इस मक्बूल बारगााह की करामतों का भी शुमार (गिनती) हो सकता है ? आपकी जिन्दगी का एक-एक वाकिया करामत है। आपने जो करना चाहा, कर दिया और जो इरादा किया हो गया, आपकी दुआ बेरोक अर्श तक पहुंचती थी। इधर मुंह से निकली उधर कुबूलियत का दर्जा हासिल हुआ। आपसे बेशुमार करामतें जाहिर हुई, जिनमें से कुछ यहां लिखी जा रही है।

(1)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि मैं जब तक हुजूर गरीब नवाज रहमतुल्लाह की खिदमत में रहा, कभी आपको नाराज होते नही देखा। एक रोज ख्वाजा साहब र0 अ0 के साथ मैं और एक दूसरा खादिम शेख अली रहमतुल्लाह बाहर जा रहे थे कि अचानक रास्ते में एक शख्स शेख अली रहमतुल्लाह का दामन पकड़ कर बुरा भला कहने लगा। हजरत पीर व मुर्शिद ने उस शख्स से झगड़ा करने की वजह मालूम की। उस ने जवाब दिया यह मेरा कर्जदार है और कर्ज अदा नही करता। 
आपने फरमाया-‘ इसे छोड़ दो तुम्हारा कर्जा अदा कर देगा।‘ लेकिन वह शख्स नही माना उस पर हजरत पीर व मुर्शिद को गुस्सा आ गया और तुरन्त अपनी चादर मुबारक उतारकर जमीन पर डाल दी और फरमाया-‘ जिस कदर तेरा कर्जा है इस चादर से ले ले मगर खबरदार ज्यादा लेने की कोशिश न करना। उस शख्य ने अपने कर्ज से कुछ ज्यादा ले लिया, उसी वक्त उसका हाथ सूख गया। वह देखकर चिल्लाने लगा और मांफी मांगी। आपने उसे माफ कर दिया, उसका हाथ फौरन दुरूस्त हो गया और वह हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया।  

(2)

कहते है कि एक बार जब कि आप अपने मुरीदों के साथ सफर कर रहे थे, आप का गुजर एक जंगल से हुआ। वहां आतिश परस्तों (आग पूजने वालों) का एक गिरोह आग की पूजा कर रहा था। उन की रियाजत इस कदर बढ़ी हुई थी कि छः छः माह तक बगैर खाए-पिए रह जाते थे।
अक्सर उन की सख्त रियाजत से लोग इस कदर प्रभावित होते कि उन से अकीदत रखने लगते। उन की इस हरकत से लोग गुमराह होते जाते थे। ख्वाजा गरीब नवाज साहब रहमतुल्लाह ने जब उनकी यह हालत देखी तो उन से पूछा-‘ 
ऐ गुमराहो!  रब को छोड़कर आग की पूजा क्यो करते हो ?,
 उन्होने अर्ज किया-‘ आग  हम इसलिए पूजते है कि हमें दोजख में तक्लीफ न पहुंचाए।‘ 
आप ने फरमाया-‘ यह तरीका दोजख से छुटकारे का नही है। जब तक खुदा की इबादत नही करोगे कभी आग से निजात न पाओगे। तुम लोग इतने दिनों से आग को पूज रहे हो जरा इसको हाथ में लेकर देखो तो मालूम होगा कि आग पूजने का फायदा क्या है ?‘‘
उन्होनें जवाब दिया कि बेशक यह हम को जला देगी। क्यों कि आग का काम ही जला देने का है। मगर हम को यह कैसे यकीन हो कि खुदा की इबादत करने वालों को आग न जला सकेगी। अगर आप आग को हाथ में उठा लें तो हमको विश्वास हो जाएगा। आपने जोश में आकर फरमाया-‘ मुझको तो क्या, खुदा के बन्दे मुईनुद्दीन की जूतियों को भी आग नही जला सकती।‘ आप ने उसी दम अपनी जूतियां उस आग के अलाव में डालते हुए आग की तरफ इशारा कर के फरमाया-‘ऐ आग अगर ये जूतियां खुदा के किसी मक्बूल बन्दे की है तो उसको जरा भी आंच न आए।‘ जूतियों का आग में पहुंचना था कि तुरन्त आग बुझ गयी और जूतियां सही सलामत निकल आई।‘ इस करामत को देखकर आग पूजने वालों ने कलिमा पढ़ लिया और दिल से मुसलमान हो गये।

