neyaz ahmad nizami

Tuesday, March 21, 2017

इस्लाम में मिस्वाक (दांतुअन) का महत्व




अल्लामा याह्या बिन शरफ़ इमाम नववी शाफ़ेई फरमाते हैं कि ..
अईम्मा-ए-केराम ने कहा है कि लकड़ी से दांत साफ करने की प्रक्रिया को सवाक कहते हैं
और
सवाक उस लकड़ी को भी कहते हैं
और उलेमा के शब्दों में लकड़ी या उसकी जैसी किसी चीज़ से दांत साफ करने को सवाक कहते हैं जिससे दातों का मैल और पीलापन दूर हो जाए
( मुस्लिम, 1/ 127)
सुन्न नबविया अला साहिबहा अस्सलातो वस्सलाम में कुछ कुछ सुन्नतें ऐसी भी हैं जो दिखने में बहुत मामूली दिखती हैं मगर वास्तव वह बहुत बङे सवाब का दर्जा रखता है उन्ही सुनन -ए- जमीला में से एक मिस्वाक भी है.जिसकी की फज़ीलत व अहमीयत से हदीस व फिक्ह की पुस्तकें मालामाल हैं .
हां कुछ हदीसें यहां नोट की जा रही हैं।
(1) हज़रत अबू ओमामह रजियल्लाहो अन्हू से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया मिस्वाक करो कि इसमें मुंह की पाकी और हक़ तआला की खुश्नूदी है।
(2) रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि जिब्रईल अलैहिस्सलाम हमेशा मुझे मिस्वाक की वसीयत करते रहे यहां तक कि मुझे भय हुआ कि कहीं मुझे और मेरी उम्मत पर फर्ज़ न होजाए,अगर मुझे अपनी उम्मत पर कठिनाई का डर न होता तो मैं उन पर मिस्वाक को फर्ज़ कर देता.मज़ीद इर्शाद फ़रमाते हैं कि मैं इस कदर कसरत (ज्यादती) से मिस्वाक करता हूं कि मुझे अपने मुंह के अगले भाग के छिल जाने का डर है।
(इब्ने माजा शरीफ)
(3) हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया मिस्वाक मुंह साफ करने वाली है और अल्लाह की रज़ा का सबब है।
(4) हज़रत होज़ैफा रजियल्लाहू अन्हु से मरवी है कि नबी करीमﷺ अपने मुंह मुबारक को मिसवाक से अच्छी तरह सजाते (संवारते) करते।
(5) हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि रसूल अल्लाह ﷺने फ़रमाया कि बंदा जब मिस्वाक कर लेता है फिर नमाज़ को खड़ा होता है तो एक फरिश्ता उस के पीछे खड़े होकर किराअत सुनता है फिर उस से करीब होता है यहां तक ​​कि अपना मुंह उसके मुंह पर रख देता।
(6) हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम ﷺ ने इर्शाद फरमाया मेरे नजडदीक दो रकाअते जो मिस्वाक कर के पढी जाएं अफज़ल हैं बे मिस्वाक की सत्तर रकाअतों से।
(7) हज़रत आएशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहू अन्हा ने फरमाया कि नबी करीम ﷺघर में प्रवेश करने के बाद सबसे पहले मिस्वाक किया करते थे। (मुस्लिम शरीफ, हदीस 499)
मिसवाक का हुक्म:
पहर वुज़ू में मिस्वाक सुन्नत है।
वुज़ू के अलावा इन वक्तों में मुस्तह़ब है।
(1) हरनमाज़ समय
(2) तिलावते कुरान के लिए
(3) सो कर उठने के बाद
(4) मुँह में जब भी किसी कारण बदबू पैदा हो जाए
(5) जुमा (शुक्रवार) के दिन
(6) सोने से पहले
(7) खाने के बाद
(8) सहर (सुबह) के समय
(नुज़हत-उल-कारी शरह बुखारी, जिल्द 2, सफ़ा 169)

