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Thursday, March 23, 2017

औलाद अल्लाह की नेमत है - बेटा हो या बेटी

 
 
औलाद अल्लाह की नेमत है - बेटा हो या बेटी
नेक औलाद अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है हमारे नबी के जद्दे अमजद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की
रब मुझे नेक औलाद दे।
अल्लाह ने फरमाया 
तो हम उसे ख़ुश्ख़बरी सुनाई एक अक़ल मंद लड़के की। पारा 23 /सूरह वास्सफ़ात आयत 100 - 101
कई जगह कुरान मे अल्लाह ने औलाद जैसी नेमत का ज़िक्र फरमाया
ए ज़करिया हम तुझे खुशी सुनाते हैं एक लड़के की जिसका नाम याहया है।सूरतुल मरियम आयत 6
इससे मालूम हुआ नेक और सॉलेह बेटा अल्लाह की बड़ी रह़मत और नेमत है कि रब करीम ने इस सूरह में पुत्र सालेह (नेक) को रहमत और नेमत कहा इससे पता चला कि बेटे की दुआ करना नबियों की सुन्नत है मगर इसलिए कि वह आखिरत के लिए निजात का सबब हो (हाँ बेटी पैदा होने का ग़म करना काफिरों का तरीका है)
फ़ुक़्हा किराम फरमाते हैं:: यूं तो अल्लाह की सभी नेमतें आला (बङी) हैं पर ईमान की दौलत और औलाद की नेमत सभी नेमतों से आला नेमत हैं ,
नेमतों के बारे में रब का फरमान है और तुम्हें बहुत कुछ मुंह मांगा दिया और अगर अल्लाह की नेमते गिनो तो गिनती न सकोगे बेशक आदमी बड़ा ज़ालिम न शुकरा है।पारा 13 /रुकूअ 16 / सूरतुल इब्राहीम आयत नंबर 33) तहमारी सभी प्रकार के मुंह मांगी मुरादें करोड़ों नेमतें तुम्हारे बिना मांगे तुम्हें इनआम में अता किं। और बहुत सी नेमते मुंह मांगे बखशीं हम तुम्हारी ज़रूरतें तुम से अधिक जानते हैं हमारी अता, हमारे इनआ़म तुम्हारे मांगने पर (मौक़ूफ) नहीं क्योंकि तुम्हारे प्रत्येक रोंगटे पर करोड़ों नेमतें हैं और जब तुम्हे अपने बालों की गिनती नहीं तो हमारी दी हुई नेमतों की गिनती कैसे हो सकता है तुम्हारी गिनती संख पर खत्म होती है और वहां संख से शुरुआत होती है।
औलाद अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है::
माता पिता की ख़ूबियों के अमीन, उनके सपनों की ताबीर, नस्ली इम्तेदाद (दराज़ी पीढ़ी) का सबब, आंखों की ठंडक, हाथों की ताक़त, और घरेलू नीरंगियों की आत्मा औलाद ही का खुबसूरत साया है। अगर औलाद न हो तो घर अंधेरा और सूना मालूम होता हे. औलाद प्रदान करने का विकल्प अल्लाह के अलावा किसी को नहीं है, वह जिसे चाहता है बेटा देता है जिसे चाहता है बेटी देता है और जिसे चाहता है बेटा और बेटी दोनों प्रदान करता है, किसी महिला को बाँझ कर देता है और किसी पुरुष में यह ख़ूबी ही नहीं देता है,
  अल्लाह ही के लिए है जमीन और आसमान की सल्तनत,पैदा करता है जो चाहे, जिसे चाहे बेटियां अता फरमा दे और जिसे चाहे बेटा दे या दोनों मिला दे बेटे और बेटियों, और जिसे चाहे बाँझ कर दे वह इल्म और क़ुदरत वाला है। ( पारा 25 /रुकूअ 5 /सूरह शूरा आयत 48-49 )
 हकीकी बादशाह वही है वह जिसे चाहे शहंशाही बख़्शे जैसे बादशाहों को जडाहिरी बादशाही बख़्शी , और औलिया ए अल्लाह को बातिनी सल्तनत दी , मालूम हुआ कि औलाद महज अता रब्बानी हे.बड़े शक्तिशाली लोग, धनवान लोग औलाद से वंचित देखे गए हैं, कमज़ोरों का घर बेटों से भरा हुआ है, ( तफ्सीरे नूरुल इर्फान जिल्द 1 पेज 779)
गौरतलब बुजुर्गों और अवलियाउल्लाह की दुआओं से संतान मिलना भी रब की ही अता है जैसे नबी की दुआ से हज़रत अबू तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु का घर औलाद से भर गया। यह सब सूरतें अंबिया किराम में भी पाई जाती हैं तो हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम के यहाँ केवल लड़कियां थीं, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के केवल लड़के थे, हमारे नबी को अल्लाह ने लड़के, लड़कियों दोनों अता फरमाया हज़रत याहया अलैहिस्सलाम व यीशु के कोई संतान नहीं थी, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को केवल मिट्टी से बनाया जिनके न पिता है न माँ हज़रत हव्वा अलैहस्सलाम को आदम से पैदा किया उनकी मां नहीं, इसा अलैहिस्सलाम को सिर्फ औरत से पैदा किया उनका पिता नहीं और बाकी सभी इंसानों को पुरुष और महिला के मिलाप से बनाया उनके पिता भी हैं और माता भी हैं। जब बच्चों के नेमत और रीज़्क के ज़रीया की बहुतायत, स्वास्थ्य और भलाई मिल जातीं हैं तो इन्सान घमन्ड गोरूर का इज़हार करने लगता है हालांकि अल्लाह की नेमतों पर खुश होना या उस का इज़हार करना बुरा नहीं है, लेकिन वह इज़हारे नेमत के रूप में हो नाकी बड़ाई के लिए।
