जब भी कुरान की तिलावत की जाए तो इससे पहले उनके आदाब और शरई अहकाम का लिहाज़ रखा जाए:
(10) ... जो व्यक्ति गलत पढ़ता है तो सुनने वाले
पर वाजिब है कि बता दे, बशर्ते कि बताने की वजह से बैर और ईर्ष्या पैदा न
हो। इसी तरह अगर किसी का मसहफ शरीफ अपने पास आरियत है, अगर इसमें लिखावट
की गलती देखे तो बता देना वाजिब है।(बहारे शरियत, भाग III, 1 / 552-553)
(1) ... कुरान मजीद देख कर पढ़ना, मौखिक पढ़ने से बेहतर है कि यह पढ़ना भी है और देखना और हाथ से उसका छूना भी और सब कुछ इबादत हैं।
(2)
... मुस्तहब यह है कि वजू के साथ क़िबला रू अच्छे कपड़े पहन कर तिलावत करे
और सुनाना शुरू में '' अऊ़ज़ '' पढ़ना मुस्तहब है और सूरत की शुरुआत में
'' बिस्मिल्लाह '' पढ़ना सुन्नत है वरना मुस्तहब है।
(बहारे शरीअत, भाग III, 1/550)
(बहारे शरीअत, भाग III, 1/550)
(3)
... कुरान को बहुत अच्छी आवाज से पढ़ना चाहिए और अगर पढने वाले की आवाज़
अच्छी न हो तो अच्छी आवाज़ बनाने की कोशिश करे। धुन के साथ पढ़ना कि हरूफ
में उतार-चढ़ाव हो जैसे गाने वाले क्या करते हैं यह ना जायज़ है, बल्कि
पढ़ने क़वायद तजवीद की रीयायत करे।
(बहारे शरीयत, भाग 16, 3/496)
(बहारे शरीयत, भाग 16, 3/496)
(4)
... लेटकर कुरान पढ़ने में हर्ज नहीं, जबकि पैर सिमटे हों और मुँह खुला
हो, यूहीं चलने और काम करने की हालत में भी तिलावत जायज़ है, जबकि मन न
बंटे, वरना मकरूह है।
(5) ... जब कुरान मजीद खत्म हो तो तीन बार ''
कुल हू अल्लाह अहद '' पढ़ना बेहतर है, अगर चे तरावीह में हो, लेकिन अगर
फर्ज़ नमाज़ में ख़त्म करे, तो एक बार से ज़्यादा न पढ़े।
(बहारे शरीयत, भाग 3, 1/551)
(बहारे शरीयत, भाग 3, 1/551)
(6)
... मुसलमानों में यह दस्तूर है कि कुरान पढ़ते समय अगर उठकर कहीं जाते
हैं तो बंद कर देते हैं खुला हुआ छोड़कर नहीं जाते, यह अदब की बात है,
लेकिन कुछ लोगों में यह प्रसिद्ध है कि अगर खुला हुआ छोड़ दिया जाएगा तो
शैतान पढ़ेगा, इस की कोई अस्ल नहीं, संभव है कि बच्चों को इस अदब की ओर
ध्यान आकर्षित करने के लिए यह बात की गई हो।
(बहारे शरूयत, भाग 16, 3/496)
(बहारे शरूयत, भाग 16, 3/496)
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(7)
... जब जोर से कुरान पढ़ा जाए तो सभी हाजरीन पर सुनना फर्ज़ है , जब कि वे
भीड़ कुरान सुनने हेतु उपस्थित हो वरना एक का सुनना काफी है अगरचे बाकी
लोग अपने काम में व्यस्त हो।
(8) ... मजलिस या किसी सभा में सब लोग जोर से पढ़ें यह हराम है। अगर कुछ व्यक्ति पढने वाले हूँ तो आदेश है कि धीरे पढ़ें।
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(9)
... बाजारों में और जहां लोग काम में व्यस्त हूँ जोर से पढ़ना ना जायज़
है, लोग अगर न सुनेंगे तो गुनाह पढने वाले पर है अगरचे काम में मश्गूल
होने से पहले उसने पढ़ना शुरू कर दिया हो और अगर वह जगह काम करने के लिए
मोकर्रर (फिक्स) ना हो तो अगर पहले पढ़ना उसने शुरू किया और लोग नहीं सुनते
तो लोगों पर गुनाह और अगर काम शुरू करने के बाद उसने पढ़ना शुरू किया, तो
उस पर यह गुनाह है।
मज़मून निगार:: इल्म-उल-कुरआन
अज़ '' सेरात-उल- जिनान फी तफसीरिल कुरआन
हिन्दी तर्जुमा व तसहील:: नेयाज अहमद निज़ामी
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