neyaz ahmad nizami

Sunday, March 5, 2017

बेटे को कैसा होना चाहिए?

















बेटे को कैसा होना चाहिए?
आईए इस सवाल का जवाब इस्लाम से पूछते हैं,इस्लाम ने अच्छे बेटे की जो ख़ूबियां और ज़िम्मादारियां बेयान की हैं उनमें से कुछ यहां पढिए और सीख हासिल कीजिए,
बेटे को मां बाप के साथ हुस्न-ए-सोलूक (अच्छा बरताव) नेहायत नरमी के साथ बरताव करने वाला,बुढे मां बाप को झिङकना ग़ूस्सा दिखाना तो दूर उन को उफ तक ना कहने वाला , शफक़त व मेहरबानी करते हुए उन के सामने आ़जजी करने वाला,और उन के लिए अल्लाह रब्बूल इ़ज़्ज़त की बारगाह से रहमत तलब (मांगने) करने वाला होना चाहिए ,    ( पा.15 बनी इस्राईल 23 से 24तक)
बेटे को मां बाप की ख़िदमत (सेवा) के समय होने वाली हर तकलीफों को हंसते हुए बर्दाश्त करने वाला होना चाहिए,
जैसा कि एक सहाबी ने अपनी मां को कन्धों पर उठाए ,तेज़ गरम पत्थरों वाले रास्ते पर चलते हुए 6 मील का सफर मुकम्मल किया,वह पत्थर इतने गरम थे कि अगर गोश्त का टुकङा उनपर डाला जाता तो कबाब हो जाता। (मोअजम सगीर 1,/92 हदीस 257)

बेटे को दिन रात की परवाह किए बग़ैर मां बाप की ख़िदमत (सेवा) में मसरूफ (व्यस्त) रहने वाला होना चाहिए,
जैसा कि हजरत बा यज़ीद बुस्तामी रहमतुल्लाह अलैह बहुत तेज़ ठंड रात में मां के लिए पानी का प्याला लिए सारी रात खङे रहे , यहां तक कि पानी बह कर उंगली पर जम गया और बरतन उंगली से चिमट (चिपक) गया , जब उंगली बरतन से छुङाया तो चमङा उखङने पर ख़ून बह निकला, (नुज़्हतुल मजालिस,1/261)

बेटे को मां बाप की हर ना गवार बात और ना रवा सोलूक पर सब्र करने वाला और हर हाल में मां बाप को राज़ी रखने की कोशिश करने वाला होना चाहिए,
जैसा कि एक बार रसुले करीम ﷺ ने फरमाया : जिसने इस हाल में शाम की कि मां बाप के बारे में अल्लाह तआला की ना फरमानी करता है उस के लिए सुब्ह ही को जहन्नम के दरवाज़े खुल जाते हैं,
तो एक शख्स ने अर्ज़ (कहा) किया अगरचे मां बाप उस पर ज़ुल्म करें?,
आप ﷺ ने फरमाया अगरचे ज़ुल्म करें, अगरचे ज़ुल्म करें, अगरचे ज़ुल्म करें, (शोएबुल ईमान 6/206.हदीस7916)

बेटे को मां बाप की वफात (मौत) के बाद भी उनकी इज़्ज़त व आबरू की हेफाज़त (रक्षा), उन के क़र्ज़ की अदाएगी, और उनकी क़स्में पूरी करने में कोशिश करने वाला होना चाहिए,
जैसा कि हदीस पाक में है : जो शख्स अपने वालिदैन (मां बाप) के इन्तेक़ाल (मौत) के बाद उन की क़सम सच्ची करे और उन का क़र्ज़ उतारे और किसी के मां बाप को बुरा कहके उन्हे बुरा ना कहलवाए वह वालिदैन के साथ भलाई करने वाला लिखा जाएगा अगरचे उनकी ज़िन्दगी में ना फरमान था ।(मोअजमुल औसत 4/232 हदीस 5819)

बेटे को ख़िदमत व ज़रूरत की वजह से बुलाने पर फौरन (तुरन्त) मां बाप के पास हाज़िर हो जाना चाहिए यहां तक कि अगर परदेस में हो तब भी,
जैसा कि बहार-ए-शरीयत में है '' बेटा परदेस में है , मां बाप इसे बुलाते हैं तो आना ही होगा,ख़त लिखना काफी नहीं है,युंही मां बाप को बोटे के सेवा की ज़रूरत हो तो बेटा आए और इन की सेवा करे (बहारे शरीयत 3/559)
ऐ अल्लाह हर बेटे को अपने मां बाप का फरमा बरदार बना आमीन
माहनामा फैज़ान-ए-मदीना,,मार्च2017 पेज 28

हिन्दी तर्जुमा व तसहील "". नोयाज़ अहमद निज़ामी
http://neyaznizami.blogspot.com/2017/03/blog-post_5.html

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