संतान जैसी नेमत की क़द्र यह है कि जहां तक हो उसकी क़ीमत को समझा जाए उस पर तवज्जो दिया जाए। इस्लाम में जन्म से पहले ही हिदायत (निर्देश) का एहतमाम (आयोजन) किया गया है लोग बच्चों के संबंध में हमेशा तग़ाफ़ुल (लापरवाही) से काम लेते हैं उनके तरबियत (प्रशिक्षण) से अनदेखी इतना ही नहीं एक सामाजिक और एखलाकी अपराध है बल्कि खुद उनके और उनसे मुतअल्लिक़ क़ौम व मुलेक के भविष्य को नष्ट करने के बराबर है यही कारण है कि सैयद आलम ने बच्चों के प्रशिक्षण को इबादत और उन्हें एक कलेमा-ए- ख़ैर सिखादेने को सदक़ा देने से बेहतर बताया है।
कुरान ने बच्चों के आखिरत की नाकामियों की जिम्मेदारी माता पिता के सिर डाल दी है और खासकर कर मोमिनों को संबोधित किया कुरान इर्शाद फरमा रहा है पारा 28 / सूरह-तजरीम-आयत6, ऐ ईमान वालों तुम अपने और अपने घरवालों को उस आग से बचाव जिसका ईंधन आदमी और पत्थर होंगे, उस पर ऐसे फरिश्ते नियुक्त हैं जो बड़े कठोर सख्त स्वभाव के हैं जो इर्शाद उन्हें फरमाया जाता है तुरंत बजा लाते हैं, ना फरमानी नहीं करते अल्लाह की जिसका उसने हुक्म दिया है जब यह आयत नाज़िल हुई तो हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हू अपनी और अपने परिवारों की जिम्मेदारियों के एहसास से प्रभावित और चिंतित हुए आप नबी .अ.व. के पास आए ऐ अल्लाह के रसूल (सल्ल।) अपने आप को दोज़ख से बचाने का अर्थ तो समझ में आ गया मगर घरवालों को कैसे दोज़ख से बचा सकते हैं आप अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया जिन चीजों से रब तुम्हें रोका है तुम अपने घरवालों को रोको जिन कामों को करने का आदेश दिया है तुम उन्हें अपने घरवालों को आदेश दो.
सब से अच्छा उपहार बच्चों के लिए ::
तिर्मिज़ी शरीफ में हजरत अय्यूब मूसा रजियल्लाहु अनेहू अपने पिता और अपने दादा के वास्ते से रिवायत करते हैं रसूलुल्लाह ने फरमाया अच्छी परवरिश से ज्यादा एक पिता का अपने बच्चों के लिए कोई इनआम नहीं एक बार सरकार ने फरमाया कोई बाप अपनी औलाद को इस से बेहतर कोई तोहफा नहीं दे सकता कि वह उसे अच्छी शिक्षा (तालीम) दे, हज़रत मौलाए कायेनात अली मुर्तजा रजियल्लाहु अन्हू का क़ौल है ''बच्चों को अदब (आदर सत्कार) सिखाओ और शिक्षा दो ''। इब्ने सीरियन से उल्लेख मिलता है बच्चों का सम्मान करो और उसे अच्छा अदब सिखाओ, नेक औलाद की तमन्ना रखने वालों के लिए शरीयत ने राह दिखाई है कि जिस समय मिलो, महिला के पास और स्खलन (मिलने का समय) हो तो उसे यह दुआ पढ़ना चाहिए ताकि बच्चा सालेह (नेक) हो शैतानी प्रभाव से मुक्त हो.بِسمِ اللہ اللھم جَنّبْنَی الشّیطانَ و جنَّبِ الشَّیطَانَ مَا رَزَقَنِی
 (अनुवाद) बिस्मिल्लाह ऐ अल्लाह मुझे शैतान से दूर रख और शैतान को मेरी औलाद से दूर फ़रमा।
अल्लाह के रसूल ने फरमाया कि यह दुआ पढ़े तो उसकी औलाद को कभी शैतान नुकसान नहीं पहुंचा सकता। (बुखारी शरीफ, मुस्लिम शरीफ़) जब पत्नी उम्मीद से हो तो पति परस्पर प्रेम और अनस और एकता का प्रदर्शन करे आपस में लड़ें झगड़ें नहीं इसलिए की जन्म से पूर्व परवरिश पाने वाला भ्रूण बाहरी असर करने वाली चिज़ो की पकड़ में होता है जिस तरह कैमरा की आंखें शरीर के अंदर छिपा कोनों तक पहुंच कर एक एक चीज को गवाह बना देती है। ऐसे ही भ्रूण (वह बच्चा जो जन्म से पूर्व हो) की परवरिश में माता पिता के व्यवहार को खासा दखल होता है ...... ऐसे समय में अल्लाह का ज़िक्र करते रहना चाहिए जबकि गर्भावस्था के दौरान डॉक्टरों को याद करते रहते हैं ताकि विलादत का कदम आसान हो तो जिस जात ने भ्रूण के पेट में ठहरने और नशोनमा का उपकरण किया है उस रब की तरफ बदरजा औला तवज्जो करना और उसे खुश रखने की फिक्र करना बुद्धीमानी करार दिया जाएगा,
कुरान में यह इशारा किया गया है