(3)

कहते है कि एक बार आप एक घने जगल से गुजर रहे थे । वहां आपका सामना कुछ कुफ्फार लुटेरों से हो गया जिनका काम यह था कि मुसाफिरों को लूट लेते थे और अगर कोई मुसलमान मुसाफिर होता तो सामान लूटने के अलावा उसे कत्ल भी कर देते थे। जब वे डाकू बुरी नियत से आपकी तरफ आए तो अजीब तमाशा हुआ। जिस हथियारबन्द (सशस्त्र) गिरोह ने सैकड़ो हजारों मुसाफिरों को बिला वजह खाक व खून में तड़पाया था, आपकी एक ही निगाह से थरथरा उठा और कदमों में गिरकर बड़ी आजिजी से अर्ज किया-‘ हम आपके गुलाम है और नजरे करम के उम्मीदवार है।‘ जब वह अपने बुरे कामों से तौबा करने लगे तो आपने उनको कलिमा पड़ा कर इस्लाम में दाखिल कर लिया और उनको नसीहत फरमायी कि कभी किसी के माल को अपने लिए हलाल न समझें।

(4)

कहते है कि सैर व सफर के दिनों में एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह और शेख शहाबुद्दीन सहरवरदी रहमतुल्लाह एक जगह बैठे हुए किसी मसअले पर बातचीत कर रहे थे कि सामने से एक कम उम्र लड़का तीर कमान हाथ में लिए हुए गुजरा। ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने उसे देखकर फरमाया यह लड़का देहली का बादशाह होगा।‘
आपकी यह पेशगोई (भविष्य वाणी) इस तरह पूरी हुई कि वही लड़का सुल्तान शम्सुद्दीन अलतमश के नाम से देहली के तख्त पर बैठा और छब्बीस साल तक बउ़े ठाठ से हुकुमत की।

(5)

एक रोज एक औरत रोती-चिल्लाती आपकी खिदमत में हाजिर हुई। बदहवासी व बेताबी में आपसे अर्ज करने लगी-‘ हुजूर ! शहर के हाकिम ने मेरे बेअे को बेकुसुर कत्ल कर दिया है, खुदा के लिए आप मेरी मदद कीजिए
उस औरत की दर्द भरी फरियाद से आपके अन्दर रहम व हमदर्दी पैदा हो गयी। आप तुरन्त असा-ए मुबारक हाथ में लेकर उठे और उस औरत के साथ रवाना हो गये। बहुत से खुद्दाम और हाजरीन भी आपके साथ होगए। जब आप लड़के की बे-जान लाश के पास पहुंचे तो बहुत देर तक चुप रहे और खड़े-खड़े उसी तरफ तकते रहे फिर आगे बढ़ कर और उसके जिस्म पर हाथ रखकर फरमाया-‘ ऐ मक्तूल! अगर तू बेगुनाह मारा गया है तो अल्लाह के हुक्म से जिन्दा हो जा ।‘ अभी आपकी जबाने मुबारक से ये शब्द निकले ही थे कि मक्तूल (मुर्दा) जिन्दा हो गया। आपने उसी वक्त फरमाया-‘ बन्दे को अल्लाह तआला से इस कदर निस्बत (सम्बन्ध) पैदा करनी चाहिए कि जो कुछ खुदा-ए- तआला की बारगाह में अर्ज करे कुबुल हो जाए। अगर इतना भी न हो तो फकीर नही है।

(6)

एक शख्स कत्ल करने की नीयत से आपके पास आया। आपको इसका इरादा मालूम हो गया। उस शख्स ने आपकी खिदमत में हाजिर होकर बडे अकीदत का इज्हार (प्रदर्शन) किया। आपने उससे फरमाया-‘ मैं मौजूद हूं तुम जिस नीयत से मेरे पास आए हो उसे पूरा करो।‘ यह सुनते ही वह शख्स कांप उठा और बहुत आजिजी से कहने लगा-‘हुजूर! मेरी जाती ख्वाहीश यह नही थी, बल्कि फलां शख्स ने मुझे लालच देकर मजबूर किया कि मैं इस नामुनासिब हरकत को करूं।‘ फिर उसने अपनी बगल से छुरी निकाली और आपके सामने रखते हुए अर्ज किया-‘आप मुझे इसकी सजा दीजिए।‘ आपने फरमाया-‘ अल्लाह के बन्दों का मक्सद बदला लेना नही जा मैंने तुझे माफ किया।‘ उस शख्स ने उस वक्त आपके कदमों पर गिरकर तौबा की और ईमान लाकर मुरीद हो गया।