आला हजरत इमाम अहमद रजा खां तहरीर फ़रमाते हैं कि
'' जब दुआ का एरादा हो पहले मिस्वाक करे कि अपने रब से मुनाजात करेगा ऐसी हालत में राईहा मोतगईराह सख्त ना पसंद है ,खासकर हुक्का पीने वालों और तंबाकू खाने वालों को इस अदब की रेआयत जिक्र व दुआ व नमाज़ में निहायत अहम है
और
हुजूरे अक़्दस ﷺ इर्शाद फरमाते हैं कि मिस्वाक रब को राज़ी करने वाली है और जाहिर है कि रजाई परब होसुले रब का सबब है। ''
(अहसन उल वेआ ले आदाबि दुआ, पे 036)


एसे ही इस्लामी मजमुन पढने के लिए क्लिक करें  http://neyaznizami.blogspot.com
मिस्वाक दुनियावी वा उख़रवी लाभ:
मिसवाक के वे फजायेल जो इमामे किराम रिजवानुल्ल अलैहिम से बरेवायते हज़रत अली, हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास, हज़रत अता रज़ियल्लाहु अन्हुम से मरवी है उन को आरिफ बिल्लाह शैख अहमद ज़ाहिद रहम तूल्लाह ने जमा फरमाया उन में से कुछ यहाँ नकल किए जाते हैं कि
'' मिस्वाक को अनिवार्य पकड़लो और कभी उस से ग़फलत मत करो, बराबर करते रहो.क्योंकि मिस्वाक करने वाले से रहमान राजी होता और मिस्वाक करने वाले की नमाज़ का स़वाब 99दर्जा तक बढ़ जाता है और कुछ रिवायतों में चार सौ तक है।
1.मिस्वाक की प्रतिबंधता कुशादगी और मालदारी पैदा करता है।
2.रिज़्क को आसान करती है।
3.मुंह को पाक व साफ करती है।
4.मसोढ़ों को मजबूत बनाती है।
5.दर्दे सिर में आराम करती है। और सिर की नसों में सोकून हो जाता है यहां तक कि कोई ठहरी नस हरकत नहीं करती। और कोई चलने वाली नस ठहरी नहीं होती।
6.सरका दर्द और बलगम जाता रहता है।
7.दानतों को बल और आंखों को जला देती है।
8.मेदे (हाज़मा) सही करती है .साथ ही साथ शरीर को ताकत देती है।
9। शब्दों की सही अदायेगी और याद दाश्त व बुद्धी में बढोत्री करती है , नेकियों में खूब खूब वृद्धि करती है।
10.क़ल्ब को पवित्रता प्रदान करती है।
11.फरशते खुश होते हैं और मुसाफेहा करते हैं उसके चेहरे की रोशनी की वजह से।
12.और जब नमाज़ के लिए मस्जिद जाता है तो फरिश्ते उसके पीछे पाछे चलते हैं और जब मस्जिद से निकलता है तो हामोलिने अर्श के फरिश्ते उसके लिए मगफेरत की दुआ करते हैं यूं ही हज़रात अंबिया किराम व रसुलाने एज़ाम अलैहिमुस्सलाम भी उसके लिए मगफेरत की दुआ करते हैं।
13.मिस्वाक शैतान को नाराज और दूर करने वाली है।
14. ज़ेहन की सफाई और खाने को हज़म में भी सहायक होती है।
15.औलाद बहुतायत का सबब होती है।
16.पुल सिरात से बिजली की तरह गुज़ार देती है।
17.बढ़ापे को स्थगित करती है। और पीठ को मजबूत बनाती है।
18.कयामत दिन मिस्वाक करने वाले का आमाल दाहिने हाथ में होगा।
19.मिस्वाक बदन को अल्लाह की अताअत फरमा बरदारी के लिए चुस्त करती है।
20.मरने को समय कलमा-ए- शहादत को याद दिलाता है, मौत को आसान करती है।
21.दांतों को सफेद और चमकदार करती है.मुंह की बु पाक करती है.हलक और ज़ुबान को साफ सुथरा करती है।
22.समझ को तेज करती है रतूबत को को रोकती है .निगाह को तेज करती है .अजर यानी नेकी के बदले को बढ़ाती है।
23.कब्र वुसअत और कुशादगी का सबब है कबर में उस की मूनस व गमखार होती है।
24.मिस्वाक करने वाले के लिए जन्नत के द्वार खोल दिए जाते हैं, और जहन्नम के द्वार उसके लिए बंद कर दिए जाते हैं।
25.रोज़ाना उस से फरिश्ते कहते हैं कि यह हजरात अंबिया किराम अलैहीम अस्सलाम की इक़्तेदा करने वाला, अनके नक्शेकदम पर चलने वाला और इनकी सुन्नत व तरीका को अपनाने वाला है।
26.मौत का फरिश्ता उसके पास उस सूरत में आता है जो सूरत में वलीय अल्लाह के पास आता है।
27.मिस्वाक करने वाला दुनिया से कुंच नहीं करता जब तक कि हमारे आका ﷺ के हौज़ से सैरयाब न हो जाए जो कि मुहर शुदा शराब है ..... और इन सब फवायद से बढ़ कर यह है कि''यह मुंह की शुद्धि के स्रोत और रजा ए इलाही का सबब है । '' आदि आदि ....
(हाशिए तहावी अल मराकील्फ़लाह, खंड 1, पी 37)

