neyaz ahmad nizami

Friday, March 31, 2017

मैं ख्वाजा मोईनुद्दीन को नही जानता


गुम्बद ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती संजरी


हम हिन्दुस्तान  में हैं और ख्वाजा मोईनुद्दीन को नही जानते, हालंकि उन्ही के करम से हम आज इस्लाम जैसे पराचीन धर्म से जुङे,
 हमनें उन्हे जानने की कोशिश ही नही की,हमने कभी सोचा ही नही कि आज से सैकङों साल पहले भारत में क़दम रखने वाली हस्ती कौन है,उस का जीवन परिचय क्या है,उस शख्सियत ने भारत में परवेश कैसे और क्यूं किया तो आईए इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए यह मज़मून  आख़री तक पढते हैं

विलादत (जन्म): 14 रजब-उल-मुरज्जब 537 हिजरी (1142इस्वी) ,दिन: पीर (सोमवार),मक़ाम (स्थान) संजर।

विसाल (मृत्यू): 6 रजब-उल-मुरज्जब 632 हीजरी लगभग 95, साल

नाम मुबारक: मोईनुद्दीन हसन संजरी रहमतुल्लाह अलैह,

अलक़ाब: अता-ए-रसूल, ग़रीब नवाज़, सुल्तानुल हिन्द, ख्वाजा ख्वाजगान, वगैरह,

नसब नामा: नजीबु त्तरफैन (मां बाप की तरफ से)  सय्यद , बाप जान की तरफ से ''हुसैनी'' और अम्मी जान की तरफ से ''हसनी''  सय्यद हैं,

तालीम व तरबियत: आप ने शुरू की पढाई पिता ही से की,9साल की उम्र मे कुरआन मुकम्मल हिफ्ज़ कर लिया, उस के बाद संजर के एक मकतब में तफसीर, फिक्ह, व हदीस का दर्स (पाठ,सबक़) लिया,फिर पढाई के गर्ज़ से खुरासान , समरक़न्द, और बोखारा का सफर किया, वहां के मशहूर और जलीलुल कद्र आलिमों से तमाम ज़ाहिरी इल्म हासिल की।।

मुर्शिद कामिल (पीर,गूरू) की खिदमत में:
हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह, सय्यदुना उस़्मान हारूनी अलैहिर्रहमां की बारगाह में हाज़िर हुए और उन के हाथ पर बैअत (मुरीद,गुरमुख)  हुए आप 20 साल तक अपने पीर की खिदमत में रहकर तरबियत हासिल की और रेयाजत व मुजाहेदात में  मश्गूल रहे, और मारफते इलाही हासिल करली,


विलायते हिन्द की ख़ुशख़बरी:
हज़रते सय्यदुना उस़्मान हारूनी अलैहिर्रहमां ने अल्लाह से दुआ मांगी थी कि मेरे बेटे मोईनुद्दीन ने मेरी लम्बे समय तक सेवा की है इसे वह विलायत अता हो कि  किसी और को इस क़िस्म की विलायत न अता हुई हो,आवाज़ आई कि मोईनुद्दीन को हिन्द की विलायत दी जाएगी, जो आज तक हमने किसी अह-ए-इस्लाम को नही दी,लेकिन इसे चाहिए कि पहले मदीना मनव्वरा जाए और मेरो महबूब की इजाज़त से भारत में जाकर अपना फैज़ बांटे, हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने मदीना मनव्वरा के लिए सफर (यात्रा)का सामान बांधा,जब सरकारे दोआ़लम   की जेयारत हुई तो होज़ूर   ने हिन्दुस्तान की विलायत आप को दिया और हुक्म फरमाया कि  तुम्हारा मस्कन (रहने की जगह) अजमेर रखा गया है तुम्हारे वहां पहुंचने के बाद  हिन्दुस्तान में इस्लाम की बहुत तरक्की होगी।।



हिन्दुस्तान की तरफ सफर (यात्रा):
मुहम्मदे अरबी से हिन्दुस्तान की विलायत की खुश्खबरी मिलने के बाद हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अलैहिर्रहमां नें अपने ख़ास मूरीद (चेला) हज़रत क़ुत्बुद्दीन बख्तेयार काकी अलैहिर्रहमां को साथ लेकर हिन्दुस्तान की तरफ सफर के लिए रवाना हो गए, पहले बग़दाद शरीफ (ईराक़ की राजधानी) गए, और गौसे आज़म की बारगाह में हाज़िरी दी, फिर वहां से लाहौर (मौजूदा पाकिस्तान का एक शहर)  तशरीफ लाए, हज़रत दाता गंज बख्श अलैहिर्रहमां के मज़ार पर रूहानी बरकत हासील किए,लाहौर से देहली (देलही,दिल्ली) तशरीफ लाए ,वहां के राजा खान्डे राव के महल से कुछ ही दूर तबलीग़ व हिदायत (इस्लाम का परचार व परसार) का काम शुरू कर दिया,आप के पास आने वाले अक्सर लोग आप की तब्लीग से इस्लाम क़ोबूल (कबूल) करने लगे और आहिस्ता आहिस्ता वहां मुसलमानों की तादाद (संख्या) बढने लगी,





 अजमेर शरीफ में आमद (आगमन):
जब देहली में काफी लोग मुसलमान हो गए तो ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने अपने सब से प्यारे मुरीद और ख़लीफा (उत्तराधिकारी)  हज़रत क़ुत्बुद्दीन बख्तेयार काकी अलैहिर्रहमां को तब्लीग के लिए वहां मूक़र्रर (लगा) कर दिया   और अपने चालीस मुरीदों को लेकर अजमेर की तरफ चल दिए, सरकार ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलैह के अजमेर शरीफ में  आने के बाद इस्लाम तेज़ी से फैलने लगा,
  • अनासागर तालाब का पानी ख्वाजा के हुक्म से एक छोटे से प्याले में भर आया था इस करामत को देख कर बहुत सारे मुसलमान हुए,
  • राम देव पुजारी के साथ बहुत सारे पुजारी मुक़ाबला के लिए आए, आप ने सब को हरा कर मुसलमान बनाया।
  • अजमेर के राजा ने जोगी अजय पाल को बुलाया ताकि ख्वाजा को अपने जादू से अजमेर से निकाल दे अजय पाल ने जादू के हर पैंतरे ख्वाजा साहब पर आज़माए मगर सब बेकार गए और  ख्वाजा साहब पर कुछ भी अस़र ना हूआ, आखिर वह भी अपने साथियों के साथ मुसलमान हो गया



मुरत्तिब, तरजुमा,तसहील
Neyaz Ahmad Nizami

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