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 तो जब हमल (गर्भावस्था) ज़ाहिर हो गया तो दोनों ने अपने रब से दुआ की, जरूर अगर हमें जैसा चाहिए (नेक) बच्चा देगा तो बेशक हम शुक्रगुज़ार होंगे, अच्छे बच्चे मिलने पर तेरी इबादत और शुक्र गुज़ारी करुंगा पारा 9 / रूकुअ 13 / सूरतुल आराफ आयत 81 / .हज़रत लुकमान अलैहिस्सलाम के इर्शादात में है '' पिता का अदब की तालीम के लिए बच्चों को मारना खेती के लिए आसमान की बारिश के जैसा है '' (बाप की मार बच्चों के लिए बारिश के जैसा है) शेख सादी शिराज़ी रहमतुल्लाह अलैहि फरमाते हैं '' उस्ताद की सज़ा माँ बाप के प्यार से बेहतर है "
अदब बुजुर्गों से और नेकी अल्लाह से है।
अदब बुजुर्ग सिखाएंगे, नेक अल्लाह बनाएगा, जिसने बेटे को बचपन में अदब सिखाया बड़े होने पर इससे उसकी आंखों को ठंडक मिलेगी।
अल्लाह की उस नेमत (औलाद) की कद्र यह है कि जहां तक हो सके उस की क़द्र व किमत को समझा जाए उस पर तवज्जोह दिया जाए और जो ज़रूरतें हैं उन्हें पूरा किया जाए।
एक इब्रतनाक घटना को देखते चलें ::
मेरा एक व्यक्ति के यहाँ जाना हुआ बच्चा बहुत रो रहे थे, रोने की वजह मालूम करने पर पता चला कि बिजली नहीं होने के कारण रो रहा है, मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी ठंड के मौसम में पंखे क्या काम मालूम हुआ टी.वी (TV) नहीं चल रही है, बच्चा गाना सुनकर सोता है, बच्चा दो महीने का हो चुका था, अज़ान व इक़ामत नहीं सुनाई गई थी (नऊज़ोबिल्लाह),