मिस्वाक के मकरूहात
1.मिस्वाक लेट कर न करे कि तली बढ़ने का कारण है।
2.मुट्ठी से पकड़ना मना है कि इससे बवासीर पैदा होती है।
3.मिस्वाक को चूसा न जाए कि इससे वसवसा और अंधापन पैदा होता है।
4.फारग होने के बाद न धोना कि इससे शैतान करता है।
5.शौचीलस में मिस्वाक करना मकरूह है।
6.मिस्वाक खड़ी कर कि रखना चाहिए उसे ज़मीन पर न डालें वरना जुनून का खतरा है। हज़रत सईद बिन जबीर रज़ियल्लाहु अन्हु से नकल किया गया है कि जो व्यक्ति मिस्वाक जमीन पर रखने के कारण मजनून हो जाए तो वह अपने नफ्स के अलावा किसी को कसूरवार न करे कि यह खुद उसकी गलती है।
7.अनार, रेहान और बांस की लकड़ी से मिस्वाक करना मकरूह है और हुज़ूर नबी करीम (स.अ.व.) ने रेहान की मिस्वाक मना कि यह कुढ होने का सबब है।
8.मिस्वाक की इब्तेदा एक बालिश्त (बित्ता) के बराबर होनी चाहिए बाद में अगर कम हो जाए तो कोई हर्ज नहीं और एक बालिश्त से अधिक लंबी न हो कि उस पर शैतान सवार होता है। (ऐज़न) 

इस्लामी गैर इस्लामी लेख पढने के लिए क्लिक करें  https://www.facebook.com/neyaz.ahmad.752
 