(7)

हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह फरमाते है कि जिस जमाने में मैं ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में रहता था, एक बार हम ऐसे घने जंगल में पहुचे जहां कोई जानदार दिखाई न दिया। तीन दिन और तीन रात बराबर उसी उजाड़ जंगल में चलते रहे अन्त में मालूम हुआ कि उस उजाड़ जंगल के करीब ही एक पहाड़ है और उसी पहाड़ पर एक बुजुर्ग रहते हैं। जब हम उस पहाड़ के करीब पहंुचे तो पीर व मुर्शिद ने मुझे अपने पास बुलाया और मुसल्ले के नीचे हाथ डालकर दो ताजा और गर्म रोटियां निकाल कर दी और फरमाया-‘ पहाड़ के अन्दर एक बुजुर्ग है ये रोटियां उनको दे आओं।‘ मैं रोटियां लेकर उनकी खिदमत में गया और सलाम अर्ज करके पेश कर दी उन्होने एक रोटी तो अपने इफ्तार के लिए रख ली और एक रोटी मुझे दे दी। अपने मुसल्ले के नीचे से चार खजूरें निकालकर मुझे देते हुए फरमाया-‘ यह शेख मुईनुद्दीन को पहुचा दो। जब मैनं आकर खजूरें ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह की खिदमत में पेश की तो आप बेहद खुश हुए।

(8)

कहते है कि हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह के कियामे अजमेर के जमाने में जो लोग अजमेर और उसके आस-पास से हज के लिए तशरीफ ले जाते थे वह वापस आकर यकीनी तौर पर बयान करते थे कि हमने सरकार गरीब नवाज रहमतुल्लाह को खाना-ए-काबा का तवाफ करते देखा है हालांकि अजमेर शरीफ में आने के बाद आपको फिर कभी हज करने का इतिफाक नही हुआ।

(9)

एक बार हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह देहली के किले में बादशाह के साथ बात करने में मसरूफ थे और सल्तनत के दूसरे ओहदेदार भी साथ थे कि इतने में एक बदकार औरत हाजिर हुई और बादशाह से फरियाद करने लगी। उसने अर्ज किया कि हुजूर मेरा निकाह करा दें। मै सख्त अजाब में मुब्तिला हूं। बादशाह ने पूछा कि किसके साथ निकाह करेगी और किस अजाब में घिरी है? वह कहने लगी कि यह साहब जो आपके हाथ में हाथ डाले कुतुब साहब बने घूम रहे हैं उन्होने मेरे साथ (नउजुबिल्लाह) हराम कारी की है जिससे मैं हामिला (गर्भवती) हो गई हूं। यह सुनकर बादशाह और हाजिरीन को बहुत हैरत हुई और सब ने शर्म से गर्दने झुका ली। उधर कुतुब साहब के माथे पर शर्मिन्दगी और हैरत से पसीना आ गया। आपको उस वक्त कुछ न सूझा और दिल ही दिल में अजमेर की तरफ रूख करके ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह को मदद के लिए याद किया। ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह ने जैसे ही अपने मुरीद के दिल से खामोश चीख सुनी लब्बैक (हाजिर हूं) कहते हुए मदद के लिए फौरन आ गये। सब ने देखा कि सामने से हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह तशरीफ ला रहे है।
आपने कुतुब साहब रहमतुल्लाह से पूछा- मुझे क्यों याद किया है?‘ कुतुब साहब मुंह से तो कुछ न बोल सके लेकिन आंखो से आंसू जारी हो गये।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने इस बदकार औरत की तरफ रूख करके गुस्से से इर्शाद फरमाया-‘ ऐ गर्भ में रहने वाले बच्चे ! तेरी मां कुतुब साहब पर तेरे बाप होने का इल्जाम लगाती है, तू सच-सच बता।
उस औरत के पेट से इतनी साफ और तेज आवाज आई कि मौजूद सभी लोगों ने साफ सुनी। बच्चे ने कहा-‘हुजूर! इसका बयान बिल्कुल गलत है और यह और बड़ी हराम कार और झूठी है। कुतुब साहब के बदख्वाहों ने इसे सिखा कर भेजा है ताकि कुतुब साहब की इज्जत लोगों की नजर से गिर जाये।‘ यह बयान सुनकर मौजूद लोगों को बहुत हैरत हुई। उस औरत ने अपने झूठ बेालने और इल्जाम लगाने का इकरार किया।
ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  ने फरमाया-‘इज्जत अल्लाह के हाथ में है। और वापस अपनी जगह पर आ गये। हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह  के अलावा सब ही सरकार गरीब नवाज के तशरीफ लाने और गायब होने पर बहुत ज्यादा हैरत में थे।

