neyaz ahmad nizami

Saturday, March 11, 2017

अक़ीक़ा का बयान





अक़ीक़ा किसे कहते हैं?
बच्चा या बच्ची पैदा होने की शुक्रिया में जो जानवर ज़िबह (ज़बह-हलाल) किया जाता है उस को अ़कीक़ा कहते हैं,

इस के बारे में पहले कुछ हदीसें लिखी जाती हैं वह यह हैं,

हदीस़: इमाम बोख़ारी ने सलमान बिन आ़मिर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत की कि कहते हैं मैने रसूलुल्लाह ﷺ को फरमाते सुना कि लङके के साथ अक़िक़ा है उस की तरफ से ख़ून बहाओ (यानी जानवर ज़िबह करो) और उस से अज़ियत (परीशानी) को दूर करो यानी उस का सर मुंडाओ,,
(सहीह बुखारी,किताबुल अकीका, हदीस 5472, जिल्द3,पेज548)

हदीस़: अबूदाऊद बूरैदा रजियल्लाहु अन्हु से रावी कहते हैं  कि ज़माने जाहलियत (इस्लाम लाने से पहले)  में जब हम में से किसी के बच्चा पैदा होता तो बकरी जिबह करता  और उस का ख़ून बच्चा के सर पर पोत देता अब जबकि इस्लाम आया तो सातवीं दिन बकरी ज़िबह करते हैं और  बच्चा का सर मुन्डवाते हैं और सर पर ज़ाअफरान लगा देते हैं,
(अबूदाऊद,बाबुल अकीका, हदीस 2843, जिल्द 3, पेज144)
(बहार-ए-शरीयत, जिल्द 3, पेज 354)

मसअला: अक़ीक़ा मुस्तहब है उस के लिए सातवां दिन बेहतर है, अगर सातवीं दिन ना कर सकें तो जब भी  हो करें  सुन्नत अदा हो जाएगी,

मसअला: लङके के लिए दो बकरे और लङकी के लिए एक बकरी  ज़िबह (ज़बह-हलाल) की जाए यानी लङके मे नर जानवर और लङकी में मादा  मुनासिब है इस के उल्टा में भी कोई हर्ज नही है, बल्कि अगर दो ना हो सके तो  लङके में सिर्फ एक बकरी में भी हर्ज नहीं,



अक़ीक़ा का गोश्त क्या किया जाए
मसअला: अक़ीक़ा का गोश्त फक़ीरों और ग़रीबों और दोस्तों को कच्चा बांटा जाए या पका कर दिया जाए या दावत खिला दिया जाए सब जायज़ है,

मसअला: गोश्त को जिस तरह चाहें पका सकते हैं मगर मीठा पकाना बच्चा के अख़लाक अच्छे होने की फाल है,
 मसअला: अक़ीक़ा का गोश्त मां बाप दादा दादी वग़ैरह सब खा सकते हैं,

मसअला: अक़ीक़ा की खाल का वही हुक्म है जो क़ुर्बानी की खाल का है कि अपने काम में लाए  या ग़रीबों को दे दे या किसी  और नेक काम  मस्जिद मदरसा में खर्च करे,

(क़ानून-ए-शरीयत, हिस्सा 1, पेज 215-216,)


तर्जुमा व तसहील
Neyaz Ahmad Nizami

http://neyaznizami.blogspot.com/2017/03/blog-post_11.html

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