एक बहुत ही अहम और ज़रूरी फतवा
मिसवाक की जगह मंजन या ब्रश और टूथपेस्ट का इस्तेअमाल (उपयोग):
मंजन, ब्रश और टूथपेस्ट के इस्तेमाल से मिस्वाक सुन्नत अदा नहीं होगी कि
'' मिस्वाक''पेङ की ऐसी डाली को कहते हैं जो जिस से दांत की सफाई की जाए.इस हिसाब से मंजन और ब्रश मिस्वाक न हुए मंजन का मिस्वाक न होना तो जाहिर है कि न वह पेड़ की डाली, न उसमें मिस्वाक की तरह रेशे , न मिस्वाक जैसी बनावट.और ब्रश में गो कि मिसवाक की तरह रेशे होते हैं लेकिन यह पेड़ की डाली नहीं. और न इसमें मिस्वाक की तरह कड़वा पन, और न ऐसा मज़ा पाया जाता जो मुंह की गंध दूर करिदे और पित्त बलगम को दूर कर कि तबियत को पूर सकून बनाए इसलिए कि यह मसनून मिस्वाक के हुक्म से नहीं हो सकता।
'' ब्रश '' जिसे मिस्वाक से कुछ हद तक ममासेलत है इस बारे में इमाम अहमद रजा खां बरेलवी रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि '' मूल तो यह है कि मिस्वाक सुन्नत छोड़ कर नसरानियों का ब्रश इस्तेमाल करना ही सख्त जहालत हमाकत और द्ल की बीमारी की दलील है।
(फतावा रज़विया, जिल्द 10, पेज 80)
इससे मालूम हुआ कि ब्रश अपनाना मिस्वाक की सुन्नत को छोड़ना है .हाँ अगर मिस्वाक ना मिले तो अब उनके उपयोग से सुन्नते मिस्वाक हो जाएगी उसकी मिसाल यह मसअला है कि ... मिस्वाक मफकोद हो तो उंगली या गंभीर कपड़ा उसकी जगह है.और महिलाओं के लिए '' मसी''मुतलकन अदाए सुन्नत के लिए काफी है।
आलमगीरी में है कि '' उंगली मिसवाक की जगह नहीं हो सकती हां अगर मिस्वाक न मिले तो दाहिने हाथ की उंगली मिस्वाक के हुक्म में होगी, ऐसा ही मुहीत व ज़हीरिया में है.और महिला के लिए '' मसी''मुतलकन मिस्वाक का बदल है, ऐसा ही बहरालराईक और दुर्रे मुख्तार में भी है। '' मिस्वाक न हो या दांत ही न हो तो खुरदुरा कपड़ा उंगली मिस्वाक की जगह है ''
(बहरूराईक़, खंड 1, पी 78)
आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कहते हैं कि '' मिस्वाक न हो तो उंगली से दांत मानजना सुन्नत की अदा और सवाब के हासिल के लिए काफी नहीं .हाँ मिस्वाक न हो तो उंगली या खरखरा कपड़ा अदाये सुन्नत कर देगा तथा महिला के लिए मिस्वाक मौजूद हो तब भी मसी ही काफी है ''
(फतावा रजवीया, खंड 1, पी 148)
मिस्वाक अगरचे जमहूर ओलमा के नजदीक सुन्नत है लेकिन फर्ज़ या वाजिब नही मगर इसके बावजूद इस के आदाब व मुस्तहिब्बात की रेआयत निहायत ही जरूरी है। इसमें कोताही करना और लापरवाही बरतना नुकसान दह, हानिकारक है।
हज़रत अब्दुल्ला बिन मुबारक रजियल्लाहु अनहू फरमाते हैं कि
'' अगर किसी शहर के निवासी मिस्वाक का इनकार कर दे तो इमामे वक्त उनसे मुरतदीन की तरह कताल करे ''(खानिया आदि)
हज़रत अल्लामा इमाम शेरानी रहमतुल्लाह अलैह '' कशफ़ु-उल-गम्माह''में तहरीर फ़रमाते हैं कि
'' होज़ूर अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि जो व्यक्ति मिस्वाक से दूर बारी और बे रग़बती करेगा कि वह हम में से नहीं है। ''
परवरदिगार आलम हम सभी मुसलमानों को इस सुन्नते जमीला पर अमल करने की तौफ़ीक़ रफीक अता फरमाए..आमीन बजाह सैयद मुरसलीन
  •   मज़मुन निगार:मुफ्ती मोहम्मद रज़ा मर्कज़ी .मालेगांव
  •  हिन्दी तर्जुमा व तसहील:: नेयाज अहमद निज़ामी
 
that article copy from this link
http://nafseislam.com/articles

No comments:

Post a Comment