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आप अन्दाज़ा लगाएं फिर शिकायत की कि बच्चे माता पिता के ना फरमान है। तिर्मिज़ी और अबू दाऊद शरीफ में हजरत अबू राफे सहाबी रसूल से रिवायत है मैंने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) को देखा वह (अपने नवासे) हसन इब्ने अली (रजियल्लाहु अन्हुमा) के कान में नमाज़ की अज़ान पढ़ते हुए जब हजरते फ़ातिमा रज़ियल्लाहू अन्हा के यहां उनकी विलादत हुई.
औवलाद अल्लाह की अता व नेमत है::
निमत के बारे में रब का फरमान है

और अगर अल्लाह की नेमतों को गिनो तो उन्हें गिनती नहीं कर सकोगे बेशक अल्लाह बख़शने वाला, मेहरबान है।पारा 14 / सूरतुल नहल आयत नंबर 17 /
  अल्लाह तआला ने हमे हजारहा अन्दरूनी नेमतें अता की उसमें औलाद भी है और कुछ बाहरी नेमतें भी अता फरमाएं और दोनों नेमतें हमारी गिनती से बाहर हैं, (चे जाएकि उन का शुक्बारिया अदा हो) कुफ्र व शिर्क करने के बावजूद के अपनी नेमतें बंदों पर बंद नहीं करता और बड़े से बड़ा गुनाह तौबा से माफ कर देता है। आज के माहौल में बच्चों से ख्वाहिश बढ़ती जा रही है, धन प्राप्ती की दौड़ (Race) में इंसान इस कदर लगे रहते हैं कि वे बच्चों के बारे में सोचने की जहमत गवारा नहीं विशेषकर पश्चिमी देशों में बच्चे कानून और शांति के लिए हजारों समस्याएं पैदा कर रहे हैं अमेरिका, यूरोप में आए दिन स्कूल में अंधाधुंध गोलियां चलाना, सैकड़ों को मौत के घाट उतार देना बराबर अखबार की सुर्खियां बनती रहती हैं इसलिए जरूरत है कि इन बच्चों की तरबियत इस्लामी तौर-तरीके के अनुसार की जाए ताकि वे बड़े होकर देश व राष्ट्र, परिवार और समाज और स्वयं जाति के लिए उपयोगी साबित हो सके। अल्लाह हम मुसलमानों को इस लेख से अमल की तौफ़ीक़ रफीक और लाभ नसीब करे। आमीन
 निबंधकार: मोहम्मद हाशिम कादरी सिद्दीकी मिस्बाही


तर्जुमा व तस्हील
Neyaz Ahmad Nizami


 

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