(10)

कहते है कि एक रोज आपका एक मुरीद खिदमत में हाजिर हुआ। उस वक्त आप इबादत में थे। जब आप इबादत कर चुके तो उसकी तरफ ध्यान दिया। उसने अर्ज किया-‘ हुजूर! मुझे हाकिमे शहर ने  बिना किसी कुसूर के शहर बदर होने का हुक्म दिया है। मै बहुत परेशान हु।‘ आपने कुछ देर ध्यान लगाया और फरमाया-‘ जाओ, उसको सजा मिल गयी।‘ वह मुरीद जब शहर में वापस आया तो खबर मशहूर हो रही थी कि हाकिमे शहर घोड़े से गिरकर मर गया।

(11)

एक रोज ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह  अना सागर के करीब बैठे हुए थे। उधर से एक चरवाहा गाय के कुछ बच्चों को चराता हुआ निकला। आपने फरमाया-‘ मुझे थोड़ा दूध पिला दे।‘ उसने ख्वाजा साहब रहमतुल्लाह  के फरमान को मजाक समझा और अर्ज किया-‘बाबा! यह तो अभी बच्चे है, इनमें दूध कहां ?‘ आपने मुस्कुराकर एक बछिया की तरफ इशारा किया और फरमाया-‘ भाई इसका दूध पियूंगा, जा दूह ला।‘ वह हंसने लगा। आपने दोबारा इर्शाद फरमाया-‘ बरतन लेकर जा तो सही। वह हैरान होकर बछिया के पास गया तो क्या देखता हे कि बछिया के थन पहले तो बराय नाम थे और अब उसके थनों में काफी दूध भरा हुआ है। अतः उसने कई बरतन भर दूध निकाला जिससे चालीस आदमियों ने पेट भर कर पिया। यह देखकर वह चरवाहा कदमों में गिर पड़ और आपका गुलाम हो गया।

(12)

एक रोज हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अकीदत मन्दों में बैठे हुए वअज व नसीहत फरमा रहे थे कि आपकी नजर दायी तरफ पड़ी आप तुरन्त ताजीम (सम्मान) के लिए खड़े हो गये। इसके बाद यह सिलसिला जारी रहा कि जब भी दायी तरफ नजर जाती तो आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते। जब वअज खत्म हुआ और लोग चले गये तो आपके खास खादिम ने अर्ज किया-‘ हुजूर आज यह क्या हालत थी कि जब भी आपको नजर दायी तरफ पड़ती आप ताजीम के लिए खड़े हो जाते थे।‘ आपने फरमाया-‘ उसी जानिब मेरे पीर व मुर्शिद का मजार है और जब मेरी निगाह उस तरफ जाती तो रोजा-ए- अक्दा नजर आता, बस सम्मान के लिए खड़ा हो जाया करता था।

(13)

बुजुर्गो की मज्लिस में तय हुआ कि सब लोग कुछ करामात दिखाएं बस तुरन्त हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह मुसलले के नीचे हाथ ले गये और एक मुट्ठी सोने के टुकड़े निकालकर एक दुरवेश को जो वहां हाजिर था, दिया और दुरवेशों के लिए हलवा मंगवाने की फरमाइश की। शेख अवहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह ने एक लकड़ी पर हाथ मारा तो वह सोने की हो गयी। ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह के कहने पर हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह ने कश्फ (ध्यान मग्न) से मालूम किया कि इन्ही बुजुर्गो में एक दुरवेश बहुत भूखे है और शर्म की वजह से कुछ भी न कह सकते थे, बस आपने मुसल्ले के नीचे हाथ डाला और चार जौ की रोटियां निकालकर उस दुरवेश के सामने रख दी
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मुरत्तिब, तस्हीह,तसहील
Neyaz Ahmad Nizami




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