neyaz ahmad nizami

Thursday, March 2, 2017

ख़तना का बेयान (part1)


खतना इस्लाम की निशानी है
ख़तना सुन्नत है और यह इस्लाम की निशानी है कि मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम में इस से फर्क होता है इसी लिए समाज में इसे मुसलमानी कहते हैंऔर कहीं कहीं सुन्नत भी कहै जैतै है,रसूलुल्लाह ने फरमाया कि हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपना खतना किया,उस वक़्त उनकी उम्र 80 साल की थी, (सहीहैन)

ख़तना किस उम्र में होना चाहिए ?
मसअला: खतना की मुद्दत (समय) 7 साल से 12 साल की उम्र तक है और कुछ ओलेमा (आलिम का बहुवचन) ने कहा कि पैदाईश से सातवें दिन के बाद खतना करना जायज़ है (आलमगीरी) 

खतना कहां तक होना चाहिए ?
लङके के ज़कर के उपरी सिरे के बढे हुए खाल को काटना खतना कहलाता है
मसअला: लङके की खतना कराई गई मगर पूरी खाल नही कटी अगर आधे से ज्यादा कट गई है तो खतना हो गई बाक़ी का काटना ज़रूरी नहीं,
और अगर आधा या आधा से ज़्यादा बाक़ी रह गई तो खतना नही हुई,यानी फिर से होनी चाहिए,(आलमगीरी)

बुढा नौमुस्लिम (नया मुसलमान) कैसे खतना कराए ?
मसअला: बुढा आदमी ईमान लाया जिसमें खतना कराने की ताकत नही तो खतना कराने की ज़रूरत नहीं,
बालिग़ शख्स मुसलमान हुआ अगर खुद ही अपने हाथ से मुसलमानी कर सकता है तो करले वरना नहीं हां अगर मुमकिन हो कि कोई औरत जो खतना करना जानती हो उस से निकाह करे तो निकाह करके उस से खतना करा ले,(आलमगीरी)
लङके का ख़तना कराना किस के ज़िम्मा है ?
मसअला: ख़तना कराना बाप का काम है वह ना हो तो उस का वसी उस के बाद दादा फिर उस के वसी का मरतबा है,मामू और चाचा या उन के वसी का यह काम नहीं,हां अगर बच्चा उन की तरबीयत या देख रेख में हो तो कर सकते हैं (क़ानुन-ए- शरीयत हिस्सा2 पेज292)

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